Tunganath
Author:Laxman Burdak, IFS (R) |
Tungnath (तुंगनाथ) is one of the highest Shiva temples in the world and is the highest of the five Panch Kedar temples located in the mountain range of Tunganath in Rudraprayag district, in the Indian state of Uttarakhand.
Location
The Tunganath (literal meaning: Lord of the peaks) mountains form the Mandakini and Alaknanda river valleys. It is located at an altitude of 3,680 m, and just below the peak of Chandrashila.
The temple is believed to be 5000 years old [2] and is the third (Tritiya Kedar) in the pecking order of the Panch Kedars. It has a rich legend linked to the Pandavas, heroes of the Mahabharata epic.[3][4]
Variants
- Tungnath (तुंगनाथ)
- Tunganatha (तुंगनाथ) (जिला गढ़वाल, उ.प्र.) (AS, p.406)
History
Legend
According to Hindu history Lord Shiva and his consort Parvati both reside in the Himalayas: Lord Shiva resides at Mount Kailash. Parvati is also called Shail Putri which means 'daughter of hills'.[1]
The Tunganath is indelibly linked to the origin of the Panch Kedar temples built by the Pandavas. The legend states that sage Vyas Rishi advised the Pandavas that since they were culpable of slaying their own relatives (Kauravas, their cousins) during the Mahabharata war or Kurukshetra war, their act could be pardoned only by Lord Shiva. Consequently, the Pandavas went in search of Shiva who was avoiding them since he was convinced of the guilt of Pandavas. In order to keep away from them, Shiva took the form of a bull and went into hiding in an underground safe haven at Guptakashi, where Pandavas chased him. But later Shiva's body in the form of bull's body parts rematerialized at five different locations that represent the "Panch Kedar" where Pandavas built temples of Lord Shiva at each location, to worship and venerate, seeking his pardon and blessings. Each one is identified with a part of his body; Tungnath is identified as the place where the bahu (hands) were seen: hump was seen at Kedarnath; head appeared at Rudranath; his navel and stomach surfaced at Madhyamaheshwar; and his jata (hair or locks) at Kalpeshwar.[2][3][4]
Legend also states that Lord Rama, the chief icon of the Ramayana epic, meditated at the Chandrashila peak, which is close to Tungnath. It is also said that Ravana did penance to Shiva, the lord of the peaks, when he resided here.[5]
In Mahabharata
Bhrigutunga (भृगुतुङ्ग) (M)/(T) in Mahabharata (III.82.45), (III.88.20),
Vana Parva, Mahabharata/Book III Chapter 82 mentions names Pilgrims . Bhrigutunga (भृगुतुङ्ग) (M)/(T) is mentioned in Mahabharata (III.82.45).[6].... Then, O Bharata, should one proceed to Rishikulya (ऋषिकुल्य) (III.82.43) and Vasishtha (वासिष्ठ) (III.82.43). By visiting the latter, all orders attain to Brahmanhood. Repairing to Rishikulya and bathing there, and living a month upon herbs, and worshipping the gods and Pitris, one is cleansed of all his sins, and obtaineth the region of the Rishis. Proceeding next to Bhrigutunga (भृगुतुङ्ग) (III.82.45) a person acquireth the merit of the horse-sacrifice.
Vana Parva, Mahabharata/Book III Chapter 88 mentions Tirthas in the North. Bhrigutunga (भृगुतुङ्ग) (M)/(T) is mentioned in Mahabharata (III.88.20). [7]....There also is the mountain named Puru (पुरु-पर्वत) (III.88.19) which is resorted to by great Rishis and where Pururavas (पुरूरव) (III.88.19) was born, and Bhrigu practised ascetic austerities. For this it is, O king, that asylum hath become known as the great peak of Bhrigutunga (भृगुतुङ्ग) (III.88.20). Near that peak is the sacred and extensive Vadari (बदरी-आश्रम) (III.88.22).....
तुंगनाथ
विजयेन्द्र कुमार माथुर[8] ने लेख किया है ...तुंगनाथ (जिला गढ़वाल, उ.प्र.) (AS, p.406) - केदारनाथ के निकट एक ऊंची पहाड़ी जहां चोपती चट्टी के पास 12080 फुट की ऊंचाई पर एक शिव मंदिर स्थित है. यह भारत का सर्वोच्च मंदिर है जिसके कारण तुंगनाथ का नाम सार्थक ही जान पड़ता है. इसकी गणना पंच-केदारों की जाती है और यहां बाहुरूपी शिव की उपासना की जाती है. तुंगनाथ को प्राचीन काल में उत्तराखंड का पुण्य स्थल समझा जाता था. महाभारत वन पर्व के अंतर्गत तीर्थ में उल्लिखित भृगुतुंग नामक स्थान संभवतः तुंगनाथ है. इसके पास ऋषिकुल्या नदी बहती हुई बताई गई है-- 'ऋषिकुल्यां समासाद्य नरः सनात्वा विकल्मष:, देवान् पितृंश्यार्चयित्वा ऋषिलॊकं परपद्यते। यदि तत्र वसेन मासं शाकाहारॊ नराधिप, भृगुतुङ्गं समासाद्य वाजिमेधफलं लभेत'--वनपर्व 84,49-50. 'भृगुर्यत्र तपस्तेपे महर्षिगण सेविते, राजन् स आश्रमः खयातॊ भृगुतुङ्गॊ महागिरिः' महा.वनपर्व 90,2,3. यहां इस स्थान को भृगु की तपस्थली बताया गया है. ऋषिकुल्या नदी गढ़वाल की ऋषिगंगा नामक नदी है
तुंगनाथ परिचय
तुंगनाथ मन्दिर उत्तराखंड के गढ़वाल के चमोली ज़िले में स्थित है। यह मन्दिर भगभान शिव को समर्पित है और तुंगनाथ पर्वत पर अवस्थित है। हिमालय की ख़ूबसूरत प्राकृतिक सुन्दरता के बीच बना यह मन्दिर तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है। मुख्य रूप से चारधाम की यात्रा के लिए आने वाले यात्रियों के लिए यह मन्दिर बहुत महत्त्वपूर्ण है।
स्थिति तथा निर्माण: यह मन्दिर समुद्र तल से लगभग 3,680 मीटर की ऊंचाई पर बना हुआ है। मन्दिर स्वयं में कई कथाओं को अपने में समेटे हुए है। कथाओं के आधार पर यह माना जाता है कि जब कुरुक्षेत्र के मैदान में पांडवों के हाथों काफ़ी बड़ी संख्या में नरसंहार हुआ, तो इससे भगवान शिव पांडवों से रुष्ट हो गये। भगवान शिव को मनाने व प्रसन्न करने के लिए पांडवों ने इस मन्दिर का निर्माण कराया। इस मन्दिर को 1000 वर्ष से भी अधिक पुराना माना जाता है। यहाँ भगवान शिव के 'पंचकेदार' रूप में से एक की पूजा की जाती है। ग्रेनाइट पत्थरों से निर्मित इस भव्य मन्दिर को देखने के लिए प्रत्येक वर्ष बड़ी संख्या में हज़ारों तीर्थयात्री और पर्यटक यहाँ आते हैं।[1]
मान्यताएँ: इस मन्दिर से जुड़ी एक मान्यता यह प्रसिद्ध है कि यहाँ पर शिव के हृदय और उनकी भुजाओं की पूजा होती है। इस मन्दिर की पूजा का दायित्व यहाँ के एक स्थानीय व्यक्ति को है। समुद्रतल से इस मन्दिर की ऊंचाई काफ़ी अधिक है, यही कारण है कि इस मन्दिर के सामने पहाडों पर सदा बर्फ जमी रहती है। अन्य चार धामों की तुलना में यहाँ पर श्रद्वालुओं की भीड कुछ कम होती है, परन्तु फिर भी यहाँ अपनी मन्नतें पूरी होने की इच्छा से आने वालों की संख्या कुछ कम नहीं है।
एक अन्य मान्यता के अनुसार भगवान राम ने जब रावण का वध किया, तब स्वयं को ब्रह्माहत्या के शाप से मुक्त करने के लिये उन्होंने यहाँ शिव की तपस्या की। तभी से इस स्थान का नाम 'चंद्रशिला' भी प्रसिद्ध हो गया।[2]
प्राकृतिक सुन्दरता: तुंगनाथ मन्दिर केदारनाथ और बद्रीनाथ मन्दिर के लगभग बीच में स्थित है। यह क्षेत्र गढ़वाल हिमालय के सबसे सुंदर स्थानों में से एक है। वर्ष के जनवरी और फ़रवरी के महीनों में आमतौर पर बर्फ की चादर ओढ़े इस स्थान की सुंदरता जुलाई-अगस्त के महीनों में और भी अधिक बढ़ जाती है। इन महीनों में यहाँ मीलों तक फैले घास के मैदान और उनमें खिले फूलों की सुंदरता मनभावन होती है।
मन्दिर का मार्ग: मन्दिर तक जाने के लिए वे यात्री जो उखीमठ का रास्ता अपनाते हैं, उन्हें अलकनंदा के बाद मंदाकिनी घाटी में प्रवेश करना होता है। इस मार्ग पर अत्यंत लुभावने और सुंदर नज़ारे देखने को मिलते हैं। आगे बढ़ने पर अगस्त्य मुनि नामक एक छोटा-सा क़स्बा पड़ता है, जहाँ से हिमालय की नंदाखाट चोटी के दर्शन होते हैं।
तुंगनाथ मन्दिर के प्रवेश द्वार पर चोपता की ओर बढ़ते हुए रास्ते में बांस के वृक्षों का घना जंगल और मनोहारी दृश्य दिखाई पड़ता है। चोपता से तुंगनाथ मन्दिर की दूरी मात्र तीन किलोमीटर ही रह जाती है। चोपता से तुंगनाथ तक यात्रियों को पैदल ही सफर तय करना होता है। पैदल यात्रा के दौरान बुग्यालों की सुंदर दुनिया से साक्षात्कार करने का अवसर मिलता है। इस दौरान भगभान शिव के कई प्राचीन मन्दिरों के दर्शन भी होते हैं। यहाँ से डेढ़ किलोमीटर की ऊँचाई चढ़ने के बाद 'मून माउंटेन' के नाम से प्रसिद्ध 'चंद्रशिला' नामक चोटी के दर्शन होते हैं।
देवहिरया ताल: चोपता से लगभग आठ किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद 'देवहिरया ताल' भी पहुँचा जा सकता है, जो तुंगनाथ मन्दिर के दक्षिण दिशा में स्थित है। यह एक पारदर्शी सरोवर है। इस सरोवर में चौखंभा, नीलकंठ आदि हिमाच्छादित चोटियों के प्रतिबिंब दिखायी देते हैं।
संदर्भ: भारतकोश-तुंगनाथ मन्दिर
External links
References
- ↑ https://www.euttaranchal.com/tourism/chopta.php
- ↑ Rajmani Tigunai (2002). At the Eleventh Hour. Shrine of Tungnath. Himalayan Institute Press. pp. 93–94. ISBN 9780893892128. Retrieved 15 July 2009.
- ↑ "Panch Kedar Yatra"
- ↑ Kapoor. A. K.; Satwanti Kapoor. Ecology and man in the Himalayas. M.D. Publications Pvt. Ltd. p. 250. ISBN 9788185880167.
- ↑ Rajmani Tigunai (2002). At the Eleventh Hour. Shrine of Tungnath. Himalayan Institute Press. pp. 93–94. ISBN 9780893892128.
- ↑ भृगुतुङ्गं समासाद्य वाजिमेधफलं लभेत, गत्वा वीर परमॊक्षं च सर्वपापैः परमुच्यते
- ↑ भृगुर यत्र तपस तेपे महर्षिगणसेवितः, स राजन्न आश्रमः खयातॊ भृगुतुङ्गॊ महागिरिः (III.88.20)
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.406