Birsinghpur

From Jatland Wiki
Author:Laxman Burdak, IFS (R)

District map of Satna
Birsinghpur Shiva Temple-Birasini Dham in Satna, MP

Birsinghpur (बीरसिंहपुर) is a town and tahsil in Satna district in the Madhya Pradesh. Earlier it was in Raghurajnagar tahsil in Satna district in the Madhya Pradesh. Its ancient name was Devapura (देवपुर). It is located on Ram Van Gaman Path.

Variants

Location

Birsinghpur is situated on the north east in Satna district, at a distance of about 34 km from Satna and 61 km from Rewa. There are other two roads: first from Birsinghpur to Rewa via Semariya and second Chitrakoot via Majhgawan at a distance of about 60 kilometres. Another road goes from Birsinghpur to Satna, Madhya Pradesh via Jaitwar, Kothi (MP SH-52).

Villages in tahsil

History

Gaivinath Shiva temple

Birsinghpur has a 10th century temple of Lord Shiva, which is also known as the Gaivinath Shiva temple. Birsinghpur is a one of major pilgrim center for local area around Satna and Rewa district.

Nearby tourist spot are Dharkundi Ashrama, Sutikshna Ashrama, and Sarbhanga Ashrama.

बीरसिंहपुर

बीरसिंहपुर भारत के मध्य प्रदेश राज्य के सतना ज़िले में स्थित एक नगर है. प्रशासनिक रूप से यह एक तहसील है जो अपने धार्मिक महत्व के कारण प्रसिद्ध है. इसकी स्थापना 1500 ई. के समय बघेल शासक वीरसिंहदेव बघेल ने की. इस जगह की खास बात ये है कि भगवान् शिवशंकर पिंडी रूप में पूजे जाते हैं जो कि गैवीनाथ धाम के नाम से प्रसिद्ध है. यहां पास में ही एक अत्यंत ही रमणीय जलप्रपात है जो कि धारकुंडी नाम से मशहूर है. पास ही सरभंगा नामक रमणीय देवालय है।[1]

शिव मंदिर, बीरसिंहपुर

भगवान शिव मंदिर भी इस क्षेत्र में एक प्रसिद्ध और पुराना मंदिर है. यह सतना से लगभग 35 किमी उत्तर में स्थित है. शिव मंदिरों की मूर्ति बहुत सुंदर है.|लोग इस मंदिर में महान विश्वास के साथ आते हैं. प्रत्येक रविवार को मंदिरों में एक विशेष आरती का आयोजन किया जाता है. महाशिवरात्रि के दिन यहां एक बड़ा मेला भी लगता है.[2]

राम वन गमन पथ पर बीरसिंहपुर

स्रोत: पुस्तक: राम वन गमन पथ (पुनरावलोकन), लेखक: डॉ. रामगोपाल सोनी IFS: , प्रकाशक: ऋषिमुनि प्रकाशन, उज्जैन, प्रथम संस्करण: 2021, ISBN: 9788794990338, पृष्ठ.100, 103-105


सरभंग ऋषि का आश्रम वर्तमान में सतना जिला मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूर है और बीरसिंहपुर ग्राम से पश्चिम दिशा की ओर पगार होकर अमिरती गांव के आगे लगभग 3 किलोमीटर दूर है. सुतीक्ष्ण आश्रम ग्राम सलेहा के पास स्थित है. (पृ.100)


परमहंस आश्रम धारकुंडी - बीरसिंहपुर से 20 किलोमीटर उत्तर की ओर धारकुंडी नमक अत्यंत प्राचीन तीर्थ स्थल और तपस्थली है जहां पर पत्थरों की गुफा से 10 हॉर्स पावर का पानी बारहों माह बहता रहता है. वर्तमान में यहां पर परम पूज्य श्री श्री 1008 श्री परमहंस स्वामी सच्चिदानंद जी विराजमान हैं जो वर्ष 1956 से हैं और उनकी उम्र उस समय 95 वर्ष से अधिक की है. (पृ.103)


बीरसिंहपुर नगर - पद्म पुराण - पातालखंड के अनुसार बीरसिंहपुर अत्यंत प्राचीन नगर है, जो त्रेता युग में भी था, इसका पुराना नाम देवपुर था, जिसके राजा वीरमणि थे. उनके छोटे भाई का नाम बीरसिंह था. राजा भगवान महाकाल के अनन्य भक्त थे. शिव जी ने वरदान दिया कि तुमको जब तक भगवान राम के साक्षात दर्शन नहीं होते तब तक मैं तुम्हारे नगर में निवास करूंगा. (पृ.103)


जब भगवान राम के अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा देवपुर, अमरकंटक से होता हुआ यहां पहुंचा तब कुमार रुक्मा अंगद ने यज्ञ के अश्व को पकड़ लिया और अपने पिताजी राजा वीरमणि को बताया. तब राजा ने भगवान शिव से भगवान राम के यज्ञ के अश्व को पकड़ने की बात बताकर पूछा कि क्या करना चाहिए. इस पर शिवजी ने अश्व लौटाने की बात कही, किंतु राजा ने कहा कि यह वीरोचित नहीं होगा. (पृ.104)

इस पर भगवान शिव ने कहा कि फिर ठीक है युद्ध के लिए तैयार रहो, राम की विशाल और पराक्रमिक सेवा का सामना करना पड़ेगा. मैं तुम्हारी तरफ से लड़ूंगा और भगवान राम के आने पर उनके दर्शन कर समर्पण कर देना. (पृ.104)

पद्म पुराण के पातालखंड के अनुसार राम की सेवा के साथ भयंकर युद्ध होता है. भगवान राम की सेवा का नेतृत्व शत्रुघ्न कर रहे थे. उनके साथ भरत के पुत्र परम प्रतापी पुष्कल, हनुमान, सुमंत्र के पुत्र सुमति थे. साथ में विशाल सेना थी. थी राजा वीरमणि और वीरसिंह अत्यंत पराक्रमी थे तथा शिवजी और वीरभद्र के साथ युद्ध में राम की सेवा पराजित हो जाती है. राजा वीरमणि मृत्यु को प्राप्त होते हैं. (पृ.104)

पुष्कल और शत्रुघ्न मूर्छित हो जाते हैं. सारा वृत्तांत सुनकर राम स्वयं देवपुर, वर्तमान का बीरसिंहपुर आते हैं. तब भगवान शिव भगवान राम के समक्ष समर्पण कर देते हैं. भगवान शिव राजा वीरमणि को स्पर्श कर जीवित कर देते हैं और प्रभु राम के दर्शन कराकर भक्त की भावना बताकर भगवान राम से क्षमा मांगते हैं. राम कहते हैं कि जो मैं हूं वही शिव हैं. इस प्रकार इस पवित्र नगर बीरसिंहपुर में दोबारा भगवान राम के चरण पड़ते हैं. (पृ.104)

देवपुर ही बीरसिंहपुर है क्योंकि पहले इसको देवपुर के नाम से जाना जाता था. हमारे समय में कटरा मोहल्ला के लोग देवपुर लिखते थे. नर्मदा जी, अमरकंटक से चलकर अश्व यहां पहुंचता है और फिर वाल्मिक आश्रम जाता है, जो चित्रकूट से आगे है, और यहां से होकर जाया जा सकता है. इसलिए देवपुर जिसका वर्णन पद्म पुराण में है यही नगर बीरसिंहपुर सिद्ध होता है. (पृ.104)

यह बीरसिंहपुर अत्यंत प्राचीन नगर है जो त्रेता युग में भी था. यह पूर्व में वीरसिंह जूदेव का बसाया हुआ है जो भगवान महाकाल, भोले शंकर के परम भक्त थे. वर्तमान में जो शिवलिंग है उसे गैवीनाथ नाम से पुकारा जाता है क्योंकि यह शिवलिंग अपने छोटे रूप में गैवी गडरिया के चूल्हे से प्रस्फुटित हुए थे और धीरे-धीरे आकार बढ़ता गया. (पृ.104)


भगवान शिव ने गैवी को स्वप्न दिया था कि तू यह स्थान छोड़कर दूसरी जगह घर बना ले अब मेरा नाम तेरे नाम से पुकारा जाएगा.(पृ.105)


बीरसिंहपुर से चलकर श्री राम तिहाई, कोटर, सज्जनपुर (Ramvan|रामवन), अमरपाटन, गोरसरी घाट से आगे सोन नदी पार कर मार्कंडेय आश्रम (जिसमें पुराना रामनगर बाएं तरफ पड़ता था) से सीधे जयसिंहनगर, शहडोल, राजेंद्र ग्राम (Bamhani Anuppur) और अमरकंटक पहुंचते हैं. (पृ.105)

Gallery

External Links

  1. "Tourism in the Economy of Madhya Pradesh," Rajiv Dube, Daya Publishing House, 1987, ISBN 9788170350293
  2. https://satna.nic.in/en/tourist-place/shiv-temple-birsinghpur/