Prakash Vir Shastri
Prakash Vir Shastri (Tyagi) (30 December 1923 – 23 November 1977) was a Member of Parliament (Lok Sabha) and was also a leader in the Arya Samaj movement.
In 2nd Lok Sabha (1957), he was elected from Gurgaon Constituency as an Independent candidate. In third Lok Sabha (Constituency: Bijnor) and fourth Lok Sabha (constituency : Hapur), he was also elected as an independent candidate.
हिन्दी में परिचय
आर्य समाज के जो प्रमुख वक्ता हुए, कुशल राजनेता हुए उनमें पं. प्रकाश वीर शास्त्री जी का नाम प्रमुख रुप से लिया जाता है । आप का नाम प्रकाशचन्द्र रखा गया । आप का जन्म गांव रहरा जिला मुरादाबाद , उत्तर प्रदेश मे हुआ । आप के पिता का नाम श्री दिलीपसिंह त्यागी था , जो आर्य विचारों के थे । उस काल का प्रत्येक आर्य परिवार अपनी सन्तान को गुरुकुल की शिक्षा देना चाहता था । इस कारण आप का प्रवेश भी पिता जी ने गुरुकुल महाविद्यालय ज्वालापुर में किया । इस गुरुकुल में एक अन्य विद्यार्थी भी आप ही के नाम का होने से आप का नाम बदल कर प्रकाशवीर कर दिया गया । इस गुरुकुल में अपने पुरुषार्थ से आपने विद्याभास्कर तथा शास्त्री की परीक्षायें उतीर्ण कीं । तत्पश्चात आप ने संस्कृत विषय में आगरा विश्वविद्यालय से एम. ए. की परीक्षा प्रथम श्रेणी से पास की ।
पण्डित जी स्वामी दयानन्द जी तथा आर्य समाज के सिद्धान्तों में पूरी आस्था रखते थे । इस कारण ही आर्य समाज की अस्मिता को बनाए रखने के लिए आपने १९३९ में मात्र १६ वर्ष की आयु में ही हैदराबाद के धर्मयुद्ध में भाग लेते हुए सत्याग्रह किया तथा जेल गये । आप की आर्य समाज के प्रति अगाध आस्था थी , इस कारण आप अपनी शिक्षा पूर्ण करने पर आर्य प्रतिनिधि सभा उतर प्रदेश के माध्यम से उपदेशक स्वरुप कार्य करने लगे । आप इतना ओजस्वी व्याख्यान देते थे कि कुछ ही समय में आप का नाम देश के दूरस्थ भागों में चला गया तथा सब स्थानों से आपके व्याख्यान के लिए आप की मांग देश के विभिन्न भागों से होने लगी । पंजाब में सरदार प्रताप सिंह कैरो के नेतृत्व में कार्य कर रही कांग्रेस सरकार ने हिन्दी का विनाश करने की योजना बनाई । आर्य समाज ने पूरा यत्न हिन्दी को बचाने का किया किन्तु जब कुछ बात न बनी तो यहां हिन्दी रक्षा समिति ने सत्याग्रह आन्दोलन करने का निर्णय लिया तथा शीघ्र ही सत्याग्रह का शंखनाद १९५८ ईस्वी में हो गया । आप ने भी इस समय अपनी आर्यसमाज के प्रति निष्टा व कर्तव्य दिखाते हुए सत्याग्रह में भाग लिया । इस आन्दोलन ने आप को आर्य समाज का सर्वमान्य नेता बना दिया ।
इस समय आर्य समाज के उपदेशकों की स्थिति कुछ अच्छी न थी । इन की स्थिति को सुधारने के लिए आप ने अखिल भारतीय आर्य उपदेशक सम्मेलन स्थापित किया तथा लखनऊ तथा हैदराबाद में इस के दो सम्मेलन भी आयोजित किये । इससे स्पष्ट होता है कि आप आर्योपदेशकों के कितने हितैषी थे । आप की कीर्ति ने इतना परिवर्तन लिया कि १९५८ ईस्वी को आप को लोकसभा का गुड़गांव से सदस्य चुन लिया गया । इस प्रकार अब आप न केवल आर्य नेता ही बल्कि देश के नेता बन कर राजनीति में उभरे । १९६२ तथा फ़िर १९६७ में फ़िर दो बार आप स्वतन्त्र प्रत्याशी स्वरूप लोकसभा के लिए चुने गए । एक सांसद के रूप में आप ने आर्य समाज के बहुत से कार्य निकलवाये । १९७५ में प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन, जो नागपुर में सम्पन्न हुआ, में भी आप ने खूब कार्य किया तथा आर्य प्रतिनिधि सभा मंगलवारी नागपुर के सभागार में , सम्मेलन मे पधारे आर्यों की एक सभा का आयोजन भी किया । आप ने अनेक देशों में भ्रमण किया तथा जहां भी गए, वहां आर्य समाज का सन्देश साथ लेकर गये तथा सर्वत्र आर्य समाज के गौरव को बटाने के लिए सदा प्रयत्नशील रहे ।
जिस आर्य प्रतिनिधि सभा उत्तर प्रदेश के उपदेशक बनकर आपने कार्यक्षेत्र में कदम बटाया था , उस आर्य प्रतिनिधि सभा उत्तर प्रदेश के आप अनेक वर्ष तक प्रधान रहे । आप के ही पुरुषार्थ से मेरठ, कानपुर तथा वाराणसी में आर्य समाज स्थापना शताब्दी सम्बन्धी सम्मेलनों को सफ़लता मिली । इतना ही नहीं, आप की योग्यता के कारण सन १९७४ इस्वी में आप को परोपकारिणी सभा का सदस्य मनोनीत किया गया ।
आप का जीवन यात्राओं में ही बीता तथा अन्त समय तक यात्राएं ही करते रहे । अन्त में जयपुर से दिल्ली की ओर आते हुए एक रेल दुर्घटना हुई । इस रेल गाडी में आप भी यात्रा कर रहे थे । इस दुर्घटना के कारण २३ नवम्बर १९७७ इस्वी को आप की जीवन यात्रा भी पूर्ण हो गई तथा आर्य समाज का यह महान योद्धा हमें सदा के लिए छोड कर चला गया ।[1]
एक श्रेष्ठ वक्ता
ऐसा माना जाता है कि एक बार भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि प्रकाशवीर जी उनसे भी बेहतर वक्ता थे।
Bio Data at the website of Lok Sabha =
http://164.100.47.194/loksabha/writereaddata/biodata_1_12/1366.htm
SHASTRI, SHRI PRAKASH VIR, Vidya Bhaskar, Shastri, M.A., (Sanskrit)—Ind., (U.P. Hapur—1967); s. of Shri Dalipsingh Tyagi; b. at Rehra, Distt. Moradabad, January 1923; ed, at Gurukul Mahavidyalaya, Jwalapur (Hardwar) and Sanskrit Vishwavidyalaya, Varanasi; m. Smt. Yashoj, 1946, 2 s; Teacher, Social Worker and Agriculturist; president, Gurukul Mahavidyalaya, Jwalapur (Hardwar); Vice-President, Sarvadeshik Arya Pratinidhi Sabha, Delhi; President, (1) Arya Pratinidhi Sabha, U.P.; (2) Delhi Pradesh Hindi Sahitya Sammelan; Member, Second Lok Sabha, 1957—62 and Third Lok Sabha, 1962—67.
Social activities: Social service through the organisation of Arya Samaj; service in hilly and forest areas; through the Backward Classes league; Harijan reform, especially in rural areas: honorary teaching work in Gurukul; spreading Hindi and other Indian languages in non-Hindi speaking States.
Hobby: Reading.
Favourite pastime and recreation: Literary and cultural discussions, travelling.
Special interests: Social reforms, social service, educational institutions, studies and teaching.
Publications: (1) Mere Sapnon ka Bharat; (2) Dhadhakta Kashmir; (3) Kashmir kei Vedi Par; (4) Gohatya Ya Rashtratlatya.
Sports: Hockey and Volley-ball.
Travels abroad: Thailand, Hongkong, Taiwan and Burma.
Permanent address: Arya Pratinidhi Sabha Bhavan, Sultan Bazar, Hyderabad.
Demise
Shri Prakash Vir Shastri was killed in a train accident on 23 November 1977. He was survived by his wife and two children.
External Links
- http://www.thearyasamaj.org/Ptprakashchandrashastri_en
- - प्रकाशवीर शास्त्री -विकिपीडिया पर
- http://bharatdiscovery.org/india/प्रकाशवीर_शास्त्री