Ram Van Gaman Path

From Jatland Wiki
Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Ram Van Gaman Path (राम वन गमन पथ) is the route that Lord Rama, Sita and Lakshmana took during their vanavāsa or exile years. It starts from Ayodhya and ends at Sri Lanka. This path is much revered in the Hindu religion as various key incidents of Lord Rama's life have taken place on this path.[1] It starts at Ayodhya in Uttar Pradesh and at ends at Sita Amman Temple in Sri Lanka.

States covered

As per Ramayana, Lord Rama through his wandering years traveled from India to Sri Lanka.[2] During his vanavāsa or exile, he was not allowed to stay in any village or town and live his life in a forest. Owing to this, after taking his leave from Ayodhya, Lord Rama wandered through the forests of Uttar Pradesh, Jharkhand, Chhattisgarh, Madhya Pradesh, Odisha, Karnataka, Telangana, Maharashtra and Tamil Nadu.[3]

Locations on Ram Van Gaman Path

A total of 248 places have been identified within the nations of India and Sri Lanka that lie on the course of the Ram Van Gaman Path. There is a plan to develop these spots and showcase them as part of the socio-cultural and religious tourism circuit. Below mentioned are some of the most prominent ones.[4][5]

Uttar Pradesh

A 177 km section of road has been in development in Uttar Pradesh as Ram Van Gaman Marg.[6][7]

The most prominent places being developed are:

Madhya Pradesh

The state government of Madhya Pradesh also plans to develop the Ram Van Gaman Path in 3 phases.[9]

The following places in Madhya Pradesh are included in this project:

Chhattisgarh

Nine places in this region have been selected for inclusion in the first phase of development and restoration.[11]

They are:

Maharashtra

Karnataka

Andhra Pradesh/Telangana

Tamilnadu

Sri Lanka

Ram Setu

राम वन गमन पथ

विस्ताराधीन

अयोध्या से वन गमन को चले भगवान श्रीराम के पग जहां-जहां पड़े थे, अब वहां राम वन गमन पथ बनाया जाना है। छह चरणों में 177 किलोमीटर का फोरलेन राम वन गमन पथ का निर्माण किया जाना है। इस पर 4319 करोड़ रुपये की लागत का अनुमान है. माना जाता है कि अयोध्या से श्रीलंका तक की 14 साल की यात्रा में श्रीराम ने करीब 3088 किमी का सफर तय किया। इस बीच लगभग 248 ऐसे प्रमुख स्थल थे जहां उन्होंने या तो विश्राम किया या फिर उनसे उनका कोई रिश्ता जुड़ा। आज यह स्थान धार्मिक रूप में राम की वन यात्रा के रूप में याद किए जाते हैं।

अयोध्या से चित्रकूट - 270 किमी

राम वन गमन पथ - अयोध्या से चित्रकूट
1. अयोध्या - तमसा नदी: उत्तरी तट पर रात्रि विश्राम (रथ में सुमंत्र के साथ)
2. तमसा - गोमती नदी पार कर, स्यन्दिका नदी - श्रृंगवेरपुर रात्रि विश्राम
3. श्रृंगवेरपुर से गंगा नदी पार कर प्रयागराज के आधे रास्ते में विश्राम
4. प्रयागराज में त्रिवेणी के दर्शन कर भारद्वाज आश्रम में आगमन
5. प्रयागराज से यमुना पार कर वाल्मीकि आश्रम में आगमन
6. वाल्मीकि आश्रम से चित्रकूट प्रस्थान और कामदगिरी (चित्रकूट ) में निवास

अयोध्या से चित्रकूट के बीच ग्रामों की हवाई दूरी:

अयोध्या - 15 km - तमसा तीर - 45 km - गोमती नदी - 80 km - श्रृंगवेरपुर - 35 km - प्रयागराज - 5 km - यमुना नदी के पार - 25 km - वाल्मीकि आश्रम - 70 km - चित्रकूट. कुल दूरी 270 km

अयोध्या से चित्रकूट तक की लगभग 270 किलोमीटर दूरी जिसमें 140 किलोमीटर उन्होंने रथ में सुमंत्र के साथ और शेष 130 किलोमीटर पैदल चलकर चित्रकूट पहुंचे.

स्रोत: पुस्तक: राम वन गमन (पुनरावलोकन), लेखक: डॉ. रामगोपाल सोनी IFS: , प्रकाशक: ऋषिमुनि प्रकाशन, उज्जैन, प्रथम संस्करण: 2021, ISBN: 9788794990338, पृष्ठ 57

अयोध्या से चित्रकूट के बीच में स्थित महत्वपूर्ण स्थानों का संक्षिप्त विवरण आगे दिया गया है.

तमसा नदी: अयोध्या से 20 किमी दूर महादेवा घाट से दराबगंज तक वन-गमन यात्रा का 35 किलोमीटर. पहला पड़ाव रामचौरा.

रामचौरा (AS, p.789): रामचौरा टौंस नदी पर स्थित अयोध्या के निकट एक घाट है। कहा जाता है कि वन जाते समय राम, लक्ष्मण तथा सीता ने तमसा नदी को इसी स्थान पर पार किया था। [12]

श्रृंगवेरपुर (AS, p.908-909): इलाहाबाद से 22 मील उत्तर-पश्चिम की ओर स्थित सिंगरौर नामक स्थान ही प्राचीन समय में श्रृंगवेरपुर नाम से परिज्ञात था। रामायण में इस नगर का उल्लेख आता है। यह नगर गंगा घाटी के तट पर स्थित था। महाभारत में इसे 'तीर्थस्थल' कहा गया है। डॉ. बी. बी. लाल के निर्देशन में इस स्थल का उत्खनन कार्य किया गया है।

श्रृंगवेरपुर रामायण में वर्णित वह स्थान है, जहां वन जाते समय राम, लक्ष्मण और सीता एक रात्रि के लिए ठहरे थे। इसका अभिज्ञान सिंगरौर (जिला इलाहाबाद, उ.प्र.) से किया गया है। यह स्थान गंगा के तीर पर स्थित था तथा यहीं रामचंद्रजी की भेंट गुह निषाद से हुई थी- 'समुद्रमहिषीं गंगां सारसक्रौंचनादिताम्, आससाद महाबाहुः श्रंगवेरपुरं प्रति। तत्र राजा गुहो नाम रामस्यात्मसमः सखा, निषादजात्यो बलवान् स्थपतिश्चेति विश्रुतः।' (वाल्मीकि रामायण, अयोध्याकाण्ड 50,26-33)

यहीं राम, लक्ष्मण तथा सीता ने नौका द्वारा गंगा को पार किया था और अपने साथी सुमंत को वापस अयोध्या भेज दिया था। भरत भी जब राम से मिलने चित्रकूट गए थे तो वे श्रंगवेरपुर आए थे-'ते गत्वा दूरमध्वानं रथ यानाश्चकुंजरैः समासेदुस्ततो गंगां श्रंगवेरपुरं प्रति। (अयोध्याकाण्ड 83,19)

कुरई (AS, p.205) इलाहाबाद ज़िला, उत्तर प्रदेश में सिंगरौर के निकट गंगा नदी के तट पर स्थित एक ग्राम का नाम है। एक किवदंती के अनुसार यह माना जाता है कि श्रृंगवेरपुर में गंगा पार करने के पश्चात् श्रीरामचंद्र जी इसी स्थान पर उतरे थे। इस ग्राम में एक छोटा-सा मन्दिर भी है, जो स्थानीय लोकश्रुति के अनुसार उसी स्थान पर है, जहाँ गंगा को पार करने के पश्चात् राम, लक्ष्मण और सीता जी ने कुछ देर विश्राम किया था। यहां से आगे चलकर श्रीराम अपने भाई और भार्या सहित प्रयाग पहुँचे थे।[13]

प्रयाग: कुरई से आगे राम प्रयाग पहुंचे थे। संगम के समीप यमुना नदी पार कर यहां से चित्रकूट पहुंचे।

चित्रकूट (AS, p.335): चित्रकूट में श्रीराम के दुर्लभ प्रमाण हैं. यहां सीतापुरी, वाल्मीकि आश्रम, मांडव्य आश्रम, भरतकूप, कामदगिरी आदि हैं. यहां राम को मनाने के लिए भरत अपनी सेना के साथ पहुंचे थे. यहीं से वह राम की चरण पादुका लेकर लौटे. यहां राम साढ़े ग्यारह साल रहे. चित्रकूट वाल्मीकि रामायण तथा अन्य रामायणों में वर्णित प्रसिद्ध स्थान जहाँ श्रीराम, लक्ष्मण और सीता वनवास के समय रहे थे. चित्रकूट की पहाड़ी के अतिरिक्त इस क्षेत्र के अन्तर्गत कई ग्राम हैं, जिनमें सीतापुरी प्रमुख है. पहाड़ी पर बाँके सिद्ध, देवांगना, हनुमानधारा, सीता रसोई और अनुसूया आदि पुण्य स्थान हैं. दक्षिण पश्चिम में गुप्त गोदावरी नामक सरिता एक गहरी गुहा से निस्सृत होती है. सीतापुरी पयोष्णी नदी [p.336]: के तट पर सुन्दर स्थान है और वहीं स्थित है, जहाँ राम-सीता की पर्ण कुटी थी. इसे पुरी भी कहते हैं. पहले इनका नाम जयसिंहपुर था और यहाँ कोलों का निवास था. पन्ना के राजा अमानसिंह ने जयसिंहपुर को महंत चरणदास को दान में दे दिया था. इन्होंने ही इसका सीतापुरी नाम रखा था. राघवप्रयाग, सीतापुरी का बड़ा तीर्थ है. इसके सामने मंदाकिनी नदी का घाट है. चित्रकूट के पास ही कामदगिरि है। इसकी परिक्रमा 3 मील की है. परिक्रमा-पथ को 1725 ई. में छत्रसाल की रानी चाँदकुंवरि ने पक्का करवाया था. कामता से 6 मील पश्चिमोत्तर में भरत कूप नामक विशाल कूप है. तुलसी-रामायण के अनुसार इस कूप में भरत ने सब तीर्थों का वह जल डाल दिया था, जो वह श्रीराम के अभिषेक के लिए चित्रकूट लाए थे.[14]


दंडकारण्य - इसके बाद सतना, पन्ना, शहडोल, जबलपुर, विदिशा के वन क्षेत्रों से होते हुए वह दंडकारण्य चले गये.

रामायण के मुताबिक भगवान राम ने वनवास का वक्त दंडकारण्य में बिताया। छत्तीसगढ़ का बड़ा हिस्सा ही प्राचीन समय का दंडकारण्य माना जाता है. अब उन जगहों को नई सुविधाओं के साथ विकसित किया जा रहा है, जिन्हें लेकर यह दावा किया जाता है कि वनवास के वक्त भगवान यहीं रहे.

यहां से गुजरेगा राम गमन पथ मार्ग - श्रीराम की वनगमन यतारा राम जन्मभूमि अयोध्या से शुरू होकर प्रतापगढ़, प्रयागराज, कौशांबी होते हुए चित्रकूट तक गई थी। इसी पथ को ही राम वनगमन मार्ग कहा जाता है. इसकी लंबाई करीब 177 किलोमीटर है. राम वनगमन मार्ग को पूरी तरह से तैयार करने में 3500 करोड़ रुपये की लागत आएगी. [15]

चित्रकूट से अमरकंटक - 288 किमी

राम वन गमन पथ -चित्रकूट से अमरकंटक

चित्रकूट से अमरकंटक के बीच ग्रामों की हवाई दूरी:

चित्रकूट - 15 km - सती अनसूया आश्रम - 10 km - टिकरिया - 15 km - घोड़ामुखी मंदिर - 2 km - शरभंगा आश्रम - 1 km - सिद्धा पहाड़ - 5 km - सुतीक्ष्ण आश्रम - 3 km - पगार - 5 km - बीरसिंहपुर - 7 km - तिहाई - 3 km - कोटर - 15 km - सज्जनपुर (रामबन) - 25 km - अमरपाटन - 10 km - गोरसरी घाट (रामनगर, सतना) - 15 km - सोन नदी पार कर (मार्कंडेय आश्रम) - 55 km - जयसिंह नगर - 15 km - अमझोर - 25 km - शहडोल - 15 km - बोडराई - 7 km - सारंगपुर (Shahdol) - 7 km - शिल्पहरी - 5 km - चौड़ादादर - 15 km - डोडिया - 3 km - राजेंद्रग्राम - 30 km - अमरकंटक. कुल 288 किलोमीटर. इस प्रकार राम ने माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ चित्रकूट से अमरकंटक तक की लगभग 288 किलोमीटर दूरी तय की.

स्रोत: पुस्तक: राम वन गमन पथ (पुनरावलोकन), लेखक: डॉ. रामगोपाल सोनी IFS: , प्रकाशक: ऋषिमुनि प्रकाशन, उज्जैन, प्रथम संस्करण: 2021, ISBN: 9788794990338, पृष्ठ 89

अमरकंटक से पंचवटी - 738 कि.मी.

राम वन गमन पथ -अमरकंटक से पंचवटी

अमरकंटक से पंचवटी (पर्णशाला) के राम वन गमन पथ की हवाई दूरी

अमरकंटक (MP) - 5 km - क्योंची (Bilaspur Chhattisgarh) - 20 km - खोंगसरा - 20 km - बेलगहना - 20 km - रतनपुर - 20 km - सीपत - 15 km - मस्तूरी (Bilaspur Chhattisgarh) - 10 km - मुलमुला (Janjgir-Champa) - 10 km - पामगढ़ - 10 - km - राहौड़ - 8 km - खरौद - 7 km - शिवरीनारायण (Janjgir-Champa) - 1 km - गिधौरी (Baloda Bazar) - 12 km - गिरोदपुरी (Baloda Bazar) - 15 km - बारनवापारा अभयारण्य (Mahasamund) - 25 km - पिथौरा - 35 km - कोमाखान - 10 km - टेका (Mahasamund)- 25 km - छूरा (Gariaband) - 15 km - अमझर - 10 km - गरियाबंद (सीतानदी अभयारण्य होकर) - 35 km - नगरी (Dhamtari) - 10 km - सिहावा - 25 km - बोराई (Dhamtari) - 15 km - विश्रामपुरी (Kondagaon) - 25 km - फरसगांव (Kondagaon) - 25 km - पावधा (Kondagaon) - 25 km - नारायणपुर - 35 km - छोटा डोंगर (Narayanpur) - 20 km - रायनर - 10 km - जुबदा - 10 km -आड़ेरमद (Narayanpur) - 30 km - इंद्रावती नदी - 10 km - भैरमगढ़ (Bijapur) - 10 km - इदर - 20 - km नीमेड़ - 20 km - बीजापुर - 30 km - आवापल्ली - 10 km - उसूर - 10 km - नंबी - 15 km - भीमाराम - 5 km - चिन्नौलापल्ली - 10 km - पुशुगुपा - 10 km - उंजूपल्ली - 10 km - चेरला - 20 km - पंचवटी (पर्णशाला) - 738 km इस प्रकार राम ने अमरकंटक से पंचवटी (पर्णशाला) तक लगभग 738 किलोमीटर की पदयात्रा की.


स्रोत: पुस्तक: राम वन गमन पथ (पुनरावलोकन), लेखक: डॉ. रामगोपाल सोनी IFS: , प्रकाशक: ऋषिमुनि प्रकाशन, उज्जैन, प्रथम संस्करण: 2021, ISBN: 9788794990338, पृष्ठ.121

पंचवटी (पर्णशाला) से किष्किन्धा - 1255 कि.मी.

राम वन गमन पथ -पंचवटी (पर्णशाला) से किष्किन्धा

पंचवटी (पर्णशाला) से किष्किंधा राम वन गमन पथ के ग्रामों की हवाई दूरी

पंचवटी (पर्णशाला) (भद्राद्री कोथागुडेम, TG) - 30 km - भद्राचलम - 25 km - पल्वांचा - 10 km - कोठागुडम - 25 km - जूलूरपाद (खम्मम, TG) - 10 km - ऐंकूर - 35 km - खम्मम - 10 km - मुड़ीगोंडा - 20 km - शांतिनगर (खम्मम, TG) - 10 km - कोडड (सूर्यापेट,TG) - 55 km - नदीकंडी (संगारेड्डी, TG) - 30 km - दुर्गी (गंतूर, AP) - 25 km - वेलुदूर्ति (गंतूर, AP) - 30 km - मल्लापालेम (प्रकाशम, AP) - 15 km - येरागोंड़ापालेम[16](प्रकाशम, AP) - 35 km - मरकापुर/मार्कापुर (प्रकाशम, AP) - 70 km - गिदालूर/गिद्दलूर (प्रकाशम, AP) - 80 km - (पेन्ना नदी) कडप्पा/कडपा - 20 km - वोंटिमिट्टा[17] (कडपा,AP) - 50 km - रायचोटी (अन्नामय्या, AP) - 60 km - मदनापल्ले (अन्नामय्या, AP) - 45 km - मूलबगल/मुलबागल (कोलर, KK) - 25 km - कामासांद्रा (बंगलोर) - 35 km - कुप्पम (चित्तूर,AP) - 30 km - कृष्णागिरी (TN) - 50 km - धरमपुरी (TN) - 60 km - सेलम (TN) - 50 km - नमक्कल (TN) - 35 km - करूर (TN) - 75 km - डिंडीगुल (TN) - 35 km - बटालागुंडे/बटलागुंडु (डिंडीगुल, TN) - 25 km - पेरियाकुल्लम/पेरियकुलम (तेनी) - 15 km - थेनी/तेनी - 40 km - कमबम/कम्बम (तेनी) - 20 km - कुमली (इडुक्की, Kerala) - 10 km - वंडीपेरियार (इडुक्की, Kerala) - 10 km - सबरीमाला (पतनमतिट्टा, Kerala) - 5 km - रिष्यमूलकपर्वत (?) - 30 km - प्रवर्षण पर्वत (कोटामलाई, इडुक्की, Kerala) - 15 km - राजापलायम/राजपालयम (विरुदुनगर) (किष्किंधा) - 1255 किलोमीटर. इस प्रकार राम ने पंचवटी (पर्णशाला) से किष्किंधा की लगभग 1255 किलोमीटर दूरी तय की

स्रोत: पुस्तक: राम वन गमन पथ (पुनरावलोकन), लेखक: डॉ. रामगोपाल सोनी IFS: , प्रकाशक: ऋषिमुनि प्रकाशन, उज्जैन, प्रथम संस्करण: 2021, ISBN: 9788794990338, पृष्ठ.145

किष्किन्धा से लंका - 537 कि.मी.

राम वन गमन पथ -किष्किंधा से लंका

प्रवर्षण पर्वत (कोटामलाई, इडुक्की, Kerala) से लंका राम वन गमन पथ के ग्रामों की हवाई दूरी

प्रवर्षण पर्वत (कोटामलाई, इडुक्की, Kerala) - 15 km - राजापलायम/राजपालयम (विरुदुनगर) (किष्किंधा) - 25 km - शिवकाशी - 35 km - पंडाल कुड़ी - 30 km - कुमती/कमुती - 25 km - अलगनूर - 30 km - रामनाथपुरम - 25 km - ऊंचिपुल्ली/ऊचिपुली - 15 km - मंडपम - 20 km - रामेश्वरम - 20 km - धनुष्कोटी - 60 km - मन्नार - 25 km - सुबेल पर्वत - 210 km - रामबोड़ा - 15 km - नुवारा एलिया (अशोक वाटिका सीता मंदिर) लंका. कुल दूरी = 537 किलोमीटर. इस प्रकार प्रभु राम ने प्रवर्षण पर्वत से लंका की कुल दूरी 537 किलोमीटर चलकर तय की.

स्रोत: पुस्तक: राम वन गमन पथ (पुनरावलोकन), लेखक: डॉ. रामगोपाल सोनी IFS: , प्रकाशक: ऋषिमुनि प्रकाशन, उज्जैन, प्रथम संस्करण: 2021, ISBN: 9788794990338, पृष्ठ.209

External links

पुस्तक: राम वन गमन (पुनरावलोकन)

पुस्तक: राम वन गमन (पुनरावलोकन)
लेखक: डॉ. रामगोपाल सोनी IFS: ,
प्रकाशक: ऋषिमुनि प्रकाशन, उज्जैन,
प्रथम संस्करण: 2021,
ISBN: 9788794990338
पुस्तक के कुछ अंश

विराध राक्षस की माता का नाम सतहदा था. उसने कठोर तप करके ब्रह्मा से ऐसा वर पाया था कि किसी शस्त्र से नहीं मर सकता और न कोई उसका अंग-भंग छिन्न-भिन्न कर सकता है. विराध पहले तुम्बुरु नाम का गंधर्व था. रंभा नाम की अप्सरा पर आसक्त होने के कारण कुबेर ने उसे रक्षास हो जाने का श्राप दे दिया था. विराध वध की जगह वर्तमान में टिकरिया रेलवे स्टेशन है यहीं पर विराध कुंड है जिसमें उसे गाड़ा गया था. (पृ.97)


सरभंग ऋषि बहुत तेजस्वी और सिद्ध महात्मा थे तथा नरभक्षी राक्षस विराध मात्र दो कोस दूरी पर रहता था, उनके आश्रम को नुकसान नहीं कर पाया और वह उनकी सिद्धि के बारे में जानता था. (पृ.98)


सरभंग ऋषि का आश्रम वर्तमान में सतना जिला मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूर है और बीरसिंहपुर ग्राम से पश्चिम दिशा की ओर पगार होकर अमिरती गांव के आगे लगभग 3 किलोमीटर दूर है. सुतीक्ष्ण आश्रम ग्राम सलेहा के पास स्थित है. (पृ.100)


परमहंस आश्रम धारकुंडी - बीरसिंहपुर से 20 किलोमीटर उत्तर की ओर धारकुंडी नमक अत्यंत प्राचीन तीर्थ स्थल और तपस्थली है जहां पर पत्थरों की गुफा से 10 हॉर्स पावर का पानी बारहों माह बहता रहता है. वर्तमान में यहां पर परम पूज्य श्री श्री 1008 श्री परमहंस स्वामी सच्चिदानंद जी विराजमान हैं जो वर्ष 1956 से हैं और उनकी उम्र उस समय 95 वर्ष से अधिक की है. (पृ.103)


बीरसिंहपुर नगर - पद्म पुराण - पातालखंड के अनुसार बीरसिंहपुर अत्यंत प्राचीन नगर है, जो त्रेता युग में भी था, इसका पुराना नाम देवपुर था, जिसके राजा वीरमणि थे. उनके छोटे भाई का नाम बीरसिंह था. राजा भगवान महाकाल के अनन्य भक्त थे. शिव जी ने वरदान दिया कि तुमको जब तक भगवान राम के साक्षात दर्शन नहीं होते तब तक मैं तुम्हारे नगर में निवास करूंगा. (पृ.103)


जब भगवान राम के अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा देवपुर, अमरकंटक से होता हुआ यहां पहुंचा तब कुमार रुक्मा अंगद ने यज्ञ के अश्व को पकड़ लिया और अपने पिताजी राजा वीरमणि को बताया. तब राजा ने भगवान शिव से भगवान राम के यज्ञ के अश्व को पकड़ने की बात बताकर पूछा कि क्या करना चाहिए. इस पर शिवजी ने अश् लौटाने की बात कही, किंतु राजा ने कहा कि यह विरोचित नहीं होगा. (पृ.104)

इस पर भगवान शिव ने कहा कि फिर ठीक है युद्ध के लिए तैयार रहो, राम की विशाल और पराक्रमिक सेवा का सामना करना पड़ेगा. मैं तुम्हारी तरफ से लड़ूंगा और भगवान राम के आने पर उनके दर्शन कर समर्पण कर देना. (पृ.104)

पद्म पुराण के पातालखंड के अनुसार राम की सेवा के साथ भयंकर युद्ध होता है. भगवान राम की सेवा का नेतृत्व शत्रुघ्न कर रहे थे. उनके साथ भरत के पुत्र परम प्रतापी पुष्कल, हनुमान, सुमंत्र के पुत्र सुमति थे. साथ में विशाल सी. थी राजा वीरमणि और वीरसिंह अत्यंत पराक्रमी थे तथा शिवजी और वीरभद्र के साथ युद्ध में राम की सेवा पराजित हो जाती है. राजा वीरमणि मृत्यु को प्राप्त होते हैं. (पृ.104)

पुष्कल और शत्रुघ्न मूर्छित हो जाते हैं. सारा वृत्तांत सुनकर राम स्वयं देवपुर, वर्तमान का बीरसिंहपुर आते हैं. तब भगवान शिव भगवान राम के समक्ष समर्पण कर देते हैं. भगवान शिव राजा वीरमणि को स्पर्श कर जीवित कर देते हैं और प्रभु राम के दर्शन कराकर भक्त की भावना बात कर भगवान राम से क्षमा मांगते हैं. राम कहते हैं कि जो मैं हूं वही शिव हैं. इस प्रकार इस पवित्र नगर बीरसिंहपुर में दोबारा भगवान राम के चरण पढ़ते हैं. (पृ.104)

देवपुर ही बीरसिंहपुर है क्योंकि पहले इसको देवपुर के नाम से जाना जाता था. हमारे समय में कटरा मोहल्ला के लोग देवपुर लिखते थे. नर्मदा जी, अमरकंटक से चलकर अश्व यहां पहुंचता है और फिर वाल्मिक आश्रम जाता है, जो चित्रकूट से आगे है, और यहां से होकर जाया जा स (पृ.104)कता है. इसलिए देवपुर जिसका वर्णन पद्म पुराण में है यही नगर बिरसिंहपुर सिद्ध होता है.

यह बीरसिंहपुर अत्यंत प्राचीन नगर है जो त्रेता युग में भी था. यह पूर्व में वीरसिंह जूदेव का बसाया हुआ है जो भगवान महाकाल, भोले शंकर के परम भक्त थे. वर्तमान में जो शिवलिंग है उसे गैवीनाथ नाम से पुकारा जाता है क्योंकि यह शिवलिंग अपने छोटे रूप में गैवी गडरिया के चूल्हे से प्रस्फुटित हुए थे और धीरे-धीरे आकार बढ़ता गया. (पृ.104)


भगवान शिव ने गैवी को स्वप्न दिया था कि तू यह स्थान छोड़कर दूसरी जगह घर बना ले अब मेरा नाम तेरे नाम से पुकारा जाएगा.(पृ.105)


बीरसिंहपुर से चलकर श्री राम तिहाई, कोटर, सज्जनपुर (रामवन), अमरपाटन, गोरसरी घाट से आगे सोन नदी पार कर मार्कंडेय आश्रम (जिसमें पुराना रामनगर बाएं तरफ पड़ता था) से सीधे जयसिंहनगर, शहडोल, राजेंद्र ग्राम (Bamhani Anuppur) और अमरकंटक पहुंचते हैं. (पृ.105)

सज्जनपुर (रामबन) सतना: रीवा मुख्य सड़क पर लगभग 15 किलोमीटर दूरी पर स्थित है. इस भव्य प्रतिमा की ऊंचाई 36 फिट है और इसको ग्राम बीरसिंहपुर के सन्यासी महाराज ने बनाई थी. (पृ.105)

अगस्त्य ऋषि का आश्रम: नर्मदा जी के उद्गम और विंध्य तथा सतपुड़ा (मैकल) के संगम स्थल पर अमरकंटक स्थान पर अगस्त्य मुनि, जिन्हें कुंभज ऋषि भी कहा जाता है, का आश्रम था. अमरकंटक के दक्षिण में दक्षिण कौशल और दंडकारण्य वन कहलाता है, जहां पर बस्तर में गोदावरी नदी के किनारे पंचवटी में रहने के लिए अगस्त्य मुनि ने कहा था. अमरकंटक में ही विंध्य पर्वत सबसे अधिक ऊंचा है. अगस्त्य ऋषि उनके गुरु थे जिन्होंने विन्य्ध को बढ़ने से रोक दिया था. रामचरितमानस में उल्लेख है 'बढ़त विंध्य जिमि घटज निवारा' अर्थात बढ़ते हुए विन्ध्य पर्वत को घटज अर्थात अगस्त्य ऋषि ने रोक दिया था. स्कंद पुराण के रेवा खंड में उल्लेख मिलता है कि अगस्त्य ऋषि का आश्रम अमरकंटक पर्वत पर था, जहां से नर्मदा निकलती है. वाल्मीकि रामायण में अरण्यकांड के सर्ग 11 (86-88) में भी इस घटना का उल्लेख किया है. (पृ.106)

Ram Van Gaman Path images from this book

References

  1. "Gadkari promises Ram Van Gaman Marg from Ayodhya to Rameswaram". ThePrint. 2022-01-05.
  2. Pande, Vikrant (2021). In The Footsteps Of Rama : Travels with the Ramayana. Neelesh Kulkarni. ISBN 978-93-5422-677-9. OCLC 1324544385.
  3. "ऐसे संवरेगा 'राम वन गमन' पथ:जिन रास्तों से गुजरकर प्रभु राम लंका पहुंचे थे, उसका अधिकांश हिस्सा मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ में; यहां अब बदल रही है तस्वीर". bhaskar.com. October 2021.
  4. "Ram Van Gaman Project: Gadkari to lay foundation stone of Ganga bridge Jan 5". Hindustan Times. 2022-01-04.
  5. "शिव'राज' में होगा राम वन गमन पथ का विकास, चित्रकूट से अमरकंटक तक बनेगा पथ". Zee News (in Hindi).
  6. BBIS (2022-03-24). "Land acquisition started for Ram Van Gaman Path, 177 km road will be built from Ayodhya to Chitrakoot". THE INDIA PRINT.
  7. "Prayagraj News: राम वन गमन पथ के किनारे के मंदिर-तीर्थ संवरेंगे, अयोध्या से चित्रकूट तक सर्वे शुरू". Amar Ujala (in Hindi).
  8. "Ram Van Gaman Project: Gadkari to lay foundation stone of Ganga bridge Jan 5". Hindustan Times. 2022-01-04
  9. "शिव'राज' में होगा राम वन गमन पथ का विकास, चित्रकूट से अमरकंटक तक बनेगा पथ". Zee News (in Hindi).
  10. "Ram Van Gaman Project: Gadkari to lay foundation stone of Ganga bridge Jan 5". Hindustan Times. 2022-01-04.
  11. Sharma, Sandeep Ravidutt (2021-10-01). ProjectX India: 1st October 2021 - Tracking Multisector Projects from India.
  12. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.789
  13. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.205
  14. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.335-337
  15. अभिषेक शुक्ला , क्या है राम वन गमन पथ जहां पड़े श्री राम के पग, जानिए सबकुछ, नवभारतटाइम्स.कॉम, 5 Jan 2022
  16. Corrected spelling
  17. Added by Wiki editor