Rishyamuka: Difference between revisions

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== Variants ==
== Variants ==
*[[Rishyamuka Parvata]] (ऋष्यमूक पर्वत) ([[AS]], p.108)
*[[Rishyamuka Parvata]] (ऋष्यमूक पर्वत) ([[AS]], p.108)
*[[ Rishyamuka Mountain]]
*[[Mount Rishyamuka]]
*[[Mount Rishyamuka]]



Revision as of 04:14, 18 February 2019

Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Rishyamuka (ऋष्यमूक) is a mountain near Vijayanagara in south India, mentioned in Ramayana.

Origin

Variants

History

ऋष्यमूक पर्वत

विजयेन्द्र कुमार माथुर[1] ने लेख किया है ...ऋष्यमूक पर्वत (AS, p.108) वाल्मीकि रामायण में वर्णित वानरों की राजधानी किष्किंधा के निकट स्थित था। इसी पर्वत पर श्री राम की हनुमान से भेंट हुई थी। बाद में हनुमान ने राम और सुग्रीव की भेंट करवाई, जो एक अटूट मित्रता बन गई। जब महाबलि बालि ने अपने भाई सुग्रीव को मारकर किष्किंधा से भागा तो वह ऋष्यमूक पर्वत पर ही आकर छिपकर रहने लगा था। उसने सीता हरण के पश्चात् राम और लक्ष्मण को इसी पर्वत पर पहली बार देखा था- 'तावृष्यमूकस्य समीपचारी चरन् ददर्शद्भुत दर्शनीयौ, शाखामृगाणमधिपस्तरश्ची वितत्रसे नैव विचेष्टचेष्टाम्' (किष्किंधा., 1,128)

अर्थात् "ऋष्यमूक पर्वत के समीप भ्रमण करने वाले अतीव सुन्दर राम-लक्ष्मण को वानर राज सुग्रीव ने देखा। वह डर गया और उनके प्रति क्या करना चाहिए, इस बात का निश्चय न कर सका।"

श्रीमद्भागवत में भी ऋष्यमूक का उल्लेख है- 'सह्योदेवगिरिर्ऋष्यमूक: श्रीशैलो वैंकटो महेन्द्रो वारिधारो विंध्य:।' (श्रीमद्भागवत 5,19,16) तुलसीरामायण, किष्किंधा कांड में ऋष्यमूक पर्वत पर राम-लक्ष्मण के पहुँचने का इस प्रकार उल्लेख है- 'आगे चले बहुरि रघुराया, ऋष्यमूक पर्वत नियराया।'

दक्षिण भारत में प्राचीन विजयनगर साम्राज्य के खंडहरों अथवा हम्पी में विरूपाक्ष मन्दिर से कुछ ही दूर पर स्थित एक पर्वत को ऋष्यमूक कहा जाता है। जनश्रुति के अनुसार यही रामायण का ऋष्यमूक है। मंदिर को घेरे हुए तुंगभद्रा नदी बहती है। ऋष्यमूक तथा तुंगभद्रा के घेरे को चक्रतीर्थ [p.109]: कहा जाता है। चक्रतीर्थ के उत्तर में ऋष्यमूक और दक्षिण में श्री राम का मंदिर है। मंदिर के निकट सूर्य और सुग्रीव आदि की मूर्तियाँ स्थापित हैं। प्राचीन किष्किंधा नगरी की स्थिति यहाँ से 2 मील दूर, तुंगभद्रा नदी के वामतट पर, अनागुंदी नामक ग्राम में मानी जाती है।


ऋष्यमूक पर्वत रामायण की घटनाओं से सम्बद्ध दक्षिण भारत का पवित्र पर्वत है। विरूपाक्ष मन्दिर के पास से ऋष्यमूक पर्वत तक के लिए मार्ग जाता है। यहीं सुग्रीव और राम की मैत्री हुई थी। यहाँ तुंगभद्रा नदी धनुष के आकार में बहती है। तुंगभद्रा नदी में पौराणिक चक्रतीर्थ माना गया है। पास ही पहाड़ी के नीचे श्री राम मन्दिर है। पास की पहाड़ी को 'मतंग पर्वत' माना जाता है। इसी पर्वत पर मतंग ऋषि का आश्रम था। पास ही चित्रकूट और जालेन्द्र नाम के शिखर भी हैं। यहीं तुंगभद्रा के उस पार दुन्दुभि पर्वत दिखाई देता है, जिसके सहारे सुग्रीव ने श्री राम के बल की परीक्षा करायी थी। इन स्थानों में स्नान और ध्यान करने का विशेष महत्त्व है।[2]

In Ramayana

Kishkindha Kanda Sarga 1 mentions that the mighty Vanara hero Sugriva, moving on the Rishyamuka Mountain sees Rama and Lakshmana entering into his territory, flees into deep forests, fearing them to be enemies. Rishyamuka is mentioned in verse (4-1-128). [3] ....He who is the chief of Vanaras, who moves about Mount Rishyamuka, while he is meandering thereabout he happened to see those two who are so amazing for a look, namely Rama and Lakshmana, by which he is so frightened that he is petrified. (4-1-128)


External links

References

  1. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.108-109
  2. भारतकोश-ऋष्यमूक
  3. तौ ऋष्यमूकस्य समीप चारी चरन् ददर्श अद्भुत दर्शनीयौ । शाखा मृगाणाम् अधिपः तरस्वी वितत्रसे नैव चिचेष्ट चेष्टाम् ॥4-1-128॥