Harveer Gulia

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Harveer Singh Gulia (b.1376 - 1398) was a Jat hero of the Gulia Clan. He was from the village Badli; district Rohtak in Haryana, India. He was 22 years old when fought war with Timur. He was a strong and brave warrior. His attack on Timur led to Timur's death.

Attack of Timur

In 1398 AD Timur made a ferocious attack on India with 92,000 horsemen. On receiving the news of Timur's total and open looting and destruction, in Vikram Samvat 1455(1398 AD), kartick badi 5, Raja Devpala (who was born in the village of Nirpradha, District Meerut in a Jat family), who was in charge of the of the Haryana SarvKhap Panchayat, called a Mahapanchayat in the jungles in the middle of the villages of Tikri, Doghat, and Daha.The chief committee passed the following resolutions:

1) All villages would be emptied.

2) The elders and women, and children would be taken to safe places

3) All able-bodied men would join the army of the SarvKhap

4) The young women would also take up arms like the men.

5) The army of Timur, which was advancing from Delhi to Haridwar, would be fought with Guerilla warfare, and the water in his way would be poisoned.

6) 500 young horsemen would follow Timur and report his whereabouts to the SarvKhap army.

दलीप सिंह अहलावत लिखते हैं -

दूसरा उपप्रधान सेनापति हरबीरसिंह जाट था जिसका गोत्र गुलिया था। यह हरयाणा के जि० रोहतक गांव बादली का रहने वाला था। इसकी आयु 22 वर्ष की थी और इसका वजन 56 धड़ी (7 मन) था। यह निडर एवं शक्तिशाली वीर योद्धा था।......

उप-प्रधानसेनापति हरबीरसिंह गुलिया ने अपने पंचायती सेना के 25,000 वीर योद्धा सैनिकों के साथ तैमूर के घुड़सवारों के बड़े दल पर भयंकर धावा बोल दिया जहां पर तीरों* तथा भालों से घमासान युद्ध हुआ। इसी घुड़सवार सेना में तैमूर भी था। हरबीरसिंह गुलिया ने आगे बढ़कर शेर की तरह दहाड़ कर तैमूर की छाती में भाला मारा जिससे वह घोड़े से नीचे गिरने ही वाला था कि उसके एक सरदार खिज़र ने उसे सम्भालकर घोड़े से अलग कर लिया। (तैमूर इसी भाले के घाव से ही अपने देश समरकन्द में पहुंचकर मर गया)। वीर योद्धा हरबीरसिंह गुलिया पर शत्रु के 60 भाले तथा तलवारें एकदम टूट पड़ीं जिनकी मार से यह योद्धा अचेत होकर भूमि पर गिर पड़ा।[1]

The Panchayat Army

The Panchayat Army: Under the flag of the panchayat, 80,000 warrior soldiers (Mulls) and 40,000 young women joined together. These heroes also handled all the arrangements of the war material. From hundreds of miles around Delhi Heroic warriors came to the battlefield ready to sacrifice their lives. All the young men and women took up arms. Dharampal Dev a Jat warrior, who was 95 years old, played a great part in gathering together this army. He traveled day and night on horseback to encourage men and women and gather the army. His brother Karan Pal helped arrange money, grain, and clothing for the army. The choosing of the Supreme General, the deputy general and the other generals. In this endeavor of the Sarva Khap, the hero warrior Jograj Singh Gujar was chosen Supreme General. He was of the Clan Khubar Parmar, and hailed from a village near Haridwar called Kunja. The general chosen from among the heroic maidens were

1) Rampiari Gujar,
2) Hardai Jat,
2) Devi Kaur Rajput,
3) Chandro Brahmin, and
4) Ramdai Tyagi.

All of them took a vow to lay down their lives in defence of their nation. Two Deputy Generals were chosen -

1) Dhula Bhangi (Valmiki),
(2) Harbir Singh Gulia Jat,

Dhula Bhangi was a resident of the Village of Hansi, near Hissar. He was a strong and powerful brave warrior. The second deputy general was Harveer Singh Jat, of the Gulia Clan. He was from the village Badli, district Rohtak, Haryana. He was 22 years old. He weighed 53 Dharis (approx. 160 kilograms). He was strong and brave warrior. The names of the generals were

1) Gaje Singh Jat Gatwala,
2) Tuhiram Rajput,
3) Nedha Rawa,
4) Sarju Brahmin,
5) Umra Taga (Tyagi), and
6) Durjanpal Ahir.

The deputy generals chosen were

1) Kundan Jat,
2) Dhari Gadariya, who was a Dhari,
3) Bhondhu Saini,
4) Hulla Nai (barber),
5) Bhana Julaha (Harijan)
6) Aman Singh Pundir, Rajput
7) Nathu Pardar, Rajput
8) Dhulla (Dhandi) Jat, who would lead raids from Hissar, to Dadri, to Multan.
9) Mamchand Gujar
10) Phalwa Kahaar.

Assistant generals, 20 assistant's generals were chosen from the various jatis (castes). The hero Bard: the Eminent Scholar Poet Chandrabhutt (Bhat) as chosen as the official Bard. He wrote an eyewitness account of the war with Timur.

Dalip Singh Ahlawat writes -

.....परन्तु हरयाणा सर्वखाप पंचायत के ऐतिहासिक रिकार्ड, दस्तावेज-43 तथा सर्वखाप पंचायत के तत्कालीन चन्द्रदत्त भट्ट (भाट) के लिखित लेखों (पोथी) के अनुसार (जो कि मेरे पास विद्यमान हैं, जिनको मैं सत्य मानता हूं - लेखक) तैमूर के साथ सर्वखाप पंचायत की सेना के युद्धों का वर्णन निम्नलिखित है -

तैमूर लंग ने मार्च सन् 1398 ई० में भारत पर 92000 घुड़सवारों की सेना से तूफानी आक्रमण कर दिया। तैमूर के सार्वजनिक कत्लेआम, लूट खसोट और सर्वनाशी अत्याचारों की सूचना मिलने पर संवत् 1455 (सन् 1398 ई०) कार्तिक बदी 5 को देवपाल राजा (जिसका जन्म निरपड़ा गांव जि० मेरठ में एक जाट घराने में हुआ था) की अध्यक्षता में हरयाणा सर्वखाप पंचायत का अधिवेशन जि० मेरठ के गाँव टीकरी, निरपड़ा, दोगट और दाहा के मध्य जंगलों में हुआ।


जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-379


सर्वसम्मति से निम्नलिखित प्रस्ताव पारित किये गये - (1) सब गांवों को खाली कर दो। (2) बूढे पुरुष-स्त्रियों तथा बालकों को सुरक्षित स्थान पर रखो। (3) प्रत्येक स्वस्थ व्यक्ति सर्वखाप पंचायत की सेना में भर्ती हो जाये। (4) युवतियाँ भी पुरुषों की भांति शस्त्र उठायें। (5) दिल्ली से हरद्वार की ओर बढ़ती हुई तैमूर की सेना का छापामार युद्ध शैली से मुकाबला किया जाये तथा उनके पानी में विष मिला दो। (6) 500 घुड़सवार युवक तैमूर की सेना की गतिविधियों को देखें और पता लगाकर पंचायती सेना को सूचना देते रहें।

पंचायती सेना - पंचायती झण्डे के नीचे 80,000 मल्ल योद्धा सैनिक और 40,000 युवा महिलायें शस्त्र लेकर एकत्र हो गये। इन वीरांगनाओं ने युद्ध के अतिरिक्त खाद्य सामग्री का प्रबन्ध भी सम्भाला। दिल्ली के सौ-सौ कोस चारों ओर के क्षेत्र के वीर योद्धा देश रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने रणभूमि में आ गये। सारे क्षेत्र में युवा तथा युवतियां सशस्त्र हो गये। इस सेना को एकत्र करने में धर्मपालदेव जाट योद्धा जिसकी आयु 95 वर्ष की थी, ने बड़ा सहयोग दिया था। उसने घोड़े पर चढ़कर दिन रात दूर-दूर तक जाकर नर-नारियों को उत्साहित करके इस सेना को एकत्र किया। उसने तथा उसके भाई करणपाल ने इस सेना के लिए अन्न, धन तथा वस्त्र आदि का प्रबन्ध किया।

प्रधान सेनापति, उप-प्रधान सेनापति तथा सेनापतियों की नियुक्ति

सर्वखाप पंचायत के इस अधिवेशन में सर्वसम्मति से वीर योद्धा जोगराजसिंह गुर्जर को प्रधान सेनापति बनाया गया। यह खूबड़ परमार वंश का योद्धा था जो हरद्वार के पास एक गाँव कुंजा सुन्हटी का निवासी था। बाद में यह गाँव मुगलों ने उजाड़ दिया था। वीर जोगराजसिंह के वंशज उस गांव से भागकर लंढोरा (जिला सहारनपुर) में आकर आबाद हो गये जिन्होंने लंढोरा गुर्जर राज्य की स्थापना की। जोगराजसिंह बालब्रह्मचारी एवं विख्यात पहलवान था। उसका कद 7 फुट 9 इंच और वजन 8 मन था। उसकी दैनिक खुराक चार सेर अन्न, 5 सेर सब्जी-फल, एक सेर गऊ का घी और 20 सेर गऊ का दूध।

महिलाएं वीरांगनाओं की सेनापति चुनी गईं उनके नाम इस प्रकार हैं - (1) रामप्यारी गुर्जर युवति (2) हरदेई जाट युवति (3) देवीकौर राजपूत युवति (4) चन्द्रो ब्राह्मण युवति (5) रामदेई त्यागी युवति। इन सब ने देशरक्षा के लिए शत्रु से लड़कर प्राण देने की प्रतिज्ञा की।

उपप्रधान सेनापति - (1) धूला भंगी (बालमीकी) (2) हरबीर गुलिया जाट चुने गये। धूला भंगी जि० हिसार के हांसी गांव (हिसार के निकट) का निवासी था। यह महाबलवान्, निर्भय योद्धा, गोरीला (छापामार) युद्ध का महान् विजयी धाड़ी (बड़ा महान् डाकू) था जिसका वजन 53 धड़ी था। उपप्रधान सेनापति चुना जाने पर इसने भाषण दिया कि - “मैंने अपनी सारी आयु में अनेक धाड़े मारे हैं। आपके सम्मान देने से मेरा खूब उबल उठा है। मैं वीरों के सम्मुख प्रण करता हूं कि देश की रक्षा के लिए अपना खून बहा दूंगा तथा सर्वखाप के पवित्र झण्डे को नीचे नहीं होने दूंगा। मैंने अनेक युद्धों में भाग लिया है तथा इस युद्ध में अपने प्राणों का बलिदान दे दूंगा।” यह कहकर उसने अपनी जांघ से खून निकालकर प्रधान सेनापति के चरणों में उसने खून के छींटे दिये। उसने म्यान से बाहर अपनी तलवार निकालकर कहा “यह शत्रु का खून पीयेगी और म्यान में नहीं जायेगी।” इस वीर योद्धा धूला के भाषण से


जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-380


पंचायती सेना दल में जोश एवं साहस की लहर दौड़ गई और सबने जोर-जोर से मातृभूमि के नारे लगाये।

दूसरा उपप्रधान सेनापति हरबीरसिंह जाट था जिसका गोत्र गुलिया था। यह हरयाणा के जि० रोहतक गांव बादली का रहने वाला था। इसकी आयु 22 वर्ष की थी और इसका वजन 56 धड़ी (7 मन) था। यह निडर एवं शक्तिशाली वीर योद्धा था।

सेनापतियों का निर्वाचन - उनके नाम इस प्रकार हैं - (1) गजेसिंह जाट गठवाला (2) तुहीराम राजपूत (3) मेदा रवा (4) सरजू ब्राह्मण (5) उमरा तगा (त्यागी) (6) दुर्जनपाल अहीर।

जो उपसेनापति चुने गये - (1) कुन्दन जाट (2) धारी गडरिया जो धाड़ी था (3) भौन्दू सैनी (4) हुल्ला नाई (5) भाना जुलाहा (हरिजन) (6) अमनसिंह पुंडीर राजपुत्र (7) नत्थू पार्डर राजपुत्र (8) दुल्ला (धाड़ी) जाट जो हिसार, दादरी से मुलतान तक धाड़े मारता था। (9) मामचन्द गुर्जर (10) फलवा कहार।

सहायक सेनापति - भिन्न-भिन्न जातियों के 20 सहायक सेनापति चुने गये।

वीर कवि - प्रचण्ड विद्वान् चन्द्रदत्त भट्ट (भाट) को वीर कवि नियुक्त किया गया जिसने तैमूर के साथ युद्धों की घटनाओं का आंखों देखा इतिहास लिखा था।


Some excerpts of Jograj Singh's speech

"Viroh (Heroes), reflect on the sermon given by Lord Krishna to Arjun in the Gita. For us the door to heaven (moksha) has been opened. That moksha, which the Rishi Munis achieve by doing Yoga, the hero warriors achieve by sacrificing their lives on the battlefield. Save the nation, that is- sacrifice yourselves, the world will honor you. You have chosen me leader. To my last breath I will not withdraw. I salute the Panchayat, and take oath that until my last breath I will defend the soil of Bharat. Our nation has been shaken by the crimes and attacks of Timur. Warriors arise and do not delay. Fight the enemy army and throw them out of the nation."

On hearing this speech a wave of heroism ran through the assembly. 80, 000 warriors and 40,000 maiden warriors kissed their swords and took an oath, ' O General, while we breathe we will obey your orders, and sacrifice our lives for our country'. The Troops. - The Panchayat Army, spread out from Delhi, to Meerut, Muzzafarnagar, Sahranpur, and Haridwar. On reaching these places they tangled with the armies of Timur, and using Guerilla warfare, they did not them sit still. The enemy army had to escape by the route of the hills and the enemy was chased upto Ambala, and expelled out from the land of Haryana.

दलीप सिंह अहलावत लिखते हैं -

प्रधान सेनापति जोगराजसिंह गुर्जर के ओजस्वी भाषण के कुछ अंश -

“वीरो! भगवान् कृष्ण ने गीता में अर्जुन को जो उपदेश दिया था उस पर अमल करो। हमारे लिए स्वर्ग (मोक्ष) का द्वार खुला है। ऋषि मुनि योग साधना से जो मोक्ष पद प्राप्त करते हैं, उसी पद को वीर योद्धा रणभूमि में बलिदान देकर प्राप्त कर लेता है। भारत माता की रक्षा हेतु तैयार हो जाओ। देश को बचाओ अथवा बलिदान हो जाओ, संसार तुम्हारा यशोगान करेगा। आपने मुझे नेता चुना है, प्राण रहते-रहते पग पीछे नहीं हटाऊंगा। पंचायत को प्रणाम करता हूँ तथा प्रतिज्ञा करता हूँ कि अन्तिम श्वास तक भारत भूमि की रक्षा करूंगा। हमारा देश तैमूर के आक्रमणों तथा अत्याचारों से तिलमिला उठा है। वीरो! उठो, अब देर मत करो। शत्रु सेना से युद्ध करके देश से बाहर निकाल दो।”

यह भाषण सुनकर वीरता की लहर दौड़ गई। 80,000 वीरों तथा 40,000 वीरांगनाओं ने अपनी तलवारों को चूमकर प्रण किया कि हे सेनापति! हम प्राण रहते-रहते आपकी आज्ञाओं का पालन करके देश रक्षा हेतु बलिदान हो जायेंगे।[2]


The battle of Delhi

At the time that Timur was looting Delhi, and putting the population to the sword 20,000 warriors of the Panchayat army, made a surprise attack on the 52,000 strong army of Timur in the middle of the night, and killed 9,000 of them, and let their corpses be swept away in the river Yamuna. As soon as dawn came these heroic soldiers of the Panchayat returned to outside the city walls. The battle carried on like this for three days. Timur Lung got frustrated, left Delhi and advanced toward Meerut.

The battle of Meerut

Timur, with his numerous and powerful army, with much weaponry, advanced towards Meerut. In this land, Timur's army was given no space to breathe. The battles continued all through the day. Wherever the Army of Timur would stop for the night, the Panchayat army would attack, and uproot them. The heroic Devis (goddesses- women) would deliver food and war material to their soldiers wherever they were. The warrior maidens would attack and loot the supplies of the enemy. The 500 horsemen were doing their duty by keeping everyone together and bearing information. As supplies were not reaching them, the army of Timur started to go hungry. Whichever village came in its path would be destroyed. Becoming frustrated Timur advanced towards Haridwar.

मेरठ युद्ध - तैमूर ने अपनी बड़ी संख्यक एवं शक्तिशाली सेना, जिसके पास आधुनिक शस्त्र थे, के साथ दिल्ली से मेरठ की ओर कूच किया। इस क्षेत्र में तैमूरी सेना को पंचायती सेना ने दम नहीं लेने दिया। दिन भर युद्ध होते रहते थे। रात्रि को जहां तैमूरी सेना ठहरती थी वहीं पर पंचायती सेना धावा बोलकर उनको उखाड़ देती थी। वीर देवियां अपने सैनिकों को खाद्य सामग्री एवं युद्ध सामग्री बड़े उत्साह से स्थान-स्थान पर पहुंचाती थीं। शत्रु की रसद को ये वीरांगनाएं छापा मारकर लूटतीं थीं। आपसी मिलाप रखवाने तथा सूचना पहुंचाने के लिए 500 घुड़सवार अपने कर्त्तव्य का पालन करते थे। रसद न पहुंचने से तैमूरी सेना भूखी मरने लगी। उसके मार्ग में जो गांव आता उसी को नष्ट करती जाती थी। तंग आकर तैमूर हरद्वार की ओर बढ़ा।[3]

The battle of Haridwar

Beyond Meerut, to Muzaffarnagar and Saharanpur, the Panchayat armies fought fiercely with Timur and did not let his army take hold (grip). The Supreme General, the Deputy Generals and the Generals were handling their armies well. The army of Timur reached Tuglakpur- Pathrigarh, which is 5 Kos south of Haridwar. In this land the army of the Panchayat fought three major battles with the army of Timur.

हरद्वार युद्ध - मेरठ से आगे मुजफ्फरनगर तथा सहारनपुर तक पंचायती सेनाओं ने तैमूरी सेना से भयंकर युद्ध किए तथा इस क्षेत्र में तैमूरी सेना के पांव न जमने दिये। प्रधान एवं उपप्रधान और प्रत्येक सेनापति अपनी सेना का सुचारू रूप से संचालन करते रहे। हरद्वार से 5 कोस दक्षिण में तुगलुकपुर-पथरीगढ़ में तैमूरी सेना पहुंच गई। इस क्षेत्र में पंचायती सेना ने तैमूरी सेना के साथ तीन घमासान युद्ध किए।

उप-प्रधानसेनापति हरबीरसिंह गुलिया ने अपने पंचायती सेना के 25,000 वीर योद्धा सैनिकों के साथ तैमूर के घुड़सवारों के बड़े दल पर भयंकर धावा बोल दिया जहां पर तीरों* तथा भालों से घमासान युद्ध हुआ। इसी घुड़सवार सेना में तैमूर भी था। हरबीरसिंह गुलिया ने आगे बढ़कर शेर की तरह दहाड़ कर तैमूर की छाती में भाला मारा जिससे वह घोड़े से नीचे गिरने ही वाला था कि उसके एक सरदार खिज़र ने उसे सम्भालकर घोड़े से अलग कर लिया। (तैमूर इसी भाले के घाव से ही अपने देश समरकन्द में पहुंचकर मर गया)। वीर योद्धा हरबीरसिंह गुलिया पर शत्रु के 60 भाले तथा तलवारें एकदम टूट पड़ीं जिनकी मार से यह योद्धा अचेत होकर भूमि पर गिर पड़ा।

  • (1) उसी समय प्रधान सेनापति जोगराजसिंह गुर्जर ने अपने 22000 मल्ल योद्धाओं के साथ शत्रु की सेना पर धावा बोलकर उनके 5000 घुड़सवारों को काट डाला। जोगराजसिंह ने स्वयं अपने हाथों से अचेत हरबीरसिंह को उठाकर यथास्थान पहुंचाया। परन्तु कुछ घण्टे बाद यह वीर योद्धा वीरगति को प्राप्त हो गया। जोगराजसिंह को इस योद्धा की वीरगति से बड़ा धक्का लगा।
  • (2) हरद्वार के जंगलों में तैमूरी सेना के 2805 सैनिकों के रक्षादल पर भंगी कुल के उपप्रधान सेनापति धूला धाड़ी वीर योद्धा ने अपने 190 सैनिकों के साथ धावा बोल दिया। शत्रु के काफी सैनिकों को मारकर ये सभी 190 सैनिक एवं धूला धाड़ी अपने देश की रक्षा हेतु वीरगति

  • . वहां पर 2000 से ऊपर पहाड़ी तीरन्दाज पंचायती सेना में मिल गये थे। एक तीर तैमूर के हाथ में लगा था।


जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-382


को प्राप्त हो गये।

  • (3) तीसरे युद्ध में प्रधान सेनापति जोगराजसिंह ने अपने वीर योद्धाओं के साथ तैमूरी सेना पर भयंकर धावा करके उसे अम्बाला की ओर भागने पर मजबूर कर दिया। इस युद्ध में वीर योद्धा जोगराजसिंह को 45 घाव आये परन्तु वह वीर होश में रहा। पंचायती सेना के वीर सैनिकों ने तैमूर एवं उसके सैनिकों को हरद्वार के पवित्र गंगा घाट (हर की पौड़ी) तक नहीं जाने दिया। तैमूर हरद्वार से पहाड़ी क्षेत्र के रास्ते अम्बाला की ओर भागा। उस भागती हुई तैमूरी सेना का पंचायती वीर सैनिकों ने अम्बाला तक पीछा करके उसे अपने देश हरयाणा से बाहर खदेड़ दिया।

वीर सेनापति दुर्जनपाल अहीर मेरठ युद्ध में अपने 200 वीर सैनिकों के साथ दिल्ली दरवाज़े के निकट स्वर्ग लोक को प्राप्त हुये।

इन युद्धों में बीच-बीच में घायल होने एवं मरने वाले सेनापति बदलते रहे थे। कच्छवाहे गोत्र के एक वीर राजपूत ने उपप्रधान सेनापति का पद सम्भाला था। तंवर गोत्र के एक जाट योद्धा ने प्रधान सेनापति के पद को सम्भाला था। एक रवा तथा सैनी वीर ने सेनापति पद सम्भाले थे। इस युद्ध में केवल 5 सेनापति बचे थे तथा अन्य सब देशरक्षा के लिए वीरगति को प्राप्त हुये।

इन युद्धों में तैमूर के ढ़ाई लाख सैनिकों में से हमारे वीर योद्धाओं ने 1,60,000 को मौत के घाट उतार दिया था और तैमूर की आशाओं पर पानी फेर दिया।

हमारी पंचायती सेना के वीर एवं वीरांगनाएं 35,000, देश के लिये वीरगति को प्राप्त हुए थे।

प्रधान सेनापति की वीरगति - वीर योद्धा प्रधान सेनापति जोगराजसिंह गुर्जर युद्ध के पश्चात् ऋषिकेश के जंगल में स्वर्गवासी हुये थे। 

पाठक समझ गये होंगे कि हमारी वीरता के सत्य कारनामों को आज भी प्रकाशित नहीं किया जा रहा है।

Harveer Singh Gulia attacked Timur

The Deputy Commander Harveer Singh Gulia, along with 25,000 warriors of the Panchayat army, made a fierce attack on a big group of Timur's horsemen, and a fierce battle ensued where arrows and spears were used (There over 2, 000 hill archers joined the Panchayat Army. One arrow pierced Timur's hand. Timur was in the army of horsemen. Harveer Singh Gulia charged ahead like a lion, and hit Timur on his chest with a spear, and he was about to fall under his horse, when his commander Khijra, saved him and separated him from the horse. (Timur eventually died from this wound when he reached Samarkhand). The spearmen and swordsmen of the enemy leapt on the Harveer Singh Gulia, and he fainted from the wounds he received and fell. At that very time, the Supreme Commander Jograj Singh Gujar, with 22,000 Mulls (warriors) attacked the enemy and killed 5000 horsemen. Jograj Singh himself with his own hands lifted the unconscious Harveerr Singh Gulia and brought him to the camp. But a few hours later, the hero warrior Harveer Singh achieved martyrdom.

This attack is confirmed from following quotation from the book of Timur-lung:

"'Happy'? mused Kurgan (a vassal of Khakhan in Persia-750 A. Hijri). There are pleasures but no happiness. I remember well when Taragai (father of Tamerlane or Timur-lung) and I campained together and enjoyed together the pleasures of victory - and the pains. He was with me when I caught a Jat arrow here. He pointed to the flap over his vacant eye socket." [4] [5]

Reference

  1. Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter IV (Page 381-382)
  2. Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter IV (Page 381-381)
  3. Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter IV (Page 382)
  4. Conquest of Tamerlane. page 29
  5. Mangal Sen Jindal (1992): History of Origin of Some Clans in India (with special Reference to Jats), Page-48, Sarup & Sons, 4378/4B, Ansari Road, Darya Ganj, New Delhi-110002 ISBN 81-85431-08-6

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