Thakur
Thakur (ठाकुर)[1] [2] Thakuran (ठाकुरान)/Thakran (ठाकरान)[3] Thakran is title of Jats. This was used for Ishwara in Medieval periods but later it was adopted as personal title during Mughal by some important landlords of the period. The Thakurela or Thakurele Jats write Thakur. [4] Jats of Uttar Pradesh in Mathura, Agra, Aligarh, Bulandshahr; Jats of Rajasthan from Bharatpur, Dholpur write Thakur.[5]
Origin
Jat Gotras Namesake
- Thakur (Jat clan) = Thākura Māltu (ठाकुर माल्तु). Thākura Māltu is mentioned in 'Boria Statue Inscriptions of Jasarajadeva Kalachuri year 910 (1158 AD)'....It mentions Thākura Māltu, the Chief Minister (Mahāmātya) of the illustrious and victorious king, Mahārānaka Jasarājadeva (महाराणक जसराजदेव), and names his son, mother and daughter. [6]Boria is village in Bodla tahsil of Kawardha district in Chhattisgarh. It is located at about 20 miles to the north of Kawardha.
History
ठाकुर शब्द का प्रयोग मध्यकाल में ईश्वर, स्वामी या मन्दिर की प्रतिमा (मूर्ति) के लिए किया जाता था। मुगलकाल में शासकवर्ग ने इसका व्यवहार अपने नाम के साथ करना प्रारम्भ कर दिया। अक्तूबर 1720 ई० में देहली के सम्राट् मुहम्मदशाह ने चूड़ामन जाट को ठाकुर की पदवी तथा अधिकार देकर सम्मानित किया था। ठाकुर, परगने का शासक प्रबन्ध और शान्ति सुरक्षा के लिये जिम्मेदार होता था। इसी तरह राजा बदनसिंह को 18 मार्च 1723 ई० के दिन जयपुर नरेश सवाई जयसिंह ने अपने आमेर दरबार में ठाकुर की उपाधि से सम्मानित किया था।
राजपूतों में इस समय इसका प्रयोग अधिक है। राजस्थान, इलाहाबाद, आगरा, बरेली कमिश्नरी के राजपूत ठाकुर कहलाते है। राजस्थान और अवध में तो तमाम राजपूतों की उपाधि ठाकुर है और ठाकुर कह देने से ही राजपूत का पता लग जाता है। जाट लोग मथुरा, आगरा, अलीगढ़, बुलन्दशहर, भरतपुर, धौलपुर के सिनसिनवार, राणा, सिकरवार, भृंगुर, गोधे, चापोत्कट, ठकुरेले, ठेनवा, रावत - इन गोत्रों के जाट ही ठाकुर कहलाते हैं। यू० पी०, बिहार के पूर्वी भागों के राजपूत, ठाकुर के स्थान पर बाबू लिखते हैं। बंगाल के कुछ ब्राह्मण वंशों को भी ठाकुर कहा जाता है। राजपूताना, हरयाणा, मालवा, मध्यप्रदेश, पंजाब में कोई भी जाट अपने को ठाकुर नहीं लिखता है। जाट अपने ग्राम में जैसे कुम्हार को प्रजापति कहते हैं, वैसे ही अपने नाइयों को ठाकुर कहते हैं।[7]
ठाकुर देशराज[8] ने लिखा है ....सूबेदार सिंहासिंह इस समय अलवर 'राज्य जाट क्षत्रिय संघ' के उपप्रधान हैं। आप ठाकुरान गोत्र के जाट हैं। आपके पिता का नाम चौधरी रंजीत सिंह था। संवत 1942 में आपका जन्म हुआ. आप से छोटे तीन भाई और हैं। सन् 1904 में आप फौज में भर्ती हुए। सन् 1915 में मेसोपोटामिया के रण क्षेत्र में भेजे गए। इस युद्ध में अच्छी सेवा करने के सिलसिले में आप जमादार बनाए गए। सीमा प्रांत के पठान विद्रोह को दबाने के लिए जो सेनाएं गई उनमें आप भी थे। वहां आपको सूबेदार बनाया गया और IDSM का मेडल बहादुरी में मिला। 1925 में पेंशन ले ली। तब से आप अपने गांव में रहते हैं और कौम की सेवा करते हैं। इधर जब कौमी जागृति का बिगुल बाजा आप जाट क्षत्रिय संघ में शामिल हो गए 1940 में आपने अपने यहाँ उसका दूसरा वार्षिकोत्सव मनाया।
आप पक्के समाज सुधारक हैं। ब्याह-शादियों में कम से कम खर्च करते हैं। अलवर की जाट जागृति में भरपूर हाथ बताते हैं।
Distribution in Uttar Pradesh
Villages in Mathura district
Villages in Agra district
Agra,
Villages in Aligarh district
Villages in Bulandshahr district
Distribution in Rajasthan
Villages in Bharatpur district
Villages in Dholpur district
Distribution in Haryana
Villages in Hisar district
Notable persons
References
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Parishisht-I, s.n. ठ-3
- ↑ O.S.Tugania:Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu,p.41,s.n. 984
- ↑ O.S.Tugania:Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu,p.41,s.n. 984
- ↑ Mahendra Singh Arya et al: Adhunik Jat Itihas, p. 249
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter II,Page 83
- ↑ Corpus Inscriptionium Indicarium Vol IV Part 2 Inscriptions of the Kalachuri-Chedi Era, Vasudev Vishnu Mirashi, 1905, p. 585-586
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter II (Page 83)
- ↑ Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.82-83
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