Dalal: Difference between revisions
Tags: mobile edit mobile web edit |
Tags: mobile edit mobile web edit |
||
Line 219: | Line 219: | ||
Choudhary Rishiv Dalal - PRIME MINISTER | |||
=== Villages in Bulandshahr district === | === Villages in Bulandshahr district === |
Revision as of 03:05, 5 September 2020
Dalal (दलाल) Dalwal (दलवाल) Dalel (दलेल )[1] [2] [3]is gotra of Jats found in Haryana, Uttar Pradesh, Madhya Pradesh, Rajasthan[4] and Delhi. This Gotra has a glorious History, Dalal Jat clan is found in Afghanistan.[5] They were supporters of Chauhan Confederacy.
Origin
- The ruling family of Kuchesar belonged to the Dalal jat clan of the Jat caste. Mr. Crook in his book "“The Tribes and Castes of the north western provinces and Avadh”"writes about the origin of the Dalal clan of Jats. He recounts that in the village of Sillauti, located in the Rohtak district of Haryana, there lived in a long-bygone era a man by name Dhanna, who belonged to the Jat caste. He married a woman of the Princess Badgujar Rajput caste. They had three sons, by name Deswal, Dille and Maan. The descendants of the three brothers formed three major lineages ("gotra"s) and came to be known as Deswal, Dalal and Maan Gotras respectively. Part of the Kuchesar Fort is now two heritage hotels, one is Mud Fort Kuchesar and Rao Raj Vilas.
- Dalal Gotra gets name after King named Dalal son of Kod Khokhar. [6]
History
Ram Swarup Joon[7] writes that....Dalal is a very small gotra as compared to the Mann and Sihag gotras of which it is a branch. There are 12 villages of Dalals including Chhara, Mandothi and Ashoda. People belonging to this gotra inhabit the Chiefs of Kuchesar in district Bulandshahr also belong to the same gotra in that area about 12 villages.
दलाल जाटों का राज-वंश
दलीप सिंह अहलावत[8] ने लिखा है - इस जाट वंश की राजधानी कुचेसर रही जो कि जिला बुलन्दशहर में है। अब से लगभग 250 वर्ष पहले से यह वंश यहां पर आबाद है। दलाल जाट गोत्र के भुआल, जगराम, जटमल और गुरबा नामक चार भाई थे जिन्होंने इस राज्य की नींव डाली थी।
“मुग़ल साम्राज्य जब जाटों और मराठों के प्रबल प्रताप से पतन की ओर जा रहा था और जाट संघ के अनेक घरानों ने छोटी-बड़ी रियासतें स्थापित कर ली थीं, उस समय रोहतक जिले के मांडौठी गांव के दलाल वंश के चार जाट जिनके नाम ऊपर लिखे हैं, उत्तर प्रदेश में चले गए।” (क्षत्रियों का इतिहास श्री परमेश शर्मा तथा राजपालसिंह शास्त्री पृ० 178)।
भुआल, जगराम और जटमल ने चितसौना और अलीपुर में प्रथम बस्ती आबाद की। चौथे भाई गुरबा ने परगना चंदौसी (जिला मुरादाबाद) पर अधिकार कर लिया।
भुआल के पुत्र मौजीराम हुए। इनके दो पुत्र रामसिंह और छतरसिंह थे। छतरसिंह ने बहुत सा इलाका जीत लिया। छतरसिंह के दो पुत्र मगनीराम और रामधन थे। जब महाराजा जवाहरसिंह ने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए दिल्ली पर चढ़ाई की तो उस समय छतरसिंह, मगनीराम और रामधन ने म० जवाहरसिंह की 25000 जाट सेना से बड़ी मदद की। दिल्ली के नवाब नजीबुद्दौला ने एक चाल चली। छतरसिंह को अपने पक्ष में मिला लिया। उसको राव का खिताब दिया और साथ ही कुचेसर की जागीर और 9 परगने का ‘चोर मार’ का ओहदा भी दिया। छतरसिंह ने अपने पुत्रों और सैनिकों को म० जवाहरसिंह से अलग कर लिया। दिल्ली की ओर से अलीगढ़ में उन दिनों असराफिया खां हाकिम था। इस युद्ध के बाद उसने कुचेसर पर चढ़ाई कर दी। उसको खतरा था कि कुचेसर के जाट बढ़ते ही गए तो अलीगढ़ को जीत लेंगे। इस युद्ध में दलाल जाट हार गए। राव मगनीराम और रामधन कैद कर लिये गये। कोयल के किले में उन्हें बन्द कर दिया गया, किन्तु वे दोनों भाई कैद से निकल गये। पहले ये भरतपुर महाराजा1 से क्षमा याचना करके और मुरादाबाद में सिरसी के मराठा हाकिम को प्रभावित करके फिर मराठा और जाट सेनाएं लेकर 1782 ई० में कुचेसर पर चढ़ाई कर दी।
वह मुग़ल हाकिम इस आक्रमण से भयभीत होकर भाग निकला। उसे पकड़कर उसका सिर कुचल दिया। इसी से किले का नाम कुचेसर पड़ गया। इस अवसर पर जाटों ने इनका भारी समर्थन किया। अब ये फिर कुचेसर के अधिकारी हुए।
राव मगनीराम दो पत्नियां और सात पुत्र छोड़कर स्वर्गवासी हो गया। कहा जाता है कि बहादुरनगर में एक खजाने का नक्शा छोड़ जाने पर विवाद होने से राव रामधन ने अपने दो-तीन भतीजों को मरवा डाला, शेष ईदनगर चले गए। नक्शे के अनुसार विशाल खज़ाना मिल जाने पर कुचेसर का भण्डार भरपूर हो गया। 1790 ई० में राव रामधन पूर्णरूप से कुचेसर के शासक हुए। उस
जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-796
समय दिल्ली का बादशाह शाह आलम था। उसने सैदपुर, दतियाना, पूठ, सियाना, थाना, फरीदा के विस्तृत क्षेत्र कुचेसर को ही इस्तमुरारी पट्टे पर दे दिए।
इस इस्तमुरारी पट्टे के बदले 40,000 मालगुजारी देनी होती थी। बाद में 1794 ई० में अकबर शाह ने तथा 1803 ई० में ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने भी इस इलाके पर कुचेसर का ही शासन स्वीकार कर लिया। किन्तु अंग्रेजों का भविष्य अनिश्चित समझकर राव रामधन ने मालगुजारी करनी बन्द कर दी, इस पर अंग्रेज सरकार ने इन्हें कैद कर लिया। 1816 ई० में मेरठ की जेल में इनकी मृत्यु हो गई। इनके पुत्र राव फतेहसिंह रियासत के मालिक हुए। फतेहसिंह ने उदारतापूर्वक अपने चाचा के लड़कों का खान-पान मुक़र्रर कर दिया। उनको रियासत का कुछ भाग भी दे दिया। उनमें राव प्रतापसिंह भी थे। 1839 ई० में राव फतेहसिंह का स्वर्गवास हो गया। उनके बाद उनके पुत्र बहादुरसिंह जी राज के मालिक हुए। इन्होंने 26 गांव खरीदकर रियासत में शामिल कर लिये। इनकी दो पत्नियां थीं, जाट स्त्री से लक्ष्मणसिंह, गुलाबसिंह और राजपूत स्त्री से उमरावसिंह हुए। लक्ष्मणसिंह का स्वर्गवास अपने पिता के ही आगे हो गया था। राव बहादुरसिंह के मरने पर राज का अधिकारी कौन बने इस बात पर काफी झगड़ा चला। यह भी कहा जाता है कि जाट बिरादरी के कुछ लोगों ने उमरावसिंह को दासी-पुत्र ठहरा दिया और गुलाबसिंह को राज्य का अधिकारी ठहराया। गुलाबसिंह को राजा बनाया गया। सन् 1857 ई० में गुलाबसिंह ने अंग्रेजों की खूब सहायता की। इसके बदले में ब्रिटिश सरकार ने आपको कई गांव तथा राजा साहब का खिताब प्रदान किया। राजा गुलाबसिंह का सन् 1859 ई० में स्वर्गवास हो गया। इन्होंने सियाना के समीप साहनपुर किला निर्माण कराया था।
राजा साहब का कोई पुत्र न था, एक पुत्री थी बीबी भूपकुमारी। रानी जसवन्तकुमारी के बाद उनकी पुत्री बीबी भूपकुमारी राजगद्दी पर बैठी। सन् 1861 में वह भी निःसंतान मर गई। भूपकुमारी की शादी बल्लभगढ़ के राजा नाहरसिंह के भतीजे राव खुशहालसिंह से हुई थी। वे ही उत्तराधिकारी शासक हुए। किन्तु फतेहसिंह के चचेरे भाई प्रतापसिंह, उमरावसिंह ने अपने अधिकार का दावा किया। 1868 ई० में मुकदमे के पंच फैसले में निर्णय हुआ कि पांच आना राव प्रतापसिंह, छः आना राव उमरावसिंह और पांच आना खुशहालसिंह को बांट दिया जाये। राव उमरावसिंह ने अपनी लड़की की शादी खुशहालसिंह से कर दी। 1879 ई० में खुशहालसिंह निःसंतान मर गया। इसलिए दोनों हिस्सों का प्रबन्ध उसके ससुर उमरावसिंह जी के हाथ में आ गया। सन् 1898 में उमरावसिंह का भी स्वर्गवास हो गया। उनके तीन लड़के पहली रानी से और एक लड़का दूसरी रानी से था। सबसे बड़े राव गिरिराजसिंह जी को अपने भाइयों से 1/16 अधिक भाग मिला। मुकदमेबाजी ने इस घराने को बरबाद कर रखा था। साहनपुर की रानी साहिबा श्रीमती रघुवीरकुंवरी ने राज गिरिराजसिंह जी तथा उनके भाइयों पर तीन लाख मुनाफे का अपना हक बताकर दावा किया था। पिछले बन्दोबस्त में पूरे 60 गांव और 16 हिस्से इस रियासत के जिला बुलन्दशहर में थे। इसकी मालगुजारी सरकार को सन् 1903 से पहले 118292 रुपये दी जाती थी। रियासत साहनपुर और कुचेसर का वर्णन प्रायः सम्मिलित है। श्रीमान् कुंवर ब्रजराजसिंह जी रियासत साहनपुर के मालिक थे। इन रियासतों का संयुक्त प्रदेश के जाटों में अच्छा सम्मान था।
इसी कुचेसर राजपरिवार के दलाल वंश के 12 गांव हैं। जिनमें चौ० केहरसिंह पूर्व सेक्रेट्री
जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-797
शिक्षा विभाग तथा कमिश्नर ट्रांस्पोर्ट उत्तरप्रदेश सरकार, चौ० चरणसिंह एम० ए० प्रोफेसर लखावटी कालेज, चौ० चतरसिंह एडवोकेट बुलन्दशहर आदि अनेक उन्नतिशील व्यक्ति हैं। (ठा० देशराज, जाट इतिहास पृ० 572-575; क्षत्रियों का इतिहास, पृ० 178-180, लेखक परमेश शर्मा)।
दलाल गोत्र का इतिहास
पंडित अमीचन्द्र शर्मा[9]ने लिखा है - कोड खोखर नामका सरदार उदयपुर रियासत में रहता था। वह चौहान संघ में था और वहाँ से चलकर ददरेड़े नामक गाँव में आ बसा। बाद में वह पल्लूकोट में आ बसा। पल्लूकोट और ददरेड़ा दोनों मारवाड़ में हैं। कोड खोखर की वंशावली निम्नानुसार है:
1. वीर राणा, 2. धीर राणा, 3. पल्लू राणा, 4. कोड खोखर राणा
कोड खोखर के 4 पुत्र हुये – 1. मान, 2. सुहाग, 3. देसा, 4. दलाल
- 1.मान की संतान मान गोत्र के जाट कहलाए,
- 2.सुहाग की संतान सुहाग गोत्र के जाट कहलाए,
- 3.देसा से देसवाल गोत्र के जाट कहलाए,
- 4.दलाल से दलाल जाट गोत्र प्रचलित हुआ।
पंडित अमीचन्द्र शर्मा[10]ने लिखा है - दलाल भी चौहान संघ में था । वह कोड खोखर का पुत्र और सुहाग का सहोदर भाई था। चौहान संघ में अधिकांस जाट गोत्र ही थे। जिला रोहतक में दलाल गोत्री जाटों के बहुत गाँव हैं। अन्य जिलों में भी दलाल हैं। माणौठी और छारा बड़े गाँव हैं। ये गाँव जिला झज्जर में हैं।
दलाल जाट गोत्र प्राचीनकाल से है । इनका राज्य मुस्लिम धर्म की उत्पत्ति से पहले मध्यपूर्व में रहा था (देखें- चतुर्थ अध्याय, मध्यपूर्व में जाट गोत्रों की शक्ति, शासन तथा निवास प्रकरण) ।
मुसलमान बादशाहों की शक्ति बढने पर अनेक जाट गोत्रों की भांति दलाल जाट भी गढ़ गजनी से लौटकर अपने पैतृक देश भारत में आ गये (जाट इतिहास - उत्पत्ति और गौरव खंड पृ० 150, लेखक ठा० देशराज) ।
दलाल जाटों का एक दल गढ गजनी से पंजाब, भटिंडा होता हुआ जिला रोहतक में आया । पहले ये लोग सिलौठी गांव में ठहरे, फिर यहां से माण्डोठी अदि कई गांवों में आबाद हो गये । माण्डोठी से निकलकर मातन व छारा गांव बसे । जिला रोहतक में दलाल खाप के 12 गांव निम्न प्रकार से हैं - 1. माण्डोठी प्रधान गांव 2. छारा 3. मातन 4. रिवाड़ी खेड़ा 5. आसौदा 6. जाखोदा 7. सिलौठी 8. टाण्डाहेड़ी 9. डाबौदा 10. मेंहदीपुर 11. कसार (ब्राह्मणों का गांव) 12. खरमान (सांगवान गोत्र) ।
माण्डोठी गांव से जाकर दलाल जाटों ने चिड़ी गांव बसाया । चिड़ी गांव से दलालों का गांव लजवाना (जि० जीन्द]] में आबाद हुआ । जि० हिसार में मसूदपुर, कुम्भा आदि भी दलाल जाटों के गांव हैं । जि० रोहतक में अजैब गांव में दलाल जाटों के 35-40 घर हैं । हरयाणा में दलाल, देशवाल, मान, सुहाग जाटों का आपस में भाईचारा है जिससे इनके आपस में आमने-सामने रिश्ते-नाते नहीं होते, परन्तु ये चारों एक ही माता-पिता की सन्तान नहीं हैं ।
दलाल राज-वंश
ठाकुर देशराज[11] ने लिखा है कि दलाल राजवंश की वर्तमान राजधानी कुचेसर थी, जो जिला बुलन्दशहर में है । अब से लगभग 300 वर्ष पूर्व यहां आबाद था । भुआल, जगराम, जटमल और गुरवा नामक चार भाई थे । उन्हीं चारों ने इस राज्य की नींव डाली थी । इस गोत्र का नाम दलाल कैसे पड़ा, इस सम्बन्ध में मि. कुक अपनी ‘टाइव्स एण्ड कास्टस ऑफ दी नार्थ वेस्टर्न प्रॉविन्सेज एण्ड अवध’ नामक और राजपूतनी (राजपूत स्त्री ) पुस्तक में लिखते हैं - देसवाल, दलाल और मान जाट निकट सम्बधित कहे जाते हैं, क्योंकि यह रोहतक के सीलौठी गांव के धन्नाराय जाट पुरुष के वंशज हैं और एक बड़गूजर राजपूतनी (राजपूत स्त्री ) स्त्री के रज से उत्पन्न हैं जिसके दल्ले, देसवाल और मान नाम के तीन लड़के थे । उन्होंने दलाल, देसवाल और मान नाम के तीन गोत्र अपने नाम के कायम किये ।
जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठान्त-575
भुआल, जगराम और जटमल ने चितसौना और अलीपुर में प्रथम बस्ती आबाद की। चौथे भाई गुरवा ने परगना चंदौसी (जिला मुरादाबाद) पर अधिकार जमा लिया।
भुआल के पुत्र मौजीराम हुए। इनके रामसिंह और छतरसिंह नाम के दो लड़के थे। छतरसिंह बहादुरी में बढ़े-चढ़े थे। उन्होंने अपने लिए अपनी भुजाओं से बहुत-सा इलाका प्राप्त किया। इनके मगनीराम और रामधन नाम के दो सुपुत्र थे। जब महाराज जवाहरसिंह ने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए दिल्ली पर चढ़ाई की तो उस समय इन लोगों ने बड़ी मदद की। दिल्ली के नवाब नजीबुद्दौला ने उस समय एक चाल चली। छतरसिंहजी को अपने पक्ष में मिला लिया। उन्हें राव का खिताब दिया और साथ ही कुचेसर की जागीर और 9 परगने का ‘चोर मार’ का औहदा भी दिया। छतरसिंहजी ने अपने पुत्रों और सैनिकों को महाराज जवाहरसिंहजी की सहायता से अलग कर लिया।
दिल्ली की ओर से अलीगढ़ में उन दिनों असराफियाखां हाकिम था। शाह दिल्ली और महाराज जवाहरसिंह के युद्ध के बाद उसने कुचेसर पर चढ़ाई कर दी। चढ़ाई का कारण यह था कि मरकरी के सौदागरों ने उसके कान भर दिए थे। उसे डर दिलाया था कि कुचेसर के लोग बढ़े ही गए तो अलीगढ़ के हाकिम के लिए खतरनाक सिद्ध होंगे। एक चटपटी लड़ाई कुचेसर के गढ़ पर हुई, किन्तु दलाल जाट हार गए। राव मगनीराम और रामधनसिंह कैद कर लिए गए। कोइल के किले में उन्हें बन्द कर दिया गया, किन्तु समय पाकर वे दोनों भाई कैद से निकल गये। बड़ी खोज हुई, किन्तु वे हाथ आने वाले शख्स थोड़े ही थे। पहले ये लोग सिरसा पहुंचे और फिर वहां से मुरादाबाद पहुंच गए। अब यही उचित था कि वे मराठों से मिल जाते। मराठा हाकिम ने इन्हें आमिल का औहदा दिया।
सन् 1782 ई. में दोनों भाइयों ने सेना लेकर कुचेसर के मुसलमान हाकिम पद चढ़ाई कर दी। शत्रु का परास्त करके कुचेसर पर अधिकार कर लिया। जब भी अवसर हाथ आता अपना राज्य बढ़ा लेने में वे न चूकते थे। कुचेसर की विजय के बाद मगनीराम जी का स्वर्गवास हो गया। उनके दो स्त्री थीं। पहली से सुखसिंह, रतीदौलत और बिशनसिंह नामक तीन पुत्र थे। चार पुत्र दूसरी स्त्री से भी थे। मगनीराम ने अपनी रानी भावना को एक बीजक दिया था, जिसमें बहादुरनगर के खजाने का जिक्र था। जाट रिवाज के अनुसार रामधन ने उससे चादर डालकर शादी कर ली। इस तरह बहादुरनगर का खजाना रामधनसिंह को मिल गया। कहा जाता है कि इस शादी में भावना की भी मर्जी थी।1 धन के मिलने पर रामधनसिंह
- 1. यू.पी. के जाट नामक पुस्तक से
जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठान्त-576
ने अपने वचन-पालन में ढिलाई की। वह अपने बच्चों की अपेक्षा भतीजों के साथ अधिक सलूक न करते थे। 1790 ई. तक रामधनसिंह ने कुल राज्य पर अपना अधिकार जमा लिया। उस समय दिल्ली में शाहआलम बादशाहत करता था। उससे पूठ, सियाना, थाना फरीदा, दतियाने और सैदपुर के परगने का इस्तमुरारी पट्टा प्राप्त कर लिया। इस तरह से रामधनसिंह राज्य बढ़ाने और अधिकृत करने में सतर्कता से काम लेने लगे। शाहआलम से प्राप्त किए हुए इलाके की 4000 रुपया मालगुजारी उन्हें मुगल-सरकार को देनी पड़ती थी। शाहआलम के युवराज मिर्जा अकबरशाह ने भी सन् 1794 ई. में इस पट्टे पर अपनी स्वीकृति दे दी। राव रामधनसिंह का अपने भतीजों के प्रति व्यवहार अत्यन्त बुरा और अत्याचारपूर्ण बताया जाता है। उनमें से कुछ तो मर गए, कुछ भागकर मराठा हाकिम के पास मेरठ चले गए। मराठा हाकिम दयाजी ने उनको छज्जूपुर और कुछ दूसरे मौजे जिला मेरठ में इस्तमुरारी पट्टे पर दे दिए। इनके वंशज आगे के समय में मेरठ तथा जिले के अन्य स्थानों पर आबाद हो गए। मराठा हाकिम से मिलने के पूर्व राव रामधनसिंह के भतीजे ईदनगर में जाकर रहे थे। यहीं से उन्होंने मेरठ के मराठा हाकिम से मेल-जोल बढ़ाया था। लगातार प्रयत्न के बाद भी वह इतने सफल नहीं हुए कि राव रामधनसिंह से अपने हिस्से की रियासत प्राप्त कर लेते।
मुगल सलतनत के नष्ट होने पर जब ब्रिटिश गवर्नमेण्ट ने भारत के शासन की बागडोर अपने हाथ में ली तो उसने भी सन् 1803 में मुगलों द्वारा दिए हुए इलाके या निज के देश पर कुचेसर के अधीश्वर के वही हक मान लिए, जो मुगल-शासन में थे।
कुछ समय बाद राव रामधनसिंह ने उस मालगुजारी को देना भी बन्द कर दिया जो वह पहले से दिया करते थे। इसलिए सरकार ने उन्हें मेरठ में बन्द कर दिया। वहीं पर सन् 1816 ई. में उनका स्वर्गवास हो गया।
रामधनसिंह के मरने के बाद उनके लड़के फतहसिंह रियासत के मालिक हुए। फतहसिंह ने उदारतापूर्वक अपने चाचा के लड़कों का खान-पान मुकर्रर कर दिया। उन्हीं लड़कों में राव प्रतापसिंहजी भी थे। उन्होंने रियासत में भी कुछ हिस्सा हासिल कर लिया। राव फतहसिंह ने भी रियासत को बढ़ाया ही। सन् 1839 ई. में राव फतहसिंह का स्वर्गवास हो गया। उनके पश्चात् उनके पुत्र बहादुरसिंह राज के मालिक हुए। राव फतहसिंह ने जहां एक बड़ी रियासत छोड़ी, वहां उनके खजाने में भी लाखों रुपया एकत्रित था। राव बहादुरसिंह ने अपने पिता की भांति रियासत को बढ़ाना ही उचित समझा और 6 गांव खरीदकर रियासत में शामिल कर लिये। राव बहादुरसिंहजी ने एक राजपूत बाला से भी शादी की थी। जाट-विदुषी के पेट से उनके यहां लक्ष्मणसिंह और गुलाबसिंह नाम के दो पुत्र और राजपूत-
जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठान्त-577
बाला के पेट से बमरावसिंह पैदा हुए थे। लक्ष्मणसिंह का स्वर्गवास अपने पिता के ही आगे हो गया था। राव बहादुरसिंह के राज्य का अधिकारी कौन बने इस बात पर काफी झगड़ा चला। यह भी कहा जाता है कि बिरादरी के कुछ लोगों ने राजपूतानी के पेट से पैदा हुए बालक को दासी-पुत्र ठहरा दिया और राज्य अधिकारी गुलाबसिंह को ठहराया। इसका फल यही हो सकता था कि दोनों भाई आपस में झगड़ते-लड़ाई बखेड़ा करते।
एक दुर्घटना यह हुई कि राव बहादुरसिंह अपने महल के अन्दर सन् 1847 ई. में कत्ल कर दिए गए। इस सम्बन्ध में अनेक तरह के मत हैं। कत्ल करने वालों को सजा हुई।
उमरावसिंह ने रियासत में हिस्सा पाने के लिए ब्रिटिश अदालत में दावा किया, किन्तु सदर दीवानी अदालत ने सन् 1859 ई. मे उनके दावे को खारिज कर दिया। सन् 1857 ई. में अन्य राजा रईसों की भांति गुलाबसिंहजी ने भी अंग्रेज-सरकार की खूब सहायता की। जिसके बदले में ब्रिटिश-सरकार ने उन्हें कई गांव तथा राजा साहब का खिताब प्रदान किया। राजा गुलाबसिंहजी का सन् 1859 ई. में स्वर्गवास हो गया। राजा साहब के कोई पुत्र न था। एक पुत्री थी बीवी भूपकुमारी। मरते समय राजा साहब ने रानी सहिबा श्रीमती जसवन्तकुमारी को पुत्र गोद लेने की आज्ञा दे दी थी। किन्तु उन्होंने कोई पुत्र गोद नहीं लिया। रानी साहिबा के पश्चात् भूपकुमारी रियासत की अधिकारिणी बनीं। सन् 1861 ई. में वह भी निःसंतान मर गई। भूपकुमारी की शादी बल्लभगढ़ के राजा नाहरसिंह के भतीजे खुशालसिंह से हुई थी। अपनी स्त्री के मरने पर वही कुचेसर रियासत के मालिक हुए। उमरावसिंह ने फिर अपने हक का दावा किया, किन्तु फल कुछ न निकला। राव प्रतापसिंहजी ने भी अपने हक का दावा किया जो कि मगनीराम के पोते थे। सन् 1868 ई. में अदालती पंचायत से प्रतापसिंह जी को राज्य का पांच आना, उमरावसिंह को छः आना और शेष पांच आना खुशालसिंह को बांट दिया गया। राव फतहसिंह जी का संचय किया हुआ धन इस मुकदमेबाजी में स्वाहा हो गया।
रियासत का इस तरह बंटवारा होने पर कुछ शांति हुई। राव उमरावसिंह ने अपनी एक लड़की की शादी खुशालसिंह से कर दी। खुशालसिंह सन् 1879 ई. में इस संसार से चल बसे। उनके कोई पुत्र न था इसलिए दोनों हिस्सों का प्रबन्ध उनके ससुर उमरावसिंहजी के हाथ में आ गया। वे दोनों राज्यों का भली भांति प्रबन्ध करते रहे। सन् 1898 ई. में उमरावसिंह का भी स्वर्गवास हो गया। उनके तीन लड़के थे पहली पत्नी रानी से और एक लड़का दूसरी रानी से था। सबसे बड़े राव गिरिराजसिंह थे। उनके जाति खर्च के लिए अपने भाइयों से 1/16 अधिक भाग मिला था। मुकदमे-बाजी ने इस घराने को बरबाद कर रखा था।
जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठान्त-578
साहनपुर की रानी सहिबा श्रीमती रघुवरीकुवरि ने राव गिरिराजसिंह जी तथा उनके भाइयों पर तीन लाख मुनाफे का (अपना हक बताकर) दावा किया था। पिछले बन्दोबस्त में पूरे 60 गांव और 16 हिस्से इस रियासत के जिला बुलन्दशहर में थे। इसकी मालगुजारी सरकार को सन् 1903 से पहले 118292/- दी जाती थी। रियासत साहनपुर और कुचेसर का वर्णन प्रायः सम्मिलित है। श्रीमान् कुंवर ब्रजराजसिंह जी रियासत साहनपुर के मालिक थे। इन रियासतों का संयुक्त-प्रदेश के जाटों में अच्छा सम्मान था।
is tarah haryana se uttar Pradesh me dalal (जो दलवाल भी कहे जाते है) gotra ke kuch log aye aur ganga par kr ke bijnor jile me maheshwari jat gao me aakar bas . Nagina thesil me 5 gao ke jamidar rahe..or maheshwari gao ke चौः गेंदा सिँह bhut mashur the unhone british gov ke samme unne prabal cunoti dete hui jilal addalat me 3 din tak raj kiya.is wajha se vo pure jile me mashur ho gaaye.unke bhai ke ladke ch.jogindra singh jo ki shab ke naam se mashur the or jile ke bade farmer the.unke chachere bhai ch.sher singh or umed singh .jile ke mashur veyakti the. Maheshwari jat ke jamidari itni mashur thi ki aaj bhi unka mohla ko.log padhano ke mohle ke naam se pukrte hai.
The chronology of Kuchesar Jat ruling house
- Bhual is considered as the founder of the dynasty.
He was followed as ruler by :
- Maujiram,
- Rao Chhatar Singh,
- Rao Maganiram (d.1782),
- Rao Ramdhan Singh (d.1816),
- Rao Fateh Singh (d.1839),
- Rao Bahadur Singh (d. 1847),
- Rao Gulab Singh (d. 1859) (No son),
- Rani Jaswant Kumari,
- Bhup Kumari (daughter of Gulab Singh) (had no progeny),
- Khusal Singh (husband of Bhup Kumari),
- Pratap Singh,
- Umrao Singh,
- Giriraj Singh.
- दलाल जाटों की वीरता -
- माण्डौठी गांव से दलाल गोत्र के चार भाई भुआल, जगराम, जटमल और गुरबा उत्तरप्रदेश में गये। वहां बड़ी वीरता से कई स्थानों पर अधिकार किया तथा कुचेसर रियासत जि० बुलन्दशहर पर शासन स्थापित किया। वहां पर अब दलाल जाटों के 12 गांव हैं। (अधिक जानकारी के लिए देखो, नवम अध्याय - उत्तरप्रदेश में दलाल जाटों का राजवंश प्रकरण)।
- सन् 1856 में भूरा, निघाइया दलाल जाटों ने छः महीने तक महाराजा जींद से युद्ध किया -
- जि० जींद में लजवाना दलाल जाटों का बड़ा गांव है जिसमें 13 नम्बरदार थे। नम्बरदारों के मुखिया भूरा और तुलसीराम दो नम्बरदार थे। ये दोनों अलग-अलग परिवारों के थे जिनमें आपस में शत्रुता रहती थी। भूरा नम्बरदार ने अपने 4 नौजवानों को साथ लेकर तुलसी नम्बरदार को कत्ल कर दिया। तुलसीराम का छोटा भाई निघाईया था जिसने इस कत्ल की सरकार को कोई रिपोर्ट नहीं दी। अब निघाईया को नम्बरदार बना दिया गया। कुछ दिन बाद निघाईया के परिवार वालों ने तुलसीराम नम्बरदार के चारों कातिलों को रात्रि के समय मौत के घाट उतार दिया। भूरा ने भी इस मामले की सरकार को रिपोर्ट नहीं दी। इस तरह से दोनों परिवारों में आपसी हत्याओं का दौर चल पड़ा।
उन्हीं दिनों महाराजा जींद स्वरूपसिंह की ओर से जमीन की चकबन्दी की जा रही थी। उन तहसीलदारों में एक बनिया तहसीलदार बड़ा रौबीला था, जिससे जींद की सारी जनता थर्राती थी। वह बनिया तहसीलदार लजवाना पहुंचा और चकबन्दी के विषय में गांव के सब नम्बरदारों और ठौलेदारों को चौपाल में बुलाकर सबको धमकाया। उनके अकड़ने पर सबके सिरों पर से साफे उतारने का हुक्म दिया। इस नई विपत्ति को देख भूरा व निघाईया ने एक दूसरे की तरफ देखा और आंखों ही आंखों में इशारा कर चौपाल से नीचे उतरकर सीधे मौनी बाबा के मन्दिर में पहुंचे जो आज भी तालाब के किनारे वृक्षों के बीच में है। वहां उन्होंने आपसी शत्रुता को भुलाकर तहसीलदार से मुकाबले की प्रतिज्ञा की। फिर दोनों हाथ में हाथ डाले चौपाल में आ गये।
यह देखकर गांव वालों ने कहा कि आज भूरा-निघाइया एक हो गये, भलार नहीं है। उधर तहसीलदार जी सब चौधरियों के साफे उनके सिरों से उतरवाकर उन्हें धमका रहे थे और भूरा-निघाईया को फौरन हाजिर करने के लिए जोर दे रहे थे। चौपाल में चढते ही निघांईया नम्बरदार ने तहसीलादार को ललकार कर कहा कि - हाकिम साहब! साफे मर्दों के सिर पर बंधे हैं, पेड़ के खुंड्डों पर नहीं, जब जिसका जी चाहा उतार लिया। तहसीलदार साहब उस पर बाघ की तरह गुर्राया। दोनों ओर से झड़पों में कई आदमी मर गये। तहसीलदार भयभीत होकर प्राण रक्षा के लिए चौपाल से कूदकर एक घर में जा घुसा। वह घर बालम कालिया जाट का था। भूरा-निघांईया और उनके साथियों ने घर का द्वार जा घेरा। बालम कालिया के पुत्र ने तहसीलदार पर भाले से वार किया, पर उसका वार खाली गया। बालम कालिया की युवती कन्या ने बल्लम से तहसीलदार को मार डाला। यह सूचना सुनते ही महाराजा जींद ने लजवाना गांव को तोड़ने के लिए अपनी सेना भेजी। लजवाना से स्त्री-बच्चों को बाहर रिश्तेदारियों में भेज दिया गया। गांव में मोर्चेबन्दी कायम की गई। सहायता के लिए इलाके की पंचायतों को पत्र भेजे गये। तोपचियों के बचाव के लिए वटवृक्षों के साथ लोहे के कढ़ाह बांध दिये गये। इलाके के सब गोलन्दाज लजवाना में एकत्र हो गये। इन देहाती वीरों का नेतृत्व भूरा-निघांईया कर रहे थे। महाराजा की सेना और इन देहाती वीरों के बीच घमासान युद्ध होने लगा जो लगातार छः महीने तक चला। चारों ओर के गांवों से इन गांव वालों को हर प्रकार की सहायता मिलती रही। आहूलाणा गांव के गठवाला मलिकों के प्रधान दादा गिरधर मलिक (जो दादा घासीराम जी के दादाजी थे) प्रतिदिन झोटा गाड़ी में भरकर गोला-बारूद भेजते थे। पता लगने पर राजा ने अंग्रेज सरकार से इस बात की शिकायत की तथा अंग्रेज सरकार ने उस झोटा गाड़ी को पकड़ लिया। जब महाराजा जींद सरदार स्वरूपसिंह किसी भी तरह विद्रोहियों पर काबू पाने में असफले रहे तो उन्होंने ब्रिटिश सेना को सहायता के लिए बुलाया। ब्रिटिश सेना की तोपों की मार से लजवाना चन्द दिनों में जीत लिया गया। इस छः महीने के युद्ध में दोनों ओर के बड़ी संख्या में जवान मारे गये।
भूरा-निघांईया भागकर रोहतक जिले के अपने गोत्र दलालों के गांव चिड़ी में आ छिपे। उनके भाइयों ने वहां से उनको दादा गिरधर के पास आहूलाणा भेज दिया। जब ब्रिटिश रेजीडेण्ट जींद का दबाव पड़ा तो डिप्टीकमिश्नर रोहतक ने चौ० गिरधर को मजबूर किया कि वह भूरा-निघांईया को महाराजा जींद के समक्ष करे। अन्त में भूरा-निघांईया को साथ ले सारे इलाके के मुखियों के साथ चौ० गिरधर जींद राज्य के प्रसिद्ध गांव कालवा, जहां महाराजा जींद कैम्प डाले हुए थे, पहुंचे। उन्होंने राजा से यह वायदा ले लिया कि भूरा-निघांईया को माफ कर दिया जाएगा, तब दोनों को राजा के सामने पेश कर दिया। माफी मांगने व अच्छा आचरण का विश्वास दिलाने के कारण राजा उन्हें छोड़ना चाहता था, पर ब्रिटिश रेजिडेण्ट के दबाव के कारण राजा ने भूरा-निघांईया दोनों नम्बरदारों को फांसी पर लटका दिया। दोनों नम्बरदारों को सन् 1856 के अन्त में फांसी देकर राजा ने लजवाना के ग्राम निवासियों को गांव छोड़ देने का आदेश दे दिया। लोगों ने लजवाना खाली कर दिया और चारों दिशाओं में छोटे-छोटे गांव बसा लिए जो आज भी सात लजवाने के नाम से प्रसिद्ध हैं। मुख्य लजवाना से एक मील उत्तर-पश्चिम में भूरा के कुटुम्बियों ने चुडाली नामक गांव बसाया। भूरा के पुत्र का नाम मेघराज था। मुख्य लजवाना से ठेठ उत्तर में एक मील पर निघांईया के वंशधरों ने मेहरड़ा नामक गांव बसाया।
निघांईया के छोटे पुत्र की तीसरी पीढ़ी में चौ० हरीराम थे जो रोहतक के डाकू दीपा द्वारा मारे गये। इसी हरीराम के पुत्र डाकू हेमराज उर्फ हेमा (गांव मेहरड़ा) को विद्रोहात्मक प्रवृत्तियां वंश परम्परा से मिली थीं और वे उसके जीवन के साथ ही समाप्त हो गईं।
मांडौठी गांव के सिपाही नान्हाराम दलाल की वीरता -
सन् 1900 में चीन सरकार की महारानी ने अपने देश चीन से, विदेशी उद्योगपतियों, व्यापारियों, दुकानदारों आदि को बाहर निकल जाने का आदेश दे दिया। उन विदेशियों ने अपने-अपने देशों की सरकार को इस आदेश की सूचना दी और चीन देश को न छोड़ने की लाचारी से सूचित किया। चीन सरकार के अपने इस आदेश पर दृढ रहने के कारण 12 देशों की संयुक्त सेनाओं ने चीन देश पर चढाई कर दी और ये सेनायें सन् 1901 में चीन देश में पहुंच गईं। ये संयुक्त सेनायें ब्रिटिश, रूस, जर्मनी, अमेरिका, जापान, कनाडा, इटली, फ्रांस, स्पेन, तुर्की, पुर्तगाल और अरब देशों की थीं। ब्रिटिश सेना के साथ छठी जाट लाइट इन्फेंट्री (6 जाट पलटन) भी चीन गई थी। चीन सरकार ने इनसे सन्धि कर ली और विदेशियों की सारी शर्तें मान लीं। इन सेनाओं को वहां कई महीनों तक रहना पड़ा। 6 जाट पलटन के कैम्प के उत्तर में थोड़ी दूरी पर शराब का ठेका था। 6 जाट के आर० पी० पहरेदार (Regimental Police Sentries) एक छोटा बेंत लेकर कैम्प के चारों ओर दिन में पहरा देते थे, जैसा कि प्रत्येक बटालियन में यह रीति है। रूसी हथियारबन्द सैनिक टोलियां सायंकाल 6 जाट के कैम्प के सामने से जाकर उस ठेके पर शराब पीकर आती थीं। एक दिन की घटना यह हुई कि सिपाही नान्हाराम दलाल आर० पी० सन्तरी था। एक रूसी हथियारबन्द सैनिक टोली शराब पीकर वापस लौटती हुई, सिपाही नान्हाराम को चाकू व संगीन मारकर सख्त घायल कर गई।
नान्हाराम को हस्पताल में दाखिल करवा दिया गया। अगले दिन पलटन के कर्नल साहब व सूबेदार मेजर उसे हस्पताल में देखने गये। अंग्रेज कर्नल ने क्रोध से नान्हाराम को यह कह दिया कि
तुम एक भी रूसी सिपाही को चोट नहीं मार सके, अतः चूड़ियां व साड़ी पहन लो। सूबेदार-मेजर ने कर्नल साहब से कहा कि हमारे सिपाहियों को छोटा बेंत के स्थान पर राईफल व गोलियां लेकर सन्तरी रहने की मंजूरी दी जाये। इससे कर्नल साहब ने यह कहकर इन्कार कर दिया कि हमारा सिपाही रूसी सैनिकों पर गोली चला देगा तो हमारा रूस के साथ युद्ध छिड़ जायेगा। फिर सूबेदार-मेजर ने पहरेदारों को लाठी लेकर जाने की आज्ञा मांग ली। लाठियों के सिरे पर लोहे के पतरे एवं तार जड़वाए गए। नान्हा सिपाही कर्नल के अपमानित बोल को सहन न कर सका। अतः उसने अपने पूरे तौर से घाव भरने से पहले ही हस्पताल से छुट्टी ले ली। अगले ही दिन वह लाठी लेकर पहरे पर चला गया। सायंकाल 25 रूसी सैनिकों की एक टोली जिनके पास अपनी राईफल, 50 गोलियां तथा संगीन प्रत्येक सैनिक के पास थीं, शराब पीकर वापस लौटते हुए सिपाही नान्हाराम के साथ छेड़छाड़ करने लगे। नान्हाराम छः फुट लम्बा तगड़ा, जोशीला वीर सैनिक था, जो अपनी पहली घटना का बदला लेने का इच्छुक था, ने एक रूसी सैनिक के सिर पर लाठी मारी जो वहीं पर ढेर हो गया। फिर बड़ी तेजी व फुर्ती से दूसरे सैनिकों पर लाठी मारना आरम्भ कर दिया। जिसको लाठी मारी, वहीं गिर पड़ा। रूसी सैनिक भयभीत होकर भाग खड़े हुए।
नान्हाराम ने उनको राईफल पर संगीन चढाने तथा गोलियां भरकर चलाने का अवसर न लेने दिया। उसने 25 सैनिकों को लाठी मार-मारकर भूमि पर गिरा दिया। इस मार से प्रत्येक की हड्डी टूट गई और गम्भीर रूप से घायल हो गए और कुछ मर भी गए। अन्तिम 25वें सिपाही को उसके रूसी कैम्प के गेट पर पहुंचने पर लाठी मारकर गिराया था। अब सिपाही नान्हाराम ने वापस आते समय उन सब 25 रूसी सैनिकों की 25 राईफलें अपने कंधों पर ले ली और अपने कैम्प में आ गया। यह रिपोर्ट जब सूबेदार-मेजर ने कर्नल साहब को दी तो वह बहुत खुश हुआ और सिपाही नान्हाराम को बड़ी शाबाशी दी तथा अपने उन अपमानित शब्दों के लिए खेद प्रकट किया। अगले दिन वहां के सब समाचार पत्रों में मोटी सुर्खी में यह सूचना छपी कि एक हिन्दुस्तानी जाट पलटन के एक जाट सैनिक ने केवल लाठी मारकर 25 रूसी सैनिकों के हथियार छीन लिये तथा उन्हें बुरी तरह घायल कर दिया। 12 देशों के सैनिक जनरल उस सिपाही नान्हाराम को निश्चित दिन पर देखने आए। 6-जाट पलटन कवायद के तौर पर पंक्ति में खड़ी हुई। पलटन के आगे कर्नल साहब और सूबेदार-मेजर के बीच में सिपाही नान्हाराम खड़े हुए। सब जनरलों तथा अन्य कमांडरों ने सिपाही नान्हाराम से हाथ मिलाकर शाबाशी दी और उसकी वीरता के गुणगान किए। वहां पर जाट पलटन के जवानों को देखकर जर्मनी के जनरल ने कहा था कि हमारे पास वीर जाट सैनिक हों तो हम संसार को जीत सकते हैं। यह सिपाही नान्हाराम दलाल की अद्वितीय वीरता थी जो संसार के इतिहास में शायद ही दूसरी ऐसी घटना हुई हो।
Genealogy in Chronological order of Kuchesar Ruling Jat House
Bhual, Maujiram, Rao Chhatar Singh, Rao Maganiram, Rao Ramdhan Singh, Rao Fateh Singh, Rao Bahadur Singh, Rao Gulab Singh, Rani Jaswant Kumari, Bhup Kumari, Khusal Singh, Pratap Singh, Umrao Singh, Giriraj Singh.
Distribution in Delhi
Distribution in Haryana
Villages in Hisar district
Villages in Faridabad district
Villages in Palwal district
Kithwari (किठवाड़ी),
Villages in Jhajjar district
Asaudha (आसौधा), Chhara (छारा), Daboda Kalan (डाबोदा कलां), Jakhodha, Mandauthi (मांडौठी), Matin (मातिन), Rewari Khera, Silothi, Tandaheddi (टांडाहेड़ी),
Villages in Rohtak district
Bharan, Chiri, Daboda, Mehndipur, Rajori,
Villages in Jind district
In Jind district,Naguran, Kheri Naguran Akalgarh, Sandeel, (Motala), and Lajwana (लजवाणा) are famous Dalal Gotra villages. An interesting story about Lajwana village is contained in Swami Omanand's book देशभक्तों के बलिदान.
Villages in Sonipat district
Mehndipur Sonipat, Poothi, Sewali,
Distribution in Rajasthan
Locations in Jaipur city
Mansarowar Colony,
Villages in Alwar district
Bhajeet, Doomera, Moonpur, Resti,
Villages in Nagaur district
Kanwalad (7),
Distribution in Uttar Pradesh
Villages in Meerut district
Chhazpur (छाजपुर), Kazamabadgoon, Uplehda (उपळैहडा), Mohiuddinpur, Samaspur Surani, Bafar,
Villages in Moradabad district
Nagla Salar, Bhainsorh (भैसौङ) , Chandpur Ganesh
Choudhary Rishiv Dalal - PRIME MINISTER
Villages in Bulandshahr district
Launga, Madona Jafrabad, Saidpur, Sega Jagatpur, Lohlara
Villages in Shamli district
Oon, Khera Gadai, Rajjhar, Bajheri,
Villages in Muzaffarnagar district
Villages in Bijnor district
Maujampur Dalal, Maheshwari Jat,
Villages in Rampur district
Distribution in Madhya Pradesh
They are found in Bhopal, Ratlam and Nimach districts in Madhya Pradesh.
Villages in Ratlam district
Villages in Ratlam district with population of this gotra are:
[[Ratlam]
References
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Parishisht-I, s.n. द-33
- ↑ B S Dahiya:Jats the Ancient Rulers (A clan study), p.237, s.n.48
- ↑ O.S.Tugania:Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu,p.44,s.n. 1191
- ↑ Jat History Thakur Deshraj/Chapter IX,p.695
- ↑ An Inquiry Into the Ethnography of Afghanistan, H. W. Bellew, p.134 ,186
- ↑ Jat Varna Mimansa (1910) by Pandit Amichandra Sharma, p.34
- ↑ Ram Swarup Joon: History of the Jats/Chapter V,p. 80
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter IX,p. 796-797
- ↑ Jat Varna Mimansa (1910) by Pandit Amichandra Sharma, p.33-34
- ↑ Jat Varna Mimansa (1910) by Pandit Amichandra Sharma, p.35
- ↑ Jat History Thakur Deshraj/Chapter VIII, p.575-579
- Thakur Deshraj's book: Jat_Itihas/Chapter_VIII (Hindi), Maharaja Suraj Mal Smarak Shiksha Sansthan, Delhi, 1934.
Back to Jat Gotras
- Pages with broken file links
- Jat Gotras
- Gotras after Persons
- Haryana
- Uttar Pradesh
- Delhi
- Rajasthan
- Madhya Pradesh
- Gotras in Bulandshahr
- Gotras in Moradabad
- Gotras in Rohtak
- Gotras in Prabudh Nagar
- Gotras in Muzaffarnagar
- Gotras in Rampur
- Gotras in Jhajjar
- Gotras in Nimach
- Gotras in Ratlam
- Gotras in Hisar
- Gotras in Jaipur
- Gotras in Nagaur
- Chauhan History
- Jat History
- Bard History
- Rajput History
- Genealogy
- Jat Gotras in Afghanistan