Tughlakabad

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Tughlaqabad Fort is a ruined fort in Delhi, built by Ghiyas-ud-din Tughlaq, the founder of Tughlaq dynasty, of the Delhi Sultanate of India in 1321, as he established the fourth historic city of Delhi, which was later abandoned in 1327. It lends its name to the nearby Tughlaqabad residential-commercial area as well as the Tughlaqabad Institutional Area.

Origin

Variants

History

In 1321, Ghazi Malik drove away the Khaljis and assumed the title of Ghias-ud-din Tughlaq, starting the Tughlaq dynasty. He immediately started the construction of his fabled city, which he dreamt of as an impregnable, yet beautiful fort to keep away the Mongol marauder

तुगलकाबाद

विजयेन्द्र कुमार माथुर[1] ने लेख किया है ... तुगलकाबाद (AS, p.407): तुग़लकाबाद वर्तमान दिल्ली से लगभग 11 मील दक्षिण में तथा क़ुतुब मीनार से 3 मील दूर स्थित है। तुग़लकाबाद की नींव ग़यासुद्दीन तुग़लक (1320-1325 ई.) ने रखी थी और इसे अपनी राजधानी बनाया था। इस नगर को हज़ारों शिल्पियों तथा श्रमिकों ने दो वर्ष के कड़े परिश्रम से बनाया था। यह नगर से 7 मील की दूरी तक सुदृढ़ दुर्ग का विस्तार था आज भी तुग़लकाबाद क़िले के अवशेष मौजूद हैं। तुग़लकाबाद स्थित महल के बारे में मोरक्को यात्री इब्नबतूता लिखता है कि ग़यासुद्दीन का बड़ा महल सुनहरी ईंटों का बना था और सूर्योदय होता था, तब इतनी तेज़ी से चमकता था कि उस पर किसी की आँख नहीं ठहरती थी। लेकिन कुछ समय पश्चात् यह नगर एवं महल खण्डहर मात्र शेष हैं।

फिरोज़शाह तुग़लक के समय दिल्ली से राजधानी दौलताबाद देवगिरि ले जाने और वापस दिल्ली लाने से तुग़लकाबाद उजाड़-सा हो गया था। फ़िरोज़शाह तुग़लक (1351-1388 ई.) के समय तुग़लकाबाद तथा इसके उपनगर का विस्तार फ़िरोज़शाह कोटला स्टेडियम तक हो गया [p.408]:था, जो दिल्ली के दरवाज़े के निकट है।

फ़िरोज़शाह कोटला भी खंडहर हो गया है किंतु इस स्थान का खूनी दरवाजा आज भी 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के उस भयानक तथा करुणकांड की याद दिलाता है जिसमें अंतिम मुगल सम्राट बहादुर शाह के तीन राजकुमारों मिर्जा मुगल अबूबकर और खिज्र खां की निर्मम हत्या अंग्रेजों ने की थी. (देखें दिल्ली)


कला व चित्रकारी: इस पर मार्शल का मानना है कि पुराने खण्डहर तुग़लकाबाद के खण्डहरों से अधिक प्रभावोत्पादक होंगे। ग़यासुद्दीन तुग़लक़ का मक़बरा तुग़लकाबाद नगर की चहारदीवारी के भीतर ही बना हुआ है। यह लाल पत्थर का बना है और सुन्दरता के लिए कहीं-कहीं इसमें संगमरमर की पटिट्याँ जड़ी हुई हैं। इसका विशाल गुम्बज पूरा संगमरमर का बना हुआ है। मार्शल ने इसके बारे में लिखा है कि इस बनावट और विशेषकर चमकदार विशाल गुम्बज का प्रभाव यह पड़ा कि इमारत में कुछ हल्कापन और विविधता आ गयी है। लेकिन इसकी पक्की दीवारों और मज़बूत आनुपातिक बनावट से इसकी सादगी और मज़बूती का ही अनुमान होता है।

दिल्ली

विजयेन्द्र कुमार माथुर[2] ने लेख किया है ... पृथ्वीराज के तराइन के युद्ध में (1192 ई.) मारे जाने पर दिल्ली पर मुहम्मद गोरी (1149 – 1206) का अधिकार हो गया. इस घटना के पश्चात लगभग साढ़े 6सौ वर्षों तक दिल्ली पर मुसलमान बादशाहों का अधिकार रहा और यह नगरी अनेक साम्राज्यो की राजधानी के रूप में बसती और उड़ती रही. मुहम्मद गौरी के पश्चात 1236 ई. में गुलाम वंश की राजधानी दिल्ली में बनी. इसी काल में कुतुब मीनार का निर्माण हुआ. गुलाम वंश के पश्चात अलाउद्दीन (r. 1296 to 1316) ने सीरी में अपनी राजधानी बनाई.

तुगलक कालीन दिल्ली वर्तमान तुग़लकाबाद में थी किंतु फिरोजशाह तुगलक (1351-1388 ई) के जमाने में इसका विस्तार दिल्ली दरवाजे के बाहर फिरोजशाह कोटला तक हो गया. तुगलकाबाद में मुहम्मद तुगलक (r. 1324 to 1351) का मकबरा है. तुगलकों के पश्चात लोदियों का कुछ समय तक दिल्ली पर कब्जा रहा.

अशोक के दो प्रस्तर स्तंभ: इस लोह स्तंभ से प्राय: 600 वर्ष प्राचीन अशोक के दो प्रस्तर स्तंभ की दिल्ली में वर्तमान हैं. पहला स्तंभ तो सब्जी मंडी के निकट पहाड़ी पर है तथा दूसरा दिल्ली दरवाजे के बाहर फिरोजशाह कोटला में है. दोनों को फिरोजशाह तुगलक ने दिल्ली की शोभा बढ़ाने के लिए क्रमश: मेरठ तथा तोपरा (जिला अंबाला) से मंगवा कर स्थापित किया था. इस तथ्य का उल्लेख इब्नबतूता ने भी किया है. पहले स्तंभ पर अशोक के सात 'स्तंभ अभिलेख' उत्कीर्ण थे किंतु 1715 में इसको काफी क्षति पहुंचने के कारण इस पर का लेख मिटसा गया है.

External links

References