Gahlot
Gahlot (गहलोत)[1] Gehlot (गेहलोत) Gehlod (गेहलोद) Gahlaut (गहलौत) Gehlaut (गहलौत) Gehlawat (गेहलावत)[2] Gahlawat (गहलावत)[3] Gahlot (गहलोट) Gaihlot (गैहलोट) [4] Gahlawat (गहलावत) Guhilaut (गुहिलौत)[5] Gahlat (गहलात) Gahlat (गहलत) Guhil (गुहिल)[6][7][8] Gahelot (गहेलोत) is Gotra found among the Jats in India in Haryana, Rajasthan, Uttar Pradesh, Madhya Pradesh and Delhi. James Tod places it in the list of Thirty Six Royal Races.[9]
Origin
- Guhilaut gotra is said to be started after Guhadatta (गुहदत्त) which became Gahlaut. [10]
- They call themselves the descendants of Suryavanshi Rama Chandra, but their descent is believed to be from Balvanshi ruler named Gupta.
Jat Gotras Namesake
Mention by Panini
Gohila (गोहिल) was a place name mentioned by Panini under Sakhyadi (सख्यादि) (4.2.80.9) group. [12]. People of this place were probably called Guhilaut.
गिहलौट
विजयेन्द्र कुमार माथुर[13] ने लेख किया है ...[p.289]: गिहलौट मध्यकाल में चित्तौड़ के निकट अरावली पर्वत की घाटी में बसा हुआ एक अति प्राचीन स्थान है, जो बाद में उदयपुर कहलाया। मेवाड़ की प्राचीन जनश्रुतियों के अनुसार मेवाड़-नरेशों के पूर्वज बप्पारावल ने चित्तौड़ को विजय करने से पहले इसी स्थान के निकट कुछ समय तक अज्ञातवास किया था. गहलोत राजपूतों का आदि निवास-स्थान भी यहीं था. इस स्थान का नामकरण गुहिल जाति के यहाँ मूलरूप से निवास करने के कारण हुआ था। बप्पा का संबंध बचपन में इन्हीं लोगों से रहा था (गुहिल=गुह).
सन 1567 ई. में जब अकबर ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया, तो महाराणा उदयसिंह राजधानी छोड़कर गिहलौट में जाकर रहे थे। उन्होंने प्रारम्भ में यहाँ एक [p.290]: पहाड़ी पर सुन्दर प्रासाद का निर्माण करवाया था। धीरे-धीरे यहाँ कई महल बनवाये तथा यहाँ पर निवासियों की संख्या भी बढ़ने लगी। जल्दी ही इस जंगली गाँव ने एक सुन्दर नगर कारूप धारण कर लिया। इसी का नाम कुछ समय पश्चात् उदयसिंह के नाम पर उदयपुर हुआ और उदयसिंह ने मेवाड़ राज्य की राजधानी चित्तौड़ से हटा कर इस नये नगर में बनायी गयी।
जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत
गुहिलोत-गुहिलावत-मुण्डतोड़-गहलावत:
ब्रह्मा जी के पुत्र दक्ष प्रजापति की 13 कन्याओं का विवाह सूर्यवंशी महर्षि कश्यप के साथ हुआ था। उनमें से एक का नाम दिति था जिससे एक पुत्र हिरण्यकशपु हुआ जिसके 5 पुत्रों में से एक का नाम प्रहलाद था। प्रहलाद का पुत्र विरोचन था जिसका पुत्र बलि था जो बड़ा प्रतापी सम्राट् था। इनकी प्रसिद्धि के कारण सूर्यवंशी क्षत्रियों का संघ उनके नाम पर बल या बलियान जाटवंश प्रचलित हुआ जो कि वैदिक काल से है। इसी बलवंश के वीर योद्धा भटार्क ने कच्छ-कठियावाड़ में अपने वंश के नाम पर बलभीपुर राज्य की स्थापना की। इस नगर का दूसरा नाम बला था। वहां पर इस बल वंश का शासन सन् 470 से 757 ई० तक रहा। सन् 757 ई० में सिंध के अरब शासक हशाब-इब्न अलतधलवी के सेनापति अबरूबिन जमाल ने गुजरात-काठियावाड़ पर चढाई करके बल्लभी के इस बलवंश को समाप्त कर दिया। वहां से निकलकर वलवंशी गुहिल वंश प्रवर्तक गुहदत्त या गुहादित्य बाप्पा रावल उत्पन्न हुए। टॉड ने भी इस मत की पुष्टि की है। गुहादित्य बाप्पा रावल ने अपने नाना मान मौर्य जो कि चित्तौड़ का शासक था, को मारकर चित्तौड़ का राज्य हस्तगत कर लिया। इसने अपने बलवंश के स्थान पर गुहिलवंश के नाम पर अपना शासन आरम्भ किया। बलवंश की शाखा - गुहिल, सिसौदिया, राणा, गहलौत, मुण्डतोड़, गहलावत हैं। (देखो तृतीय अध्याय बल-बालियान प्रकरण)।
जाट इतिहास लेखक लेफ्टिनेण्ट रामसरूप और हरयाणा सर्वखाप इतिहास रिकार्ड के अनुसार -
- बलवंशी बाप्पा रावल का पिता शत्रु ने मार दिया। उसकी माता वहां से निकलकर दूसरे स्थान पर जा पहुंची जहां पर इस रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया। उस पुत्र का नाम बाप्पा रावल रखा गया। रानी के मरने पर उसका पालन-पोषण बड़नगर की कमला ब्राह्मणी ने किया। उसको शत्रुओं से बचाने के लिए एक गुफा में छिपाकर रखा गया और उसका नाम गोहदित्त या गुहादित्ता रख लिया गया। शक्ति प्राप्त करके भीलों की मदद से इसने चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया।
राजस्थान के राजवंशों का इतिहास पृ० 23-26, लेखक जगदीशसिंह गहलोत (राजपूत) ने गहलोत राजवंश के विषय में लिखा है -
इस वंश का सबसे पहला शिलालेख जो मिला है, उससे यह अनुमान किया जाता है कि वि० सं० 625 (सन् 568) के आसपास मेवाड़ में गुहिल (गुहदत्त) नाम का एक प्रतापी सूर्यवंशी राजा हुआ जिसके नाम से उसका वंश गुहिल वंश कहलाया। संस्कृत शिलालेखों और पुस्तकों में इस वंश के नाम गुहिलपुत्र, गुहिलोत, गौहिल्य मिलते हैं। भाषा में ग्रहिल, गहलोत और गेलोन प्रसिद्ध हैं।
ये एक ही शब्द हैं। देश के गौरव, मेवाड़ के महाराणा इसी गहलोत वंश के थे। मेवाड़ (उदयपुर) का यह राजवंश लगभग वि० सं० 625 (568 ई०1) से लेकर देश की आजादी तक, समय के अनेक हेरफेर सहता हुआ इसी प्रदेश पर लगभग 1380 वर्ष तक राज्य करता रहा। मेवाड़ के गहलोत वंशी शासक विक्रम की 11वीं शताब्दी तक अर्थात् गुहिल (गुहदत्त) (1) से रणसिंह (33) तक राजा की उपाधि धारण करते रहे हैं। रणसिंह के खेमसिंह, राहप और माहप नामक तीन पुत्र थे। राजकुमार राहप को सीसौदे गांव की जागीर मिली जिसके नाम से ये सीसोदिया कहलाने लगे और उसने राणा उपाधि धारण की। ज्येष्ठ पुत्र क्षेमसिंह या खेमसिंह मेवाड़ की गद्दी पर
- 1. जाट इतिहास (उत्पत्ति और गौरव-खण्ड) पृ० 120-121, लेखक ठाकुर देशराज ने लिखा है कि चित्तौड़ में मान मौर्य का जो शिलालेख मिला है उस पर संवत् 770 अंकित है अर्थात् सन् 713 में राजा मान आनन्द से चित्तौड़ पर राज्य कर रहा था। किन्तु टॉड राजस्थान सन् 729 में बाप्पा रावल को चित्तौड़ का अधीश्वर होना मानता है।
जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-1018
बैठा। सं० 1236 के लगभग मेवाड़ का राज्य क्षेमसिंह के ज्येष्ठ पुत्र सामन्तसिंह के हाथ से निकल गया तब उसने डूंगरपुर राज्य की स्थापना की परन्तु कुछ दिनों के पश्चात् क्षेमसिंह के दूसरे पुत्र कुमारसिंह ने अपने पूर्वजों के मेवाड़ राज्य पर फिर अधिकार कर लिया। क्षेमसिंह से रतनसिंह (42) तक ये नरेश रावल कहलाये। रावल रतनसिंह से सं० 1360 (सन् 1303 ई०) में बादशाह अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ छीन लिया और रतनसिंह के काम आने पर रावल शाखा की समाप्ति हुई। अतः सीसौदिया की शाखा के राणा हमीर ने सं० वि० 1382 (सन् 1325) के आसपास बादशाही हाकिम राजा मालदेव सोनगर की पुत्री से विवाह करके, युक्ति द्वारा पुनः चित्तौड़ पर अपना कब्जा कर लिया। तब से यहां के नरेशों की उपाधि राणा हुई और गांव सीसौदा के निवासी होने से सिसौदिया कहलाने लगे। जाट इतिहास (उत्पत्ति और गौरव खण्ड) पृ० 119-124 पर लेखक ठाकुर देशराज ने लिखा है कि - मौर्य जाटों का राज्य चित्तौड़ पर 184 ई० पू० से 713 ई० तक 897 वर्ष रहा। और इसी मौर्य की शाखा राय नामक का शासन सिंध पर 184 ई० पू० से 660 ई० तक 844 वर्ष रहा। (देखो, पंचम अध्याय, मगध साम्राज्य पर मौर्य-मोर वंशज जाट नरेशों का शासन, प्रकरण)।
बप्पा रावल जिसे कि गहलोतों का विक्रमादित्य कहना चाहिये, चित्तौड़ के मौर्य राजा मान के ही यहां सेनापति बना था। फिर उसने सन् 713 में चित्तौड़ को अपने कब्जे में कर लिया।
राजा मान बौद्धधर्म का अनुयायी था और इस प्रान्त में हारीत नाम का साधु नवीन हिन्दू धर्म का प्रचार कर रहा था। श्रौत चरितामृत में भी इस बात को स्वीकार किया है कि हारीत ने बाप्पा को इसलिए काफी मदद दी कि वह उनके मिशन को पूरा करने के लिए योग्य पुरुष था। हारीत अपने षड्यन्त्र में सफल हुआ। सारी सेना और राज्य की जनता राजा मान मौर्य के विरुद्ध हो गई और मान से चित्तौड़ छीन लिया गया। सी० वी० वैद्य के अनुसार बाप्पा रावल चित्तौड़ के मौर्य राजा का सामन्त था। रावल के माने छोटा राजा के होते हैं। उदयपुर के उत्तर में नागदा नाम का छोटा सा गांव है। वहीं बाप्पा रावल राज्य करता था। आसपास में बसे हुए भीलों पर उसका राज्य था। बौद्ध धर्म के विरोधी हारीत ने उसे शिक्षा-दीक्षा दी। नागदा के आसपास के भीलों को उसका सहायक बना दिया। वह अपनी भीलों की एक सेना के साथ मान राजा के यहां नौकर हो गया। उधर हारीत, राजा मान के विरुद्ध काम करता रहा। अवसर पाकर बौद्ध राजा मान को हटाकर बाप्पा को चित्तौड़ का शासक बना दिया। धीरे-धीरे मेवाड़ से वे सब राज्य नष्ट हो गये जो मौर्य के साथी थे। सिंध के साहसी राय मौर्य जाट का राज्य चच ब्राह्मण ने और चित्तौड़ का मौर्य जाट राज्य हारीत ब्राह्मण ने नष्ट कर दिया। इस तरह से सिंध और मेवाड़ से मौर्य जाट राज्य को समाप्त ही कर दिया गया। चीनी यात्री ह्वेनसांग और सी० वी० वैद्य ने सिंध और चित्तौड़ के इन राजाओं को मौर्य ही लिखा है। जाट गहलोत और राजपूत गहलोत गोत बाप्पा रावत गुहिल से दो श्रेणियां हो गईं।
नोट - गहलोत जाट और गहलोत राजपूत दोनों बल या बालियान जाट वंश की शाखा है और दोनों का रक्त एक ही है। बाप्पा रावल जाट था। उसकी कुछ पीढ़ी बाद ये गहलोत जात शासक, राजपूत संघ में मिलकर राजपूत कहलाने लगे।
गहलावत या गहलोत गोत्र के जाटों की बड़ी संख्या है। इस गोत्र के जाटों का ब्राह्मणों से युद्ध हुआ जिसमें इन्होंने ब्राह्मणों के मुण्ड तोड़ दिए और विजय प्राप्त की। इसी कारण इनकी
जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-1019
मुण्डतोड़ के नाम पर प्रसिद्धि हुई। इस गोत्र के जाटों के गांव जिला रोहतक में जौंधी, जिला सोनीपत में फरमाना, माजरा (फरमाना), गूहना, रिढाऊ, महीपुर, मोजनगर, माजरा (जस्सुवाला) आदि हैं।
दिल्ली में ककरोला, नांगलोई (कुछ घर), मोजनगर, महीमपुर, नड़ाछाड़, मितराऊ आदि प्रसिद्ध गांव हैं। भरतपुर राजघराने से वैवाहिक सम्बन्धों के कारण मितराऊ और शिक्षा में प्रगतिशीलता से नांगलोई प्रसिद्धि प्राप्त गांव हैं।
राजस्थान के राजवंशों के इतिहास पृ० 27 पर जगदीशसिंह गहलोत ने लिखा है कि निम्नलिखित नृपतिगण गहलोत वंश से निकले कहे जाते हैं -
- “राजपूताने में उदयपुर, मेवाड़, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़ और शाहपुरा। गुजरात में भावनगर, धर्मपुर, राजपीपला, पालीताना और लाठी। पंजाब में तीरोंच। मालवा में बड़वानी, ग्वालियर और इन्दौर1। मद्रास प्रान्त में सुन्दर राज्य और विजिगापट्टम जिले की 8000 वर्गमील और 60 लाख रुपये सालाना आमदनी की बड़ी जमींदारी विजयनगर। हिमालय में नैपाल2। दक्षिण में कोल्हापुर3, मुधोल, सांवतबाड़ी और अकलकोट। विदेश में जापान4 का राजवंश।”
- नोट - यह पिछले पृष्टों पर लिख दिया गया है कि सूर्यवंशी बल या बलियान जाटवंश के बाप्पा रावल गुहादित्य ने चित्तौड़ पर गुहिल या गहलोत वंश के नाम पर अपना शासन आरम्भ
- 1. ग्वालियर की तरह इन्दौर राज्य ने भी हाल में छपे अपने इतिहास में अपने को चित्तौड़ के गहलोत वंश से निकला माना है।
- 2. टॉड राजस्थान वाल्यूम 1 पृ० 257 लन्दन, सन् 1829 के अनुसार इस गहलोत वंश का दूसरा पुत्र या तो शुरु में या चित्तौड़ को जीत लेने के बाद, नैपाल के पहाड़ों में भाग गया और वहां पर गहलोत वंश फैल गया।
- 3. शिवाजी, जिसने सातारा राज्य की स्थापना की, सज्जनसी का वंशज था, जिसकी वंशपरम्परा का वर्णन मेवाड़ के इतिहास में है। (टॉड राजस्थान वाल्यूम 1, पृ० 269)। मेवाड़ के सरकारी वृहद इतिहास वीर विनोद के खण्ड 2 पृ० 1582 पर महाराष्ट्र केसरी छत्रपति शिवाजी को अजयसिंह सीसौदिया के कुंवर सज्जनसिंह के वंश में होना लिखा है। तात्पर्य साफ है कि शिवाजी के पूर्वज बलवंशी थे।
- 4. बड़ौदा राज्य के सुप्रसिद्ध विद्वान् व एज्युकेशन कमिश्नर मिस्टर दीक्षित ने हाल ही में राजपूत राजाओं के राज्य विस्तार की चर्चा करते हुए बड़ौदा नरेश के सम्मुख अपने भाषण में बताया कि इस समय जापान की गद्दी पर जो राज करते हैं, वह गहलौत राजपूत हैं जो चित्तौड़ से किसी समय गये थे। जापानी भाषा संस्कृत का बिगाड़ है, उसमें महाराजा को मुख्य देव पहले कहते थे, फिर उसका अपभ्रंश मुकेडे हुआ जो अब मकेडो है, पर अर्थ में भेद नहीं है। उनके झण्डे पर अब तक सूर्य का चिह्न है और वे सूर्यवंशी क्षत्रिय हैं।
- नोट - जगदीशसिंह गहलौत ने अपनी इसी पुस्तक के पृ० 5 पर लिखा है कि “लगभग 14वीं शताब्दी में राजपूत संघ बना।” सूर्यवंशी तथा चन्द्रवंशी आर्य क्षत्रिय जाट तो आदि सृष्टि या वैदिक काल से हैं जो भारत से विदेशों में गए और राज्य स्थापित किये तथा जापान में भी पहुंचे। राजपूत संघ बनने के बाद यह जाति विदेशों में नहीं गई। अतः जापान में राजपूतों का राज होने वाली बात असत्य है। (लेखक)
जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-1020
किया। इसकी कई पीढियों1 बाद यह जाट शासक राजपूत संघ में मिलकर राजपूत कहलाये। इन गहलोत जाटों और राजपूतों का रक्त एक ही है तथा इनके पूर्वज बलवंशी जाट हैं। अतः उपर्युक्त स्थानों एवं प्रान्तों और देशों में गहलोत जाट और राजपूत दोनों का शासन और निवास था। आज भी इन दोनों जातियों के गहलोत वंश की संख्या वहां पर बहुत है।
मध्यकाल (600-1200 ई.) के जाट राज्यों का वर्णन: मौर्य
ठाकुर देशराज[14] ने लिखा है.... मौर्य - मध्यकाल अर्थात राजपूती जमाने में इनका राज्य चित्तौड़ में था। बाप्पा रावल जिसे कि गहलोतों का विक्रमादित्य कहना चाहिए चित्तौड़ के मौर्य राजा मान के ही यहां सेनापति बना था। 'हिंदू भारत का उत्कर्ष' के लेखक श्री राव बहादुर चिंतामणि विनायक वैद्य लिखा है कि राजा मान से बाप्पा ने चित्तोड़ को अपने कब्जे में कर लिया। यहां हम इस बात को और साफ कर देना चाहते हैं कि राजा मान बौद्ध धर्म का अनुयाई था। इस प्रांत में हारीत नाम का साधु नवीन हिंदूधर्म का प्रचार कर रहा था। 'स्रोत चरितामृत' में भी इस बात को स्वीकार किया है कि हारीत ने बाप्पा को इसलिए काफी मदद दी कि वह उनके मिशन को पूरा करने के लिए योग्य पुरुष था। हारीत अपने षड्यंत्र में सफल हुआ। सारी फ़ौज और राज्य के वाशिंदे राजा मान के खिलाफ हो गए और मान से चित्तौड़ छीन लिया।
[पृ.120]: सीवी वैद्य ने इस घटना का जिस तरह वर्णन किया है उसका भाव यह है। बाप्पा रावल चित्तौड़ के मोरी राजा का सामंत था। रावल के माने छोटे राजा के होते हैं। उदयपुर के उत्तर में नागदा नाम का जो छोटा सा गांव है, वहीं बाप्पा रावल राज्य करता था। आसपास में बसे हुए भीलों पर उसका राज्य था। भीलों की सहायता से ही उसने अरबों का आक्रमण विफल किया था। नवसारी के एक चालुक्यों संबंधी शिलालेख से है पता लगता है कि अरबों ने मौर्यों (शायद के ही मौर्यों) पर भी आक्रमण किया था। हम ऐसा अनुमान कर सकते हैं कि हारित ऋषि ने बाप्पा को मौर्य राजा की सेना में धर्म रक्षा के हेतु भर्ती होने की सलाह दी होगी। कालक्रम से बाप्पा को चित्तौड़ का सर्वोच्च पद प्राप्त हो गया था। यह कैसे हुआ इसमें कई दंतकथाएं हैं। एक तो यह है कि चित्तौड़ के सब सरदारों ने मिलकर राजा के विरुद्ध विप्लव कर दिया और उसे पदच्युत करके बाप्पा को चित्तौड़ का अधीश्वर बनाया। बात कुछ भी हो, इसके बाद मोर्य कुल का राज्य चित्तौड़ से नष्ट हो गया।
अब विचारना यह है कि मान मोर्य से चित्तौड़ का राज्य कब निकल गया। चित्तौड़ में मान मौर्य का जो शिलालेख मिला है उस पर संवत 770 अंकित है अर्थात सन् 713 में मान आनंद से राज्य कर रहा था। अरबों ने जो मौर्य राज्य पर आक्रमण किया था उसका समय सन् 738 नवसारी के
[पृ.121]: चालुक्य के शिलालेख के अनुसार माना जाता है। तब हम यह ख्याल कर सकते हैं कि यदि सचमुच अरबों ने चित्तौड़ के मौर्य राज्य पर हमला किया था तो मान राजा सन् 738 तक तो चित्तौड़ में राज्य कर ही रहे थे।*बाप्पा ने उनसे यह राज्य सन् 740 के इधर-उधर हड़प लिया होगा।
यहां यह बताना उचित होगा कि मान के साथी-संगाति चित्तौड़ के छोड़कर बड़े दुख के साथ जावद (ग्वालियर राज्य) की ओर चले गए। ये मौर्य जाट अपना निकास चित्तौड़ से बताते हैं। वे कहते हैं कि ऋषि के श्राप से हमें चित्तौड़ छोड़ना पड़ा। यह ऋषि दूसरा कोई ओर नहीं हारीत है। कहा जाता है कि भाट ग्रन्थों में मान राजा को बाप्पा का भांजा कहा है। हमारे ख्याल से तो वैसा ही था जैसा कि धर्म वीर तेजाजी मीणा लोगों को मामा कहकर पुकारा था। उस जमाने में कोई किसी से रक्षा चाहता तो मामा कहकर संबोधित करता था और वह आदमी जिसे मामा कहा जाता था तनिक भी नाराज न कर खुश होता था।
एक बात और भी है कि बाप्पा के बाद ही तो उसका खानदान राजपूतों में (हारीत से दीक्षित होकर) गिना जाता है। तब हम यह मान लें कि जाट गहलोत और राजपूत गहलोत यहीं से गहलोतों की
* किंतु डॉट राजस्थान 729 में बाप्पा को चितौड़ का अधीश्वर होना मानता है।
[पृ.122]: दो श्रेणियां हो गई इन महाराज ने चित्तौड़ में एक सरोवर भी खुदवाया था जो मानसरोवर कहलाता है। भाट ग्रंथों से टाड साहब ने जो वर्णन बाप्पा के संबंध में दिया है वह तो अलिफलैला अथवा पुराणों के अधिकार गप्प से मिलता है। यथा- उनकी मां ने कहा मैं चित्तौड़ के सूर्यवंशी राजा की बहिन हूँ। झट बाप्पा जिसने आज तक नगरों के दर्शन भी नहीं किए थे चित्तौड़ में पहुंचता है। राजा केवल बाप्पा के यह कहने भर से कि मैं तेरा भांजा हूं उसे बड़े आदर से अपने यहां रखता है। राजा के संबंध सामंत राजा को और बाप्पा को इतना आकर्षित देखकर नाराज़ हो जाते हैं और राजा का उस समय तक तनिक भी साथ नहीं देती जब उस पर चढ़कर शत्रु आता है। बाप्पा जिसके पास कि हारीत के दिए हुये दिव्यास्त्र और गोरखनाथ की दी हुई तलवार थी, शत्रुओं को हरा देता है।* किंतु विजयी देश से लौटकर चितौड़ नहीं आता, अपनी पितृभूमि गजनी को चला जाता है।† उस काल वहां
* गुरु गोरखनाथ 13-14वीं सदी के बीच हुये हैं। कुछ लोग उन्हें आल्हा-उदल का समकालीन मानते हैं, जो कि 13वीं शदी में मौजूद थे। किंतु बाप्पा पैदा हुआ था आठवीं सदी में, फिर गोरखनाथ उस समय कहां से आ गया।
† गजनी बाप्पा के पितृों की भूमि कहां से आई? वहां तो यादव वंशी कई पीढ़ी से राज करते थे। यह भाटों की गप्प है।
[पृ.123]: गजनी में एक [Mlechha|म्लेछ]] सलीम राज करता था। उसको गद्दी से हटाकर एक एक सूर्यवंशी को गद्दी पर बैठाया और खुद ने सलीम म्लेछ की लड़की से शादी कर ली। अब चित्तोड़ को लौटे। इधर जो नाराज सामामन्त गण थे वे बाप्पा के साथ मिल गए और उन्होंने चित्तोड़ को छीनने के लिए बाप्पा का साथ दिया। बाप्पा के इस कार्य के लिए कर्नल टॉड ने उसको कृतघ्न और दूराकांक्षी जैसे बुरे शब्दों से याद किया है। बाप्पा ने राजा होकर 'हिंदू-सूर्य' 'राजगुरु' और 'चकवे' की पदवियां धारण की। इसके बाद बापपा ने ईरान, तूरान, कंधार, काश्मीर, इस्पहान, काश्मीर, इराक और काफिरिस्तान के राजाओं को जीता तथा उनकी लड़कियों से शादी की। और जब वह मरा तो हिंदू मुसलमान सबने उसकी लाश पर गाड़ने और जलाने के लिए झगड़ा किया। जब कफन उठा कर देखा तो केवल फूल लाश की जगह मिले।
हम कहते हैं भाट लोगों की यह कोरी कल्पना है। ऐतिहासिक तथ्य इतना ही है कि बाप्पा एक होनहार युवक था। बौद्ध विरोधी हारीत ने उसे शिक्षा दीक्षा दी। नागदा के आसपास के भीलों को उसका सहायक बना दिया। वह अपने भीलों की एक सेना के साथ मान राजा के नौकर हो गया। उधर हारीत अपना काम करता रहा। अवसर पाकर बौद्ध राजा मान को हटाकर बाप्पा को चित्तौड़ का अधीश्वर बना दिया। उस समय चित्तौड़ एक संपन्न राज्य था। भील जैसे वीर बाबा को सहायक मिल गए वह आगे प्रसिद्ध
[पृ.124]: होता गया। हम तो कहते हैं कि अग्निकुण्ड के चार पुरुषों की भांति ही राजस्थान में बाप्पा नवीन हिंदू धर्म के प्रसार के लिए हितकर साबित हुआ। अतः हिंदुओं ने उसे 'हिंदुआं सूरज' कहा तो आश्चर्य की बात नहीं। धीरे-धीरे मेवाड़ से वे सब राज्य नष्ट हो गए जो मौर्य के साथी थे। सिंध के साहसी राय मौर्य का राज्य चच ने और चित्तौड़ का हारीत ने नष्ट कर दिया। इस तरह से सिंध और मेवाड़ से मौर्य जाट राज्य का खात्मा ही कर दिया गया।*
* चीनी यात्री ह्वेनसांग ने चित्तौड़ के मौर्य को सिंध वालों का संबंधी लिखा है! टाड चित्तौड़ के मौर्य को परमारों की शाखा लिखते हैं, किंतु सीवी वैद्य का मत उन्हें मौर्य ही मानता है।
History
Gohila (गोहिल) was a place name mentioned by Panini under Sakhyadi (सख्यादि) (4.2.80.9) group. [15]. People of this place were probably called Guhilaut.
Megasthenes has described about this clan in Indica as Gallitalutae. He writes, Then next to these towards the Indus come, in an order which is easy to follow....The Amatae (Antal), Bolingae (Balyan), Gallitalutae (Gahlot), Dimuri (Dahiya), Megari (Maukhari), Ordabae (Buria), Mese (Matsya). (See -Jat_clans_as_described_by_Megasthenes)
Ram Swarup Joon[16] writes...The Gahlot gotra is found among the Rajputs also and they call themselves the descendants of Ramchandra, but their descent is believed to be from Balvanshi
History of the Jats, End of Page-82
ruler named Gupta. It is mentioned that Balvanshi Bhattarak King saved the Maurya kings by re-strengthening their power. Bhattarak ruled from 512 to 525 Vikram Samvat. According to "Corpus Inscription Antiquary" Page 169, based on a rock inscription inscribed in 569 Vikram. Bhattark Gupta Balvanshi had four sons - Dharsen, Dronasen, Dhruwasen and Dharpatsen. Each one of them succeeded to the throne one after another, and they were given titles of Maha Samant, Mahapratihar, Mahakartak and Maharaj.
Gohasen son of Dharpatsen was a follower of Vaishnavism, but he had faith in Buddhism too. His descendents are called Gahlawat. Several legends are very well known about Goha and Bappa Rawal. The dynasty is supposed to have migrated from Balabhipur.
There was one Nag Datt among the descendants of Goha who was killed by the Bhils. His young son who later on became known as Kalbhoj Bappa Rawal, joined the army of the Jat Raja Man Indra of Chittor and ultimately rose to the position of commander of his army. Proving to be very brave and loyal, he was ultimately declared heir apparent to the throne and finally became the ruler of the kingdom. The Gahlot gotra is found both among the Jats and the Rajputs. There is however no doubt that Bhattarak was a Maurya Jat dynasty. It existed before the birth of Rajputs. If Bappa Rawal were not a Jat, Jat Raja Mann Indra would not have adopted him as him son. He maintained the title of Rana.
During the Rajput era they joined them and started being called Rajputs. Goha was the grandson of Bhattarak and son of Dhropat Sen. He was married in the Gupta dynasty. Godhes are a sub-tribe and branch of Godhas.
It is mentioned that Balvanshi Bhattarak King saved the Maurya kings by re-strengthening their power. Bhattarak ruled from 512 to 525 Vikram Samvat. According to "Corpus Inscription Antiquary" Page 169, based on a rock inscription inscribed in 569 Vikram. Bhattark Gupta Balvanshi had four sons-Dharsen, Dronasen, Dhruwasen and Dharpatsen. Each one of them succeeded to the throne one after another, and they were given titles of Maha Samant, Mahapratihar, Mahakartak and Maharaj.
Gohasen son of Dharpatsen was a follower of Vaishnavism, but he had faith in Buddhism too. His descendents are called Gahlawat. Several legends are very well known about Doha and Bappa Rawal. The dynasty is supposed to have migrated from Balabhipur.
There was one Naga Datta among the descendants of Goha who was killed by the Bhils. His young son, who later on became known as Kalbhoj Bappa Rawal, joined the army of the Jat Raja Man Indra of Chittorgarh and ultimately rose to the position of commander of his army. Proving to be very brave and loyal, he was ultimately declared heir apparent to the throne and finally became the ruler of the kingdom.
The Gahlot gotra is found both among the Jats and the Rajputs. There is, however, no doubt, that Bhattarak was a Maurya Jat dynasty. It existed before the birth of the Rajputs. If Bappa Rawal were not a Jat, Jat Raja Mann Indra would not have adopted him as his son. He maintained the title of the Rana.
During the Rajput era, they joined them and started being called Rajputs. Goha was the grandson of Bhattarak and son of Dhropat Sen. He was married in the Gupta dynasty. Godhes are a sub-tribe and branch of Godhas.
According to H.A. Rose[17] Jat clans derived from Gahlot are: Godara.
Rajatarangini[18] tells....The king Jayasimha (1128 - 1155 AD) of Kashmir killed the rebellious Chhuḍḍa, the younger brother of the lord of Koundha by secret punishment. The king also destroyed Vikramaraja and other kings in Vallapura &c., and raised Guhlaṇa and others to sovereignty. This sun among sovereigns, enriched honorable men out of his affection for them by giving them possession of beautiful lands in Kanyakubja and other places. (p.219) (Guhlaṇa→Guhil)
Distribution in Haryana
They are found in Districts Jhajjar, Rohtak, Bhiwani, Palwal and Sonipat in Haryana.
गहलावत गोत्र के ही झोझू जाट ने आज से 800 वर्ष पूर्व झज्जर की स्थापना की थी ।
Villages in Gurgaon district
Villages in Rohtak district
Villages in Sonipat district
Farmana Majra, Guhna, Mahipur, Mojamnagar, Nizampur Majra, Ridhau, Salimsar Majra,
Villages in Jhajjar district
Bahu Jholri, Dharanna, Jaundhi (ज्योणधी), Jhajjar, Jhamri, Jharli, Khanpur Kalan, Khanpur Khurd, Khera Tharu, Matanhail, Raipur Jhajjar, Talao (तलाव), Chandol
Villages in Palwal district
Villages in Bhiwani district
Villages in Charkhi Dadri district
Jeetpura, Jewali, Rambass, Berla, Mai Kalan.
Villages in Rewari district
Distribution in Delhi
Villages in Delhi
Humayunpur, Kakrola, Lampur, Mitraon, Nawada Marza Hastsal, Dabri
Distribution in Uttar Pradesh
Villages in Ghaziabad district
Villages in Hapur district
Villages in Jyotiba Phule Nagar (Amroha) district
Villages in Sambhal district
Bada Tajudin, Badhrola, Bhatawali, Chindawali, Fathepur, Lakhori, Sarifpur, Singhpur
Villages in Bulandshahr district
Sihi Bulandshahr, Kharkali, Pipala
Distribution in Uttarakhand
Villages in Haridwar district
Distribution in Madhya Pradesh
Villages in Bhopal district
Villages in Raisen district
Distribution in Rajasthan
Villages in Sikar district
Kerpura Sikar, Purana Bas (20)
Locations in Jaipur
Jyoti Nagar, DCM,Ajmer Road
Villages in Jhunjhunu district
Notable persons
- Rana Virendra Singh was Gahlot clan Jat Ruler of Nepal.
- Kailash Gahlot - MLA from Najafgarh constituency and is currently the Minister of Administrative Reforms, Information &Technology, Law, Justice & Legislative Affairs, Transport of Delhi govt. He is the native of Mitraon village.
- Jhojhu - A brave Jat who laid the foundation of Jhajjar city near the site of his ancestral village during the Sultanate period.
- Ram Parkash Gehlote: Padma Shri - 1957, Delhi, Science & Social Work. [19]
- Chaudhari Ishwar Singh Gehlawat - Famous Arya Samajist Chaudhari Ishwar Singh was originally from Kakrola.
- Vikas Gahlot - s/o Advocate Mohinder Singh Gahlot - RTI activist, A.B.V.P Leader, Ex. Principal - This time residing at Ancestral background V.P.O - Talao, District Jhajjar.
- Dr. Sunita Chaudhary - d/o Advocate Mohinder Singh Gahlot - Assistant Professor in English, Haryana Government-Ancestral background V.P.O - Talao, District Jhajjar.
- Dr. Bharat Singh Gehlot - IRS, Commissioner , Income Tax ,Ahmedabad , resident of Puranabas, Neem Ka Thana, Sikar, Present Address : 170, Heera Marg, Dcm, Ajmer Road Jaipur,Phone Number : 0141-2246700, Mob: 8003210777, Email : bsgehlot@yahoo.com
- Ch Gopi Chand Gahlot - Ex MLA From Gurgaon & Ex Dy. Speaker Haryana Assembly
- Jagdish Kumar Gehlawat - Technocrats of repute, a Social Worker, Senior Editor and Retired Professor of Chemical Engineering - Indian Institute of Technology, Kanpur, India.
- R S Gahlaut - IPS Haryana
- Mrs. Krishna Gahlawat-Chairperson Indian Textile Industries & Mother Of Sameer &
- Narender Gahlawat- Village- Farmana Majra
- Late Ch. Sultan Singh, MP and Governor. - Vill. Farmana Majra
- Major Anup Singh Gehlaut - Maha Vir Chakra (Posthumous)
- Major Sajjan Singh Gahlawat - Shaurya Chakra (Posthumous), (IC-47700Y), 9 MADRAS on 23rd October, 1997 Village Kheri Sadh
- Major General H.S. Gahlaut - Native of Nangloi village New Delhi was the captain of All India Volleyball team from 1939-1942.
- Sameer Gehlaut - INDIA BULLS
- Late Ch.Gaje Singh- EX Indian Railways- Village Farmana Majra
- Ch.Rai Singh- Father Of Sameer & Narender Gahlawat-Village Farmana Majra
- Narender Gahlawat - CEO Indiabulls Real Estate-Village Farmana Majra
- Dr. Jyoti Mirdha Gahlawat - MP from Nagaur {Rajasthan}- Wife Of Mr. Narender Gahalawat - Village Farmana Majra
- Col N S Gahlaut - 26 Punjab - Village Farmana in distt. [[Sonipat].
- Dr P S Gahlaut - MD,IPL from village Farmana in distt. Sonipat
- Aditya Gahlaut - Senior VP HSBC India - Village Farmana in distt. Sonipat.
- Col. Balu Ram (Gahalawat) - Colonel (Retd.), Date of Birth : 15-August-1942,VPO - Purana Bas, teh.- Neem Ka Thana ,distt.- Sikar,Present Address : 142, AWHO, Vidyadhar Nagar, Jaipur, Phone Number : 0141-2339100, Mob: 9950093312, Email: rohitchoudhary.hr@gmail.com
- Vikas Gahlot - Additional Chief Judicial Magistrate at Gautam Budh Nagar, Uttar Pradesh- Village- Lalifpur Tibra in Distt. Ghaziabad, Uttar Pradesh
- Siddharth Gahlot - Advocate at High Court of Delhi - Village- Lalifpur Tibra in Distt. Ghaziabad, Uttar Pradesh
- Ankit Gahlot - IAS -2013, CSE Rank-594
- Sandeep Gahlot: IRTS 2009 Batch, Posted as DCM /Delhi, Native of Village - Mitraon, New Delhi. M: 09717631962
- Shahid Major Anoop Singh Gahlot
- Abhimanyu Gahlaut - IFS-2015 Batch, CSE Rank-38.
- Petal Gahlot - IFS -2014 Batch, CSE Rank-96. She is an Indian Diplomat currently posted in Paris, France.
- Mukesh Singh Gahlot (Guruji)- 4 times Mr. India title (in 2008, 2009, 2010, and 2012), Village - Kakrola in Delhi
- Dr. Dilbagh Gehlawat - MD Pediatrics in California. Graduated from AIIMS, New Delhi, in 1973.
- Mahavir Singh Gahlawat M.D. Aanchal Engineering (P) Ltd Vill. Malpura Behind Hero Honda Plant -1,Dharuhera (Rewari) Haryana from Farmana Sonepat 9810001958
- Jai Singh Gahlawat
Gallery of Gahlawat people
-
Shahid Major Anoop Singh Gahlot
-
Prof. Jagdish Kumar Gehlawat
See also
- Ghaghsa - For 'Ghaghsa Inscription of 1265 AD' about Guhil Vansha at Ghaghsa in Chittorgarh tahsil in Chittorgarh district in Rajasthan.
- Chirwa - For 'Chirwa Inscription of 1265 AD' about Guhil Vansha at village Chirwa in Pratapgarh tahsil in Chittorgarh district in Rajasthan.
Further reading
- Ram Swarup Joon: History of the Jats, Rohtak, India, 1967
Reference
- ↑ Dr Ompal Singh Tugania: Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu, p.34, sn-514.
- ↑ B S Dahiya:Jats the Ancient Rulers (A clan study), p.238, s.n.82
- ↑ Dr Ompal Singh Tugania: Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu, p.34, sn-514.
- ↑ Dr Pema Ram:Rajasthan Ke Jaton Ka Itihas, p.299
- ↑ Dr Ompal Singh Tugania: Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu, p.34, sn-514.
- ↑ B S Dahiya:Jats the Ancient Rulers (A clan study), p.238, s.n.82
- ↑ Dr Pema Ram:Rajasthan Ke Jaton Ka Itihas, p.299
- ↑ Dr Ompal Singh Tugania: Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu, p.34, sn-514.
- ↑ James Todd, Annals and Antiquities of Rajasthan, Volume I,: Chapter 7 Catalogue of the Thirty Six Royal Races, p. 99-101
- ↑ Mahendra Singh Arya et al: Adhunik Jat Itihas, p. 236
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter III, p.238
- ↑ V. S. Agrawala: India as Known to Panini, 1953, p.506
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.289
- ↑ Thakur Deshraj: Jat Itihas (Utpatti Aur Gaurav Khand)/Shashtham Parichhed, pp.119-124
- ↑ V. S. Agrawala: India as Known to Panini, 1953, p.506
- ↑ Ram Swarup Joon: History of the Jats/Chapter V,p. 82-83
- ↑ A glossary of the Tribes and Castes of the Punjab and North-West Frontier Province By H.A. Rose Vol II/J,p.376
- ↑ Kings of Kashmira Vol 2 (Rajatarangini of Kalhana)/Book VIII (ii),p.219
- ↑ Ministry Of Home Affairs (Public Section), Padma Awards Directory (1954-2013), Year-Wise List
- ↑ 'Jat Privesh', July 2015,p. 18
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