Vasati

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Vasati (वसाति) was an ancient republic tribe known to Panini and mentioned in Mahabharata (I.89.50), (1.94),(II.48.14),(VI.18.12),(VI.47.14), (VI.112.109), (VIII.4.36),(VIII.30.47),(VIII.51.16). They fought Mahabharata War in Kaurava's side.

Variants of name

Jat clans

Mention by Panini

Vasati (वसति), village settlement is mentioned by Panini in Ashtadhyayi. [1]


Vasati (वसाती) is mentioned by Panini in Ashtadhyayi. [2]


Mention by Panini

Vasatika (वासातिक) is mentioned by Panini in Ashtadhyayi. [3]

History

V. S. Agrawala[4] mentions Vishayas known to Panini which includes - Vasati (वसाति), under Rajanyadi (राजन्यादि) (IV.2.53).


V S Agarwal [5] writes names of some important tribes in the Ganapatha, which deserve to be mentioned as being of considerable importance. We are indebted to the Greek historians of Alexander for the information that most of these were republics. These tribes include - Vasāti (IV.2.53; Rajanyadi Gana) identified with Greek Ossadioi, settled some where in the region of confluence of the Chenab and Sutlej with the Indus.


Alexander Cunningham[6] writes that ...The country at the confluence of the Panjab rivers is assigned by Curtius to the Sambracae or Sabracae, and by Diodorus to the Sambastae. They are not mentioned by Arrian, at least under this name ; but I think that the Ossadii, who tendered their allegiance to Alexander at the confluence of the rivers, were the same people. It is probable also that the Abastani, who were subdued by Perdikkas, belonged to the same class. Perdikkas had been dispatched by Alexander to the east of the Ravi River, where he captured a town which I have identified with Harapa. I infer that his campaign must have been an extended one, as Alexander, whose own movements had been delayed by his wound, was still obliged to halt for him at the confluence of the rivers.


Tej Ram Sharma[7] writes that In the post-paninian period, distinction between Janapada and visaya was lost, both being called by the same names, for example Angah, Vangah, Sumhah, and Pundrah. In some Jana- padas like Rajanya, the distinction was retained, as Rajanyaka denoted a visaya and Rajanyah, the Janapada of the Rajanya tribe. Similarly we have Vasatah, Vasatayah ; Gandharah, Gandharayah ; and Saibah, Sibiyah. Other smaller units were only visayas or estates like Bailvavanaka, Atmakameyaka, Bhaurikavidha and Aisukari-bhakta. [8]

Jat History

  • Dagar/Dagor (Jat clan) - Pliny first mentions this Jat clan in Central Asia as 'Tagoras' who went westwards with the Yue-che hordes in second century B.C. Maencheu Helfen identifies them with the Asis and the Tokhars.[12] S.P. Tolstov identifies the Turkish tribe Duker, with the Tokhars. Digor is also mentioned as one of the four tribes of the Ossets (Vasati of Indian works). They called their country on the Urukh river and its tributaries as Digor, or Digur, which name appears in the Geography of Moses, of Khorene as As-Digor. These Digors were the ancestors of the Dagar Jats. P.C. Bagchi believes the Dogar and Tukhars were one and the same.[13] The ruling family of Orchha- Tikamgarh, was called Digora.[14]

Genealogy of Vasati

Ancestry of Kuru as per Bhagavata Purana

Vasati (वसाति) was a Chandravanshi King and son of Janamejaya. It was also used for one of The Mahabharata Tribes.

वशाति

वशाति = बसाति (AS, p.837): वशाति अथवा 'बसाति' नामक एक प्राचीन स्थान का उल्लेख महाभारत, उद्योगपर्व में हुआ है- 'वशातयः शाल्वक: केकयाश्च तथाम्बष्ठा ये त्रिगर्ताश्च मुख्याः।' महाभारत, उद्योगपर्व 30, 23. महाभारत, सभापर्व 51, दाक्षिणात्यपाठ में भी 'वशाति' या 'वसाति' निवासियों का उल्लेख पांडवों के राजसूय यज्ञ में उपायान लेकर उपस्थित होने वाले लोगों के संबंध में है- 'शैव्यो वसादिभः सार्ध त्रिगार्तोमालर्वः सह।' वशाति जनपद का अभिज्ञान हिमाचल प्रदेश में स्थित 'सीबी' से किया गया है। इस तथ्य की पुष्टि उपर्युक्त उद्धरण में प्रदेश के अन्य पार्श्ववर्ती जनपदों के उल्लेख से होती है।[15]

क्षत्रिय गणराज्य

विजयेन्द्र कुमार माथुर[16] ने लेख किया है ...क्षत्रिय गणराज्य (AS, p.249) 300 ई. पू. के लगभग पंजाब (वाहीक) का एक गणराज्य था। इस गणराज्य का उल्लेख अलक्षेंद्र (सिकन्दर) के इतिहास लेखकों ने भी किया है। इस राज्य का नाम क्षत्रिय नामक जाति के यहाँ बसने के कारण हुआ था। मेक्क्रिंडल के अनुसार इस जाति का नाम 'क्षत्र' था। इसे 'मनुस्मृति' में हीन जाति माना गया है। ( इन्वेजन ऑव अलेक्ज़ेंडर, पृ. 156) इतिहासकार हेमचन्द्र राय चौधरी के मत में इस जाति का मूल स्थान चिनाव-रावी के संगम के पास रहा होगा। (पोलिटिकल हिस्ट्री ऑव ऐंशेंट इंडिया-पृ. 207) यूनानी लेखकों ने इस जाति के नाम का उच्चारण 'जथरोई' लिखा है। पाणिनि ने भी क्षत्रिय गणराज्य का उल्लेख किया है। महाभारत, भीष्मपर्व 51, 14 और 106, 8 में उल्लिखित 'वशाति' शायद इसी गण से संबद्ध थे।

वसाति या वैस (नागवंश) का इतिहास

दलीप सिंह अहलावत[17] लिखते हैं कि भोगवतीपुरी का शासक नागराज वासुकि नामक सम्राट् था। यह वसाति या वैस गोत्र का था जो कि जाट गोत्र है। इस वंश का राज्य वसाति जनपद पर भी था जो रामायणकाल में पूरी शक्ति पर था। इस वंश का वैभव महाभारतकाल में और भी चमका। द्रोण पर्व में कई स्थानों पर वसाति क्षत्रियों का वर्णन है जिस से यह प्रमाणित है कि ये भी महाभारत युद्ध में सम्मिलित हुये थे1। कुछ लेखकों को वसाति के अपभ्रंश शब्द वैस से वैश्य (बनिया) का भ्रम हो गया है। कनिंघम और मिश्रबन्धु द्वारा ऐसे लेखकों का खण्डन किया गया है। (जाटों का उत्कर्ष पृ० 319, लेखक योगेन्द्रपाल शास्त्री, जाट इतिहास उर्दू पृ० 355, लेखक ठा० संसारसिंह)। राहुल सांकृत्यायन ने अपनी पुस्तक ‘वोल्गा से गंगा’ पृ० 243 पर लिखा है कि “हर्षवर्धन का वंश वैस है जो कि क्षत्रिय वंश है। यह वंश वैश्य बनिया नहीं।”

पाठकों को ज्ञात होना चाहिए कि वैश्य (बनिया-महाजन) समाज में वैस नामक कोई गोत्र नहीं है। होशियारपुर (पंजाब) के समीप श्रीमालपुर प्राचीन काल से वसाति क्षत्रियों का निवास स्थान है। यहां का पुष्पपति नामक पुरुष अपने कुछ साथियों सहित श्रीमालपुर से चलकर कुरुक्षेत्र में आया और यहां श्रीकण्ठ (थानेश्वर बसाकर इसके चारों ओर के प्रदेश का राजा बन गया। यह शैव धर्म का कट्टर अनुयायी था। इसका पुत्र नरवर्द्धन 505 ई० में सिंहासन पर बैठा। इस के पुत्र राज्यवर्द्धन और आदित्यवर्द्धन पहले गुप्तों के सामन्त (जागीरदार) थे और बाद में थानेश्वर के महाराजा हुए। आदित्यवर्द्धन की महारानी महासेनगुप्ता नामक गुप्तवंश की कन्या थी। इससे


1. वसाति क्षत्रिय महाभारत युद्ध में कौरवों की तरफ से लड़े थे। (द्रोण पर्व व भीष्म पर्व 51वां अध्याय)।


जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-243


पुत्र प्रभाकरवर्द्धन की उत्पत्ति हुई। ए० स्मिथ के लेख अनुसार प्रभाकरवर्द्धन की यह माता गुप्तवंश (धारण जाट गोत्र) की थी जिसने अपने पुत्र में उच्चाकांक्षाएं उत्पन्न कीं और उनकी पूर्ति में यथाशक्ति सहायता दी।

पुष्पभूति वंश का पहला महान् शासक प्रभाकरवर्द्धन था। राज्यकवि बाणभट्ट की प्रांजल भाषा में यह प्रभाकरवर्द्धन - “हूणरूपी हरिण के लिए सिंह, सिंधुदेश के राजा के लिए ज्वर, गुर्जरों की नींद नष्ट करने वाला, गांधारराजा रूपी हाथी के लिए कूट हस्तिज्वर, लाटों (गुजरात) की चतुरता को हरण करने वाला और मालव देश की लता रूपी लक्ष्मी के लिए कुठार (फरसा) था।” उसने हूणों को पराजित किया तथा सिंधु, उत्तरी गुजरात आदि को अपने अधीन किया। यह होते हुए भी उसने उन विजित राज्यों को छीना नहीं।

प्रभाकरवर्द्धन की रानी यशोमती से राज्यवर्द्धन का जन्म हुआ। उसके चार वर्ष बाद पुत्री राजश्री और उसके दो वर्ष बाद 4 जून 590 ई० को हर्षवर्द्धन का शुभ जन्म हुआ। राज्यश्री का विवाह मौखरीवंशी1 (जाट गोत्र) कन्नौज नरेश ग्रहवर्मा के साथ हुआ था। किन्तु मालवा और मध्य बंगाल के गुप्त शासकों ने ग्रहवर्मा को मारकर राज्यश्री को कन्नौज में ही बन्दी बना दिया। इनमें मालवा का गुप्तवंश का राजा देवगुप्त था और मध्य बंगाल का गुप्तवंश का राजा शशांक था जो दोनों ही धारण2 गोत्री जाट शासक थे। थानेश्वर में यह सूचना उस समय मिली जबकि सम्राट् प्रभाकरवर्द्धन की मृत्यु सन् 605 ई० में हुई थी, जिस के कारण शोक की घटाएं छाई हुईं थीं। इसके बाद उसके बड़े पुत्र राज्यवर्द्धन ने राजगद्दी सम्भाली। उसने 10 हजार सेना के साथ मालवा पर आक्रमण करके देवगुप्त का वध कर दिया। फिर वहां से बंगाल पर आक्रमण करने के लिए वहां पहुंच गया। परन्तु मध्यबंगाल में गौड़ जनपद के गुप्तवंशी (धारण जाट गोत्र) राजा शशांक ने अपनी पुत्री के साथ राज्यवर्द्धन का विवाह कर देने का वचन देकर विश्वास प्राप्त कर लिया और अपने महलों में बुलाकर राज्यवर्द्धन का वध कर दिया। ---

1, 2. जाट इतिहास उर्दू पृ० 356 लेखक ठा० संसारसिंह।

हर्षवर्धन (606-647 ई०)

यह राज्यवर्द्धन की मृत्यु के पश्चात् 606 ई० में विद्वानों के कहने पर 16 वर्ष की आयु में राजसिंहासन पर बैठा। यह बड़ा वीर योद्धा एवं साहसी था। इस समय उसके सामने सबसे बड़ी समस्या अपने बहिन राज्यश्री को मुक्त कराने तथा शशांक से अपने भाई की मृत्यु का बदला लेना था। इसके लिए वह एक विशाल सेना लेकर चल पड़ा। उसे ज्ञात हुआ कि राज्यश्री शत्रुओं के चंगुल से मुक्त होकर विन्ध्या के वनों में चली गई है। सौभाग्य से उसे राज्यश्री मिल गयी जो उस समय चिता में सती होने की तैयारी कर रही थी। हर्षवर्धन उसे घर ले आया। ग्रहवर्मन का कोई उत्तराधिकारी न होने के कारण हर्ष ने कन्नौज के राज्य को अपने राज्य में मिला लिया और इसको अपनी राजधानी बनाया।

हर्ष की विजय -

ह्यूनसांग के वृत्तान्त तथा बाण के हर्षचरित से उसके निम्नलिखित युद्धों एवं विजयों का ब्यौरा मिलता है -


1, 2. जाट इतिहास उर्दू पृ० 356 लेखक ठा० संसारसिंह।


जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-244


  1. बंगाल के राजा शशांक को युद्ध में हराया और उसके प्रदेश को अपने राज्य में मिला लिया।
  2. पांच प्रदेशों की विजय - 606 ई० से 612 ई० तक हर्ष ने पंजाब, कन्नौज, बंगाल, बिहार और उड़ीसा को युद्ध करके जीत लिया। इन विजयों से इसका राज्य लगभग समस्त उत्तरी भारत में विस्तृत हो गया।
  3. बल्लभी अथवा गुजरात की विजय - हर्ष के समय ध्रुवसेन द्वितीय (बालान गोत्र का जाट) बल्लभी अथवा गुजरात का राजा था। हर्ष ने उस पर आक्रमण करके उसको पराजित किया परन्तु अन्त में दोनों में मैत्री-सम्बन्ध स्थापित हो गये। हर्ष ने प्रसन्न होकर अपनी पुत्री का विवाह उससे कर दिया।
  4. पुलकेशिन द्वितीय (अहलावत जाट) से युद्ध - ह्यूनसांग लिखता है कि “हर्ष ने एक शक्तिशाली विशाल सेना सहित इस सम्राट् के विरुद्ध चढाई की परन्तु पुलकेशिन ने नर्वदा तट पर हर्ष को बुरी तरह पराजित किया। यह हर्ष के जीवन की पहली तथा अन्तिम पराजय थी। उसके साम्राज्य की दक्षिणी सीमा नर्वदा नदी तक ही सीमित रह गई। इस शानदार विजय से पुलकेशिन द्वितीय की प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई और उसने ‘परमेश्वर’ की उपाधि धारण की। यह युद्ध 620 ई० में हुआ था।”

हर्ष ने सिंध, कश्मीर, नेपाल, कामरूप (असम) और गंजम प्रदेशों को जीत लिया था। इन विजयों के फलस्वरूप सारा उत्तरी भारत हिमालय से लेकर दक्षिण में नर्वदा नदी तक तथा पूर्व में असम से लेकर पश्चिम में सिंध, पंजाब एवं बल्लभी अथवा गुजरात तक हर्ष के अधीन आ गये। उसके साम्राज्य में बंगाल, बिहार, उड़ीसा, मालवा, बल्लभी, कन्नौज, थानेश्वर और पूर्वी पंजाब के प्रदेश शामिल थे। राहुल सांकृत्यायन अपनी पुस्तक ‘वोल्गा से गंगा’ पृ० 242-43 पर लिखते हैं कि “सम्राट् हर्षवर्धन की एक महाश्वेता नामक रानी पारसीक (फारस-ईरान) के बादशाह नौशेखाँ की पोती थी और दूसरी कादम्बरी नामक रानी सौराष्ट्र की थी।”

हर्ष एक सफल विजेता ही नहीं बल्कि एक राजनीतिज्ञ भी था। उसने चीन तथा फारस से राजनीतिक सम्बन्ध स्थापित कर रखे थे। हर्ष एक महान् साम्राज्य-निर्माता, महान् विद्वान् व साहित्यकार था। इसकी तुलना अशोक, समुद्रगुप्त तथा अकबर जैसे महान् शासकों से की जाती है। हर्षवर्धन की इस महत्ता का कारण केवल उसके महान् कार्य ही नहीं हैं वरन् उसका उच्च तथा श्रेष्ठ चरित्र भी है। हर्ष आरम्भ में शिव का उपासक था और बाद में बौद्ध धर्म का अनुयायी बन गया था। इसकी कन्नौज की सभा एवं प्रयाग की सभा बड़ी प्रसिद्ध है। हर्ष हर पांचवें वर्ष प्रयाग अथवा इलाहाबाद में एक सभा का आयोजन करता था। सन् 643 ई० में बुलाई गई सभा में ह्यूनसांग ने भी भाग लिया था। इस सभा में पांच लाख लोगों तथा 20 राजाओं ने भाग लिया। इस सभा में जैन, बौद्ध और ब्राह्मण तथा सभी सम्प्रदायों को दान दिया गया। यह सभा 75 दिन तक चलती रही। इस अवसर पर हर्ष ने पांच वर्षों में एकत्रित किया सारा धन दान में दे दिया, यहां तक कि उसके पास अपने वस्त्र भी न रहे। उसने अपनी बहिन राज्यश्री से एक पुराना वस्त्र लेकर पहना। चीनी यात्री ह्यूनसांग 15 वर्ष तक भारतवर्ष में रहा। वह 8 वर्ष हर्ष के साथ रहा। उसकी


जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-245


पुस्तक सि-यू-की हर्ष के राज्यकाल को जानने का एक अमूल्य स्रोत है।

हर्षवर्धन ने विशाल हरयाणा सर्वखाप पंचायत की स्थापना की। इसका वर्णन उचित स्थान पर किया जायेगा। इसके लेख प्रमाण चौ० कबूलसिंह मन्त्री सर्वखाप पंचायत गांव शोरम जि० मुजफ्फरनगर के घर में हैं। सन् 647 ई० में इस प्रतापी सम्राट हर्षवर्धन का निस्सन्तान स्वर्गवास हो गया और उसका साम्राज्य विनष्ट हो गया।

इनसे मिलने के लिये आने वाला वंगहुएंत्से के नेतृत्व में चीनी राजदूतदल मार्ग में ही था कि उत्तराधिकारी विहीन वैस साम्राज्य पर ब्राह्मण सेनापति अर्जुन ने अधिकार करने के लिए प्रयत्न प्रारम्भ कर दिया किन्तु वंगहुएंत्से ने तिब्बत की सहायता से अर्जुन को बन्दी बनाकर चीन भेज दिया।

सम्राट् हर्षवर्धन के वंशधरों की सत्ता कन्नौज से समाप्त होने के पश्चात् डूंडिया खेड़ा में स्थिर हुई। वहां प्रजातन्त्री रूप से इनकी स्थिति सन् 1857 ई० तक सुदृढ़ रही। दशवीं शताब्दी में अवध में सत्ताप्राप्त वैस लोगों ने अपने आप को राजपूत घोषित कर दिया। इन लोगों से अवध का रायबरेली जिला भरा हुआ है। जनपद के रूप में इनका वह प्रदेश वैसवाड़ा के नाम पर प्रसिद्ध है। वैस वंशियों की सुप्रसिद्ध रियासत डूंडिया खेड़ा को अंग्रेजों ने इनकी स्वातन्त्र्यप्रियता से क्रुद्ध होकर ध्वस्त करा दिया था। इसके बाद वैसवंश का महान् पुरुष सर राजा रामपालसिंह कुर्री सुदौली नरेश था। कुर्री सुदौली के अतिरिक्त फर्रूखाबाद के 80 गांव, जि० सीतापुर, लखनऊ, बांदा, फतेहपुर, बदायूँ, बुलन्दशहर, हरदोई और मुरादाबाद के कई-कई गांव राजपूत वैसों के हैं। पंजाब में वैसों की संख्या अवध से भी अधिक है जो कि सिक्खधर्मी हैं। श्रीमालपुर जो हर्ष के पूर्वजों का निवासस्थान है और उसके समीप 12 बड़े गांव जाटसिक्ख वैसों के हैं। जालन्धर, होशियारपुर, लुधियाना जिलों में जाटसिक्ख वैसों के कई गांव हैं। फगवाड़ा से 7 मील दूर वैसला गांव से हरयाणा और यू० पी० के वैस जाटों का निकास माना जाता है। लुधियाना की समराला तहसील मुसकाबाद, टपरिया, गुड़गांव में दयालपुर, हिसार में खेहर, लाथल, मेरठ में बहलोलपुर, विगास, गुवांदा और बुलन्दशहर में सलेमपुर गांव वैस जाटों के हैं। यह सलेमपुर गांव सलीम (जहांगीर) की ओर से इस वंश को दिया गया था। फलतः 1857 ई० में इस गांव के वैसवंशज जाटों ने सम्राट् बहादुरशाह के समर्थन में अंग्रेजों के विरुद्ध भारी युद्ध किया। अंग्रेजों ने इस गांव की रियासत को तोपों से ध्वस्त करा दिया। बिहार के आरा जिले के विशनपुरा के वैस प्रान्तभर में प्रसिद्धि प्राप्त हैं। छपरा में भी कुछ गांव वैस राजपूतों के हैं।


In Mahabharata

Vasati (वसाति) has been mentioned at various places in Mahabharata (I.89.50), (II.48.14),(VI.18.12),(VI.47.14), (VI.112.109), (VIII.4.36),(VIII.30.47),(VIII.51.16),


Adi Parva, Mahabharata/Mahabharata Book I Chapter 89 gives us the History of Puru and Pandavas (Aila dynasty). In the Genealogy of Puru we find Vasati is mentioned in verse (I.89.50)......And unto Parikshit were born sons who were all acquainted with (the secrets of) religion and profit.[18] And they were named Kakshasena and Ugrasena, and Chitrasena endued with great energy, and Indrasena and Sushena and Bhimasena. [19]And the sons of Janamejaya were all endued with great strength and became celebrated all over the world. And they were Dhritarashtra who was the eldest, and Pandu and Valhika,[20] and Nishadha endued with great energy, and then the mighty Jamvunada, and then Kundodara and Padati and then Vasati (I.89.50) the eighth. And they were all proficient in morality and profit and were kind to all creatures. [21]Among them Dhritarashtra became king.[22]

Samvarana (m.Tapati)→ Kuru (m.Vahini) → JanamejayaDhritarashtra (who was the eldest) + Pandu + Valhika + Nishadha + Jamvunada, + Kundodara + Padati + Vasati.


Sabha Parva, Mahabharata/Book II Chapter 48 describes Kings who presented tributes to Yudhishthira. Vasati (वसाति) figures in the tribute list in verse Mahabharata (II.48.14). [23]


Bhisma Parva, Mahabharata/Book VI Chapter 18 mentions The large armies of the Kurus and the Pandavas ready for war. The Vasati (VI.18.12) were protecting Bhishma fighting for Kauravas along with Shibis. [24]


Bhisma Parva, Mahabharata/Book VI Chapter 47 describes immeasurable heroes assembled for battle. Vasati are mentioned in verse (VI.47.14) along with Shibis....."And the Gandharas, the Sindhu-Sauviras, the Shivis and the Vasatis with all their combatants also, (followed) Bhishma, that ornament of battle, and Sakuni, with all his troops protected the son of Bharadwaja". [25]

They sided with the Kauravas and came from the Mula pass in Baluchistan or somewhere in Makran.


Bhisma Parva, Mahabharata/Book VI Chapter 112 mentions tribes in war: Vasatis are mentioned in verse (VI.112.109) along with Shibis. [26]


Karna Parva/Mahabharata Book VIII Chapter 4 tells us about the Warriors who are dead amongst the Kurus and the Pandavas after ten days. Malavas have been mentioned in verse (VIII.4.36)....."The Vasatis, numbering 2,000, effectual smiters of all, as also the Surasenas endued with prowess, have all been slain in battle.[27]


Karna Parva/Mahabharata Book VIII Chapter 30 gives description blaming the Vahikas and Madrakas. ...."The regions are called by the name of Arattas. The people residing there are called the Vahikas. the Vasatis, the Sindhus and the Sauviras are almost as blamable in their practices." [28]


Karna Parva/Mahabharata Book VIII Chapter 51 describes terrible massacre on seventeenth day of Mahabharata War. Vasatis along with Varatyas have been mentioned in verse (VIII.51.16)..... "Large bodies of combatants of diverse Kshatriya clans, such as the Govasas, the Dasameyas, the Vasatis, and the Varatyas, the Vatadhanas, and the Bhojas that are very sensitive of their honour, have met with destruction. [29]

Distribution

See Basati/Bisati clan history

Notable persons

References

  1. V. S. Agrawala: India as Known to Panini, 1953, p.141
  2. V. S. Agrawala: India as Known to Panini, 1953, p.36, 453
  3. V. S. Agrawala: India as Known to Panini, 1953, p.36
  4. V. S. Agrawala: India as Known to Panini, 1953, p.499
  5. V S Agarwal, India as Known to Panini,p.453
  6. The Ancient Geography of India/Multan,pp.244
  7. Personal and geographical names in the Gupta inscriptions/Place-Names and their Suffixes, p.214
  8. V.S. Agrawala, India as Known to Panini, p. 498
  9. Mahendra Singh Arya et al: Adhunik Jat Itihas, p. 268
  10. Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter III,p.242
  11. Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter III,p.243
  12. Vol. I, p. 171.
  13. Indian History Congress, 1943, p. 36.
  14. EI, XXX, part III, p. 89.
  15. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.837
  16. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.249
  17. जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठ.243-246
  18. जनमेजयादयः सप्त तथैवान्ये महाबलाः, परिक्षितॊ ऽभवन पुत्राः सर्वे धर्मार्थकॊविदाः (I.89.47)
  19. कक्षसेनॊग्र सेनौ च चित्रसेनश च वीर्यवान, इन्द्रसेनः सुषेणश च भीमसेनश च नामतः (I.89.48)
  20. जनमेजयस्य तनया भुवि खयाता महाबलाः, धृतराष्ट्रः परथमजः पाण्डुर बाह्लीक एव च (I.89.49)
  21. निषधश च महातेजास तथा जाम्बूनदॊ बली, कुण्डॊदरः पदातिश च वसातिश चाष्टमः समृतः, सर्वे धर्मार्थकुशलाः सर्वे भूतिहिते रताः (I.89.50)
  22. धृतराष्ट्रॊ ऽथ राजासीत तस्य पुत्रॊ ऽथ कुण्डिकः (I.89.50)
  23. अम्बष्ठाः कौकुरास तार्क्ष्या वस्त्रपाः पह्लवैः सह, वसातयःमौलेयाः सह क्षुद्रकमालवैः (II.48.14)
  24. रदा विंशतिसाहस्रास तदैषाम अनुयायिनः, अभीषाहाः शूरसेनाः शिबयॊ ऽद वसातयः (VI.18.12)
  25. गान्धाराः सिन्धुसौवीराः शिबयॊ ऽद वसातयः, शकुनिश च सवसैन्येन भारथ्वाजम अपालयत (VI.47.14)
  26. बाह्लिका थरथाश चैव पराच्यॊथीच्याश च मालवाः, अभीषाहाः शूरसेनाः शिबयॊ ऽद वसातयः (VI.112.109)
  27. वसातयॊ महाराज द्विसाहस्राः परहारिणः, शूरसेनाश च विक्रान्ताः सर्वे युधि निपातिताः (VIII.4.36)
  28. आरट्टा नाम ते थेशा बाह्लीका नाम ते जनाः, वसाति सिन्धुसौवीरा इति परायॊ विकुत्सिताः (VIII.30.47)
  29. गॊवास दासम ईयानां वसातीनां च भारत, वरात्यानां वाटधानानां भॊजानां चापि मानिनाम (VIII.51.16)

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