Turushka

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Author: Dayanand Deswal दयानन्द देसवाल

The term Turushka (Sanskrit: तुरुष्क) found in history books, is generally used for the people of Turkistan. In Sanskrit and Persian sources, they are known as the Indo-Scythians or Turks, who, under Kanishka and other kings of the people, held the territories of Northern India.

Variants

Generally, Turushka, a Sanskritized form of Turk, is used as an ethnic term for people from Central Asia. The Tamil word Tulukkan, denoting "Muslim", is in correspondence with Sanskrit Turushka. Sanskrit Turushka can also denote for Turan or Turkistan.

The Turkish Shahi rulers (Kābulshāhs or 'Turk-Shāhi') of north-west India, which were identified as 'Turks' in the Arab conquest literature, claimed Kushana ancestry, a circumstance which would suggest that they could be seen as representing a certain historical continuity linked to Central Asia. In the chronicle of Kashmir, also known as Rājataraṃgiṇī, there are recorded three Kushan king names, Hushka, Jushka and Kanishka, which were members of the Turkic Turushka tribe. In Kashmir, we do hear about Turks and Turushkas until the period of the Ghaznavids in the 11th and 12th centuries. Kalhana, the author of Rajatarangini, comments on certain Mleccha customs that the kings of Kashmir allegedly adopted from the Turks, such as the iconoclasm of 'Harsharājaturushka' and the keeping of excessively large seraglios of women. The Turkish Shāhi dynasty continued up to the late 9th century, when it was replaced by Brahman dynasty of the same title. Names of apparent Turkish origin, such as Toramāna, survived even among these Hindu 'Shāhi' kings. 'The Turushkas', states the Pṛthivirāja-vijaya (S. VI), 'came across the desert (marusthali); by the time they reached the Cāhamāna dominions, they were so thirsty that according to Jonarāja, they had to drink the blood of their horses'. It is also supposed that many Turushka horsemen in the army of Deva Raya II were possibly of Turkic origin.

There are three main conditions supporting the Turkic identity of the Turushkas:

  • the rulers of the Kushana were called "Turushka".
  • various Turkic tribes are referred to as "Turushka".
  • the dress of the Turushka resembles to that of the Göktürks.[1]

Amoda Plates Of Prithvideva I (Kalachuri) Year 831 (=1079 AD)

Amoda Plates Of Prithvideva I (Kalachuri) Year 831 (=1079 AD)[2] mentions in VV.4-6 as under:


(V. 4) The kings born in his (Kartavirya) family became (known as) Haihayas on the earth. In their family was born that (famous) Kôkkala, the first king of the Chaidyas (the people of the Chedi country)

(V. 5) By that king was erected on the earth a pillar of victory after forcibly dispossessing the kings of Karnata and Vanga, the lord of the Gurjaras, the ruler of Konkana, the lord of Shakambhari, the Turushka and the descendant of Raghu (Probably the contemporary prince of the Gurjara-Pratihara dynasty) of their treasure, horses and elephants.

(V. 6) He had eighteen, very valiant sons, who destroyed their enemies as lions break open the frontal globes of elephants , the eldest of them, an excellent prince, became the lord of Tripuri and he made his brothers the lords of mandalas by his side.

Thakur Deshraj writes

Thakur Deshraj, opines that the term Turushk means that they were the descendants of ancient king Turvasu -

कुषाण लोग कौन थे, इसके सम्बन्ध में भी दो भिन्न मत हैं। ‘राजतरंगिणी’ का लेखक उन्हें तुरुष्क और आधुनिक विद्धान यूहूची व यूचियों की एक शाखा मानते हैं। चीनी इतिहासकारों ने एक तीसरी राय इनके सम्बन्ध में यह दी है कि कुषाण लोग ‘हिंगनु’ लोग हैं। चाहे वे ‘तुरुष्क’ हों, चाहे ’यूची’ और ‘हिंगनु’ पर हर हालत में वे जाट थे। ‘पृथ्वीराज विजय’ के आधार पर बदायूं जिला निवासी ठा. रामलालजी हाला ने भी अब के कई वर्ष पूर्व यही बात लिखी है। तुरुष्क, यूची और हिंगनु लोगों के लिए अनभिज्ञ इतिहासकारों ने विदेशी और आर्यों से इतर जन मानने की भी अक्षय भूल की है। पुराणों की संकुचित मनोवृत्ति के आधार पर ही कुछ देशीय और विदेशीय विद्धानों ने तुरुष्कों और यूचियों को विदेशी


जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठान्त-201


मानने की स्थापना की है। तुरुष्क चन्द्रकुल के संभूत राजा तुर्वुस की सन्तान हैं, जिन्हें कि पुराणकारों ने केवल इस अफराज से कि वहां तक ब्राह्मण नहीं पहुंचते थे, उनको पतित क्षत्री बताने की धृष्टता की है। कनिघंम के शब्दों में भारत के जाट, यूरोप के जेटी और गाथ और चीन के यूची व ज्यूटी एक ही हैं। तुर्क या तुरुष्क जैसा कि लोग समझते हैं, मुसलमान यवन अथवा अनार्य नहीं हैं। तुर्वुस के प्रदेश का नाम तुरुष्क अथवा तुर्किस्तान है और किसी भी वंश अथवा जाति का आदमी जो कि तुर्किस्तान में रहता हो, तुर्क कहलायेगा। उसी तुर्किस्तान में जेहून, आक्सस, हिंगनू, जगजार्टिस नाम की उपजाऊ भूमि में भारतीय क्षत्रिय जाति रहती थी, वह जूटी, जोयी और यहूची कहलाती थी और हिंगु अथवा हिंगनू कुषाण आदि उसकी शाखायें थीं। यह तो हम पिछले अध्यायों में बता ही चुके हैं कि प्रजातन्त्रीय राजवंशों के संगठित समुदाय का नाम जाट है जिनमें कृष्ण, अर्जुन, दुर्योंधन, शुरसेन, भोज, शिव परिवारों के वंशज शामिल हैं। कुषाण वे लोग हैं जो कि पांडवों के साथ महाप्रस्थान में कृष्ण-वाशियों में से गये थे। संस्कृत के कार्ष्णेय तथा कार्षणिक से कुषाण शब्द बना, इसमें सन्देह करने की गुंजायश नहीं रह जाती। यह कुशन नहीं है, बल्कि जाटों के अन्तर्गत पाये जाने वाले ‘कुशवान’ हैं

“कहावत है कि जब भूल होती है और खास तौर पर पढ़े लिखों से भूल होती है तो दहाई भूली जाती है और गणित में तो भूल चाहे आरम्भ में हो चाहे मध्य में उनका अन्तिम नतीजा भी भूल ही होता है। जातियों के निर्णय में भी लगभग यही बात है। यदि किसी जाति को वैश्य करार दे दिया तो उसके पुरखे का नाम भी कुबेर ही बताना पड़ेगा, चाहे वह शिशुपाल की संतान हो और चाहे बाल्मीकि की और चाहे बेचारे कुबेर के बाप दादे भी कभी वैश्य न रहे हों। कुषाणवंशी जाट क्षत्रियों के सम्बन्ध में भी बिलकुल यही बात हुई है। जहां उनके सम्बन्ध में यह भ्रान्ति हुई कि वे विदेशी हैं, उसके साथ ही यह भी भ्रान्ति हो गई कि वे विजातीय और विधर्मी भी थे और बौद्ध धर्म को ग्रहण करके हिन्दू हो गए, और हो भी आनन-फानन में गए, और ऐसे हुए कि खास हिन्दुस्तान के हिन्दुओं को भी मात कर दिया।”[3]

External Links

References