Bachharara

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Bachharara (बछरारा) is a village in Ratangarh tehsil in Churu district in Rajasthan. The village was founded by a person named Dula of Nain Jat Gotra. PIN Code - 331022

Founder

  • Bachharara (Ratangarh,Churu) was founded by a Dula Nain in 1360 AD. [1] वर्तमान बछरारा को दुला नैण सेे पहले खीचडों ने बसाया था| सिद्धमुख से खीचड़ों के साथ पारीक ब्राहमण आये थे. प्रमुख पारीक ब्राहमण बच्छराज के नाम पर नामकरण हुआ. बछराला = बच्छराज वाला, कालान्तर में बछरारा हो गया. उजडने के बाद फिर दुला नैण ने बसाया.[2]

Jat Gotras

History of Khichars

The History and Genealogy of Khichar Gotra has been narrated by Prabodh Khichar of village Bachharara, Ratangarh,Churu, Rajasthan by Email (Mob: 9414079295, Email: prabodhkumar9594@gmail.com)

Gotrachara:


Shiv Singh was ruler of Kot Malot (Muktsar) (Punjab). He was attacked by Yavanas in 959 AD and lost his kingdom. He along with 12 sons moved from Kot Malot (Malout) (Muktsar) (Punjab) to Sidhmukh in Rajasthan. Shiv Singh's sons gave name to 12 Jat Gotras as under:

1. KhemrajKhichar, who founded Kanwarpura Bhadra (Bhadra, Hanumangarh)
2. BarasiBabal, who founded Barasari (Jamal Sirsa)
3. ManajiManjhu, Sihol, Loonka
4. KarmajiKarir
5. KarnajiKularia
6. JaggujiJhaggal
7. DurjanjiDurajana
8. BhinwajiBhanwaria
9. NarayanjiNiradhana
10. MalajiMechu

Migration to south - After Shiv Singh lost his kingdom Kot Malot (Malout) (Muktsar) (Punjab) he came to Sidhmukh in Rajasthan. Descendants of his eldest son Khemraj were called Khichar. Khemraj's eldest son was Kanwar Singh who founded Kanwarpura (Bhadra, Hanumangarh) which still exists. After about 10-12 generations they had to again leave Kanwarpura due to continuous famines and moved to Bajawa village in Jhunjhunu. Mule Singh Bugalia was Chaudhari of Bajawa under Nawab of Jhunjhunu, who gave patta of Bajawa village to Khichar descendants Singhal and Bijal. Singhal married here with Deoo, daughter of Ch. Mule Singh Bugalia.

Singhal Khichar had son Mala Ram from his first wife, who founded Mainas village and his descendants were called Mengrasi Khichar. From his second wife he had son Mahidhar, who founded Sithal village and his descendants were called Mahla. Singhal Khichar had son Dhola Ram from his third wife Deoo Bugalia, who founded Dholas village and his descendants were called Dholarsi Khichar.

Khichars also founded villages Kumas Jatan (Sikar), inhabited about 5000 Khichar families; Bahia (Sirsa), inhabited about 400 Khichar families. Village Bachharara (Ratangarh, Churu) was founded after about 15 generations of Mala Ram. Bachharara has a sacred site of Sakti Netu and Kesar. Netu Dhetarwal from Jaleu Ratangarh, wife of Mota Ram Khichar of Bachharara became Sakti in 1761 AD on Falgun Sudi Teej.

Kesar Sakti Dadi was of Punia Gotra and wife of Narayan Ram Khichar. She became Sakti on Kartik Sudi Teej Vikram Samvat 1747 (=1680 AD)

बछरारा के नैण गोत्र इतिहास

ठाकुर देशराज[3] के अनुसार 'नेन' शाखा अनंगपाल के एक वंशज नैनसी के नाम पर चली. कालांतर में ये लोग डूंगरगढ़ तथा रतनगढ़ तहसील में आकर आबाद हुए. इनमें श्रीपाल नामक व्यक्ति का जन्म संवत 1398 (1341) में हुआ, जिनके 12 लड़के हुए, जिनमें राजू ने लद्धोसर, दूला ने बछरारा , कालू ने मालपुर, हुक्मा ने केऊ, लल्ला ने बीन्झासर और चुहड़ ने चुरू आबाद किया. नैन गोत्र जाट यहाँ के प्राचीन निवासी हैं. [4]


इंद्रप्रस्थ से प्रस्थान: ठाकुर देशराज[5] ने लिखा है ....नैण गोत्र के कुछ लोगों ने इंद्रप्रस्थ से चलकर सरवरपुर बसाया और फिर भिराणी को आबाद किया। सरवरपुर जिसे अब सरूरपुर कहते बागपत तहसील में भिराणी बीकानेर की तहसील भादरा में है। कुछ समय पश्चात उन्हें भिराणी छोडकर जाना पड़ा।

भिराणी छोडकर जाना: ठाकुर देशराज[6] ने लिखा है ....भिराणी छोडकर जाने का कारण इस प्रकार बयान किया जाता है कि एक नैण युवक बालासर (बीकानेर इलाका) में ब्याहा गया था। वह अपने ससुराल गया। कुछ तरुण युवतियों ने मज़ाक में उसको सौते हुये चारपाई से बांध दिया। पाँवों में रस्सी डालकर रस्सी एक भैंसे की पूंछ में बांध दी और कांटेदार छड़ी से भैंसे को बिदका दिया। भैंसा भाग खड़ा हुआ। युवक घिसटता हुआ मर गया। बहुत दिनों के बाद भिराणी का एक नैण उसी गाँव होकर कहीं जा रहा था। तो उस युवक की विधवा ने ताना दिया कि नैण तो सब मुर्दा हैं वरना अपने लड़के का बदला क्यों छोड़ते। वह नैण वापस लौट गया और नैण लोगों को लाकर बालासर पर चढ़ाई करदी। उन्होने बालासर में खूब मार-काट की। जब वे लौट गए तो बालासर के बचे-खुचे लोग पड़ौसियों को लेकर भिराणी पर चढ़ाई करदी। उन्होने भिराणी को तहस-नहस कर दिया। तभी की यह लोकोक्ति मशहूर है – “छिम-छिम मेहा बरसा, छीलर-छीलर पाणी, नैण-नैण उडी गए, खाली रहगई भिराणी”।

इसी भांति बालासर पर एक लोकोक्ति है – “माहियाँ आवे रिड़कदी, लस्सी हो गई खट्टी। शीश न गूंथावदी, बालासर की जट्टी।:

अर्थात बालासर की जाटनियों ने मांग निकालना बंद कर दिया। तात्पर्य यह है कि वे सब विधवा हो गई।

यह घटना 14वीं शताब्दी की है। बचे-खुचे नैण भिराणी को छोडकर अनेक स्थानों पर जा बसे। चौधरी हरिश्चंद्र जी का कहना है कि उनके पूर्वजों में से राजू लधासर, दूला बछरारा, कालू मालूपुरा, हुकमा केऊ, और लालू बींझासर में आबाद हुये। इन गांवों मे केऊ तहसील डूंगरगढ़ (बीकानेर डिवीजन) और बाकी तीनों गाँव रतनगढ़ तहसील (बीकानेर डिवीजन) में हैं।


ठाकुर देशराज[7] ने लिखा है ....चौधरी हरिश्चंद्र जी के पिता रामूराम नैण के एक पूर्वज भारूराम ने महाराजा करण सिंह का, जिस समय वे दिल्ली के मुगल दरबार की हाजिरी से वापस आ रहे थे, बछरारे में शानदार स्वागत किया। रुपयों का चौक पुराया गया, जिस पर बैठाकर महाराजा को भोजन कराया गया उनके साथियों समेत। महाराजा ने प्रसन्न होकर भारूराम की पुत्री को 6 हजार बीघा का पट्टा दे दिया। इसी के आधार पर सन् 1939 ई. में रतनगढ़ की अदालत में बछरारा के ठाकुर सगतसिंह जी ने कहा था, चौधरी हरिश्चंद्र जी के पुरखे मेरे पुरखों से कई पीढ़ी पहले से बछरारा में आबाद हैं। इनके पुरखों के नाम हमारे गाँव बछरारा में कई जोहड़ हैं। जिनमें भारवाणा, नानगाणा, लालाणा अधिक प्रसिद्ध हैं। यह जमीन अब हमारे पास है जो पूरांवाली जमीन कही जाती है। कहना नहीं होगा कि करणसिंह जी के बाद के राजाओं ने इस जमीन को जब्त कर लिया और संवत 1917 में सगतसिंह जी राजपूत के पुरखों को दे दिया। किशनसिहोत बीका राव कल्याणमल के पुत्र थे | इनके वंशज किशनसिहोत बीका कहलाते है | किशनसिहोतों के सांखू (दोलड़ी ताजीम) नीमा (दोलड़ी ताजीम) रावतसर, कुंजाला (सादी ताजीम) के ठिकाने थे.


ठाकुर देशराज [8] ने लिखा है कि....नैणसी के चुहड़ हुआ, चुहड़ के चोखा और लालू दो पुत्र हुये, चोखा के फत्ता और मूला दो लड़के हुये। इनमें फत्ता ने ही सरवरपुर (अब सरूरपुर) की नींव डाली। इस वंश में किशनपाल से 5वीं पीढ़ी में श्रीपाल नाम के एक प्रसिद्ध व्यक्ति हुये उसने संवत 1310 अर्थात 1253 ई. में भिराणी गाँव बसाया। यह गाँव बीकानेर डिवीजन की भादरा तहसील में अवस्थित है।

किशनपाल के दो पुत्र हूला और काहना हुये। हूला के कालू और धन्ना दो पुत्र हुये। कालू के मूंधड़ और मूंधड़ का पुत्र श्रीपाल था। श्रीपाल के दो स्त्रियाँ थी मान और पुनियानी। मान के 6 पुत्र हुये – 1.दल्ला, 2.पेमा, 3.खीवा, 4.चेतन, 5.रतना और 6. पूसा। पुनियानी स्त्री से 5 पुत्र हुये – रामू, काहना, अमरा, गणेश, और हुक्मा।


[p.337]: इनमें से मान स्त्री से उत्पन्न खीवा को बालासर तहसील नोहर में मार दिया। इस घटना का विवरण पिछले पृष्ठों में कहीं आ चुका है। मान स्त्री के ज्येष्ठ पुत्र दूला से 1.आंभल, 2.मोती और 3.हनुमंता नाम के 3 पुत्र हुये। इनमें आंभल के भी 3 पुत्र हुये – 1.दल्ला, 2. काहन और 3. वीरू। वीरू के जो पूत्र हुआ उसका नाम प्रसिद्ध पुरुष श्रीपाल के नाम पर श्रीपाल ही रखा। इस श्रीपाल द्वितीय का जन्म संवत 1398 अर्थात सन 1341 ई. में हुआ। श्रीपाल द्वितीय के 12 पुत्र हुये – 1. राजू, 2. दूला, 3. मूला, 4. कालू, 5. रामा, 6. हुक्मा, 7. चुहड़, 8. हूला, 9. लल्ला, 10. चतरा, 11. फत्ता और 12. नन्दा।

इनमें से राजू ने संवत 1417 (1360 ई.) में लद्धासर, दूला ने बछरारा, कालू ने मालपुर, हुक्मा ने केऊ, लल्ला ने बींझासर बसाया। और चुहड़ ने चुरू आबाद किया।

इन 12 में से दूला के 3 पुत्रों का हमें पता चलता है – 1.राजू, 2.नंदा और 3. जीवन उनके नाम थे। राजू के 1. बुधा और 2. पेमा 2 पुत्र हुये। बुधा के 1. हरीराम और 2. सेवा दो पुत्र हुये। हरीराम ने संवत 1525 (1468 ई.) में बछरारा को फिर से आबाद किया क्योंकि बीच में झगड़ों के कारण बछरारा बर्बाद हो गया था। हरीराम के दो पुत्र 1.पूला और 2. तुलछा नामक हुये।


[p.338]: पूला के 1.सादा और 2.मुगला दो पुत्र हुये। मुगला ने संवत 1610 (1553 ई.) ने बछरारा में एक जोहड़ खुदवाया। जिसका वर्णन ठाकुर सकत सिंह ने सन 1939 ई. को अपनी उस गवाही में किया था जो उन्होने चौधरी हरीश चंद्र के क़दीम बिकानेरी होने के संबंध में तहसील रतनगढ़ में दी थी। सादा के दो पुत्र 1.आसा और 2.चतरा नामी हुये। आसा के 1.दासा और 2.लक्ष्मण हुये। दासा के 1.गोपाल, 2.भूरा और 3.पूरन तीन पूत्र हुये। गोपाल के 2 पुत्र 1.भारू और 2.रामकरण हुये।

खीचड़ों का इतिहास एवं वंशावली

खीचड़ों का इतिहास एवं वंशावली की जानकारी प्रबोध खीचड़, खीचड़ों की ढाणी, बछरारा, रतनगढ़, चुरू, राजस्थान द्वारा ई-मेल से उपलब्ध कराई है। (Mob: 9414079295, Email: prabodhkumar9594@gmail.com)

खीचड़ों का गोत्र-चारा:

कोट-मलौट के राजा: विक्रम संवत 1015 (959 ई.) में क्षत्रिय जाति के राजा शिवसिंह राज करते थे। इनकी राजधानी कोट-मलौट थी जो अब मुक्तसर पंजाब में है। सन् 959 ई. में यवनों ने इस राजधानी पर आक्रमण किया। यवनों की सेना बहुत विशाल थी परिणाम स्वरूप शिवसिंह को कोट-मलोट (मलौट पंजाब) छोडना पड़ा। राजा शिवसिंह अपने 12 पुत्रों के साथ आकर सिद्धमुख (चुरू) में रहने लगे। राजा शिवसिंह के सबसे बड़े पुत्र खेमराज थे। बड़वा के अनुसार इनके वंशजों से खीचड़ गोत्र बना। खेमराज के वंशजों ने सर्वप्रथम कंवरपुरा गाँव बसाया। (तहसील: भादरा, हनुमानगढ़)। राजा शिवसिंह के पुत्रों से निम्न 12 उपगोत्र निकले -

1. खेमराज की सन्तानें खीचड़ कहलाई जिन्होने कंवरपुरा गाँव बसाया (तहसील: भादरा, हनुमानगढ़)
2. बरासी की सन्तानें बाबल कहलाई जिन्होने बरासरी (जमाल) गाँव बसाया
3. मानाजी की सन्तानें मांझु, सिहोल और लूंका कहलाई
4. करमाजी की सन्तानें करीर कहलाई
5. करनाजी की सन्तानें कुलडिया कहलाई
6. जगगूजी की सन्तानें झग्गल कहलाई
7. दुर्जनजी की सन्तानें दुराजना कहलाई
8. भींवाजी की सन्तानें भंवरिया कहलाई
9. नारायणजी की सन्तानें निराधना कहलाई
10. मालाजी की सन्तानें मेचू कहलाई

शिवसिंह के 12 पुत्रों में से 2 की अकाल मृत्यु हो गई थी। शेष 10 में से उपरोक्त गोत्र बने। मानाजी की तीन शादियाँ हुई थी जिनकी सन्तानें मांझु, सिहोल और लूंका कहलाई। इस प्रकार 12 भाईयों से उपरोक्त 12 गोत्र बने।

इस प्रकार उपरोक्त 12 गोत्र एक ही नख जोहिया, एक ही वंश सूर्यवंशी, एक ही गुरु वशिष्ठ, कुलदेवी कोटवासन माता जो हिंगलाज (क्वेटा पाकिस्तान में है) व भैरव का नाम भीमलोचन है। यहाँ सती का ब्रह्मरंध्र गिरा था।

दक्षिण की और प्रस्थान - कोट मलौट छूटने के बाद सब बारह भाई सिधमुख आए। खेमराज जी की संतान खीचड़ कहलाई। खेमराज का बड़ा पुत्र कंवरसिंह था जिसके नाम से कंवरपुरा (भादरा) बसाया जो आज भी है। कंवरसिंह के दश-बारह पीढ़ियों के बाद इनको कंवरपुरा छोडना पड़ा। वहाँ 12 वर्ष तक अकाल पड़ा। ये दक्षिण की और चले गए।

ये लोग झुंझुनु नवाव की रियासत के एक गाँव में पहुंचे। इनके साथ सभी पशु, सामान और गाड़ियाँ थी। यहाँ मुलेसिंह बुगालिया जाट की 12 गांवों में चौधर थी। गाँव के पानी के जोहड़ के पास ये रुक गए। इधर मुलेसिंह बुगालिया का भी एक ग्वाला भेड़ों को चराता हुया आया और इस जोहड़ पर पानी पिलाने लगा। यहाँ रुके हुये बाहरी लोगों को देखकर उसने भला बुरा कहा। खीचड़ों के दल में सींघल और बीजल नाम के दो व्यक्ति बहुत बहादुर और दबंग थे। उन्होने मुले सिंह बुगालिया के ग्वाले के रेवड़ से उठाकर दो मेंढ़े ले लिए और उनका मांस पकाने लगे। मुलेसिंह बुगालिया के ग्वाले ने इसकी शिकायत अपने मालिक मुलेसिंह को की। मुलेसिंह बुगालिया नवाब को कर देता था। उसने नवाब के पास जाकर बढ़ा-चढ़ा कर शिकायत की कि ये लोग पूरे रेवड़ को काट कर खा गए हैं। यह भी शिकायत की कि इनके पास असला और हथियार भी हैं। ये लोग उसकी जागीर पर कब्जा करना चाहते हैं। नवाब ने एक सेना मुले सिंह के साथ भेजी जो जोहड़ की और रवाना हुई। सींघल और बीजल के पास कोई असला और हथियार नहीं थे केवल कृषि उपकरण आदि थे। नवाब की सेना आते देखकर उन्होने अपनी कुलदेवी कोटवासन माता को याद किया। कहते हैं कोटवासन माता प्रकट हुई और कहा कि मैं आप लोगों की रक्षा करूंगी परंतु आपको मेरी निम्न चार बातें माननी होंगी -

  1. खीचड़ लोग कभी मांस नहीं खाएँगे।
  2. पराई औरत को अपनी बहिन बेटी समझेंगे।
  3. किसी की झूठी गवाही नहीं देंगे।
  4. करार से बेकरार नहीं होंगे।

कोटवासन माता ने आश्वासन दिया कि खीचड़ लोग इन बातों को मानते रहेंगे तो मैं सदा उनकी रक्षा करती रहूँगी। फौज जो चढ़ आई है उससे मैं निबट लूँगी। तुम्हारे खाने के जो बर्तन हैं वे उनको दिखा देना, उसमें चावल-मूंग की खिचड़ी होगी। यह कहकर देवी अंतर्ध्यान हो गई।

नवाब की फौज थोड़ी दूर पर थी तब नवाब ने देखा कि यहाँ तो कोई 25-30 लोग रुके हैं। उसने मुले सिंह से पूछा कि वह बड़ा काफिला कहाँ जो तुम बता रहे थे। नवाब ने फौज को दूर ही रोक कर कुछ ही लोगों को साथ लेकर पड़ाव की तरफ गया और यहाँ रुके लोगों से पूछा तुम लोग कौन हो और कहाँ से आए हो?

दोनों परिवार के मुखिया सींघल और बीजल नवाब के समक्ष आए और बताया कि हम खीचड़ जाट हैं और अकाल के कारण दक्षिण की और जा रहे हैं । यहाँ पानी देख कर पड़ाव डाल दिया था। हमने कोई रेवड़ नहीं काटा है, जैसा आरोप लगाया जा रहा है। आपका रेवड़ भी पास के जंगल में चर रहा होगा। नवाब ने इन तथ्यों की पुष्टि की। देखा कि सभी बर्तनों में खिचड़ी पक रही है और पास के जंगल में रेवड़ भी चर रहा है। नवाब ने मुले सिंह से कहा कि ये भले आदमी लगते हैं । तुमने इनकी झूठी शिकायत की है। इसलिए तुम्हारे 12 गांवों में से एक गाँव इनको दे दो।

बजावा गाँव में बसना - मुले सिंह नवाब के सामने झूटा साबित हो चुका था। उसने सोचा कि बजावा गाँव में वर्षा नहीं होती है और अकाल पड़ता है। ये लोग अपने आप ही भविष्य में यह गाँव छोड़ कर चले जाएंगे। मेरी चौधर तब यथावत 12 गांवों में बनी रहेगी। इस प्रकार सिंघल व बीजल के परिवारों को बजावा गाँव बसने के लिए मिल गया। नवाब ने बजावा गाँव का पट्टा इनके नाम कर दिया। बरसात का मौसम आया परंतु बजावा में वर्षा नहीं हुई। कहते हैं खीचड़ जाटों ने कुलदेवी कोटवासन माता को याद किया। कुलदेवी के आशीर्वाद से बजावा में अच्छी वर्षा हुई। कहते हैं कि कुलदेवी ने यह भी वरदान दिया कि बजावा में कभी अकाल नहीं पड़ेगा। ग्रामीण लोग बताते हैं कि यह परंपरा अभी भी कायम है, बजावा में कभी अकाल नहीं पड़ता।

मुलेसिंह बुगालिया से विवाद: सिंघल व बीजल के परिवार बजावा में काफी स्मृद्ध हो गए थे। दोनों भाई घोड़ों पर चढ़कर दूसरे गांवों में भी जाते रहते थे। रास्ते में मुले सिंह बुगालिया का गाँव भी पड़ता था। मुलेसिंह की बेटी देऊ की सगाई धेतरवाल जाटों में तय हुई थी। वह लड़की गाँव की औरतों के साथ कुएं पर पानी भरने जाती थी। इधर से कई गांवों के लोग गुजरते थे। एक दिन उसी रास्ते से दोनों भाई सींघल और बीजल घोड़ों पर गुजर रहे थे तब देऊ ने ताना मारा - "घोड़े वाले दोनों बदमास और लुच्चे हैं। रोज इस रास्ते मुझे उड़ाने के लिए फिरते हैं। आज ये फिर आ गए हैं।" ताना सुनकर दोनों भाई हक्के बक्के रह गए। दोनों भाईयों ने पनिहारिनों से पूछा कि यह ऐसा क्यों कह रही है। पनिहारिनों बताया कि यह ऐसा रोज ही कहती है कि इन्होने पहले मेरे पिता से बजावा गाँव छीना और अब मेरे को छीनना चाहते हैं। दोनों भाईयों ने कहा कि पहले तो ऐसा विचार नहीं था परंतु अब इस पर विचार करना पड़ेगा। दोनों भाईयों ने देऊ का हाथ पकड़ा और घोड़े पर बैठा कर ले गए। देऊ के पिता इस पर आग-बबूला हो गए। उसने बदला लेने के लिए देऊ के ससुराल वाले धेतरवाल जाटों की मदद लेने की सोची। धेतरवाल उस समय 18 गांवों के चौधरी थे। धेतरवाल जाटों को साथ लेकर मुले सिंह बुगालिया झुंझुणु नवाब से मिले। लड़की को वापस लाने के लिए नवाब की सहायता मांगी। नवाब को मुले सिंह की पहले की झूठी शिकायत याद थी। उसने सींघल और बीजल को बुलावा भिजवाया। अब दोनों भाई और परिवार के लोग सोच में पड़ गए। सभी ने सलाह मशवरा किया और इस नतीजे पर पहुंचे की बुगालिया लड़की वापस नहीं की जाएगी चाहे इसके लिए कितनी भी कीमत क्यों न चुकानी पड़े। अगले दिन दोनों भाई नवाब के समक्ष कचहरी में उपस्थित हुये और यथा स्थिति से नवाब को अवगत कराया। दोनों भाईयों ने बताया कि यह रोज हम पर झूठा आरोप लगाती थी तब हमने इसको घरवाली बनाने की सोचकर साथ ले आए। नवाब ने सौचा ये दोनों बहादुर हैं, कभी हमारे काम आ सकते हैं। नवाब के पूछने पर जवाब दिया कि वे अब इस लड़की को घरवाली बना चुके हैं किसी भी कीमत पर वापस नहीं करेंगे। नवाब ने एक लाख रुपये जुर्माना तय किया। दोनों भाईयों ने कुछ ही दिन में जुर्माना भर दिया

खीचड़ों की वंशावली: मुलेसिंह बुगालिया की बेटी देऊ बुगालिया सींघल की तीसरी पत्नी थी। इससे पहले सींघल की दो शादियाँ और हो चुकी थी। तीनों पत्नियों से परिवार की वृद्धि निम्नानुसार हुई:

सींघल की पहली पत्नी से मालाराम हुये जिसने मैणास गाँव बसाया। इनकी संताने मेंगरासी खीचड़ कहलाई।

सींघल की दूसरी पत्नी से महीधर हुये जिससे महला गोत्र बना। मईधर ने शीथल गाँव बसाया।

सींघल की तीसरी पत्नी देऊ बुगालिया से ढोलाराम नामक पुत्र पैदा हुआ जिसने ढोलास नामक गाँव बसाया। इनकी संताने ढोलरासी खीचड़ कहलाई।

इस प्रकार महलाखीचड़ एक ही बाप से पैदा होने के कारण दोनों गोत्रों में आपस में भाईचारा है।

सींघल की संतानों ने तीन गाँव मैणास, शीथल और ढोलास गाँव बसाये। बजावा इनका पैतृक गाँव था।

खीचड़ गोत्र के आगे की पीढ़ियों में कुमास गाँव बसाया जो सीकर जिले में है तथा यहाँ पर 4-5 हजार की संख्या में खीचड़ परिवार निवास करते हैं।

हरयाणा के सिरसा जिले में बाहिया गाँव है जहां 400 घर खीचड़ जाटों के हैं।

उपरोक्त में से ढोलाराम के परिवार के खीचड़ अपने आप को कुछ हीन समझते थे क्योंकि वे ब्याहता की संतान नहीं थे, उनकी माता को भगाकर लाया गया था। वे बाद में सारे के सारे बिशनोई संप्रदाय में शामिल हो गए। ये बिशनोई खीचड़ कहलाते हैं।

बछरारा के खीचड़ों का इतिहास एवं वंशावली

सती नेतू दादी और सती केसर दादी की मूर्तियाँ ग्राम बछरारा
बछरारा के चुहड़जी खीचड़ की वंशावली

खीचड़ों का इतिहास एवं वंशावली की जानकारी प्रबोध खीचड़, खीचड़ों की ढाणी, बछरारा, रतनगढ़, चुरू, राजस्थान द्वारा ई-मेल से उपलब्ध कराई है। (Mob: 9414079295, Email: prabodhkumar9594@gmail.com)

बछरारा से खीचड़ों का प्रस्थान: मालाराम जी के मैनास गाँव बसाने के 15 पीढ़ी बाद उनके वंशज ने बछरारा गाँव बसाया। बछरारा गाँव के खीचड़ गोत्र के कुछ परिवार गाँव ललाना (नोहर, हनुमानगढ़) में आकर बस गए। ललाना से पूर्णराम जी हुये जिनके एक ही लड़का कुसलाराम था। कुसलाराम के 4 पुत्र थे, जो खड़ियाल (तह:एलनाबाद, सिरसा) में कुछ समय रहे। घगगर नदी तब खुली बहती थी और बाढ़ आने पर गाँव डूबता था। तब उन्होने ऊंचाई पर नीमला गाँव (तह:एलनाबाद) बसाया।


सक्ती नेतू दादी का धाम बछरारा: विक्रम संवत 1817 (1761 ई.) फाल्गुन सुदी तीज को ग्राम बछरारा तहसील रतनगढ़, जिला चुरू राजस्थान में मोटाराम खीचड़ पुत्र हीरा राम की मृत्यु हो गई। उनकी धर्मपत्नी नेतू धेतरवाल जालेऊ गाँव की रहने वाली थी। वह मोटाराम खीचड़ के साथ 1761 ई. में सक्ती हो गई। सक्ती नेतू दादी का धाम बछरारा गाँव में स्थित है। फाल्गुन सुदी तीज को इस धाम पर चुनड़ी चढ़ाई जाती है।

केसर सक्ती दादी पूनिया गोत्र की थी और नारायणराम खीचड़ की पत्नी थी। वह कार्तिक सुदी तीज विक्रम संवत 1747 (=1680 ई.) को सक्ती हुई।


बछरारा के चुहड़जी खीचड़ की वंशावली: चुहड़जी बछरारा की वंशावली में उनके पुत्र पेमाजी ने संवत 1854 (1797 ई.) में सोढ़ाण गाँव बसाया. पेमाजी का पुत्र इसराजी सुल्तानपुरिया (सिरसा, हरयाणा) चले गये.

ईसराजी के 4 पुत्र हुये: 1. दौलाजी, 2. बीराम, 3. गिधाजी, 4. मानाजी

बीराम के 2 पुत्र हुये: 1. ऊदाराम जी और 2. खेताजी. खेताजी संवत 1919 (1862 ई.) सुल्तानपुरिया (सिरसा, हरयाणा) गाँव में जा बसे.

खेताजी के 2 पुत्र हुये: 1. भागू 2. जेठा

भागू के पुत्र हुये: 1. बेगा 2 भींवा

भींवा के पुत्र कासीराम हुये. कसीराम के पुत्र हुये 1. क़ृष्ण 2. भँवरलाल 3 सतपाल (कर्मगढ़)

जेठा के पुत्र हुये 1. पूसा और 2. नानू

नानू के पुत्र हुये 1. मनफूल 2. लादू राम 3.नीकूराम 4. रामकुवार

ईसराजी के 4थे पुत्र मानाजी के 5 पुत्र हुये 1. खरथा 2. रामो 3. डूंगर 4. नंदा 5. राम

खरथा के पुत्र हुये 1. बींजा और 2. खेमा

खेमा के पुत्र हुये 1 हुकमाजी 2. रेडोजी 3 भोमाजी 4. बालू 5. सोहन 6.भादरा

रेडोजी के यादराम हुये और यादराम के 1. कालूराम 2. महावीर और 3. दूदाराम हुये (नागरसरी, नोहर)

भोमाजी के पुत्र रामजीलाल और उनके पुत्र कालूराम (सरपंच) तथा मांगीराम हुये.

बालू के पुत्र हुये 1.हंसराज 2.देवी लाल और 3 ओमप्रकाश

सोहन के पुत्र हुये 1. धनराज 2. गोपी राम 3. दूलीचंद 4. रणजीत 5. संत लाल और 6. हीरा दत्त हुये

गोपीराम के पुत्र विजय खीचड़ हुये


कुड़छी के खीचड़: ये बछरारा गाँव से आए थे. जगमाल जी खीचड़ कुड़छी गाँव से सिद्धूों का पांचला गाँव गए. → उनके पुत्र पिथा राम → उनके पुत्र सांवलाराम → उनके पुत्र भागचंद → उनके पुत्र गोविंद बायतु चिमनजी गाँव में बसे. गोविंद के पुत्र जय राम → उनके दो पुत्र हुये: 1. लधा राम और 2. सेवाराम

लधा राम हेमजी का तला गाँव में बसा. लधा राम के पुत्र पुरखा राम हुये जिनके 2 पुत्र हुये: 1. रामाराम और 2. हेमाराम

रामा राम के पुत्र बीरमाराम और उनके 4 पुत्र हुये: 1. सोनाराम 2. गोरधन 3. डूंगरराम 4. मगाराम

सेवाराम के पुत्र 3 हुये: 1. करणाराम 2. सुराराम 3. सुरताराम

करणाराम के पुत्र हुये: 1. कुंभाराम 2. भीमाराम

कुंभाराम के पुत्र खेमाराम और उनके पुत्र रेखाराम हुये.

भीमाराम के पुत्र पदमाराम पदमाराम के 5 पुत्र हुए: 1. जुजाराम 2. मंगला राम 3. घुड़ाराम 4. प्रह्लाद और 5. चुनाराम

सुराराम के कोई संतान नहीं.

सुरताराम के 3 पुत्र 1. 1. नागरराम 2. देदाराम 3. कुशलाराम

नागरराम के पुत्र हुये मूलाराम उनके 3 पुत्र हुये: 1. मोहन सिंह 2. सत्ता राम 3. डॉ. जुझाराम

देदाराम के 4 पुत्र हुये: 1. गोरधन 2. खूमा राम 3. रूपा राम 4. नन्द राम

कुशलाराम के पुत्र नहीं

Notable persons

  • Prabodh Khichar - From Khicharon Ki Dhani, Bachharara, Ratangarh,Churu, Rajasthan by Email (Mob: 9414079295, Email: prabodhkumar9594@gmail.com)
  • Km Sarita Dhaka d/o Randhir Dhaka, Bachhrara, Meritorious Student in 12th Board Examination-2014 with marks 79%
  • Km Babita Nyol d/o Ram Kumar, Bachhrara, Meritorious Student in 12th Board Examination-2014 with marks 76%
  • Km Roshni Nain d/o Shyodana Ram, Bachhrara, Meritorious Student in 10th Board Examination-2014 with marks 75%

External links

References

  1. Thakur Deshraj: Bikaneriy Jagriti Ke Agradoot – Chaudhari Harish Chandra Nain, 1964, p.337
  2. Prabodh Khichar of village Bachharara, Ratangarh, Churu, Rajasthan by Email (Mob: 9414079295, Email: prabodhkumar9594@gmail.com
  3. ठाकुर देशराज, बिकानेरीय जागृति के अग्रदूत चौधरी हरिश्चंद्र नैन, पेज 335-337
  4. Dr Pema Ram, The Jats Vol. 3, ed. Dr Vir Singh,Originals, Delhi, 2007 p. 206
  5. Thakur Deshraj: Bikaneriy Jagriti Ke Agradoot – Chaudhari Harish Chandra Nain, 1964, p. 9
  6. Thakur Deshraj: Bikaneriy Jagriti Ke Agradoot – Chaudhari Harish Chandra Nain, 1964, p. 9-10
  7. Thakur Deshraj: Bikaneriy Jagriti Ke Agradoot – Chaudhari Harish Chandra Nain, 1964, p. 14
  8. Thakur Deshraj: Bikaneriy Jagriti Ke Agradoot – Chaudhari Harish Chandra Nain, 1964, p.336-338

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