Thanjavur
Author:Laxman Burdak, IFS (R) |
Thanjavur or Tanjore is city and district of the state of Tamil Nadu, in southeastern India. Jorya or Joriya or Choliya was a Buddhist Kingdom visited by Xuanzang in 640 AD in South India. Alexander Cunningham[1] has identified Jorya with Thanjavur in Tamil Nadu.
Variants
- Tanjapura (तंजपुर) = Tanjaur (तंजौर) (AS, p.385)
- Tanjaur (तंजौर) (मद्रास) (p.385)
- Tanjapura (तंजपुर) = Tanjaur (तंजौर) (AS, p.385)
- Tanjavara (तंजावर) AS, p.385)
- Tanjavur (तंजावर) AS, p.385)
- Tanjore (तंजौर)
- Jorya = Tanjore (तंजौर)
Location
The Tanjavur district is located at 10.08°N 79.16°E in Central Tamil Nadu bounded on the northeast by Nagapattinam District, on the east by Tiruvarur District, on the south by the Palk Strait, of Bay of Bengal on the west by Pudukkottai District, and on the north by the river Kollidam, across which lie Tiruchirappalli and Perambalur districts.
History
Tanjore district was inhabited at least since the first millennium B. C. and was the traditional homeland of the Chola Dynasty. The Early Cholas ruled Tanjore from the 3rd century B. C. to the 3rd century A. D. The town of Poompuhar or Kaveripoompattinam served as an important port trading with Rome.
Following the Kalabhra interregnum, Tanjore recovered its past glory under the Pallavas and reached the zenith of its prosperity under the Medieval Cholas and Later Cholas.
In the 13th century, Tanjore was annexed by the Pandyas who were later defeated by Malik Kafur.
Tanjore was ruled for brief periods by the Delhi Sultanate and the Madurai Sultanate, till the 15th century, when it was conquered by the Vijayanagar kings under whom it recovered much of its glory.
Tanjore was a part of the Vijayanagar Empire and its successors, the Madurai Nayaks and the Thanjavur Nayaks, until 1674, when it was conquered by Venkoji a brother of Chattrapathi Shivaji, who founded the Thanjavur Maratha kingdom.
The British East India Company began to play a major part in the affairs of the region from 1749 onwards. In the 1760s and 1770s, the Thanjavur Maratha ruler, the Nawab of Carnatic and other major powers of the region were brought under the British sphere of influence. In 1799, the British East India Company assisted the deposed Thanjavur Maratha king Serfoji II in regaining his throne. In return for British assistance, Serfoji II retained his hold over Tanjore city and ceded the rest of his kingdom to the British East India Company. Tanjore city was eventually annexed by the British as per the Doctrine of Lapse in 1855 on the death of his son Shivaji without a surviving male heir. The district of Tanjore was created in about 1800, its limits almost the same as that of the preceding Thanjavur Maratha kingdom.
Places of historical importance
- Peruvudaiyaar Temple, built by the Cholas and a UNESCO World Heritage Site is located at Thanjavur.
- The green paddy fields and the Kaveri river provide for picturesque spots in the district.
- Airavateswara temple near Kumbakonam is also a UNESCO declared World Heritage site and another major tourist attraction in the district.
तंजौर
विजयेन्द्र कुमार माथुर[2] ने लेख किया है ... तंजौर (AS, p.385) पुराणों के अनुसार तंजौर का प्राचीन नाम तंजपुर है. तंज नामक राक्षस को विष्णु ने पेरूमल का रूप धारण करके मारा था. तंजपुर से ही तंजावर या तंजौर नाम बना है. तंजौर पाराशर-क्षेत्र के नाम से भी प्रसिद्ध है. प्राचीन परंपरा है कि दक्षिण भारत के लोग काशी की यात्रा के पश्चात तंजौर अवश्य जाते हैं. तंजौर नगर कावेरी नदी के दक्षिण की ओर बसा है.
तंजौर में दो दुर्ग हैं: बड़ा दुर्ग नगर के उत्तर की ओर और छोटा, जिसमें यहां का विख्यात मंदिर है, पश्चिम में है. पश्चिमोत्तर कोण में दोनों दुर्गों के सिरे मिल गए हैं. बड़े दुर्ग के भीतर नगर का प्रधान भाग और प्राचीन राजमहल है. छोटे किले में बड़े मंदिर के उत्तर में शिवगंगा नामक सरोवर है जिसके पास एक गिरजा बना हुआ है. इसके प्रवेश द्वार पर 1777 ई. अंकित है. राजमहल बड़े किले में है जिसका पहला भाग लगभग 1540 ई. का है. महल के आगे उत्तर की ओर बढ़ा चौगान या प्रांगण है जिसके चतुर्दिक मकानों की पंक्तियां हैं. चौगान के पूर्व और उत्तर में प्रवेश द्वार हैं. मकानों में अनेक काशी के मकानों की शैली में बने हैं.
राजप्रसाद से आधा मील दूर छोटे किले में, दक्षिण की ओर बृहदेश्वर का शिव मंदिर है. मंदिर के तीन और किले की दीवार और खाई तथा उत्तर की ओर मैदान है. मंदिर के बाहर दीवार के भीतर लगभग 13 बीघा भूमि घिरी हुई है. मुख्य मंदिर 1025 ई. में बना था किंतु इसका विशाल गोपुर 16वीं शती का है. स्तूपाकार शिखर में 13 तल हैं. इसका निचला भाग दो मंजिला है और 80 फुट ऊंचा है. इसके ऊपर के विशाल शिखर में 11 तल या खन हैं. इसके सहित मंदिर की समस्त ऊंचाई 190 फुट हो जाती है. मंदिर की संरचना अति विशाल पत्थरों से निर्मित है. शिखर पर स्वर्ण कलश चढ़ा हुआ है. कहा जाता है कि वह भीमकाय पत्थर जिस पर कलश आधृत है भार में 2200 मन है. यह तथ्य भी अनुमेय है कि मंदिर के भारी पत्थरों को पर्याप्त दूर से यहां तक लाने और ऊपर चढ़ाने में कितनी कठिनाई हुई होगी क्योंकि मंदिर के पास कहीं कोई प्रस्तर-खनि या पहाड़ी नहीं है. मंदिर का द्वार मंडप नीचा ही है और शिखर गोपुरों तथा आसपास के अन्य स्थानों से इतना अधिक ऊंचा है कि उसे देखने [p.386] वाले के मन में 3 मंदिर के प्रति उच्च भावना तथा सम्मान का अनायास ही प्रादुर्भाव होता है. मंदिर में एक ही पत्थर से निर्मित नंदी की 16 फुट ऊंची और 7 फुट चौड़ी विशाल मूर्ति है. बड़े मंदिर के पार्श्व में सुब्रमण्यम या कार्तिकेय का मंदिर है 1150 ई. के लगभग बना था. इसके गोपुर की ऊंचाई 218 फुट है. दूसरा मंदिर रामनाथस्वामी का है जो जनश्रुति के अनुसार श्री रामचंद्र जी द्वारा स्थापित किया गया था. मंदिर का विशाल बरामदा 4000 फिट लंबा है.
तंजौर को मंदिरों की नगरी समझना चाहिए क्योंकि यहां 75 से अधिक छोटे-बड़े देवालय हैं. पूर्व मध्यकाल में चोल साम्राज्य की राजधानी के रूप में यह नगरी बहुत समय तक प्रख्यात रही. चोलों के पश्चात तंजौर में नायक और मराठों ने राज्य किया था.
तंजौर परिचय
तंजावुर अथवा 'तंजौर' तंजावुर ज़िले का प्रशासिक मुख्यालय है, जो तमिलनाडु राज्य, दक्षिण-पूर्वी भारत में कावेरी के डेल्टा में स्थित है। नौवीं से ग्याहरवीं शताब्दी तक चोलों की आरंभिक राजधानी तंजौर, विजयनगर, मराठा तथा ब्रिटिश काल के दौरान भी समान रूप से महत्त्वपूर्ण रहा। अब यह एक पर्यटक स्थल है और इसके आकर्षणों में बृहदीश्वर चोल मंदिर, विजयनगर क़िला और मराठा राजकुमार सरफ़ोजी का महल शामिल है। कपास मिल, पारंपरिक हथकरघा और वीणा निर्माण यहां की प्रमुख औद्योगिक गतिविधियां हैं। तमिलनाडु के पूर्वी मध्यकाल में तंजौर या तंजावुर नगरी चोल साम्राज्य की राजधानी के रूप में काफ़ी विख्यात थी। तंजौर को 'मन्दिरों की नगरी' कहना उपयुक्त होगा, क्योंकि यहाँ पर 75 छोटे-बड़े मन्दिर हैं। वर्तमान में यह नगर चैन्नई से लगभग 218 मील दक्षिण-पश्चिम में कावेरी नदी के तट पर स्थित है।
चोल वंश ने 400 वर्ष से भी अधिक समय तक तमिलनाडु पर राज किया। इस दौरान तंजावुर ने बहुत उन्नति की। इसके बाद नायक और मराठों ने यहाँ शासन किया। वे कला और संस्कृति के प्रशंसक थे। कला के प्रति उनका लगाव को उनके द्वारा बनवाई गई उत्कृष्ट इमारतों से साफ़ झलकता है।
तंजौर चोल शासक राजराज (985-1014 ई.) द्वारा निर्मित भव्य वृहदेश्वर मन्दिर के लिए प्रसिद्ध है। इसका शिखर 190 फुट ऊँचा है। शिखर पर पहुँचने के लिए 14 मंज़िले हैं। यह मन्दिर भारतीय स्थापत्य का अदभुत नमूना है। यह चारों ओर से लम्बी परिखा से परिवेष्ठित है। इसमें एक विशाल शिवलिंग है। पत्थर का बनाया गया एक विशाल नंदी मन्दिर के सामने प्रतिष्ठित है। मन्दिर में विशाल तोरण एवं मण्डप हैं। यह वृहद् भवन आधार से चोटी तक नक़्क़ाशी और अलंकृत ढाँचों से सुसज्जित हैं। यह मन्दिर अन्य सहायक मन्दिरों के साथ एक प्रांगण के केन्द्र में स्थित है, किंतु सम्पूर्ण क्षेत्र उच्च शिखर द्वारा प्रभावित है। इसे राजराजेश्वर मन्दिर के नाम से भी जाना जाता है।
चोल शासकों के हाथों से कालांतर में तंजौर होयसल एवं पांड्य राज्यों के शासनाधीन हो गया। अलाउद्दीन ख़िलजी के नायक मलिक काफ़ूर ने इस पर आक्रमण कर लूटा। तदनंतर तंजौर विजय नगर साम्राज्य का अंग बन गया। 16वीं शताब्दी में यहाँ नायक वंश ने अपना राज्य स्थापित कर लिया। फिर 1674ई. में मराठों ने इस पर अधिकार कर लिया। यहाँ से विभिन्न शासकों के अभिलेख, मुद्राएँ आदि प्राप्त हुई हैं। होयसल नरेश सोमेश्वर एवं रामनाथ के अभिलेख तंजौर से प्राप्त हुए हैं।