Himalayas

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Location of Himalayas

Himalayas (हिमालय) are a mountain range in Asia, separating the plains of the Indian subcontinent from the Tibetan Plateau. The Himalayan range has the Earth's highest peaks, including the highest, Mount Everest. The Himalayas include over a hundred mountains exceeding 7,200 metres (23,600 ft) in elevation.

Variants of name

Mention by Panini

Himalaya (हिमालय) is mentioned by Panini in Ashtadhyayi. [2]

Mention by Pliny

Pliny[3] mentions 'The Nations of India.'.... But we come now to nations as to which there is a more general agreement among writers. Where the chain of Emodus1 rises, the nations of India begin, which borders not only on the Eastern sea, but on the Southern as well, which we have already mentioned2 as being called the Indian Ocean.


1 The Emodi Montes (so called probably from the Indian hemâdri, or the "golden") are supposed to have formed that portion of the great lateral branch of the Indian Caucasus, the range of the Himalaya, which extends along Nepaul, and probably as far as Bhotan.

2 In c. 14 of the present Book.

Mention by Pliny

Pliny[4] mentions 'The Nations of India.'.... The nations whom it may be not altogether inopportune to mention, after passing the Emodian Mountains, a cross range of which is called "Imaus," a word which, in the language of the natives, signifies "snowy,"27 are the Isari, the Cosyri, the Izi, and, upon the chain of mountains, the Chisiotosagi, with numerous peoples, which have the surname of Brachmanæ,28 among whom are the Maccocalingæ. There are also the rivers Prinas and Cainas,29 which last flows into the Ganges, both of them navigable streams. The nation of the Calingæ30 comes nearest to the sea, and above them are the Mandei and the Malli.31 In the territory of the last-named people is a mountain called Mallus: the boundary of this region is the river Ganges.


27 The Sanscrit for "snowy" is "himrarat." The name of Emodus, combined with Imaiis, seems here to be a description of the knot of mountains formed by the intersections of the Himalaya, the Hindoo Koosh, and the Bolor range; the latter having been for many ages the boundary between the empires of China and Turkistan. It is pretty clear, that, like Ptolemy, Pliny imagined that the Imaiis ran from south to north; but it seems hardly necessary, in this instance at least, to give to the word "promontorium" the meaning attached to our word "promontory," and to suppose that he implies that the range of the Imaüs runs down to the verge of the eastern ocean.

28 A name evidently given to numerous tribes of India, from the circumstance that Alexander and his followers found it borne by the Brahmins or priestly caste of the Hindoos.

29 Still called the Cane, a navigable river of India within the Ganges, falling into the Ganges, according to Arrian as well as Pliny, though in reality it falls into the Jumna.

30 The Calingæ, who are further mentioned in the next Chapter, probably dwelt in the vicinity of the promontory of Calingon, upon which was the town of Dandaguda, mentioned in c. 23 of the present Book. This promontory and city are usually identified with those of Calinapatnam, about half-way between the Mahanadi River and Godavari; and the territory of the Calingæ seems to correspond pretty nearly to the district of Circars, lying along the coast of Orissa.

31 By the Malli, Parisot is of opinion that the people of Moultan are meant.

Location

The Himalayas are spread across four countries: Bhutan, India, Nepal and China, and, a small range in Pakistan (though it is in Pak occupied Kashmir, which is part of India and is forcibly occupied by Pakistan). The Himalayan range is bordered on the northwest by the Karakoram and Hindu-Kush ranges, on the north by the Tibetan Plateau, and on the south by the Indo-Gangetic Plain.

Some of the world's major rivers, the Indus, the Ganges, and the Tsangpo-Brahmaputra, rise in the Himalayas, and their combined drainage basin is home to roughly 600 million people. The Himalayas have profoundly shaped the cultures of South Asia; many Himalayan peaks are sacred in Hinduism and Buddhism.

हिमवान् = हिमालय

हिमवान् = हिमालय (AS, p.1021): विजयेन्द्र कुमार माथुर [5] ने लेख किया है ....भारत की उत्तरी सीमा पर स्थित संसार की सर्वोच्च पर्वत-श्रंखला. पौराणिक वर्णनों में हिमालय का उल्लेख हिमवान नाम से मिलता है। वास्तव में वैदिक काल से ही हिमवान भारतीय संस्कृति का प्रेरणा स्रोत रहा है। ऋग्वेद में 'हिमवान' शब्द का बहुबचन में (हिमवन्तः) प्रयोग किया गया है, जिससे हिमालय की बृहत पर्वत श्रंखला का बोध होता है। हिमालय के मजबूत शिखर का भी ऋग्वेद में उल्लेख है। अथर्ववेद में दो अन्य शिखरों का वर्णन है- त्रिककुद् और नावप्रभ्रंशन। (अर्थवेद 19,39,8)

वाल्मीकि रामायण में गंगा को हिमवान् की ज्येष्ठ दुहिता कहा गया है- 'गंगा हिमवतो ज्सेष्ठा दुहिता पुरुषर्षभ।' (वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड 41, 18). 'तदा हैमवती ज्सेष्ठा सर्वलोक नमस्कृता तदा सातिमहद्रू पं कृत्वावेगं च दःसहम्।' (बालकाण्ड 43,4). वाल्मीकि को हिमवान पर्वत के अंचल में निवास करने वाली विविध जातियों का भी ज्ञान था- 'काम्बोजयवनांश्चैव शकानांपत्तनानिच, अन्वीक्ष्य वरदांश्चैव हिमवन्तं विचिन्वथ।' (किष्किन्धा काण्ड 43,12)

महाभारत, वनपर्व में पाण्डवों की हिमालय यात्रा का बड़ा मनोरम वर्णन है। इसके कैलास, मैनाक, गंधमादन नामक शिखरों की कठोर यात्रा पाण्डवों ने की थी- 'अवेक्षमाणः कैलासं मैनाकं चैव पर्वतम्, गंधमादनपादांश्च श्वेतं चापि शिलोच्चयम्। उपर्युपरि शैलस्य बह्वीश्च सरितः शिवाः पृष्ठं हिमवतः पुण्यं ययौ सप्तदशेऽहनि।' (वनपर्व 158, 18).

पांडव अंतिम समय में हिमालय पर गलने के लिये चले गये थे तथा उनका जन्म भी [p.1022]:शतश्रृंग नामक हिमालय के शिखर पर ही हुआ था। हिमालय पर्वत में बसे अनेक तीर्थों का वर्णन महाभारत में है। वास्तव में इस महाकाव्य के अध्ययन से महाभारतकार की हिमालय के प्रति अगाध आस्था का बोध होता है।

कालिदास को भी हिमालय से अद्भुत प्रेम था। 'कुमारसम्भव' के प्रथम सर्ग में नगाधिराज हिमालय का सुन्दर काव्यमय वर्णन है। इसमें हिमालय को पृथ्वी का मानदंड कहा गया है- 'अस्त्युत्तरस्यां दिशि देवतात्मा हिमालयो नाम नगाधिराजः पूर्वापरौ तोयनिधीवगाह्म, स्थित: पृथिव्या इव मानदंडः।'(कुमारसंभव 1,1).

इस सर्ग में कालिदास ने हिमालय की अनंत रत्नप्रभवता, अप्सराओं के अलंकरण प्रसाधन में शामिल रंगीन बादल, पर्वत के क्रोड़ में संचरणशील मेघों की छाया, हिमाचलवासी किरातों द्वारा गजमुक्ताओं के सहारे [Sinhamarga|सिंहमार्ग]] का अन्वेषण, विद्याधर सुंदरियों का प्रणयपत्र लेखन, कीचकरंध्रों में वायु का वेणुवादन, देवदारु वृक्षों के क्षीर से सुगंधित शिखर, मणिप्रदीप्त गिरि गुहाएं, किनरियों की मंथरगति, पर्वत गुहा में छिपा हुआ अंधकार, चंद्रकिरणों के समान धवलपुच्छ वाली चमरियां और मृगान्वेषी किरात- इन सभी दृश्यों और घटनाओं के बड़े ही मनोरम और यथार्थ चित्र खींचे हैं। 'मेघदूत' में कालिदास ने हिमालय को 'प्रालेयाद्रि'('प्रालेयाद्रेरुपतटमतिक्रम्य तास्तान् विशेषान्' पूर्वमेघ 59) तथा गंगा का 'प्रभव' तथा 'तुषारगौर' पर्वत माना है- 'आसीनानां सुरभितशिलं नाभिगंधैमृगाणां तस्या एब प्रभवमचलं प्राप्य गौरं तुषारैः।'[(पूर्वमेघ, 54)

'विष्णुपुराण' में सतलुज, चिनाव आदि नदियाँ हिमालय से सम्भूत कही गई हैं- 'शतद्रूचन्द्रभागाद्या हिमवत्पादनिर्गताः।( विष्णुपुराण 2, 3, 10). अन्य पुराणों में भी हिमालय के विषय में असंख्य उल्लेख है। 'हिमवान' नाम वैदिक है तथा सर्वप्राचीन प्रतीत होता है। हिमालय नाम परवर्ती काल में प्रचलित था। कालिदास ने इसका प्रयोग किया है। (दे. हिमालयो नाम नागाधिराज:')

जैन ग्रंथ 'जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति' में हिमवान की जंबुद्वीप के छः वर्ष पर्वतों में गणना की गई है और इस पर्वतमाला के महाहिमवंत और चुल्लहिमवंत नाम के दो भाग बताये गए हैं। महाहिमवंत पूर्वसमुद्र (बंगाल की खाड़ी) तक फैला हुआ है और चुल्लहिमवंत पश्चिम और दक्षिण की ओर वर्षधर पर्वत के नीचे वाले सागर (अरब सागर) तक विस्तृत है। इस ग्रंथ में गंगा और सिंधु नदियों का उद्गम चुल्लहिमालय में स्थित सरोवरों से माना गया है। महाहिमवंत के 8 और चुल्ल के 11 शिखरों का उल्लेख इस जैन ग्रंथ में है।

हिमालय परिचय

हिमालय संस्कृत के 'हिम' तथा 'आलय' शब्दों से मिलकर बना है, जिसका शब्दार्थ 'बर्फ़ का घर' होता है। हिमालय भारत की धरोहर है। हिमालय पर्वत की एक चोटी का नाम 'बन्दरपुच्छ' है। यह चोटी उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल ज़िले में स्थित है। इसकी ऊँचाई 20,731 फुट है। इसे सुमेरु भी कहते हैं। हिमालय एक पूरी पर्वत शृंखला है, जो भारतीय उपमहाद्वीप और तिब्बत को अलग करता है। यह भारतवर्ष का सबसे ऊँचा पर्वत है, जो उत्तर में देश की लगभग 2500 किलोमीटर लंबी सीमा बनाता है और देश को उत्तर एशिया से पृथक् करता है। कश्मीर से लेकर असम तक इसका विस्तार है।

भौगोलिक तथ्य: हिमालय पर्वतमाला की गणना वैज्ञानिक विश्व की नवीन पर्वत मालाओं से करते हैं। इसका निर्माण सागर तल के उठने से आज से पाँच-छह करोड़ वर्ष पहले हुआ था। हिमालय को अपनी पूरी ऊँचाई प्राप्त करने में 60 से 70 लाख वर्ष लगे। यह अपनी ऊँची चोटियों के लिये प्रसिद्ध है। विश्व का सर्वोच्च शिखर माउंट एवरेस्ट हिमालय की है। विश्व के 100 सर्वोच्च शिखरों में कई हिमालय की चोटियाँ हैं। अन्य पर्वतों की अपेक्षा यह काफ़ी नया है। हिमालय से सम्बद्ध पहली पर्वत शृंखला पीर पंजाल पर्वतश्रेणी है। हिमालय के एक भाग का नाम 'कलिंद' है। यहीं से यमुना निकलती है। इसी से यमुना का नाम 'कलिंदजा' और 'कालिंदी' भी है। दोनों का मतलब 'कलिंद की बेटी' होता है। यह जगह बहुत सुन्दर है, पर यहाँ पहुँचना बहुत कठिन है। अपने उद्गम से आगे कई मील तक विशाल हिमगारों और हिंम मंडित कंदराओं में अप्रकट रूप से बहती हुई तथा पहाड़ी ढलानों पर से अत्यन्त तीव्रता पूर्वक उतरती हुई इसकी धारा यमुनोत्तरी पर्वत 20,731 फीट ऊँचाई से प्रकट होती है। हिमालय पर्वतश्रेणी के अतिरिक्त अनाई शिखर भारत की सबसे ऊँची चोटी है।

पौराणिक संदर्भ: पुराणों के अनुसार हिमालय मैना का पति और पार्वती का पिता है। गंगा इसकी सबसे बड़ी पुत्री है। भगवान शंकर का निवास कैलाश यहीं है। महाभारत के अनुसार पांडव स्वर्गारोहण के लिए यहीं आए थे। युधिष्ठर देवरथ में बैठकर जब सशरीर स्वर्ग जाने लगे तो उनकी इन्द्र से भेंट यहीं हुई थी।

गहन प्रभाव: हज़ारों वर्षों तक हिमालय ने दक्षिण एशिया के लोगों पर वैयक्तिक और गहन प्रभाव डाला है, जो उनके साहित्य, राजनीति, अर्थव्यवस्था और पौराणिक कथाओं में भी प्रतिबिंबित होता है। इसकी विस्तृत बर्फ़ीली चोटियाँ लंबे समय से प्राचीन भारत के पर्वतारोही तीर्थयात्रियों को आकर्षित करती रही हैं, जिन्होंने इस विशाल पर्वत शृंखला का संस्कृत में नामकरण किया। आधुनिक काल में हिमालय विश्व भर के पर्वतारोहियों के लिए सबसे बड़ा आकर्षण और महानतम चुनौती है। भारतीय उपमहाद्वीप की उत्तरी सीमा का निर्धारण करने और उत्तर की भूमि के लिए लगभग अगम्य अवरोध बनाने वाली यह पर्वतश्रेणी एक विशाल पर्वत पट्टिका का हिस्सा है जो उत्तरी अफ़्रीका से दक्षिण-पूर्व एशिया के प्रशांत तट तक लगभग आधी दुनिया में फैली हुई है। हिमालय पर्वतश्रेणी लगभग 2,500 किलोमीटर तक पश्चिम से पूर्व दिशा में जम्मू-कश्मीर क्षेत्र के नंगा पर्वत (8,126 मीटर) से तिब्बत में नामचा बरवा (7,756 मीटर) तक निर्बाध रूप से फैली हुई है। पूर्व और पश्चिम के इन दो सुदूर छोरों के बीच दो हिमालयी देश, नेपाल और भूटान, स्थित हैं। हिमालय के पश्चिमोत्तर में हिंदुकुश और कराकोरम पर्वतश्रेणियाँ और उत्तर में तिब्बत का पठार है। दक्षिण से उत्तर तक हिमालय की चौड़ाई 201 से 402 किलोमीटर के बीच परिवर्तित होती रहती है। इसका कुल क्षेत्रफल लगभग 5,94,400 वर्ग किलोमीटर है।

भौगोलिक विशेषताएँ: हिमालय की प्रमुख लाक्षणिक विशिष्टता इसकी बुलंद ऊँचाइयाँ, खड़े किनारों वाले नुकीले शिखर, घाटियाँ, पर्वतीय हिमनदियाँ, जो अक्सर विशाल होती हैं, अपरदन द्वारा गहरी कटी हुई स्थलाकृति, अथाह प्रतीत होती नदी घाटियाँ, जटिल भौगर्भिक संरचना और ऊँची पट्टियों (या क्षेत्रों) की शृंखला है, जिनमें विभिन्न प्रकार की वनस्पतियाँ, जंतुजीवन और जलवायु हैं। दक्षिण की ओर से देखने पर हिमालय विशालकाय अर्द्ध चंद्र प्रतीत होता है, जिसका मूल अक्ष हिमरेखा से ऊपर स्थित है, जहाँ हिमक्षेत्र, पर्वतीय हिमनदियाँ और हिमस्खलन निचली घाटियों की उन हिमनदियों का हिस्सा बनते हैं, जो हिमालय से निकलने वाली अधिकांश नदियों के स्रोत हैं। लेकिन हिमालय का बड़ा हिस्सा हिमरेखा के नीचे स्थित है। इस श्रेणी का निर्माण करने वाली पर्वत-निर्माण प्रक्रिया अब भी क्रियाशील है, जिसमें धाराओं के भारी अपरदन और विशाल भूस्खलन जैसी गतिविधियाँ भी शामिल हैं। हिमालय पर्वतश्रेणी को चार समानांतर, लंबवत, भिन्न चौड़ाई वाली पर्वत-पट्टिकाओं में विभक्त किया जा सकता है, जिनमें से प्रत्येक की अपनी भौगोलिक विशिष्टता तथा अपना अलग भूगर्भशास्त्रीय इतिहास है। इन्हें दक्षिण से उत्तर की ओर इस प्रकार बाँटा गया है- बाहरी या उप-हिमालय; लघु या निम्न हिमालय; उच्च या वृहत हिमालय; और टेथिस या तिब्बती हिमालय, इससे आगे उत्तर में तिब्बत में परा-हिमालय है, जो कुछ सुदूर उत्तरी हिमालयी श्रेणियों का पूर्व दिशा में विस्तार है। पश्चिम से पूर्व की ओर हिमालय को मोटे तौर पर तीन पर्वतीय क्षेत्रों में बाँटा गया है- 1. पश्चिमी, 2. मध्यवर्ती, 3. पूर्वी

संदर्भ: भारतकोश-हिमालय

External links

References