Ladnu
Ladnu or Ladnun (लाडनूं) is a town and tehsil in Nagaur district in Rajasthan. It was a district under Mohil Jat rulers with capital at Chhapar prior to the foundation of the rule of Rathores in this part of the country. [1]
Variants
Chanderi Nagari - It was earlier known as Chanderi Nagari.
Location
It is located on NH-65 between Nagri and Kharnal. It is 380 km West of Delhi and 225 km north west of Jaipur.
History
Ladnun is ancient town of the Mahabharata period. It was a main trading route between Delhi and Gujrat, even dacoit Muhommad Ghori went from this route to destroy Somnath Temple in Gujrat. It was ruled by Dahliya Panwars, the descendants of Shishupala. Later on its rulers were Bagadiyas when it was called Chanderi. Afterwards the name changed to Ladnun in the memory of Lado Bai who was a brave girl and killed a famous dacoit. In early 12th century Vikrami Era it was occupied by Mohil Chauhans for about a century. In 16th century AD it came under Maldeo Rathore and since then it was under the control of Rathore clan. Bhati of Ladnun have a history from the era of Thakur Padam Singh Rathore. During his power Bhati Thakur Udai Singh (Jaisa Bhati) came to Ladnun from Bhawanda with his family on advice of his childhood friend and former Kunwar of Riya Shyamdas (a small village in marwar). Knowing that Thakur Udai Singh Bhati is a skilled warrior he did a treaty and provided him a big part of land near his fort in Ladnun. Ladnun fort was a masterpiece of its kind, impenetrable and beautiful. A couple of years ago Ladnun Thakur sold this masterpiece to some trader and now it has been demolished. [2]
लाडनूं परिचय
लाडनूं राजस्थान स्थित एक क़स्बा है। यह क़स्बा एक प्राचीन व्यापारिक मार्ग पर बसा हुआ है। यह नागौर ज़िले की लाडनूं तहसील का मुख्यालय है। राजस्थान राज्य बनने से पहले लाडनूं जोधपुर रियासत की जागीर थी। राजधानी दिल्ली से लाडनूं 380 कि.मी. एवं जयपुर से 220 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। राजस्थान के निर्माण से पूर्व लाडनूं, जोधपुर रियासत कि सीमा पर बसा एक महत्त्वपूर्ण क़स्बा हुआ करता था। शिलालेखों तथा इतिहासकारों के अनुसार लाडनूं प्राचीन अहिछत्रपुर का हिस्सा था, जिस पर करीब 2000 वर्षो तक नागवंशीय राजाओं का अधिकार रहा। आगे के समय में परमार राजपूतों ने उनसे अहिच्छत्रपुर को छिन लिया। उनके बाद मुग़लों ने आधिपत्य जमाया। अन्ततः इस पर जोधपुर के राठौड़ राजाओं का अधिकार रहा। लड़नूँ के भाटी ठाकुरों का इतिहास ठाकुर पदम सिंह राठौड़ के युग से है। उनके शासनकाल में भाटी ठाकुर उदय सिंह (जैसा भाटी) अपने परिवार के साथ भावंडा से लड़नूँ आए, उनके बचपन के दोस्त और पूर्व कुँवर रिया श्यामदास (मारवाड़ के एक छोटे से गाँव) की सलाह पर। जानते हुए कि ठाकुर उदय सिंह भाटी एक कुशल योद्धा हैं, लाडनूं ठाकुर पदम सिंह ने एक समझौता किया और ठाकुर उदय सिंह को अपने किले के पास बड़े हिस्से की ज़मीन प्रदान की जो लड़नूँ में था। लड़नूँ किला अपने प्रकार की एक अद्वितीय और सुंदर रचना थी, जिसे कोई नहीं प्रवेश कर सकता था। कुछ वर्षों पहले, लड़नूँ के ठाकुर मनोहर सिंह ने इस शानदार किले को किसी व्यापारी को बेच दिया और अब यह किला ध्वस्त कर दिया गया है। लड़नूँ के ठाकुर अब मुख्य शहर के बाहर निवास करते हैं, और भाटी ठाकुर परिवार अब भी मुख्य बाजार में किले के पास निवास करता है। यह क़स्बा एक प्राचीन व्यापारिक मार्ग पर बसा हुआ है। लाडनूं अपने नाम के अनुरूप धनाढ्य लोगों एवं सेठों का शहर रहा है, जहां से वे भारत के विभिन्न शहरों में फैले हुए हैं। यह नगर सुजानगढ़, सीकर, बीकानेर, जोधपुर, अजमेर, जयपुर एवं अन्य प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। दिल्ली-रतनगढ़-जोधपुर रेलवे लाइन पर यह महत्वपूर्ण रेलवे स्टेशन है। यहाँ की हवेलियाँ और छतरियाँ बहुत मनोरम और कला का एक अनूठा उदाहरण हैं। [3]
इतिहास
कर्नल जेम्स टोड ने लेख किया है कि इनके अलावा तीन और विभाग थे - बागौर, खारी पट्टी और मोहिल। इन पर भी राठौड़ों का प्रभुत्व कायम हो गया था। राजपूत शाखाओं से छिने गए तीन विभाग राज्य के दक्षिण और पश्चिम में थे जिनका विवरण नीचे दिया गया है. [4]
अनुक्रमांक | नाम जनपद | नाम मुखिया | गाँवों की संख्या | राजधानी | अधिकार में प्रमुख कस्बे |
---|---|---|---|---|---|
7. | बागौर | 300 | बीकानेर, नाल, किला, राजासर, सतासर, छतरगढ़, रणधीसर, बीठनोक, भवानीपुर, जयमलसर इत्यादि। | ||
8. | मोहिल | 140 | छापर | छापर, सांडण, हीरासर, गोपालपुर, चारवास, बीदासर, लाडनूँ, मलसीसर, खरबूजा कोट आदि | |
9. | खारी पट्टी | 30 | नमक का जिला |
मोहिल-महला-माहिल जाटवंश का इतिहास
दलीप सिंह अहलावत[5] लिखते हैं कि मोहिल जाटवंश राज्य के अधीन छापर राजधानी के अंतर्गत हीरासर एक परगना था।
मोहिल जाटवंश राज्य - मोहिल जाटवंश ने बीकानेर राज्य स्थापना से पूर्व छापर में जो बीकानेर से 70 मील पूर्व में है और सुजानगढ़ के उत्तर में द्रोणपुर में अपनी राजधानियां स्थापित कीं। इनकी ‘राणा’ पदवी थी। छापर नामक झील भी मोहिलों के राज्य में थी जहां काफी नमक बनता है। कर्नल जेम्स टॉड ने अपने इतिहास के पृ० 1126 खण्ड 2 में लिखा है कि “मोहिल वंश का 140 गांवों पर शासन था।
मोहिल वंश के अधीन 140 गांवों के जिले (परगने) - छापर (मोहिलों की राजधानी), हीरासर, गोपालपुर, चारवास, सांडण, बीदासर. लाडनू, मलसीसर, खरबूजाराकोट आदि। जोधा जी के पुत्र बीदा (बीका का भाई) ने मोहिलों पर आक्रमण किया और उनके राज्य को जीत लिया। मोहिल लोग बहुत प्राचीनकाल से अपने राज्य में रहा करते थे। पृ० 1123.
जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-250
मोहिलों के अधीश्वर की यह भूमि माहिलवाटी कहलाती थी।” जोधपुर के इतिहास के अनुसार राव जोधा जी राठौर ने माहिलवाटी पर आक्रमण कर दिया। राणा अजीत माहिल और राणा बछुराज माहिल और उनके 145 साथी इस युद्ध में मारे गये। राव जोधा जी राठौर की विजय हुई। उसी समय मोहिल फतेहपुर, झुंझुनू, भटनेर और मेवाड़ की ओर चले गये। नरवद माहिल ने दिल्ली के बादशाह बहलोल लोधी (1451-89) से मदद मांगी। उधर जोधा जी के भाई कांधल के पुत्र बाघा के समर्थन का आश्वासन प्राप्त होने पर दिल्ली के बादशाह ने हिसार के सूबेदार सारंगखां को आदेश दिया कि वह माहिलों की मदद में द्रोणपुर पर आक्रमण कर दे। जोधपुर इतिहास के अनुसार कांधलपुत्र बाघा सभी गुप्त भेद जोधा जी को भेजता रहा। युद्ध होने पर 555 पठानों सहित सारंगखां परास्त हुआ और जोधा जी विजयी बने। कर्नल टॉड के अनुसार जोधा के पुत्र बीदा ने मोहिलवाटी पर विजय प्राप्त की। राव बीदा के पुत्र तेजसिंह ने इस विजय की स्मृतिस्वरूप बीदासर नामक नवीन राठौर राजधानी स्थापित की। तदन्तर यह ‘मोहिलवाटी’ ‘बीदावाटी’ के नाम से प्रसिद्ध की गई। इस प्रदेश पर बीदावत राजपूतों का पूर्ण अधिकार हो गया। राजपूतों ने इस प्राचीनकालीन मोहिलवंश को अल्पकालीन चौहानवंश की शाखा लिखने का प्रयत्न किया।[6] किन्तु इस वंश के जाट इस पराजय से बीकानेर को ही छोड़ गये।
भाखर गोत्र के इतिहास में
भाखर गोत्र के प्रमुख निकास स्थल व थान[7]:
गढ़ आबू (निकास वि.सं 1260= 1203 ई.) → सांभर निकास → अजमेर निकास → सिद्धमुख निकास → ददरेवा निकास → तीबो डोडो थान (?) → भाखरोली थान → लाडनू थान → बलदु थान → कीचक थान → फोगड़ी थान → खाखोली थान → मोडावट थान → फागल्वा थान → रुल्याणा थान → बरड़वा थान → रातगो थान → आजड़ोली थान → डकावा थान → सुनथली थान (?) → घस्सू थान → थोरासी थान
भाखर गोत्र के बसने और विस्थापन का क्रम[8]:
गढ़ आबू (वि.सं 1260= 1203 ई.) → सांभर → भाखरोली (वि.सं 1263= 1206 ई.) → ददरेवा (वि.सं 1360= 1303 ई.) → बलदु (वि.सं 1420= 1363 ई.) → कीचक (वि.सं 1499= 1442 ई.) → मोडावट (वि.सं 1512= 1455 ई.) → फागल्वा (वि.सं 1670= 1613 ई.) → सिगड़ोला छोटा (वि.सं 1954= 1897 ई.) → रुल्याणा माली (वि.सं 1956= 1899 ई.)
Villages in Ladnu tahsil
Anesariya (अनेसरिया), Asota (आसोटा), Badela (बाडेला), Bader (बादेड़), Baldoo (बल्दू), Balsamand (बालसंमद), Bakliya (बांकलिया), Ber (बेड़), Bhamas (भामास), Bharnawa (भरनांवा), Bhidasari (भिंडासरी), Bhiyani (भियाणी), Bithooda (बिठुडा), Chak Goredi (चक गोरेडी), Chandrai (चन्द्राई), Chhapara (छपारा), Chundasariya (चुण्डासरिया), Dabri (डाबडी), Datau (दताऊ), Deora (देवरा), Dheengsari (ढींगसरी), Dholiya (धोलिया), Dhurila (धुडिला), Dhyawa (ध्यावा), Dobron Ka Bas (डोबरों का बास), Dujar (दुजार), Genana (गेनाणा), Gheerdoda Khara (घिरड़ोदा खारा), Gheerdoda Meetha (घिरड़ोदा मीठा), Girdharipura (गिरधारीपुरा), Godaron Ka Bas (गादारों का बास), Goredi (गोरेडी), Gunpaliya (गुणपालिया), Hirawati (हीरावती), Hudas (हुड़ास), Husenpura (हुसैनपुरा), Indrapura (इन्द्रपुरा), Jaswant Garh (जसवंत गढ़), Jeslan (जैसलान), Jhardiya (झरड़िया), Jhekariya (झेकरिया), Kasan (कासण), Kasumbi Alipur (कसुम्बी अलीपुर), Kasumbi Jakhlan, (कसुम्बी जाखलान), Kasumbi Naliya, (कसुम्बी नलिया), Kasumbi Upadara, (कसुम्बी उपादडा), Khamiyad (खामियाद), Khangar (खंगार), Khanpur (खानपुर), Kheenwaj (खिंवज), Khindas (खिन्दास), Khokhari (खोखरी), Koyal (कोयल), Kumasiya (कुमिसया), Kushalpura Nagaur (कुशालपुरा), Kusumbi Alipur (कसुम्बी अलीपुर), Kusumbi Upadra (कसुम्बी उपादडा), Kusumbi Jakhala (कसुम्बी जाखला) Kusumbi Naliya (कसुम्बी निलया), Lachhri (लाछड़ी), Ladnu लाडनूं (M), Ledi (लैडी), Lenin Gram (लेनिन ग्राम), Lodsar (लौडसर), Lukas (लुकास), Malasi (मालासी), Malgaon (मालगांव), Mangalpura (मंगलपुरा), Manu (मणू), Manu Ki Dhani (मणू की ढाणी), Meendasari (मिण्डासरी), Meethri (मीठड़ी), Nandwan (नन्दवान), Natas (नाटास), Nimbi Jodhan (निम्बी जोधा), Odeet (ओडीट), Padampura (पदमपुरा), Peepakuri (पीपाकुडी), Phirwasi (फिरवासी), Raidhana (रायधना), Rampura (रामपुरा), Ratau (रताऊ), Ratheel (राठील), Reengan (रींगण), Rewaron Ka Bas (रेवाड़ों का बास), Ridmalas (रिड़मलास), Rodoo (रोडू), Roja (रोजा), Sandas (सांडास), Sanwrad (सांवराद), Sardi (सारड़ी), Seenwa (सींवा), Shimla (शिमला), Shri Krishanpura (श्री कृष्णपुरा), Shyampura Ladnu, Sikrali (सिकराली), Silanwad (सिलनवाद), Sunari (सुनारी), Tanwara (तंवरा), Tiloti (तिलोटी), Tipani (तपनी), Titri (तितरी), Toki (टोकी), Udrasar (उदरासर), Vishwanathpura (विश्वनाथपुरा),
Jat Gotras
Transport
It is well served by deluxe and express bus services from Jaipur, Jodhpur, Bikaner, Udaipur, Ajmer, Ahemdabad, Delhi and other cities. From Delhi-Sarai Rohilla there are trains up to Ratangarh Junction. From Ratangarh journey to Ladnun is of 2 hours by bus or local trains. The nearest airports are Jaipur and Jodhpur.
Jain temples
It offers some of the best jain temples around the globe. It is also famous for Terapanth Vishva Bharati Institution (founded by Acharya Tulsi in 1970). Jainism has a long history in Ladnun. Some of its temples - in all there are five digambara and two shvetambara ones - are said to date back to the tenth century; their superstructures, however are of later centuries.
Demographics
As of 2001 Ladnu had a population of 57,047. Males constitute 51% of the population and females 49%. Ladnu has an average literacy rate of 60%, higher than the national average of 59.5%: male literacy is 71%, and female literacy is 49%. In Ladnu, 17% of the population is under 6 years of age.
Notable persons
- Ramu Ram Lol (चौधरी रामूराम लोयल), from Ladnu (लाडनू), Nagaur, was a social worker in Nagaur, Rajasthan.[9]
- Chaudhari Ramuram Lol (Ladnu), was among the five Jats who became martyr in Dabra kand in opposing the oppressive activities of jagirdars on 13 March 1947.
- Chaudhari Rugha Ram Lol (Ladnu), was among the five Jats who became martyr in Dabra kand in opposing the oppressive activities of jagirdars on 13 March 1947.
- Chaudhari Kishanaram Lol (Ladnu), was among the five Jats who became martyr in Dabra kand in opposing the oppressive activities of jagirdars on 13 March 1947.
External links
Gallery
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लाडनूँ (बूढ़ी चंदेरी) का प्राचीन इतिहास
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लाडनूँ (बूढ़ी चंदेरी) का प्राचीन इतिहास
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लाडनूँ (बूढ़ी चंदेरी) का प्राचीन इतिहास
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लाडनूँ (बूढ़ी चंदेरी) का प्राचीन इतिहास
References
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter III, p. 250
- ↑ Dr. Raghavendra Singh Manohar:Rajasthan Ke Prachin Nagar Aur Kasbe, 2010,p. 234
- ↑ भारतकोश-लाडनूं
- ↑ कर्नल जेम्स टोड कृत राजस्थान का इतिहास, अनुवाद कालूराम शर्मा,श्याम प्रकाशन, जयपुर, 2013, पृ.402-403
- ↑ जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठ-250,251
- ↑ जाटों का उत्कर्ष, 337-338 लेखक योगेन्द्रपाल शास्त्री; जाट इतिहास उर्दू पृ० 378-380, लेखक ठा० संसारसिंह।
- ↑ Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.322
- ↑ Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.323
- ↑ Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.208
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