Bugalia
Bugalia (बुगालिया) Bugaliya (बूगालिया)[1][2] gotra Jats are found in Rajasthan.
Origin
This Gotra originated from place called Bugala.
History
खीचड़ों का इतिहास एवं वंशावली की जानकारी प्रबोध खीचड़, खीचड़ों की ढाणी, बछरारा, रतनगढ़, चुरू, राजस्थान द्वारा ई-मेल से उपलब्ध कराई है। (Mob: 9414079295, Email: prabodhkumar9594@gmail.com)
खीचड़ों का गोत्र-चारा:
- नख - जोईया
- वंश - सूर्यवंशी क्षत्रीय
- गुरु - वशिष्ठ (रामचन्द्र जी के गुरु)
- शाखा - माधनिक
- निकास - कोट मलोट (मुक्तसर पंजाब)
- राजा - श्योसिंह अथवा शिवसिंह
- राजधानी - कोट मलोट (मलौट पंजाब)
- कुलदेवी - कोटवासन माता (माता का धाम हींगलाज क्वेटा पाकिस्तान में)
कोट-मलौट के राजा: विक्रम संवत 1015 (959 ई.) में क्षत्रिय जाति के राजा शिवसिंह राज करते थे। इनकी राजधानी कोट-मलौट थी जो अब मुक्तसर पंजाब में है। सन् 959 ई. में यवनों ने इस राजधानी पर आक्रमण किया। यवनों की सेना बहुत विशाल थी परिणाम स्वरूप शिवसिंह को कोट-मलोट (मलौट पंजाब) छोडना पड़ा। राजा शिवसिंह अपने 12 पुत्रों के साथ आकर सिद्धमुख (चुरू) में रहने लगे। राजा शिवसिंह के सबसे बड़े पुत्र खेमराज थे। बड़वा के अनुसार इनके वंशजों से खीचड़ गोत्र बना। खेमराज के वंशजों ने सर्वप्रथम कंवरपुरा गाँव बसाया। (तहसील: भादरा, हनुमानगढ़)। राजा शिवसिंह के पुत्रों से निम्न 12 उपगोत्र निकले -
- 1. खेमराज की सन्तानें खीचड़ कहलाई जिन्होने कंवरपुरा गाँव बसाया (तहसील: भादरा, हनुमानगढ़)
- 2. बरासी की सन्तानें बाबल कहलाई जिन्होने बरासरी (जमाल) गाँव बसाया
- 3. मानाजी की सन्तानें मांझु, सिहोल और लूंका कहलाई
- 4. करमाजी की सन्तानें करीर कहलाई
- 5. करनाजी की सन्तानें कुलडिया कहलाई
- 6. जगगूजी की सन्तानें झग्गल कहलाई
- 7. दुर्जनजी की सन्तानें दुराजना कहलाई
- 8. भींवाजी की सन्तानें भंवरिया कहलाई
- 9. नारायणजी की सन्तानें निराधना कहलाई
- 10. मालाजी की सन्तानें मेचू कहलाई
शिवसिंह के 12 पुत्रों में से 2 की अकाल मृत्यु हो गई थी। शेष 10 में से उपरोक्त गोत्र बने। मानाजी की तीन शादियाँ हुई थी जिनकी सन्तानें मांझु, सिहोल और लूंका कहलाई। इस प्रकार 12 भाईयों से उपरोक्त 12 गोत्र बने।
इस प्रकार उपरोक्त 12 गोत्र एक ही नख जोहिया, एक ही वंश सूर्यवंशी, एक ही गुरु वशिष्ठ, कुलदेवी कोटवासन माता जो हिंगलाज (क्वेटा पाकिस्तान में है) व भैरव का नाम भीमलोचन है। यहाँ सती का ब्रह्मरंध्र गिरा था।
दक्षिण की और प्रस्थान - कोट मलौट छूटने के बाद सब बारह भाई सिधमुख आए। खेमराज जी की संतान खीचड़ कहलाई। खेमराज का बड़ा पुत्र कंवरसिंह था जिसके नाम से कंवरपुरा (भादरा) बसाया जो आज भी है। कंवरसिंह के दश-बारह पीढ़ियों के बाद इनको कंवरपुरा छोडना पड़ा। वहाँ 12 वर्ष तक अकाल पड़ा। ये दक्षिण की और चले गए।
ये लोग झुंझुनु नवाव की रियासत के एक गाँव में पहुंचे। इनके साथ सभी पशु, सामान और गाड़ियाँ थी। यहाँ मुलेसिंह बुगालिया जाट की 12 गांवों में चौधर थी। गाँव के पानी के जोहड़ के पास ये रुक गए। इधर मुलेसिंह बुगालिया का भी एक ग्वाला भेड़ों को चराता हुया आया और इस जोहड़ पर पानी पिलाने लगा। यहाँ रुके हुये बाहरी लोगों को देखकर उसने भला बुरा कहा। खीचड़ों के दल में सींघल और बीजल नाम के दो व्यक्ति बहुत बहादुर और दबंग थे। उन्होने मुले सिंह बुगालिया के ग्वाले के रेवड़ से उठाकर दो मेंढ़े ले लिए और उनका मांस पकाने लगे। मुलेसिंह बुगालिया के ग्वाले ने इसकी शिकायत अपने मालिक मुलेसिंह को की। मुलेसिंह बुगालिया नवाब को कर देता था। उसने नवाब के पास जाकर बढ़ा-चढ़ा कर शिकायत की कि ये लोग पूरे रेवड़ को काट कर खा गए हैं। यह भी शिकायत की कि इनके पास असला और हथियार भी हैं। ये लोग उसकी जागीर पर कब्जा करना चाहते हैं। नवाब ने एक सेना मुले सिंह के साथ भेजी जो जोहड़ की और रवाना हुई। सींघल और बीजल के पास कोई असला और हथियार नहीं थे केवल कृषि उपकरण आदि थे। नवाब की सेना आते देखकर उन्होने अपनी कुलदेवी कोटवासन माता को याद किया। कहते हैं कोटवासन माता प्रकट हुई और कहा कि मैं आप लोगों की रक्षा करूंगी परंतु आपको मेरी निम्न चार बातें माननी होंगी -
- खीचड़ लोग कभी मांस नहीं खाएँगे।
- पराई औरत को अपनी बहिन बेटी समझेंगे।
- किसी की झूठी गवाही नहीं देंगे।
- करार से बेकरार नहीं होंगे।
कोटवासन माता ने आश्वासन दिया कि खीचड़ लोग इन बातों को मानते रहेंगे तो मैं सदा उनकी रक्षा करती रहूँगी। फौज जो चढ़ आई है उससे मैं निबट लूँगी। तुम्हारे खाने के जो बर्तन हैं वे उनको दिखा देना, उसमें चावल-मूंग की खिचड़ी होगी। यह कहकर देवी अंतर्ध्यान हो गई।
नवाब की फौज थोड़ी दूर पर थी तब नवाब ने देखा कि यहाँ तो कोई 25-30 लोग रुके हैं। उसने मुले सिंह से पूछा कि वह बड़ा काफिला कहाँ जो तुम बता रहे थे। नवाब ने फौज को दूर ही रोक कर कुछ ही लोगों को साथ लेकर पड़ाव की तरफ गया और यहाँ रुके लोगों से पूछा तुम लोग कौन हो और कहाँ से आए हो?
दोनों परिवार के मुखिया सींघल और बीजल नवाब के समक्ष आए और बताया कि हम खीचड़ जाट हैं और अकाल के कारण दक्षिण की और जा रहे हैं । यहाँ पानी देख कर पड़ाव डाल दिया था। हमने कोई रेवड़ नहीं काटा है, जैसा आरोप लगाया जा रहा है। आपका रेवड़ भी पास के जंगल में चर रहा होगा। नवाब ने इन तथ्यों की पुष्टि की। देखा कि सभी बर्तनों में खिचड़ी पक रही है और पास के जंगल में रेवड़ भी चर रहा है। नवाब ने मुले सिंह से कहा कि ये भले आदमी लगते हैं । तुमने इनकी झूठी शिकायत की है। इसलिए तुम्हारे 12 गांवों में से एक गाँव इनको दे दो।
बजावा गाँव में बसना - मुले सिंह नवाब के सामने झूटा साबित हो चुका था। उसने सोचा कि बजावा गाँव में वर्षा नहीं होती है और अकाल पड़ता है। ये लोग अपने आप ही भविष्य में यह गाँव छोड़ कर चले जाएंगे। मेरी चौधर तब यथावत 12 गांवों में बनी रहेगी। इस प्रकार सिंघल व बीजल के परिवारों को बजावा गाँव बसने के लिए मिल गया। नवाब ने बजावा गाँव का पट्टा इनके नाम कर दिया। बरसात का मौसम आया परंतु बजावा में वर्षा नहीं हुई। कहते हैं खीचड़ जाटों ने कुलदेवी कोटवासन माता को याद किया। कुलदेवी के आशीर्वाद से बजावा में अच्छी वर्षा हुई। कहते हैं कि कुलदेवी ने यह भी वरदान दिया कि बजावा में कभी अकाल नहीं पड़ेगा। ग्रामीण लोग बताते हैं कि यह परंपरा अभी भी कायम है, बजावा में कभी अकाल नहीं पड़ता।
मुलेसिंह बुगालिया से विवाद: सिंघल व बीजल के परिवार बजावा में काफी स्मृद्ध हो गए थे। दोनों भाई घोड़ों पर चढ़कर दूसरे गांवों में भी जाते रहते थे। रास्ते में मुले सिंह बुगालिया का गाँव भी पड़ता था। मुलेसिंह की बेटी देऊ की सगाई धेतरवाल जाटों में तय हुई थी। वह लड़की गाँव की औरतों के साथ कुएं पर पानी भरने जाती थी। इधर से कई गांवों के लोग गुजरते थे। एक दिन उसी रास्ते से दोनों भाई सींघल और बीजल घोड़ों पर गुजर रहे थे तब देऊ ने ताना मारा - "घोड़े वाले दोनों बदमास और लुच्चे हैं। रोज इस रास्ते मुझे उड़ाने के लिए फिरते हैं। आज ये फिर आ गए हैं।" ताना सुनकर दोनों भाई हक्के बक्के रह गए। दोनों भाईयों ने पनिहारिनों से पूछा कि यह ऐसा क्यों कह रही है। पनिहारिनों बताया कि यह ऐसा रोज ही कहती है कि इन्होने पहले मेरे पिता से बजावा गाँव छीना और अब मेरे को छीनना चाहते हैं। दोनों भाईयों ने कहा कि पहले तो ऐसा विचार नहीं था परंतु अब इस पर विचार करना पड़ेगा। दोनों भाईयों ने देऊ का हाथ पकड़ा और घोड़े पर बैठा कर ले गए। देऊ के पिता इस पर आग-बबूला हो गए। उसने बदला लेने के लिए देऊ के ससुराल वाले धेतरवाल जाटों की मदद लेने की सोची। धेतरवाल उस समय 18 गांवों के चौधरी थे। धेतरवाल जाटों को साथ लेकर मुले सिंह बुगालिया झुंझुणु नवाब से मिले। लड़की को वापस लाने के लिए नवाब की सहायता मांगी। नवाब को मुले सिंह की पहले की झूठी शिकायत याद थी। उसने सींघल और बीजल को बुलावा भिजवाया। अब दोनों भाई और परिवार के लोग सोच में पड़ गए। सभी ने सलाह मशवरा किया और इस नतीजे पर पहुंचे की बुगालिया लड़की वापस नहीं की जाएगी चाहे इसके लिए कितनी भी कीमत क्यों न चुकानी पड़े। अगले दिन दोनों भाई नवाब के समक्ष कचहरी में उपस्थित हुये और यथा स्थिति से नवाब को अवगत कराया। दोनों भाईयों ने बताया कि यह रोज हम पर झूठा आरोप लगाती थी तब हमने इसको घरवाली बनाने की सोचकर साथ ले आए। नवाब ने सौचा ये दोनों बहादुर हैं, कभी हमारे काम आ सकते हैं। नवाब के पूछने पर जवाब दिया कि वे अब इस लड़की को घरवाली बना चुके हैं किसी भी कीमत पर वापस नहीं करेंगे। नवाब ने एक लाख रुपये जुर्माना तय किया। दोनों भाईयों ने कुछ ही दिन में जुर्माना भर दिया
खीचड़ों की वंशावली: मुलेसिंह बुगालिया की बेटी देऊ बुगालिया सींघल की तीसरी पत्नी थी। इससे पहले सींघल की दो शादियाँ और हो चुकी थी। तीनों पत्नियों से परिवार की वृद्धि निम्नानुसार हुई:
सींघल की पहली पत्नी से मालाराम हुये जिसने मैणास गाँव बसाया। इनकी संताने मेंगरासी खीचड़ कहलाई।
सींघल की दूसरी पत्नी से महीधर हुये जिससे महला गोत्र बना। मईधर ने शीथल गाँव बसाया।
सींघल की तीसरी पत्नी देऊ बुगालिया से ढोला राम नामक पुत्र पैदा हुआ जिसने ढोलास नामक गाँव बसाया। इनकी संताने ढोलरासी खीचड़ कहलाई।
इस प्रकार महला व खीचड़ एक ही बाप से पैदा होने के कारण दोनों गोत्रों में आपस में भाईचारा है।
सींघल की संतानों ने तीन गाँव मैणास, शीथल और ढोलास गाँव बसाये। बजावा इनका पैतृक गाँव था।
खीचड़ गोत्र के आगे की पीढ़ियों में कुमास गाँव बसाया जो सीकर जिले में है तथा यहाँ पर 4-5 हजार की संख्या में खीचड़ परिवार निवास करते हैं।
हरयाणा के सिरसा जिले में बाहिया गाँव है जहां 400 घर खीचड़ जाटों के हैं।
Villages founded by Bugalia clan
- Bugaliyon Ki Dhani (बुगालियों की ढाणी) - village in Nagaur district in Rajasthan.
- Bugala Nawalgarh (बुगाला) - village in Nawalgarh tehsil of Jhunjhunu district in Rajasthan.
Distribution in Rajasthan
Locations in Jaipur city
Villages in Jaipur district
Hirnoda (20),
Villages in Jhunjhunu district
Villages in Sikar district
Bhikhanwasi, Bhojpur Sikar, Hukampura[3] Kalyanpura Shekhisar, Kantewa, Losal, Rulyani (52), Sikar,
Villages in Churu district
Beeslan, Bidasar Sujangarh, Sujangarh (20),
Villages in Nagaur district
Altawa (Teh. Makrana), Bansa, Banser, Bhawla, Bherwas, Bidiyad, Bugaliyon Ki Dhani, Dhankoli, Dholia, Gachhipura, Gigaliya, Igyar (Teh. Jayal), Kalwa, Kheri Leela (20), Kitalsar Degana, Kunwar Khera (1), Nagwara, Neniya, Nimba Ka Bas, Rawaliyawas, Sudrasan, Tehla,
Villages in Hanumangarh district
Villages in Tonk district
Villages in Bikaner district
Villages in Jodhpur district
Distribution in Madhya Pradesh
Villages in Nimach district
Notable persons
- Subhash Bugalia - Sahsachiv Rajasthan Jat Samaj Sansthan, Jaipur
- Rameshwar Lal (Bugalia) - Chief Operations Manager, Indian Oil Corporation Ltd. Date of Birth : 15-November-1960, VPO - Sudrasan, District -Nagaur, Rajasthan, Present Address : A-87, Siddharth Nagar, Near Jawahar Circle, Jaipur -302017, Resident Phone Number : 0141-2725471, Mobile Number : 9414051198, Email Address : lal_rameshwar@hotmail.com
- Swami Bhagwan Das (Bugalia) - From village Bugala Nawalgarh (Jhunjhunu), Disciple of Guru Mukh Ram Dahiya of village Bakra who was Follower of Dadupanthi sect.
- कर्नल द्वारका प्रसाद बुगालिया
- Hoshiar Singh (Bugalia) - GM, Excel Crop Care Ltd, 104, Shekhawati Complex, Station Road, Jaipur, Ph: 0141-2360826, 4007441, Mob: 08003190664
External Links
References
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Parishisht-I, s.n. ब-4
- ↑ O.S.Tugania:Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu, p.53, s.n. 1808
- ↑ User:Ganesh42
Back to Jat Gotras