Sikarwar

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(Redirected from Sakarwar)
Daleepgarh Estate (Nagina Estate) of Sikarwar Jats.

Sikarwar (सिकरवार)[1] [2] [3]Sikarvar(सिकरवार) Sagarwar (सगरवार)[4] Sakarwar (सकरवार) Sakarwal (सकरवाल) Sikroliya (सिकरोलिया) Sikarwal (सिकरवाल)[5] Sangarwar (संगरवार) [6]is a gotra of Jats found in Uttar Pradesh, Rajasthan and Madhya Pradesh in India. They were rulers in Central Asia. [7] James Tod places it in the list of Thirty Six Royal Races.[8] Sakariya is a Gotra of the Anjana Jats in Gujarat.

Variants of the name Sikarwar

Dilip Singh Ahlawat has mentioned it as one of the ruling Jat clans in Central Asia. [9] They are called Sakariya in Gujarat. Shakar/Sakarwar clan is found in Afghanistan.[10]

Origin

According to a modern writer this gotra originated from place called Sikari in Uttar Pradesh. [11] But it has a rich history behind their name as follows.

Jat Gotras Namesake

Sikarwar Pal

Sikarwar Pal has 12 villages in Mathura district out of which Angai is famous one. Aligarh district has 12 villages and Firozabad has 8 villages of this khap. Kunwar Hukum Singh was born in this khap.[12]

सिकरवार पाल

74. सिकरवार पाल - इस पाल के मथुरा में 12 गांव हैं जिनमें गांव आंगई प्रसिद्ध है. इनके अलीगढ़ में 12 गांव और फिरोजाबाद जनपद में 8 गांव हैं. कुंवर हुकम सिंह रईस प्रधान सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा एवं जाट महासभा इसी पाल में जन्मे थे. कुंवर नेत्रपाल प्रसिद्ध ज्वेलर्स भी इसी खाप से हैं. [13]

Daleepgarh Estate

Sikarwar Jat clan is commonly found in Braj area. Kunwar Bhudev Singh was son of famous Kunwar Hukum Singh Sikarwar of Angai (in Mathura). Kunwar Bhudev Singh Sikarwar got the estate of Daleepgarh from his in laws.

Villages founded by Sikarwar clan

History

Ram Swarup Joon[14] writes that Sikarwal gotra is a Suryavanshi gotra. A large number of persons belonging to this gotra are found as Rajputs. Sikarwal Jats have 12 villages Mathura.


According to James Todd[15] Sakarwal clan never appears to have claimed much notice amidst the princes of Rajasthan ; nor is there a single independent chieftain now remaining, although there is a small district called after them, Sakarwar, on the right bank of the Chambal, adjoining Jaduvati, and like it now incorporated in the province of Gwalior, in Sindhia's dominions. The Sakarwal is therefore reduced to subsist by cultivation, or the more precarious employment of his lance, either as a follower of others, or as a common depredator. They have their name from the town of Sikri (Fatehpur), which was formerly an independent principality.[16]

B S Dahiya[17] writes:They are the same as Sakaravakas of the Puranas. In Mathura, they call themselves Sagarvar also. They are called Sacaravcae by the Greeks and this name is the same as the Puranic name. In about 100 B.C. the Sakarwars began to play an important part in the politics of Persia. Their part in the death of Phraates II and Artban was significant, and they Practically appointed Sinatroces as king of Persia in 77 B.C. In 27 / 26 B.C. when Phraates IV was contending with his adversary, Tiridates, The role of Sikarwars was decisive. [18] From A. Gardiner’s book, “The Coins of Greeks and Scythian Kings of Bactria and India in the British Museum”, Plate XXXIV , 8 we know that the names of two kings of Sikarwar clan were Artader and his son Hyrcodes. They were ruling at Sogdiana and Bactriana in the second half of the first century B.C. As per Ghirshman, the Kushana King Heraus (of Her clan) sat on their throne in about 20 B.C. This was the period of the rise of Kaswan Jats and their ally, the Kangs (Kangnu or Kang-kiu of the Chinese and kankas of the Indian works) occupied Bukhara. Their coins have been found at Tali_Bargu, near Samarkand. [19] R. Ghirshman identified them with the Sacaravae of the Greek writers and the Sakarav of Sakara of the coins. O.G. Von wesendonk has rightly identified them with the Sakarvaka of the Puranas. [20] According to J. Marquart , they were the people meant in the inscription of Darius and styled as Saka-Hauma-Varka [21] but although both the Sakarvars and the Virks were Jats (Sakas), it is the latter people who are named by Darius. Of course the ruling clan of Virks had the Sikarvars and also other clans under them as partners at that time, but that was in the sixth century B.C. Ultimately, their kingdom was annexed by Kanishka into the Kaswan empire, as the Kaaba Zarthustra inscription of Shahpuhr I, shows that Sogdiana, along with the cities of Bukhara , Samarkand, Tashkand, ect. were inside the empire . [22] So the Sikarvar came to India in the first century A.D. or earlier. Perhaps they are the Sagartians of Herodotus and of the Behustun Inscription. [23]

They were the rulers of Sikari. Sikarwars founded the historical place Sikari, near Agra. They were the rulers of 12 villages in Aligarh district. Kunwar Hukam Singh of Angai (Mathura) has been a famous person from Sikarwar gotra. Kunwar Hukam Singh was a close friend of Raja Mahendra Pratap.

Sikarwar is also a clan of Suryavanshi Kshatriyas of first Century A.D. [24]

कुषाणों से रक्त सम्बन्ध

डॉ धर्मचंद विद्यालंकार [25] लिखते हैं कि कुषाणों का साम्राज्य मध्य-एशिया स्थित काश्गर-खोतान, चीनी, तुर्किस्तान (सिकियांग प्रान्त) से लेकर रूस में ताशकंद और समरकंद-बुखारा से लेकर भारत के कपिशा और काम्बोज से लेकर बैक्ट्रिया से पेशावर औए मद्र (स्यालकोट) से मथुरा और बनारस तक फैला हुआ था. उस समय मथुरा का कुषाण क्षत्रप हगमाश था. जिसके वंशज हगा या अग्रे जाट लोग, जो कि कभी चीन की हूगाँ नदी तट से चलकर इधर आये थे, आज तक मथुरा और हाथरस जिलों में आबाद हैं. आज भी हाथरस या महामाया नगर की सादाबाद तहसील में इनके 80 गाँव आबाद हैं. (पृ.19 )

कुषाणों अथवा युचियों से रक्त सम्बन्ध रखने वाले ब्रज के जाटों में आज तक हगा (अग्रे), चाहर, सिनसिनवार, कुंतल, गांधरे (गांधार) और सिकरवार जैसे गोत्र मौजूद हैं. मथुरा मेमोयर्स के लेखक कुक साहब ने लिखा है कि मथुरा जिले के कुछ जाटों ने अपना निकास गढ़-गजनी या रावलपिंडी से बताया है. कुषाण साम्राज्य के अधिकांश क्षेत्र में जाटों की सघन जन संख्या उनको कुषाण वंसज होना सिद्ध करती है.(पृ.20)

जाट रियासत आंगई (महावन) और जारखी (टूंडला)

जाट रियासत आंगई (महावन) और जारखी (टूंडला)

जाट क्षत्रिय वीरों ने अपनी वीरता के दम पर अनेक रियासत कायम की जिन में से आंगई और जारखी रियासत सिकरवार जाटों की थी। इन जाट वीरों ने आगरा के सीकरी पर शासन किया था। लोधी काल तक इन वीर जाटों का आंशिक रुप से सीकरी कर कब्ज़ा रहा था। मुगल बादशाह अकबर के समय यह क्षेत्र पुनः रूप से 1569 ईस्वी में मुगलों के कब्जे में चला गया था। सिकरवार जाट यहां से निकल ब्रज के बहुत से हिस्सो में फैल गए.

आंगई रियासत: 1569 ईस्वी के बाद सीकरी से आये सिकरवार जाटों ने महावन क्षेत्र में अपनी जगीदारी कायम की वीर गोकुला के साथ मिलकर मुगलो का प्रतिरोध किया था। औरंगजेब की मृत्यु के बाद आगई रियासत के रूप में उभरी जिसने मुगलो के क्षेत्र पर कब्ज़ा जमाना शुरू किया महावन क्षेत्र के जाट सदा से जुझारू प्रवृत्ति के होने का इनको फायदा मिला कुंवर हुकुम सिंह सिकरवार यहां के प्रसिद्ध व्यक्ति रहे. कुंवर साहब आर्य समाज के अध्यक्ष रहे. इन्होंने 30 हज़ार से ज्यादा मलखाने लोगों को पुनः हिन्दू बनाया था। इनके पुत्र नगीना के अधिपति थे।

जारखी रियासत: जारखी रियासत उत्तरप्रदेश के फिरोजाबाद जिले में है। एक समय सम्पूर्ण फिरोजाबाद जिला और उसके आसपास क्षेत्र इनके अधीन था। जब मोहम्मद शाह दिल्ली में शासन करता था उस समय उसके द्वारा नियुक्त सैय्यद काजिम अली यहाँ के लोगो पर अत्याचार करता था। उस के इन कृत्यों से तंग आये स्थानीय लोगो ने जब महावन के वीर जाटों से सहायता की याचना की तो महावन से सिकरवार जाटों की अगुवाई में सोलंकी, तांगड़ अन्य गोत्रीय जाट इस क्षेत्र में युद्ध के लिए आए. 9 मई 1739 को जाटों ने फिरोजाबाद के मुगल सूबेदार काजिम अली से युद्ध किया. इस युद्ध मे जाटों के 200 सैय्यद मुगलों को अपनी तलवारों का शिकार बना लिया था। मुगल अधिकारी सैय्यद युद्ध भूमि से भागकर टूण्डला के निकट मुस्लिम ग्राम में शरण ली इस ग्राम के पचौरी ब्राह्मणों ने इस बात की सूचना जाटों को पहुँचा दी । जाटों का एक दल उस क्षेत्र की तरफ बढ़ा. यह दल दो भागों में बंट गया एक नए टूण्डला के समीप गढ़ पर कब्ज़ा किया दूसरे में अधिकांश सोलंकी जाट थे जिन्होंने सैय्यदों और पठानों को मार के इस जगह का नाम चूल्हावाली रखा. यह क्षेत्र देश की स्वतंत्रता तक सिकरवारों की जारखी के अधीन रहा है। 18 वी सदी के अंत तक तो पूरा फिरोजाबाद इनके अधीन रहा. 1803 में जनरल लेक ने इस रियासत पर हमला किया. उस समय ठाकुर सुंदर सिंह सिकरवार यहां के राजा थे जिन्होंने अंग्रेज़ों से युद्ध किया था इनके बाद ठाकुर दिलीप सिंह सिकरवार राजा हुए. 1816 ईस्वी में ठाकुर डेहरी सिंह सिकरवार राजा बने. इनके पिता अंग्रेज़ों से युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए थे। लेकिन अंग्रेज़ों के खिलाफ 1857 में इन्होंने विद्रोह किया. जारखी के राजाओं के साथ चूल्हावाली के सौलंकी जाटों और सभी जाटों के साथ अंग्रेज़ों के खिलाफ भाग लिया जिसके कारण अंग्रेज़ों ने इनकी रियासत के कुछ भाग पर कब्ज़ा कर इनको देश भक्ति का ईमान दिया गया. बाद में डेहरी सिंह पुत्र जुगलकिशोर सिंह सिकरवार ने कुछ क्षेत्र प्राप्त कर लिए थे। इनके बाद ठाकुर शिवकरण सिंह सिकरवार और ठाकुर भगवान सिंह में रियासत का बंटवारा हो गया था. इनके रिश्ते पंजाब की बेरी रियासत में थे। कुंवर श्योपाल सिंह और कुंवर बलवीर सिंह यहां के मालिक हैं।

जिला मथुरा में सिकरवार जाटों के 12 गांव हैं। इन गांवों में आंगाई गांव बड़ा प्रसिद्ध है। यहां के कुंवर हुकमसिंह जी, प्रधान सार्वदेशिक (सब देशों की) आर्य प्रतिनिधि सभा, बहुत यशस्वी पुरुष हुए। इनके पुत्र नगीना रियासत के अधिपति थे। दूसरी पुरानी रियासत जारखी थी, जो टूंडला के समीप है। इसी वंश के ठाकुर मेवाराम हुए जिनके 12 पुत्रों ने अलीगढ जिले में सपेरा, जसराना, चितावर, सगीला, रामगढ, बेगपुर, सुखराल, किन्ढेरा, रसूलपुर, दुरसैनी, भवनगढ़ी और कलाई आदि गांवों को बसाया।[26]

सिकरवार - नवमी सदी में इनका राज्य सीकरी (आगरा जिला) में था। सन् 812 से 836 के बीच भारत पर एक प्रबल आक्रमण मुसलमानों का हुआ था। उन से मुकाबला करने के लिए उस समय के अनेक राजा मेदपाट में इकट्ठे हुए थे। उसमें सीकरी के सिकरवार भी शामिल थे। आगे चलकर सिकरवार भी 10 वीं सदी में जाट और राजपूत दो भागों में बट गए। कुंवर हुकुम सिंह जी आंगई इन्हीं सीकरी के सिकरवार की विभूति हैं।[27]

सिकरवार का इतिहास: ठाकुर देसराज

ठाकुर देशराज[28] ने लिखा है....सिकरवार - नवमी सदी में इनका राज्य सीकरी (आगरा जिला) में था। सन् 812 से 836 के बीच भारत पर एक प्रबल आक्रमण मुसलमानों का हुआ था। उन से मुकाबला करने के लिए उस समय के अनेक राजा मेदपाट में इकट्ठे हुए थे।


[पृ.126]: उसमें सीकरी के सिकरवार भी शामिल थे। आगे चलकर सिकरवार भी 10 वीं सदी में जाट और राजपूत दो भागों में बट गए। कुंवर हुकुम सिंह जी आंगई इन्हीं सीकरी के सिकरवार की विभूति हैं।


ठाकुर देसराज[29] लिखते हैं....आगरा जिले में सीकरी नामक स्थान को इन्हीं लोगों ने बसाया था और पहले चंबल के किनारे पर आबाद थे। बाबर के आने से पहले तक किसी न किसी रूप में सीकरी के निकट के स्थान पर इनका अधिपत्य था। राजपूतों में भी सिकरवार गोत के लोग पाये जाते हैं। ये लोग अपने को सूर्य वंशी क्षत्रिय कहते हैं।

सिकरवारों का इतिहास

Kunwar Hukam Singh Angai

.... नवमी सदी में इनका राज्य सीकरी (आगरा जिला) में था। सन् 812 से 836 के बीच भारत पर मुसलमानों का एक प्रबल आक्रमण हुआ था। उन से मुकाबला करने के लिए उस समय के अनेक राजा मेदपाट में इकट्ठे हुए थे ....! उसमें सीकरी के सिकरवार भी शामिल थे।

आगे चलकर सिकरवार भी 10 वीं सदी में जाट और राजपूत दो भागों में बट गए। कुंवर हुकुम सिंह जी आंगई (मथुरा) इन्हीं सीकरी के सिकरवारों की महान विभूति हैं। 2 जनवरी 1934 के बसंती दिनों में सीकर के आर्य महाविद्यालय के कर्मचारियों द्वारा सीकर यज्ञ आरंभ हुआ। उन दिनों यज्ञ भूमि एक ऋषि उपनिवेश सी जांच रही थी। बाहर से आने वालों के लिये 100 तम्बू और और छोलदारियाँ थी और स्थानीय लोगों के लिए फूस की झोपड़ियों की छावनी बनाई गयी ....!

20000 आदमी के बैठने के लिए पंडाल बनाया गया था जिसकी रचना का श्रेय नेतराम सिंह जी गोरीर और चौधरी पन्ने सिंह जी बाटड़, बाटड़ नाऊ को है। यज्ञ स्थल 100 गज चौड़ी और 100 गज लंबी भूमि में बनाया गया था जिसमें चार यज्ञ कुंड चारों कोनों पर और एक बीच में था। चारों यज्ञ कुंड ऊपर यज्ञोपवीत संस्कार होते थे और बीच के यज्ञ कुंड पर कभी भी न बंद होने वाला यज्ञ।

25 मन घी और 100 मन हवन सामग्री खर्च हुई। 3000 स्त्री पुरुष यज्ञोपवीत धारण किए हुये थे।

यज्ञ पति थे आंगई के राजर्षि कुंवर हुकुम सिंह जी और यज्ञमान थे कूदन के देवतास्वरुप चौधरी कालूराम जी। यह यज्ञ 10 दिन तक चला था। एक लाख के करीब आदमी इसमें शामिल हुए थे। इस बीसवीं सदी में जाटों का यह सर्वोपरि यज्ञ था। यज्ञ का कार्य 7 दिन में समाप्त हो जाने वाला था। परंतु सीकर के राव राजा साहब द्वारा जिद करने पर कि जाट लोग हाथी पर बैठकर मेरे घर में होकर जलूस नहीं निकाल सकेंगे। 3 दिन तक लाखों लोगों को और ठहरना पड़ा। किंतु लाखों आदमियों की जिद के सामने राव राजा साहब को झुकना पड़ा और दशवें दिन हाथी पर जुलूस वैदिक धर्म की जय, जाट जाति की जय के तुमुलघोषों के साथ निकाला गया और इस प्रकार सीकर का यह महान धार्मिक जाट उत्सव समाप्त हो गया।

गोठडा (सीकर) का जलसा सन 1938: जयपुर सीकर प्रकरण में शेखावाटी जाट किसान पंचायत ने जयपुर का साथ दिया था. विजयोत्सव के रूप में शेखावाटी जाट किसान पंचायत का वार्षिक जलसा गोठडा गाँव में 11 व 12 सितम्बर 1938 को शिवदानसिंह अलीगढ की अध्यक्षता में हुआ जिसमें 10-11 हजार किसान, जिनमें 500 स्त्रियाँ थी, शामिल हुए. सम्मलेन में उपस्थ्तित प्रमुख नेताओं में कुँवर हुकम सिंह भी थे....!

जिला मथुरा में रघुवंशी सिकरवार जाटों के 12 गांव हैं। इन गांवों में आंगाई गांव बड़ा प्रसिद्ध है। यहां के कुंवर हुकमसिंह जी, प्रधान सार्वदेशिक (सब देशों की) आर्य प्रतिनिधि सभा, बहुत यशस्वी पुरुष हुए। #इनके पुत्र नगीना रियासत के अधिपति थे। दूसरी पुरानी रियासत जारखी थी, जो टूंडला के समीप है। इसी वंश के ठाकुर मेवाराम हुए जिनके 12 पुत्रों ने अलीगढ जिले में सपेरा, जसराना, चितावर, सगीला, रामगढ, बेगपुर, सुखराल, किन्ढेरा, रसूलपुर, दुरसैनी, भवनगढ़ी और कलाई आदि गांवों को बसाया।

ठाकुर किरोड़ीसिंह सिकरवार - भरतपुर राज्य की पूर्वी सीमा पर गाँव सूती नाम का एक गाँव है। ठाकुर किरोड़ीसिंह यहीं के रहने वाले हैं। आपका गोत्र सिकरवार है। आप देहाती ढंग के बहुत अच्छे गाने बनाते हैं। कविता भी पिंगल के अनुसार करते हैं आपने आर्य समाज शुद्धि सभा और जाट सभा आदि सभी कौमी और धार्मिक संस्थाओं में काम किया है। सन् 1942 के भरतपुर असेंबली के चुनाओं में आपने जमादारा किसान सभा के लिए बड़ा काम किया। आपके परिश्रम को देखकर मास्टर फूलसिंह जी ने आपको कर्मठ कहना आरंभ कर दिया। कुँवर हुकम सिंह और किरोड़ी सिंह के साथ मिल कर उन्होने किसान संघ को ऊंचा उठाया। सन् 1948 के किसान सत्याग्रह में जेल गए। कौमी गौरव से उनका हृदय भरा हुआ है।

Distribution in Uttar Pradesh

Sikarwar Khap has 12 villages in Mathura district and 28 villages in Agra district. [30]

Dalip Singh Ahlawat writes -

जिला मथुरा में रघुवंशी सिकरवार जाटों के 12 गांव हैं। इन गांवों में आंगाई गांव बड़ा प्रसिद्ध है। यहां के कुंवर हुकमसिंह जी, प्रधान सार्वदेशिक (सब देशों की) आर्य प्रतिनिधि सभा, बहुत यशस्वी पुरुष हुए। इनके पुत्र नगीना रियासत के अधिपति थे। दूसरी पुरानी रियासत जारखी थी, जो टूंडला के समीप है। इसी वंश के ठाकुर मेवाराम हुए जिनके 12 पुत्रों ने अलीगढ जिले में सपेरा, जसराना, चितावर, सगीला, रामगढ, बेगपुर, सुखराल, किन्ढेरा, रसूलपुर, दुरसैनी, भवनगढ़ी और कलाई आदि गांवों को बसाया।[31]


Villages in Mathura district

Hathakauli, Angai, Chandpur Kalan, Chholi, Dhana Teja, Garhsauli, Kasimpur, Kiloni, Gharotha, Kahtela /Naglawali, Sdadpur, Sikarpur,

Villages in Agra district

Dhandhupura, Jaupura, Nagla Sikarwar, Paroli Sikarwar, Kathumari.

Villages in Firozabad district

Chhikaoo, Jarkhi,

Villages in Aligarh district

Asroi, Bhaiyan, Bhawan Garhi, Darapur Aligarh, Kalai, Manipur Aligarh, Ramgarh, Sapera Bhanpur, Sihavali, Toori,

Villages in Hathras district

Chitawar Hathras, Sangila Nagla Bari,

Distribution in Rajasthan

Locations in Jaipur city

Bajaj Nagar, Barkat Nagar,

Villages in Alwar district

Garoo,

Villages in Chittorgarh district

Lasrawan

Villages in Swai Madhopur district

Theegla,

Villages in Tonk district

Sikroliya Jats live in village : Kishanpura,

Villages in Bharatpur district

Nagla Hathaini, Kawai, Kheri Devisingh, Kolipura, Barauli Chhar, Jahangeerpur,

Distribution in Madhya Pradesh

Villages in Ratlam district

Villages in Ratlam district with population of this gotra are: Ratlam 4,

Villages in Gwalior district

Gwalior , Kiratpura Gwalior, Morar (Gwalior),

Villages in Bhopal district

Karond,

Village in Sehore district

Kakarda Budni, Padiyala, Sonthi, Shyampur, (Sehore),

Villages in Vidisha district

Gopalpur Vidisha

Villages in Dewas district

Jagtha,

Photo Gallery

Notable persons

  • Surendra Singh IAS (Sikarwar ) - (IAS/Uttar Pradesh/2005, IAS Identity No # 01UP070100) is incumbent Collector & District Magistrate (DM) of Varanasi. Previously, he had been Collector & District Magistrate (DM) of various districts including Sant Ravidas Nagar (Bhadohi), Balrampur, Firozabad, Muzaffarnagar (and Shamli), Pratapgarh, Unnao, Bareilly, and Kanpur Nagar. He belongs to Gotra Sikarwar of the village Kasimpur near Baldeo in Mathura. [32] http://varanasi.nic.in/
  • Sundar Singh (1803) was Sikarwar clan ruler of Jarkhi situated in Tehsil- Tundla, District- Firozabad in Uttar Pradesh.
  • Kunwar Hukam Singh of Angai
  • Kamal Singh Sikarwar (born:1903) (ठाकुर कमलसिंह), from Nagla Hathaini (नगला हथैनी), Bharatpur was a Social worker in Rajasthan. [33]
  • Kirori Singh Sikarwar (ठाकुर किरोड़ीसिंह सिकरवार), from Sooti (सूती), Bharatpur was a Social worker in Rajasthan. [34]
  • Shyam Lal Sikarwar (ठाकुर स्यामलाल सिकरवार) , Kawai (कवई), Nadbai, Bharatpur was a Social worker in Bharatpur, Rajasthan.[35]
  • Chaudhary Udaybhan Singh, senior Bharatiya Janata Party (BJP) leader and incumbent Member of Legislative Assembly (MLA) to the constituency of Fatehpur Sikri, Agra (17th Uttar Pradesh Legislative Assembly, March 2017). He had also successfully contested to become MLA to the constituency of Dayalbagh, Agra in the year 1993.
  • Mamta Sikarwar - IPS Haryana, Comdt, 4 BN HAP Home Haryana Government. SP Residence, Panchkula, Haryana. Ph: 0172-2568675, 9815724689 (PP-971)
  • Dr. Sanjeev Pal Singh Sikarwar - Associate Professor, Raja Balwant Singh (Post Graduate) College, Agra. He is son of Chaudhary Udaybhan Singh, senior BJP leader, and incumbent MLA to Fatehpur Sikri, Agra.
  • Dr. Arun Pratap Sikarwar - Assistant Professor, Dayalbagh Educational Institute (Deemed University), Agra. He basically belongs to the village Hathakauli near Baldeo, Mathura.[36]. Email: arunsikarwar@dei.ac.in / arunlovy@gmail.com, http://en.wikipedia.org/wiki/User:Arunlovy
  • Bahadur Singh (Sikarwar) - Junior Engineer JDA , Date of Birth : 5-April-1970, Village- Kolipura Bharatpur, post - Pipla, Tehsil & District- Bharatpur, Rajasthan, Present Address: A-844, Siddharth Nagar, Jawahar Circle, Jaipur-302017, Phone: 9785175230, Mob: 9414320313, Email Address: bsfozdar@yahoo.com
  • Dr. Ashok Sikarwar - Founder and Director of Baldeo Public Senior Secondary School (affiliated to CBSE), Baldeo, Mathura. Mob. # 9412336541
  • Rajendra Singh Sikarwar - Founder and Chairperson of Sikarwar Group of Institutions, Mathura. He is presently Mathura District In-charge/ Head of Rashtriya Lokdal party. He basically belongs to village Kasimpur (Saidpur), near Baldeo, Mathura. http://www.rssdc.info/
  • Ajit Singh Sikarvar - Govt. Service Interpretor, Lok Sabha Secretariat, New Delhi 8-A, Alok Nagar, Shahganj, Agra (UP). Ph: 9958284546, Email: ajeetsikarvar@indiatimes.com (PP-643)
  • Yatendra Singh Sikarwar, Ex-Block Pramukh, Baldeo, Mathura. He is the Director of Sikarwar Group of Institutions. He basically belongs to village Kasimpur (Saidpur), near Baldeo in Mathura. E-mail: sikarwargroup@gmail.com, http://www.rssdc.info/
  • Samrendra Sikarwar: RJS 2005 batch , Posted at Kota, M: 9413045391
  • Shailesh Pal Singh Sikarwar - Ghaziabad, Mob:8130277575
  • Er.(Dr.) Mayank Kumar (Sikarwar): Assistant Professor ,Mechanical deptt.IIT Delhi. Education - B.Tech. Mechanical IIT Kanpur U.P., M.S.and PhD (MIT-USA), Family -father Dr.B.Singh Retd from IVRI Bareily UP, Mother - Dr.S.Singh Retd Girls degree college Bareily U.P. Basically from Village Chholi (Baldeo) district Mathura U.P.
Jitendra Singh Sikarwar
  • Jitendra Singh Sikarwar - राजस्थान विधि सेवा परिषद के प्रदेश अध्यक्ष पद के चुनाव सम्पन्न हुये जिसमें अध्यक्ष पद पर श्री जितेन्द्र सिंह निर्विरोध निर्वाचित घोषित हुए। निर्वाचन अधिकारी श्री राजेन्द्र सिंह एवं सहायक निर्वाचन अधिकारी श्री हिमांशु शर्मा ने की परिणाम की घोषणा। वर्ष 2017 से लगातार राजस्थान विधि सेवा परिषद के अध्यक्ष हैं श्री जितेन्द्र सिंह। हमारे दो राष्ट्रीय कार्यक्रम में बिशिष्ट अतिथि के रूप में रहे। आप श्री सुरेन्द्र सिंह जी IAS वर्तमान में कमिश्नर मेरठ के बड़े भाई हैं। हमारे संगठन में स्पेशल इनवाइटी हैं। जाट कौम के कोहिनूर है़ जितेन्द्र जी। अगर ये कहा जाये कि बिना श्री जितेन्द्र सिंह जी की तपस्या और मार्गदर्शन के देश को श्री सुरेन्द्र सिंह जी जैसा मेधावी किसान हमदर्द आई. ए. एस अधिकारी मिल नहीं सकता था! जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग, शासन सचिवालय, जयपुर में उप विधि परामर्शी (राज्य स्तरीय पद) Deputy legal Rememberancer के पद पर कार्यरत हैं श्री जितेन्द्र सिंह स्रोत: विपिन चौधरी (केन्द्रीय कार्यकारी-आगरा)....दिनांक 02 .9. 2024 को नई दिल्ली में, माननीय उप राष्ट्रपति एवं सभापति, राज्यसभा के सलाहकार का पदभार ग्रहण किया है ।

References

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  2. Jat History Dalip Singh Ahlawat/Parishisht-I, s.n. स-3
  3. O.S.Tugania:Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu, p.62, s.n. 2440
  4. Jat History Dalip Singh Ahlawat/Parishisht-I, s.n. स-3
  5. Jat History Dalip Singh Ahlawat/Parishisht-I, s.n. स-3
  6. O.S.Tugania:Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu, p.62, s.n. 2440
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  10. An Inquiry Into the Ethnography of Afghanistan By H. W. Bellew, The Oriental University Institute, Woking, 1891, p.113,115,138,164
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  12. Dr Ompal Singh Tugania: Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu,p.22
  13. Dr Ompal Singh Tugania: Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu,p.22
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  15. James Todd, Annals and Antiquities of Rajasthan, Volume I,: Chapter 7 Catalogue of the Thirty Six Royal Races,pp.141
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  17. Jats the Ancient Rulers (A clan study)/Jat Clan in India,p. 271-272
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  21. op. cit., p. 43
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