Naharpur

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Naharpur (नाहरपुर) is a village in Taoru tahsil of Nuh District, Haryana.

Location

Origin

History

भाट ग्रन्थ की पुस्तक के अनुसार टोकस जाटों का वंश - चन्द्रवंश, कुल-यदुकुल, मूल गोत्र-अत्री, शाखा-टोकस, किला-तहन गढ़ (राजस्थान), तख्त (मुख्यस्थान) - मथुरापुरी , निशान-पीला, घोड़ा-मुद्रा , कुल देवी- योगेश्वरी , देवता-कृष्ण, मन्त्र - पंचाक्षरी, पूजन व शस्त्र-तलवार, नदी-यमुना, वेद-यजुर्वेद, उपवेद-धनुर्वेद, वृक्ष-कदम्ब, निकास - टांक टोडा से और पहला पडाव रावलदी (हरयाणा) है. [1]

चरखी दादरी के पास रावलदी की भागा/भागवती नाम की कन्या बहरोड़ ब्याही थी. बहरोड़ में भागा को वहां के बहुसंख्यक समाज के लोग तंग करते थे. भागा ने रावलदी से अपने भाई राजा उदय सिंह टोकस व राजा रुद्ध सिंह टोकस को बुलवाया. उन्होंने बहुसंख्य तंग करने वाले समाज को परास्त किया. भागा के नाम से अलग गाँव बसाया. जो आज भांगी बहरोड़ के नाम से प्रसिद्द है. [2]

अपनी बहन भागा की रक्षा के लिए टोकस वंश के लोग भागी में रहने लगे. तबसे गाँव भागी में टोकसों का खेड़ा आबाद हुआ.

कुछ समय पश्चात चौधरी उदय सिंह और चौधरी रुद्ध सिंह की पत्नियों ने कहा कि आपकी बहन अब सुरक्षित है और सुख से रह रही है. अतः अब हमें बहन के घर से प्रस्थान करना चाहिए. बहन के पास कुछ आदमी छोड़कर वे वहां से निकले. रस्ते में चले जा रहे थे की उनकी गाड़ी का धूरा टूट गया. उन्होंने वहीँ पड़ाव डाला

पंडित चन्द्रभान वैद्द्य (भट्ट) के अनुसार छोटी रानी (रुद्ध सिंह की पत्नि) के यह कहने पर कि जेठ जी को थोडा हटकर आगे डेरा डालने के लिए कहदें तो राजा उदय सिंह ने इस बात को ताना मानकर पीलीभीत चले गए. वहां से पुछवाया कि छोटी रानी से पूछो कि क्या और आगे जाऊं . इस तरह राजा उदय सिंह पीलीभीत में बस गए.

रुद्ध सिंह अकेले रह गए. वहां से नाहरपुर आकर बसे. वहां की जमीन ख़राब होने के कारण बाबरपुर आकर बसे, जिसे हार्डिंग ब्रिज कहते हैं. यहाँ से चलकर रुद्ध सिंह टोकस स्थाई रूप से मुनीरका में आकर बस गए. भट्ट ग्रन्थ के अनुसार विक्रमी संवत 1503 सन 1446 वरखा सावन सुदी नवम तिथि दिन सोमवार को रुद्ध सिंह ने मुनिरका गाँव बसाया. रुद्ध सिंह टोकस का गाय, भैंस का दूध का कारोबार था. और वे मनीर खां नामक पठान से भी दूध का कारोबार करते थे. मनीर खां पठान रुद्ध सिंह का कर्जदार था. वह कर्जा नहीं पटा पाया. इसलिए मनीर खां ने वीरपुर, रायपुर, उजीरपुर तीनों पट्टियां रुद्ध सिंह को दे दी. इस तरह से वे इस जागीर के मालिक बने. मनीर खान को ये जागीरें बादशाह मुबारक शाह ने इनाम में दी थी. [3]

उस समय मुनीरका गाँव की जमीन 7000 बीघे थी. जिसमें आज आर. के. पुरम, जे. अन. यू, डी. डी. ए. फ्लेट , बसंत कुञ्ज, बसंत बिहार आबाद हैं. सन 1675 विक्रम संवत 1732 में रुद्ध सिंह के वंशज रूपा राम/रतिया सिंह टोकस मुनिरका से हुमायूंपुर गाँव जा बसे और उसके पश्चात् 1715 विक्रम संवत 1772 में तुला राम टोकस मुनीरका से मोहम्मदपुर गाँव जा बसे. [4]

आज मुनिरका गाँव में टोकस वंश के 200 परिवार हैं जिनकी आबादी 20 से 25 हजार के बीच है. अरावली पर्वत के अंचल में बसा मुनिरका गाँव प्राकृतिक नालों के बीच स्थित है. पहले यहाँ बीहड़ जंगल हुआ करते थे. मुनिरका गाँव में सिद्ध मच्छेन्द्र यती गुरु गोरख नाथ सिद्ध बाबा से सम्बद्ध गाँव के इष्टदेव मुनिवर बाबा गंगनाथ जी का प्राचीन मंदिर है. बाबा गंगनाथ जी ने यहाँ वर्षों तपस्या करके जिन्दा समाधी ली थी. बाबा गंगनाथ जी की समाधी, इनका भव्य मंदिर और इनकी धूनी आज भी गाँव का हृदय स्थल है. मंदिर के पास एक प्राचीन भव्य तालाब है. [5]

Jat Gotras

Population

Notable Persons

External Links

References

  1. Jat Samaj Patrika, Agra, October-November 2001, p.9
  2. जाट समाज पत्रिका:आगरा, अक्टूबर-नवम्बर 2001, पृष्ठ 9
  3. जाट समाज पत्रिका:आगरा, अक्टूबर-नवम्बर 2001, पृष्ठ 9
  4. जाट समाज पत्रिका:आगरा, अक्टूबर-नवम्बर 2001, पृष्ठ 9
  5. जाट समाज पत्रिका:आगरा, अक्टूबर-नवम्बर 2001, पृष्ठ 17

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