Jat Jan Sewak/Sikarwati
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पुस्तक: रियासती भारत के जाट जन सेवक, 1949, पृष्ठ: 580
संपादक: ठाकुर देशराज, प्रकाशक: त्रिवेणी प्रकाशन गृह, जघीना, भरतपुर
सीकर आंदोलन पर प्रकाश
सीकर ठिकानेदार - [पृ.221]: जयपुर से लगभग 60 मील के फैसले पर उत्तर पश्चिम में सीकर नगर अवस्थित है। इस ठिकाने में लगभग 500 गांव हैं। ठिकानेदार को राव राजा की पुश्तैनी उपाधि है और अपने ठिकाने में न्याय और व्यवस्था के लिए फर्स्ट क्लास मजिस्ट्रेट के अधिकार प्राप्त हैं। ठिकाना अपने लिए एक राज्य मानता चला रहा है इसलिए यह फौज, पुलिस, जेल और न्याय का महकमा भी अपना रखा है। जयपुर ने भी उसे ताजिमी सरदार और कर दिहिंदा मातहत राज्य की जैसी आजादी दे रखी है। अंग्रेज हकीमों के आने तक जयपुर में उसके और अपने अधिकारों के निर्णय के बारे में कभी सोचा तक भी नहीं था। सन् 1934 से पहले यहां किसानों से लगान के अलावा वे सभी लागें ली जाती थी जो शेखावाटी के दूसरे बड़े ठिकानों में ली जाती थी।
ठिकाने के अंतर्गत और भी छोटे छोटे जागीरदार थे जो भोमिया, वाढ़दार और ठिकानेदारों के नाम से ही मशहूर थे और अब (सन् 1948 तक) हैं।
सीकर और उसके मातहत सभी ठिकानों में लगान उगाही के वही तरीके थे जो शेखावाटी में हैं।
[पृ.222]: आतंक शेखावाटी के ठिकानों की अपेक्षा सीकर में अधिक था फिर भी यहां के किसानों ने अपना दुखड़ा न रोया हो ऐसी बात नहीं। सीकर में वे टोल के टोल आकर अपनी शख्तियों को बयान करते थे और सीकर से निराश होने पर ही जयपुर पहुंचते थे। सब जगह से निराश होने पर ही उन्होंने आंदोलन आरंभ किया था।
सीकर के जाट किसानों का आंदोलन सन् 1934 के तरीकों में भले ही नया था किंतु यह नहीं कहा जा सकता कि 1934 में जो वे चाहते थे इससे पहले नहीं चाहते थे। उन्होंने सन् 1925 के आसपास चौधरी राम नारायण जी के सहयोग से आगे आने की कोशिश की थी किंतु चौधरी राम नारायण जी को जयपुर राज्य से बाहर निकाल दिया गया इसलिए उनके पास फिर वही दरख्वास्तें देने का मार्ग शेष रह गया था। उन्होंने निरंतर बढ़ने वाले लगान, उसकी उगाए की शख्तियां और लाल बाग के गैरकानूनीपन पर बराबर जयपुर और सीकर के अधिकारियों के दरवाजे खटखटातये, गलियों की खाक छानी और धर्मशाला के फ़र्शों पर लेट लगाए किंतु कभी भी उनकी सुनवाई नहीं हुई।
सीकर के ठिकानेदार ने परवाह नहीं की और वह अपनी नालायक मुलाजिमों और मातहत ठिकानों के जुल्मी हाथों में उनकी दया पर छोड़ दिए गए।
अत्याचारों के सहते-सहते लोगों की आत्मा मर जाती है। उनका स्वाभिमान समाप्त हो जाता है। जातीय प्रेम लुप्त हो जाता है। ऐसा दशा किसी जाति की होने लगे तो समझ लो उसका नाश नजदीक है।
सीकर किसान आंदोलन की शुरुआत : सीकर में करीब करीब यही दशा थी। सन् 1931 के अक्टूबर महीने में जाट महासभा का
[पृ.223]: डेपुटेशन झूंझावाटी का दौरा करके सीकर में घुसा तो उसका प्रथम मुकाम कूदन में हुआ। डेपुटेशन में ठाकुर झम्मन सिंह जी एडवोकेट मंत्री जाट महासभा, ठाकुर देशराज जी मंत्री राजस्थान जाट सभा और महासभा के दोनों उपदेश ठाकुर भोला सिंह और हुकुम सिंह थे। गांव के किसी प्रतिष्ठित आदमी ने उनकी बात तक नहीं सुनी। यदि उस समय वहां मास्टर चंद्रभान सिंह जी (अध्यापक कार्य पर) न होते तो रात को ठहरना भी मुश्किल हो जाता। यह हालत थी उस समय सीकर के जाटों की हिम्मत और जाति प्रेम की।
हां उस समय भी एक जाट घराना सीकर में शेर की भांति ही निर्भर था वह था चौधरी रामबक्स जी भूकर, गोठड़ा का। चौधरी रामबक्स जी के लड़के चौधरी पृथ्वी सिंह को उस समय का सीकर का सिंह शावक कहें तो कुछ भी अयुक्ति नहीं होगी। उसके दिल में एक तिलमिलाहट थी और वह जल्द से जल्द अपनी कौम को बंधन मुक्त कराने की उत्कंठा में था। वही सिंह शावक अपने दूसरे साथियों श्री हरदेव सिंह पलथाना आदि के साथ झुंझुनू के महान जाट महोत्सव में पहुंचा और तमाम बाहरी जाट लीडर को उसने अपने इलाके के जाटों की दयनीय स्थिति से परिचित कराया।
जयपुर ने सीकर को आंतरिक अमन बनाये रखने की आजादी दे रखी थी। इसलिए यह सीकर का अपना आंतरिक मामला था कि कोई सभा-सोसाइटी अपने यहाँ होने दे या नहीं।
एक बार ठाकुर भोला सिंह जी महोपदेशक जाट महासभा सीकर में जा पहुंचे। CID ने पुलिस में इतला दी और पुलिस ने बैरंग उन्हें सीकर से वापस कर दिया। अतः यह एकदम कठिन था कि वहां जाट महासभा या उसकी किसी
[पृ.224]: शाखा सभा का वहां अधिवेशन हो जाने दिया जाता या प्रचारको को प्रचार की आजादी रहती।
ऐसी कठिन परिस्थितियों में वहां जलसा करना था। यह वचन ठाकुर देशराज, कुँवर पृथ्वी सिंह जी को दे चुके थे।
पलथना में मीटिंग: बहुत सोचने विचारने के बाद उनके दिमाग में सीकर में एक यज्ञ कराने की आई और इसी उद्देश्य को लेकर उन्होंने सन् 1933 के अक्टूबर महीने में पलथना में एक मीटिंग बुलाई। इस मीटिंग में सीकर के 500 गांवों में से एक एक आदमी बुलाया गया लेकिन 5,000 आदमी इकट्ठे हुए। मीटिंग को भंग करने के लिए सीकर की पुलिस दल बल सहित मौके पर पहुंची किंतु मीटिंग सफल हुई और वक्ताओं के ओजस्वी भाषण से लोगों में जीवन की लहर पैदा कर दी। इस समय तक कुँवर पन्ने सिंह जी मर चुके थे। उनके बड़े भाई कुंवर भूर सिंह, चौधरी घासी राम, सरदार हरलाल सिंह, चौधरी रामसिंह कुँवरपुरा आदि सभी प्रतिष्ठित कार्यकर्ता शामिल हुए। मा. रतन सिंह जी बीए जो उस समय पिलानी में अध्यापक थे उनका भी भाषण हुआ।
इसी दिन सीकर बसंत पर जाट प्रजापति महायज्ञ करने का एलान किया गया और उसके लिए तय हुआ कि हर घर से घी व पैसा उगाया या जाए। श्री मास्टर चंद्रभान जी को यज्ञ कमेटी का मंत्री और चौधरी हरू सिंह जी पलथाना को अध्यक्ष चुना गया। श्री देवी सिंह बोचल्य और ठाकुर हुकुम सिंह, भोला सिंह जी को प्रचार विभाग सौंपा गया।
डेपुटेशन उपदेशकों के गांवों में पहुंचने से सीकर के कर्मचारियों के कान खड़े हुए और उन्होंने छेड़खानी आरंभ कर दी। तारीख 6 दिसंबर 1932 को जबकि नेछूआ तहसील के सिगड़ोला गांव में प्रचार हो रहा था, रात के समय लावर्दीखां
[पृ.225]: नाम का सवार तहसील की ओर से पहुंचा और ठाकुर हुकुम सिंह जी उपदेशक महासभा को पकड़ ले गया और तहसील में ले जाकर रात भर के लिए काठ में दे दिया। दूसरे दिन काफी डरा धमका कर उन्हें छोड़ दिया गया।
इसके विरोध में ठाकुर देशराज जी मंत्री राजस्थान आदेशिक जाटसभा ने राव राजा साहब सीकर को एक पत्र भेजा और मांग की कि लावर्दी खां को उसके गैरकानूनी कृत्य पर दंड दिया जाए किंतु ठिकाने ने उस पत्र का कोई उत्तर तक नहीं दिया।
जाट महायज्ञ की प्रबंधकारिणी का आफिस पहले तो पलथना, पोस्ट लक्ष्मणगढ़ में रहा इसके बाद दिसंबर के आरंभ में सीकर में आ गया और वहीं से कार्य संचालन होने लगा।
यज्ञ की प्रबंधकारिणी की ओर से एक डेपुटेशन जयपुर के अधिकारियों को यज्ञ में शामिल होने के लिए 13 दिसंबर को जयपुर पहुंचा। जयपुर पुलिस के आईजी एफ़.एस. यंग ने यज्ञ में आना स्वीकार कर लिया। किंतु वहां राजनीतिक चर्चा न होने देने के लिए भी आदेश दिया। इसके बाद सीकर के अधिकारियों ने यज्ञ के लिए इजाजत मांगने के लिए जोर देना शुरु किया किंतु यज्ञ कमेटी के अधिकारियों ने साफ कह दिया है कि यह धार्मिक कृत्य है इसके लिए इजाजत की आवश्यकता नहीं है। सीकर के अधिकारी दुविधा में पड़े, यज्ञ को बंद कराकर बदनामी का ठीकरा अपने माथे नहीं लेना चाहते थे किंतु यज्ञ को होने देना भी नहीं चाहते थे। उन्होंने लोगों को डराना, धमकाना
[पृ 226]: और काठ में देना और पीटना आरंभ किया किंतु जाट लोग अपने निश्चय से नहीं डिगे।
दिसंबर के आखिर में रायबहादुर चौधरी सर छोटूराम जी भी यज्ञ के काम को सफल बनाने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करने सीकर पधारे। इसके बाद तो लोगों ने चौगुनी उत्साह से काम करना आरंभ कर दिया।
गांवों में दिल खोलकर लोगों ने घी और रुपया दिए। सोचा यह गया कि पंडित मदन मोहन मालवीय से यज्ञ का उद्घाटन कराया जाए। इसके लिए ठाकुर देशराज जी बनारस गए और वहां पंडित जी से मिलकर यज्ञ के संबंध में बातें की। जाटों के प्रति मालवीय जी का जो प्रेम था उसे प्रकट करते हुए मालवीयजी ने “ यदि उन्हीं दिनों वायसराय हिंदू विश्वविद्यालय में ना आए तो” शब्दों में आने का वादा किया।
जनवरी 1934 के बसंती दिनों में सीकर के आर्य महाविद्यालय के कर्मचारियों द्वारा यज्ञ आरंभ हुआ। उन दिनों यज्ञ भूमि एक ऋषि उपनिवेश सी जांच रही थी। बाहर से आने वालों के 100 तम्बू और और छोलदारियाँ थी और स्थानीय लोगों के लिए फूस की झोपड़ियों की छावनी बनाई।
20000 आदमी के बैठने के लिए पंडाल बनाया गया था जिसकी रचना चातुरी में श्रेय नेतराम सिंह जी गोरीर और चौधरी पन्ने सिंह जी बाटड़, बाटड़ नाऊ को है।
यज्ञ स्थल 100 गज चौड़ी और 100 गज लंबी भूमि में बनाया गया था जिसमें चार यज्ञ कुंड चारों कोनों पर और एक बीच में था। चारों यज्ञ कुंड ऊपर यज्ञोपवीत संस्कार होते थे और बीच के यज्ञ कुंड पर कभी भी न बंद होने वाला यज्ञ।
[पृ.227]: 25 मन घी और 100 मन हवन सामग्री खर्च हुई। 3000 स्त्री पुरुष यज्ञोपवीत धारण किए हुये थे।
यज्ञ पति थे आंगई के राजर्षि कुंवर हुकुम सिंह जी और यज्ञमान थे कूदन के देवतास्वरुप चौधरी कालूराम जी। ब्रह्मा का कृत्य आर्य जाति के प्रसिद्ध पंडित श्री जगदेव जी शास्त्री द्वारा संपन्न हुआ था। यह यज्ञ 10 दिन तक चला था। एक लाख के करीब आदमी इसमें शामिल हुए थे। इस बीसवीं सदी में जाटों का यह सर्वोपरि यज्ञ था। यज्ञ का कार्य 7 दिन में समाप्त हो जाने वाला था। परंतु सीकर के राव राजा साहब द्वारा जिद करने पर कि जाट लोग हाथी पर बैठकर मेरे घर में होकर जलूस नहीं निकाल सकेंगे।
3 दिन तक लाखों लोगों को और ठहरना पड़ा। जुलूस के लिए हाथी जयपुर से राजपूत सरदार का लाया गया था, वह भी षड्यंत्र करके सीकर के अधिकारियों ने रातों-रात भगवा दिया। किंतु लाखों आदमियों की धार्मिक जिद के सामने राव राजा साहब को झुकना पड़ा और दशवें दिन हाथी पर जुलूस वैदिक धर्म की जय, जाट जाति की जय के तुमुलघोषों के साथ निकाला गया और इस प्रकार सीकर का यह महान धार्मिक जाट उत्सव समाप्त हो गया।
इस महोत्सव में भारतवर्ष के हर कोने से जाट सरदार आए थे। इन्हीं दिनों राजस्थान जाटसभा का द्वितीय अधिवेशन कुंवर रतन सिंह जी के सभापतित्व में पूर्ण उत्साह के साथ संपन्न हुआ।
इस अवसर पर जाट साहित्य भी काफी प्रकाशित हुआ। चौधरी रीछपाल सिंह जी धमेड़ा का लिखा जाट महायज्ञ का इतिहास, चौधरी लादुराम रानीगंज का लिखा नुक्ताभोज,
[पृ.228]: पंडित दत्तूरामजी की लिखी गौरव भजनावली और ठाकुर देशराज जी का लिखा पुनीत ग्रंथ जाट इतिहास भी इस समय प्रकाशित हुए।
दमन का आरंभ
सीकर यज्ञ तो हो गया किंतु इससे वहां के अधिकारियों के क्रोध का पारा और भी बढ़ गया। यज्ञ होने से पहले और यज्ञ के दिनों में ठाकुर देशराज और उनके साथी यह भांप चुके थे कि यज्ञ के समाप्त होते ही सीकर ठिकाना दमन पर उतरेगा। इसलिए उन्होंने यज्ञ समाप्त होने से एक दिन पहले ही सीकर जाट किसान पंचायत का संगठन कर दिया और चौधरी देवासिह बोचल्या को मंत्री बना कर सीकर में दृढ़ता से काम करने का चार्ज दे दिया।
उन दिनों सीकर पुलिस का इंचार्ज मलिक मोहम्मद नाम का एक बाहरी मुसलमान था। वह जाटों का हृदय से विरोधी था। एक महीना भी नहीं बीतने ने दिया कि बकाया लगान का इल्जाम लगाकर चौधरी गौरू सिंह जी कटराथल को गिरफ्तार कर लिया गया। आप उस समय सीकरवाटी जाट किसान पंचायत के उप मंत्री थे और यज्ञ के मंत्री श्री चंद्रभान जी को भी गिरफ्तार कर लिया। स्कूल का मकान तोड़ फोड़ डाला और मास्टर जी को हथकड़ी डाल कर ले जाया गया।
उसी समय ठाकुर देशराज जी सीकर आए और लोगों को बधाला की ढाणी में इकट्ठा करके उनसे ‘सर्वस्व स्वाहा हो जाने पर भी हिम्मत नहीं हारेंगे’ की शपथ ली। एक डेपुटेशन
[पृ.229]: जयपुर भेजने का तय किया गया। 50 आदमियों का एक पैदल डेपुटेशन जयपुर रवाना हुआ। जिसका नेतृत्व करने के लिए अजमेर के मास्टर भजनलाल जी और भरतपुर के रतन सिंह जी पहुंच गए। यह डेपुटेशन जयपुर में 4 दिन रहा। पहले 2 दिन तक पुलिस ने ही उसे महाराजा तो क्या सर बीचम, वाइस प्रेसिडेंट जयपुर स्टेट कौंसिल से भी नहीं मिलने दिया। तीसरे दिन डेपुटेशन के सदस्य वाइस प्रेसिडेंट के बंगले तक तो पहुंचे किंतु उस दिन कोई बातें न करके दूसरे दिन 11 बजे डेपुटेशन के 2 सदस्यों को अपनी बातें पेश करने की इजाजत दी।
अपनी मांगों का पत्रक पेश करके जत्था लौट आया। कोई तसल्ली बख्स जवाब उन्हें नहीं मिला।
तारीख 5 मार्च को मास्टर चंद्रभान जी के मामले में जो कि दफा 12-अ ताजिराते हिंद के मातहत चल रहा था सफाई के बयान देने के बाद कुंवर पृथ्वी सिंह, चौधरी हरी सिंह बुरड़क और चौधरी तेज सिंह बुरड़क और बिरदा राम जी बुरड़क अपने घरों को लौटे। उनकी गिरफ्तारी के कारण वारंट जारी कर दिये गए।
और इससे पहले ही 20 जनों को गिरफ्तार करके ठोक दिया गया चौधरी ईश्वर सिंह ने काठ में देने का विरोध किया तो उन्हें उल्टा डालकर काठ में दे दिया गया और उस समय तक उसी प्रकार काठ में रखा जब कि कष्ट की परेशानी से बुखार आ गया (अर्जुन 1 मार्च 1934)।
उन दिनों वास्तव में विचार शक्ति को सीकर के अधिकारियों ने ताक पर रख दिया था वरना क्या वजह थी कि बाजार में सौदा खरीदते हुए पुरानी के चौधरी मुकुंद सिंह को फतेहपुर का तहसीलदार गिरफ्तार करा लेता और फिर जब
[पृ.230]: उसका भतीजा आया तो उसे भी पिटवाया गया।
इन गिरफ्तारियों और मारपीट से जाटों में घबराहट और कुछ करने की भावना पैदा हो रही थी। अप्रैल के मध्य तक और भी गिरफ्तारियां हुई। 27 अप्रैल 1934 के विश्वामित्र के संवाद के अनुसार आकवा ग्राम में चंद्र जी, गणपत सिंह, जीवनराम और राधा मल को बिना वारंटी ही गिरफ्तार किया गया। धिरकाबास1 में 8 आदमी पकड़े गए और कटराथल में जहा कि जाट स्त्री कान्फ्रेंस होने वाली थी दफा 144 लगा दी गई।
ठिकाना जहां गिरफ्तारी पर उतर आया था वहां उसके पिट्ठू जाटों के जनेऊ तोड़ने की वारदातें कर रहे थे। इस पर जाटों में बाहर और भीतर काफी जोश फैल रहा था। तमाम सीकर के लोगों ने 7 अप्रैल 1934 को कटराथल में इकट्ठे होकर इन घटनाओं पर काफी रोष जाहिर किया और सीकर के जुडिशल अफसर के इन आरोपों का भी खंडन किया कि जाट लगान बंदी कर रहे हैं। जनेऊ तोड़ने की ज्यादा घटनाएं दुजोद, बठोठ, फतेहपुर, बीबीपुर और पाटोदा आदि स्थानों और ठिकानों में हुई। कुंवर चांद करण जी शारदा और कुछ गुमनाम लेखक ने सीकर के राव राजा का पक्ष ले कर यह कहना आरंभ किया कि सीकर के जाट आर्य समाजी नहीं है। इन बातों का जवाब भी मीटिंगों और लेखों द्वारा मुंहतोड़ रूप में जाट नेताओं ने दिया।
लेकिन दमन दिन-प्रतिदिन तीव्र होता जा रहा था जैसा कि प्रेस को दिए गए उस समय के इन समाचारों से विदित होता है।
1. इस गाँव का सही नाम ढहर का बास है। Laxman Burdak (talk)
[पृ.231]: कई दिनों पहले सीकर जागीर की सिंगरावट तहसील के बोसाणा गांव से वहां के किसानों पर रसवाड़ी के ठाकुर और सीकर के कर्मचारियों द्वारा अत्याचार होने की खबर सीकर वाटी जाट पंचायत को मिली। पंचायत ने उन बातों को मान्यता की जांच करने के लिए कुछ आदमी भेजें। उन्होंने जांच की और लोगों के बयान भी लिए। उनकी रिपोर्ट का सार पठित संसार की जानकारी के लिए नीचे देते हैं:
10 अप्रैल 1934 की शाम को मुंशी अहमदखान, फतेह सिंह लटावा, जूद सिंह, मूल सिंह और भंवर सिंह मय 15 सवालों के बोसाणा गांव में पहुंचे और ठहरे। दूसरे दिन उन्होंने किसानों से जमीन का लगान मांगा। किसानों ने कहा कि इस साल फसल पाला पड़ने से खराब हो गई है। हमारे यहां खाने तक को नहीं है। अतः हम कुल लगान अगली फसल पर अदा कर देंगे। अगर आपको भरोसा ना हो तो हमारे घरों की तलाशी लेकर देख सकते हैं। इस पर कर्मचारियों को पहरे में बिठा दिया, न दिन भर खाने पानी पीने को दिया और न घर पर जाने दिया गया। फिर उन्होंने किसानों से मुफ्त खुराक वगैरह मांगी जब उन्होंने खुराक देने से इनकार किया तो उनके खाने के बर्तन उठवा लिए। शाम को यह लोग छोड़ दिये गए।
स्त्रियों पर हमला
12 अप्रैल 1934 को बोसाणा गांव के डाल सिंह, तेज सिंह, केसरी सिंह, बालू सिंह, जोधाराम, अर्जुन राम नामक जाट किसान खलिहान में काम कर रहे थे। अकस्मात 50 सवारों
[पृ.232]: ने जिनमें नायक बावरी सब लोग हथियारबंद थे, आकर इनको घेर लिया और इन को गिरफ्तार कर लिया। उसी समय इन जाट सरदारों की स्त्रियां उनके लिए भोजन लेकर पहुंची और जब वह भोजन देने लगी तो कर्मचारियों ने सिपाहियों को उन को बेंतों से मार कर भगा देने का हुक्म दिया। फिर क्या था शिकारी जानवरों की तरह सिपाही बेंते लेकर स्त्रियों पर टूट पड़े। इस मार पीट के परिणाम से एक बूढ़ी स्त्री जब बेहोश हो गई तो उसे उन्होंने चोटी पकड़कर घसीटते घसीटते दूर ले जा कर डाल दिया। गिरफ्तारसुधा किसानों ने जब इसका विरोध किया तो उनको भी पीटा गया और फिर उन्हें रस्सों से बांध कर उन्हें सिंगरावट तहसील ले जाया गया।
तहसील में ले जाकर उन किसानों के पैर काठ में फंसा उन्हें औंधे मूंह जमीन में डाल दिया गया। 6 घंटे के बाद वह काठ में से निकाले गए और फिर बिछी हुई खाटों के दोनों तरफ उनकी टांगें करके उन्हें खड़ा किया। फिर उनके सिर पर एक-2 भारी पत्थर रखा गया और उनकी बगलों में एक-एक ईंट रखी गई। रात को उनके खड़ी हथकड़ी लगाई गई और उनहें सोने नहीं दिया गया। जब उन्होंने खाने को मांगा तब कर्मचारियों ने कहा कि अभी तुम्हारे सिर की गर्मी नहीं उतरी है, जब उतरेगी तब रोटो मिलेगी। (अर्जुन अप्रैल 1934)
जांच करने से मालूम हुआ कि 18 अप्रैल 1934 तक उनके साथ वही बर्ताव होता रहा और उन्हें खाने को कुछ नहीं दिया गया। इतना ही नहीं जब उनमें से टट्टी पेशाब के लिए कोई जाना चाहता तो अकेले को न लेजाकर दो आदमियों के एक जोड़ी हथकड़ी लगाकर ले जाते हैं जिसे शर्म के मारे वैसे के वैसे ही लौट कर आ जाते हैं।
[पृ.233]: 18 अप्रैल 1934 के बाद उन लोगों को किसी से नहीं मिलने दिया। इसलिए पता नहीं उन की क्या हालत है। इस घटना की खबर से सारे किसानो में भयंकर उत्तेजना फ़ेल गई, इसलिए उन्होंने महाराजा साहब जयपुर, राजा साहब सीकर और रेजिडेंट जयपुर को तार दिए हैं।
क्या जयपुर राज्य के लिए यह वरताव शोभा की बात है? यदि नहीं तो क्या रियासत ऐसी बातों को रोकने के लिए तुरंत कार्रवाई करेगी?
ठिकाने की ओर से यह दमन-चक्र चल ही रहा था कि सीहोट के ठाकुर ने अपने चक गोलों में जाट स्त्रियों को बेहयाई के साथ बेइज्जत किया। फिर क्या था आग और भी भड़क उठी। सीहोट कांड की निंदा करने के लिए 25 अप्रैल 1934 को कटराथल में श्रीमती किशोरी देवी धर्म पत्नी सरदार हरलाल सिंह के सभापतित्व में एक बृहद स्त्री कॉन्फ्रेंस हुई जिसमें 10 हजार से ऊपर स्त्रियाँ इकट्ठी हुई। सीकर के अधिकारियों ने कॉन्फ्रेंस न होने देने के इरादे से इस गांव पर दफा-144 लगा दी थी किंतु उसकी कोई परवाह नहीं की गई। इस कांफ्रेंस के संयोजक का श्रेय स्वर्गीय श्रीमती उत्तमा देवी जी धर्मपत्नी ठाकुर देशराज जी को है। यहां पर जो प्रस्ताव पास हुए उनमें सीहोट के ठाकुर को दंड देने, किसानों की मांगे जल्द पूरी करने और जयपुर की देखरेख में बंदोबस्त चालू कराने की मांग की गई। उस समय उन जाट स्त्रियों के बयान भी लिए गए जिनको सीहोट के ठाकुर ने बेइज्जत कराया था। उनमें से एक के बयान यहां दिए जाते हैं।
[पृ.234]: लक्ष्मी देवी (लछमड़ी) देवी जोजे नंदा कौम जाट साकिन सौतिया का बास, तहसील सिगरवाट ठिकाना सीकर की हूं। उम्र 55 वर्ष मैं ईश्वर को साक्षी देकर सत्य सत्य कहूंगी।
मैं ठिकाना सीहोट के ठाकुर के गांव सौतिया का बास की रहने वाली हूं और हमारे ठाकुर का नाम भानसिंह है। करीब 3 महीने का वाका हुआ ठाकुर ने हमारे घर पर बालजी, जो कि उनके नौकर रहता है, भेजा और उसने आकर कहा कि हरी की लाग (जोकि कार्तिक की फसल में लगान से ज्यादा लागों में से है) के रुपए मांगे। मेरे मालिक नंदा ने जवाब दिया कि अभी हमने दूसरी लाग के 35 रुपये लगान के अलावा दे चुके हैं और इस को भी कमा कर दे देंगे। उस पर उसने कहा कि अभी कुआं चलाना बंद कर दो और हमारे कांकड़ हद में अपने मवेशियों को न चरने दो, न पाला काटो और न कुओं से पानी पियो, न मवेशियों को पानी पिलाओ। थोड़ी देर के बाद उनको ठाकुर ने भेजा और मेरे मकान को घेरकर मेरे मालिक नंदा और मेरे लड़के गणेश को गाली देते हुए मारने लगे और मेरे मालिक नंदा को पकड़कर पीटना शुरु कर दिया। मैं हल्ला सुनकर घर से बाहर निकली और अपने लड़के और अपने मालिक को बचाने लगी। इस पर मुझको भी मारना शुरू कर दिया। मुझ पर तीन लाठी चलाई। गंगला दरोगा ने और चंद्र बक्सा दरोगा ने लाठी मारी और मैं बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ी। उसके बाद थोड़ी देर तक मुझ को बेहोशी रही और जब मुझको होश हुआ मैंने अपने लड़के और मालिक को वहां पर नहीं देखा। मुझको बीधा और पीथा हनुमाना लादू ने चार पाई पर डाल दिया मैंने अपने देवर बीधा से पूछा
[पृ 235]: कि मेरा मालिक और लड़का कहां है तो उसने कहा कि उनको तो ठिकाने के आदमी मारते पीटते अपने घोड़ों के आगे आगे डालकर गढ़ को ले गए और मुझको मेरी चारपाई पर पड़ी हुई को बीधा पीथा हनुमाना बालाई ने तहसील सिगरावट को ले गए। सिगरावट के तहसीलदार, जिसके पास ठाकुर मानसिंह जी के सवार पहले ही जा चुके थे और उनके कान भर दिए थे, मेरी कुछ सुनवाई नहीं की और मुझको चारपाई समेत धूप में डलवा दिया और शाम को पानी पीने दिया। न खाने को दिया मेरे मालिक और बेटों को सीहोट में गढ़ के भीतर कोठों में बंद कर दिया और तीन दिन तक बंद रखा और रोज उनको मारते-पीटते और अमानुषिक तकलीफ़ें दी। उन्हें इस बीच खाना-पीना कुछ भी नहीं दिया। मुझको एक दिन के बाद सिगरावट से जब सीकर के अस्पताल में ले गए तो मेरी सिनवाई डाक्टर सीकर ने भी नहीं की और मुझको अस्पताल से बाहर निकाल दिया। और कहा कि अपने घर जाओ और वहाँ मारो यहाँ मिट्टी खराब होगी। मेरे जो चोटें आई हैं मेरे बदन में अभी तक तकलीफ देती और दुखती हैं। मेरी बड़ी बुरी दशा की गई और अभी तक किसी ने भी सुनवाई नहीं की है।
[पृ.235]: मैं कि पारकी जौजै हीरा कौम जाट साकिन सौतिया का बास, ठिकाना सीहोट तहसील सिंगरावट सीकर, उम्र 40 साल मैं ईश्वर को जानकर ठीक ठीक बयान करूंगी।
बयान किया कि 3 महीना हुआ सीहोट के ठाकुर
[पृ.236]: मानसिंह जी ने जो कि हमारे गांव के जागीरदार हैं आदमी और सवारों को भेजा जो कि करीब 5 गांव के आदमी जिन में राजपूत और उनके नौकर थे आए जिनकी संख्या करीब 150-200 की थी। गांव में आए और आदमियों और बच्चों को पकड़कर गढ़ में चलने के लिए कहा। आदमियों ने जवाब दिया कि हम लोग गढ़ में चलते हैं इन बच्चों का गढ़ में ले जाकर क्या करोगे। इस पर उन्होंने जवाब दिया कि तुमने हमारे हुक्म के अंदर क्यों दखल दिया। इनको जल्दी लड़के और और लड़कियों को पीटते हुए घसीट कर ले चलो। वे तमाम लोग हल्ला बोल हम पर टूट पड़े और पीटना शुरु कर दिया और तमाम आदमियों और बच्चों को मारते पीटते घसीटते हुए गढ़ को ले गए। करीब 2 घंटे के बाद वह फिर आए और हम औरतों को हमारे आदमियों की गैर हाजरी में घरों में घुसा और औरतों को पकड़ना घसीटना और मारना शुरू कर दिया। मेरे घर में भी कुछ आदमी आए जबकि मैं अपने बाड़े में गाय भैंस को चारा डाल रही थी। घर हो कर वे फिर मेरे पास बाड़े में पहुंचे और मुझको भी उन्होंने पकड़ लिया। गाली गलोज और मुझ से मारपीट करके छोड़ गए। वे मेरे मालिक जिसको कि और दूसरों के साथ मारते पीटते गढ़ को ले गए। वे उसको भी दूसरों की तरह घोड़ों के अस्तबल में ले जाकर बंद कर दिया और 3 दिन तक दूसरों की तरह मारपीट कर गढ़ की कोठरी से बाहर निकाल दिया। हम लोगों को न खाना खाने देते हैं न पानी पीने देते हैं और ठाकुर सीहोट कहते हैं हमारी कांकड़ (हद) को छोड़कर कहीं दूसरी जगह चले जाओ नहीं तो तुम को और भी तंग किया जाएगा और
[पृ.237]: बुरी दशा होगी। हम लोग इधर इधर अभी तक कभी कहीं कभी कहीं मारे मारे फिरते हैं और जो मार मुझको और मेरे मालिक को पड़ी है वह अभी तक तकलीफ देती है।
निशानी अंगूठा पारकी देवी
मैं कि कानूड़ी जोजे दुदाजी साकिन सौतिया का बास, ठिकाना सीहोट तहसील सिंगरावट (सीकर) उम्र 21 वर्ष ईश्वर को साक्षी देकर सभी ठीक ठीक बयान करूंगी।
करीब 3 माह का अर्सा हुआ है हमारे गांव सौतिया का बास पर ठाकुर मानसिंह ठिकाना सीहोट ने करीब 200 आदमी मय सवारों के भेज दिए जो कि करीब 5 गांव के राजपूत और नौकर थे। हमारे गांव के आदमी कोई अपने खेत और कोई अपने खला (खलियान) में था। मैं और मेरा मालिक अपने बाड़े में गाय और भैंस का दूध निकाल रहे थे। ठिकाने के आदमी और सवार मारपीट करते और गालियां निकालते हुए हमारे बाड़े में घुस आए और मालिक से कहा कि हमारे साथ चलो। मेरे मालिक ने कहा ग्वार खलियान में पड़ा है और उसको ठीक कर के चला चलूंगा। इस पर उन्होंने उस को गाली देना और मारना शुरू कर दिया और उसके मुंह में कपड़ा भर दिया और उन को घसीटते हुए ले चले। मैं यह देख कर डर के मारे रोने लगी। इस पर मुसलमान जावदी खां ने कहा इस बदमाश औरत को भी पकड़ लो और खूब मरमत करो यह चिल्ला कर गांव के दूसरे आदमी को इकट्ठा करना चाहती है। इस पर बहुत से आदमी मुझ पर टूट पड़े और मेरे तमाम कपड़े फाड़ डाले और मैं कपड़े फट जाने पर ऐसी
[पृ.238]: हो गई जिसका कि मैं बयान नहीं कर सकती। (यह कहकर औरत रोने लगी और कहने लगी ज्यादा पूछकर क्या करोगे। रोते-रोते उसकी हिलकियां बन गई) मेरे मालिक को तो 3 दिन तक सिहोट के गढ़ में औरों की तरह काठ में दे दिया और कहा अपने तमाम कपड़े उतार दो। मेरे मालिक ने कुर्ता और साफा तो उतार दिया मगर धोती उतारने की माफी चाही। इस पर उसके शरीर पर ठंडा पानी छिड़का गया और इतना पीटा गया कि वह बेहोश हो गया। तब उसे तंबाकू के कोठे में बंद कर दिया गया और दो तीन दिन तक कुछ भी सुध न ली। तीसरे दिन जो पेशाब उसने कोठे में किया था उसका भी उससे साफ करवाया गया। मेरा मालिक उसी वक्त से घर पर आकर बीमार हो गया है।
जबकि मैं अपने बाड़े में बिना कपड़े लते के मार की वजह से बेहोश पड़ी थी तो मेरी सास और ननद आई और मुझको उठाकर ले गई। मेरी सास और ननद उस समय वहां पर नहीं थी, खेत में थी। नहीं तो उनकी भी यही हालत होती। वह मेरी इस हालत को देख कर रोने लगी।
(वह कुछ और कहना चाहती थी परंतु फिर वह दुर्घटना स्मरण होने से जी भर आया और रोते हुए बंद हो गई)
निशानी अंगूठा कानूड़ी देवी
जाट जागृति के प्रयास
इस दमन के बीच जाट क्या कर रहे थे। इससे जानने की भी जरूरत है। उन्होंने 50-50 आदमियों के चार जत्थे बनाएं जो गांवों में जाकर प्रचार करते थे और उन चौधरियों को समझाते थे जो कि ठिकाने से डरकर अथवा किसी लोभ से आंदोलन में शामिल नहीं हुए थे। मार्च, अप्रैल और मई 3 महीनों में ही इन जत्थों ने सारे सीकर को एक सूत्र में बांध दिया और
[पृ.239]: ऐसा संगठन बना दिया जिसकी मिसाल मिलना मुश्किल है। अब सीकर में एक लाख में से एक भी ऐसा न था जिसे ठिकाने का आदमी कहा जा सके क्योंकि जयपुर की ओर से मार्च में पेश किए गए मेमोरियल का अभी तक कोई जवाब नहीं आया था। इसलिए फिर याददाश्त प्रार्थना पत्र भेजा गया। इसका नतीजा यह निकला की जयपुर की ओर से सीकर में एक अंग्रेज सीनियर ऑफिसर की नियुक्ति हुई। कैप्टेन रामस्वरूप जी द्वारा जांच: सीकर के मामले से जाट महासभा भी काफी चिंतित थी उसकी ओर से कैप्टेन रामस्वरूप जी को जांच के लिए भेजा गया और अलीगढ़ में एक अधिवेशन इसी मामले को लेकर रखा गया।
केप्टिन राम स्वरूप सिंह जोकि इस समय जाट महासभा की ओर से सीकर के देहातों में किसानों के कष्टों की जांच कर रहे थे उन्होंने राजस्थान जाट महासभा के दफ्तर को सूचित किया,
“मैंने कुछ गांव के किसानों के कष्टों की जांच कर पाई थी कि सीकर की पुलिस ने हमारे जांच संबंधी काम को असंभव बना देने की कोशिश करना शुरू कर दिया। हम लोगों के साथ पुलिस और सेना के 20 सवार नियुक्त कर दिए हैं। कभी कभी वह 8-8 18, 10-10 की टोलियों में बट जाते हैं और पहले से ही गांव में पहुंचकर किसानों को गाली गलौज देकर और धमकाकर इस बात के लिए तैयार करते हैं कि हमारे सामने अपने कष्टों की कोई भी बात नहीं कहें। गांव वालों से यह भी कहा जाता है कि जांच करने वालों को ठहरने मत दो। एक गांव में हमारे पानी के बर्तन भी सीकर के नौकरों ने फौड डाले। एक बार तो उनकी हरकतों के कारण हमें 36 घंटे भूखे रहना पड़ा। इनको इतनी कोशिशों और लोगों पर आतंक जमा देने
[पृ.240]:देने के पश्चात भी कुछ लोग हिम्मत करके हमारे सामने कष्टों का रो-रो कर बयान कर रहे हैं। रो रो कर बयान कर रहे हैं। सूटोद नाम के गांव के चौधरी बेगाराम, किसनाराम, रूपा और खांगा अपने कष्टों की कहानी हमारे सामने कह रहे थे कि ठिकानों के चाकरों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। यही नहीं गिरफ्तार करने से पहले हमारी आंखों के सामने उनको लात घूसे और ठोकरों से खूब पीटा। गालियां जो उन्होंने बकी वे इतनी अश्लील थी कि उन्हें लिख नहीं सकता। हमारा भी काफी अपमान किया गया है। यहां के किसानों की दयनीय दशा देखकर हमारा हृदय रो उठता है। कैप्टन रामस्वरूप सिंह जी द्वारा भेजी गई सीकरवाटी के पीड़ित जाटों की दशा की तहकीकात की सही बयानों की नकल अर्जुन 11 मई 1934 से यहां दी जाती है।
मैं चौधरी जगन राम मौजा सांखू ठिकाना सीकर तहसील लक्ष्मणगढ़ का हूं। उम्र 50 वर्ष भगवान को जानकर ठीक ठीक कहता हूं।
15-16 वर्ष के अंदर जमीन का लगान दुगना हो गया है। यानी जिस जमीन का हम लोग 4 आना या 8 आना दिया करते थे, अब आठ आना या 1 रु. देते हैं। गांव कटराथल जिसमें कि हम बैठे हुए हैं, पूरे गांव का लगान 5000/- रुपये दिया करते थे जो अब बढ़ाकर 10000/- कर दिया है। (इसकी ताईद चौधरी लछमन जी, चौधरी गुमाना जी, चौधरी हनुतराम जी, चौधरी कुशाला राम जी, चौधरी किशना रामजी ने की जो कि कटराथल के चौधरी हैं।)
[पृ.241]: साथ ही और भी हम लोगों से लाल बाग के जरिए से लेते हैं। लगान के बाद जो कुछ बचा है वह भी लिया जाता है। उसे पूरा नहीं पड़ता तो मजबूरन हम को तंग किया जाता है और यहां तक कहा जाता है कि अपने बाल बच्चे को बेचकर जो कुछ राज का बाकी है जल्दी पाई-पाई अदा कर दो। उसकी रिपोर्ट और समाचार नामों के साथ तरतीबवार जाटवीर, तारीख 21 अप्रैल 1934 में छप चुका है। उसमें तो सिर्फ अपने लड़कों को बेचने की बातें लिखी हैं मगर यह तो बिल्कुल सही और चौड़े में आई हुई रात दिन की बात है। जो होती है हम लोग राज की खातिर अपनी आत्माओं के टुकड़े लड़कियों के दिल के न चाहने पर भी रोते हुये बेच डालते हैं। और फिर राज का कर चुकाते हैं।
"जग्गू राम"
यह बयान देते हुये अंतिम शब्दों पर चौधरी साहब का दिल रो पड़ा और भारी बोलने लग गए।
बयान तुलसी सिंह वल्द राम सिंह गांव ठठावता तहसील फतेहपुर सीकर उम्र 37 वर्ष ने बयान दिया।
मेरा ताऊ का लड़का भाई डालूराम वल्द बुधराम उम्र 22 वर्ष को तारीख 15 अप्रैल 1934 को गांव गांव ठठावता तहसील फतेहपुर (सीकर) में ही फ़तेहपुर तहसील का का जसजी राजपूत सिपाही ने आकर कहा कि पुलिस सुपरिटेंडेंट आया हुआ है और तुम्हें उस गवाही के लिए बुलाया जो कि तुम्हारे गांव के गणेशा चमार की लरेर को भैरवबक्स राजपूत ने चुरा कर खा लिया था। उसने अपने साथ में भैरवबाक्स राजपूत के चाचा रामनाथ जी को भी साथ में ले लिया था और मोटा चौधरी को भी साथ कर लिया था। अब वह उसके साथ चल कर एक कोस
[पृ.242]: पहुंचा होगा कि रामनाथ जी को तो वापस भेज दिया और मोटा चौधरी तथा उसे (डालूराम को) साथ कर लिया। जब तहसील में पहुंचे तो मोटा चौधरी को भी वापस भेज दिया और डालू को किले में बंद कर दिया। तारीख 17 को जब मैं मिलने को गया तो मुझे फटकार कर कहा कि तुम यहां से चले जाओ, बातें मत करो। 17 तारीख को जब मुझे अपने भाई का समाचार जिस किसी तरह मालूम हुआ उसे अब तक खाना नहीं दिया गया है। अगर आटा भेजा जाए तब उसे रोटी दी जाती है। उसे पंचायत में भाग लेने के कारण ही पकड़ा गया है और उनसे कहा जाता है कि तुम अगर पंचायत के कामों में हिस्सा लोगे तो दुख पाओगे।
बयान बिरमाराम वल्द भैरों सिंह जाट, चाचीवाद
बिरमाराम बलद भैरों सिंह जाट 25 वर्ष उम्र साकिन चाचीवाद तहसील फतेहपुर इलाका सीकर ने बयान किया।
करीब 2 माह हुए कि मैं तारीख 7 अप्रैल 1934 कटराथल सीकरवाटी जाट पंचायत की मीटिंग में गया था। दूसरे रोज मैं अपने गांव वापस आ गया था। मैं तारीख 10 अप्रैल को फतेहपुर शादी के लिए सौदा लाने के लिए गया था कि तहसील के 15 असवारों ने आकर मुझे पकड़ लिया। जिनमें से एक का नाम भूरेखां है और के नाम मुझे मालूम नहीं। तहसील फतेहपुर के प्रत्येक गांव में महम्मद खां नायब तहसीलदार ने ऐलान कर रखा था कि कोई भी जाट कमेटी में मत जाना। जो जाएगा उसे हम बुरी तरह पिटेंगे और गांव में से निकलवा देंगे। मुझे तहसील के सवार मारते-पीटते और घसीटते हुए तहसील में ले गए। जाते ही तहसीलदार महम्मद खां ने मुझसे कहा कि हमने गांव में जाट कमेटी में जाने के लिए मना कर दिया था।
[पृ 243] फिर तुमने हमारा हुक्म क्यों नहीं माना। मैंने कहा मैंने कोई बुरा काम नहीं किया, हमारी जाति की कमेटी थी इसलिए मैं भी चला गया। इस पर तहसीलदार साहब बहुत बिगड़े और झुंझलाए, हमारे हुकुम को नहीं माना अब हमारे सामने बात बनाता है। फोरन कुर्सी से उठा और मेरे तीन-चार बेंत मारी और फिर कहा कि इसे काठ में लगा दो, इसका अक्ल ठीक हो जावे। करीब 1 बजे दोपहर का वक्त था। मुझे काठ में लगाकर धूप में डलवा दिया। मारे प्यास के मेरा कंठ सूखने लगा कि पानी भी नहीं पीने दिया गया। करीब 4 घंटे तब तक मुझे धूप में ही डाले रखा। इसके बाद मुझे काठ में से निकाला और कहा कि जाटों की कमेटी में मत जाना। मैंने कहा इसमें क्या नुकसान है। बस फिर मेरे चार-पांच बेंत मारे और कहा कि इसे जंगले में बंद कर दो। यह सुनते ही एक सिपाही ने लेजाकर मुझे जंगले में बंद कर दिया और ताला लगा दिया। शाम को मैंने खाना और पानी मांगा परंतु सिपाहियों ने कहा खाना और पानी कमेटी वालों से मंगवा लो। मैं भूखा और प्यासा पडा रहा। मुझे 4 दिन तक बराबर खाना पानी नहीं दिया जबकि मैं बहुत कमजोर हो गया, चलने-फिरने में चक्कर आने लगा, तो मुझे दो रोटी रोज की देने लगे। पानी बहुत थोड़ा मिला मुश्किल से काम चलाता था। इसी मामले में 10-15 जाटों को और भी रोक रखा था। चौधरी कालू सिंह बीबीपुर, लालू सिंह ठठावता के थे। और के नाम मुझे मालूम नहीं। मुझे तारीख 24 अप्रैल को छोड़ दिया और कह दिया कि अब कमेटी में मत जाना। परंतु मैं तारीख 25 अप्रैल 1934 की जाट स्त्री कांफ्रेंस कटराथल चला गया। जब यह खबर तहसीलदार साहब ने सुनी तो ता. 13 सन् 1934 ई. को 3 सवार भेजकर मुझे पकड़वा लिया। तहसील में लेजाकर मुझे पीटा गया और जंगले में बंद कर दिया गया। और तारीख 30 को छोड़ दिया।
[पृ.244]: मेरे पिताजी के नाम से 1000 बीघा जमीन है। जिसमें से कुछ हम जोत थे और बाकी दूसरों से जुतवा देते थे। हमने सन् 1933 में एक दरख्वास्त तहसीलदार को दी। यह जमीन ज्यादा है हमारे से नहीं जोती जाती इसलिए इसमें से 325 बीघे जमीन किसी दूसरे आदमी को दे दीजिए। हमारी यह दरख्वास्त मंजूर हो गई जिसकी नकल हमारे पास मौजूद है। 325 बीघा जमीन हमने नहीं जुताई। ठिकाने वालों ने पड़ी रखा और घास करवाली जिसमें ₹20 की घास चौधरी कुशलाराम मालासी वाले को बेची और बाकी तहसील के घोड़ों के वास्ते रखली। परंतु 325 बीघे जमीन का लगान हमसे मांगा जा रहा है। और हमें तंग किया जा रहा है कि तुम जाटों की कमेटी में जाते हो इसलिए लगान नहीं छोड़ा जाएगा। सीकर वाटी जाट पंचायत से हमारी प्रार्थना है कि इन जुल्मों से हमारी रक्षा करावें तथा करें।
- दस्तखत : बिरमाराम
कैप्टन चौधरी रामस्वरूप सिंह जी ने लौटकर अपनी रिपोर्ट जाट महासभा के सामने पेश कर दी। महासभा की कार्यकारिणी कमेटी ने उसे देखा और पत्रों में प्रकाशन के लिए दे दिया। रिपोर्ट के पत्र में प्रकाशित हो जाने और अलीगढ़ में जाट महासभा अधिवेशन में सीकर पर रोषपूर्ण निर्णय हो जाने के बाद देश में जो अनुकूल वातावरण सीकर के जाटों के बारे में बना उसके संबंध में कुछ टिप्पणियां और खतों किताबत हम आगे दे रहे हैं।
[पृ.245]: सीकर के जाट जत्थे के अलीगढ़ से लौटने पर दिल्ली में पत्रकारों और देश सेवकों ने जत्थे के साथ प्रकट किया।
सीकर की परिस्थिति और जयपुर दरबार का कर्तव्य
[पृ.245]: सीकर की परिस्थिति के संबंध में चिंताजनक समाचार निरंतर आ रहे हैं। सीकर वाटी जाट पंचायत द्वारा भेजे गए जांच कमीशन ने बोसाणा गांव के समाचारों के संबंध में जो रिपोर्ट प्रकाशित की है वह अर्जुन में प्रकाशित हो चुकी है। कटराथल में 12,000 जाट महिलाओं की विराट सभा का समाचार भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। सब समाचारों को एकत्र करने पर मन पर यह असर पड़ता है कि सीकर में कठोर शासन का दौर दौरा चल रहा है। सीकर रईस की ओर से सफाई पेश करने का यत्न भी किया गया है। एक पत्र आर्य सार्वदेशिक सभा के मंत्री की ओर से समाचार पत्रों में प्रकाशित किया गया है। उसने बताया गया था कि सीकर का शासक अत्यंत रोशन दिमाग और धार्मिक पुरुष है। दुख की बात इतनी ही है कि ऐसे रोशन दिमाग और धार्मिक शासक की रियासत में अंधेर हो रहा है। दोनों और के समाचारों की तुलना करके हम इस परिणाम पर पहुंचे बिना नहीं रह सकते कि प्रजा की शिकायतों में बहुत कुछ सच्चाई है। उनका निवारण होना चाहिए।
सीकर का ठिकाना जयपुर के अंतर्गत है। सीकर के सुशासन या कुशासन का उत्तरदायित्व जयपुर दरबार पर ही है। प्रजा की शिकायतें करते इतने दिन हो गए परंतु अब
[पृ.246] तक भी जयपुर दरबार ने हस्तक्षेप नहीं किया। परिस्थिति दिनों दिन बिगड़ रही है। संभव है जाट प्रजा अत्याचारों की पीड़ा के असह्य हो जाने पर रियासत छोड़ने पर मजबूर हो जाए। संभव है बेचारे पीड़ित लोग कुछ समय के लिए दब जाएं। परंतु स्मरण रखना चाहिए की गरीब और कमजोर की आह कभी खाली नहीं जाती। अत्याचार से निर्बल को दबाया जा सकता है। कुछ समय के लिए चुप कराया जा सकता है। परंतु नष्ट नहीं किया जा सकता। असंतोष का बीज भूमि के किसी न किसी टुकड़े पर पड़ा रह जाता है और उस समय आता है जब अत्याचार के सहस्रों विरोधी यत्नों को परास्त करके उस बीज से पैदा हुआ वृक्ष अदम्य रुप से आकाश में फैल जाता है। शासकों की दृष्टि भविष्य में आने वाले उस दिन पर लगी रहनी चाहिए। क्या जयपुर दरबार अपनी उपेक्षा को छोड़कर अपनी आंखें खोलने का यत्न नहीं करेंगे। .....अर्जुन 3 फरवरी 1934
सीकर ठिकाने के जाटों के साथ बड़ी ज्यादती का व्यवहार किया जाता है। वह आदमी ही नहीं समझे जाते हैं। न उनकी शिक्षा का प्रबंध है। उन्हें अन्य अधिकार मिले हुए हैं। जाटों का कहना है कि हम ठिकाने की कुल आमदनी का 80% धन हमारे यहां से आता है। पर जाटों के 500 ग्रामों के बीच एक भी शिक्षालय नहीं है। सीकर खास में कई हाई स्कूल हैं पर उनमें जाटों का एक भी लड़का नहीं पड़ता है। पुलिस और ठिकाने के अन्य महकमों में एक भी जाट नहीं लिया जाता। हर जगह जाट किसान
[पृ.247]: अपमानित किए जाते हैं। सीकर के ठाकुर साहब की न्याय नीति का यह नमूना है। जरूरत इस बात की है कि जयपुर नरेश इन ठिकानों को तोड़ दें और प्रजापर सीधा शासन करें। जाट भी यह जानलें कि चुपचाप बैठने वालों को अधिकार कभी नहीं मिलते। वह संख्या में अधिक हैं, यदि संगठित हो जाएं सीकर ठिकाने के ठाकुर साहब को झुकना ही पड़ेगा। जयपुर राज्य ठिकानों के अधिकार हरण करने के लिए जांच कराता है। जाट इस कार्य में जयपुर नरेश का साथ दें तो सफलता मिलने पर जयपुर नरेश के लिए प्रिय पात्र बनेंगे और उनकी मांग पूरी हो जाएगी। राजनीतिक बुद्धि से जाटों को काम लेना चाहिए..... लोकमान्य 26 मई 1934
कलकत्ते के मारवाड़ ट्रेडर्स एसोसिएशन ने जाटों पर अत्याचार होने के संबंध में सीकर के नरेश के पास निम्नलिखित पत्र भेजा है।
- श्रीमान राव राजा श्री कल्याण सिंह जी बहादुर सीकर
महोदय, श्रीमान को विदित होगा कि आपके राज्य में जाटों पर विशेष ज्यादतियां की जा रही हैं। उनके ऊपर गैर कानूनी टैक्स लादे जा रहे हैं, और बेरहमी से सताया जा रहे हैं। इस संबंध में भारतीय समाचार पत्रों में ज़ोरों के साथ आंदोलन हो रहा है। जिससे प्रकट होता है कि जाटों पर ज़्यादतियाँ पराकाष्ठा तक पहुंच चुकी हैं। हाल ही में अखिल भारतीय जाट महासभा
[पृ.248] हुई है जिसमें इन अत्याचारों के विरोध में प्रस्ताव स्वीकृत हुआ है। कहने का मतलब यह है कि आजकल प्रत्येक मनुष्य से इसी बात की चर्चा सुनाई देती है कि इस आवश्यक मामले को अपने हाथ में लेकर जांच कराने की कृपा करें। साथ ही यह भी अनुरोध करना है कि अपने अधिकारों द्वारा इन होने वाली ज्यादतियों को रोककर अपने दीन-हीन निरीह प्रजा की रक्षा करें। ..... आपका तुलसीराम सरावगी, मंत्री मारवाड़ ट्रेडर्स एसोसिएशन।
मारवाड़ ट्रेडर्स एसोसिएशन को सीनियर अफसर का उत्तर सीकर के श्री राव राजा कल्याण सिंह जी बहादुर की सेवा में मारवाड़ी ट्रेडर्स एसोसिएशन सीकर की जाट प्रजा के कष्टों को दूर करने के लिए एक पत्र भेजा था। लिखते हर्ष होता है कि राव राजा जी की आज्ञा से वहां के सीनियर मि.वे. ने हमें सूचित किया है कि जाटों के कष्टों की जांच करने के लिए राज्य की तरफ से एक कमिशन मुकर्रर किया गया है। जिसके आधे मेंबर जाट हैं। जाट मेंबरों के नाम आते ही कमीशन कार्य प्रारंभ कर देगा। मि. वे. ने हमें विश्वास दिलाया है कि थोड़े ही समय में सीकर की जाट प्रजा के वास्तविक कष्ट दूर हो जाएंगे और वह जाट संतुष्ट हो जाएंगे। (तुलसीराम सरावगी, लोकमान्य 14 जून 1934)
सीकर का जाट जत्था दिल्ली वापस लोटा
[पृ.249]: तारीख 14 मई 1934 को जाट किसान जत्था अलीगढ़ से वापस होकर दिल्ली पहुंचा। स्टेशन पर कुछ स्थानीय जाट सरदारों ने जत्थे का स्वागत किया। दिल्ली के प्रसिद्ध पत्रकारों तथा नेताओं में पंडित इंद्र जी व्यवस्थापक अर्जुन ने जत्थे की कष्ट कहानी सुनने व आवभगत करने में पूरी दिलचस्पी ली। श्रीयुत देवीदास गांधी ने भी कष्ट कहानी सुनने के लिए उत्सुकता के साथ जत्थे के प्रतिनिधि से मिलते ही स्वीकृति दी। यदि उन्हें उस दिन अचानक एक दूसरा आवश्यक कार्य न आ अटकता और जत्था दूसरे दिन के लिए ठहर जाता तो श्री देवदास जी तथा हिंदुस्तान टाइम्स के संपादक महोदय इस किसान जाते की की कहानी बड़े प्रेम के साथ सुनते। लाला देशबंधु दास प्रोपराइटर तेज ने भी अपना रिपोर्टर जाट किसान जत्थे के ठहरने के स्थान पर भेज कर अपनी उदारता प्रकट की। नवयुग के सरकारी संपादक जी भी जाट जत्थे के प्रतिनिधियों से बड़े प्रेम के साथ मिले और विश्वास दिलाया कि उनकी सच्ची शिकायतों को जनता के सामने रखने के लिए नवयुग कभी पीछे नहीं रहेगा। जाट जत्थे की इच्छा थी कि आर्य सार्वदेशिक सभा के प्रधानमंत्री उनसे मिलकर जनेऊ संबंधी वास्तविक घटनाओं की बाबत पूछताछ करके वास्तविक घटनाओं को जान लें। किंतु मंत्री और प्रधान के कार्यालय ममें न होने से भेंट न कर सके।
चौधरी हरचंद सिंह जी (अर्जुन), महाशय धनीराम जी प्रोपराइटर जमींदार ब्रोस, चौधरी लाजपत राय जी करोल बाग में जाट जत्थे को जलपान तथा अन्य सुविधाएं प्राप्त कराने में
[पृ.250]: काफी दिलचस्पी ली। इस समय जत्था रेवाड़ी के आसपास है। ..... लोकमान्य 23 मई 1934
जब बाहर इस प्रकार का आंदोलन जाटों के पक्ष में हो रहा था तब सीकर ठिकाने नहीं एक चाल सोची। और वह यह कि साम, दाम, भाय और भेद से कुछ जाटों से इस आशय के दस्तकत कराने लगे कि हमें कोई शिकायत ठिकाने से नहीं है। किंतु जिन 15 चौधरियों ने ऐसे दस्तखत किए उन्हें भी आंदोलन में शामिल होना पड़ा।
सीहोट के जुल्मों के विरोध में कटराथल में जो जोरदार स्त्री कॉन्फ्रेंस हुई थी उससे ठिकानेदारों के कान तो जरूर खड़े हुए किंतु राव राजा सीकर व जयपुर राज्य किसी की ओर से सीहोर के ठाकुर के विरुद्ध कोई सख्त कार्रवाई ना होने के कारण छुट भैए जागीरदारों के और सरकारी कर्मचारियों के जुल्मों में कोई अंतर नहीं आ रहा था।
सीकर के सीनियर अफसर मिस्टर डिसूजा एक धार्मिक ईसाई अवश्य थे किंतु राव राजा पर उनका कोई प्रभाव नहीं था। वे दोनों तरफ से असफल रहे। न तो राव राजा और उनके साथियों को ही वह संतुष्ट कर सके और न किसानों को चलती चक्की से बचा सके। इसलिए जयपुर दरबार की आज्ञा से एडबल्यूटी वेब नाम के अंग्रेज को जो कि एक पॉलिटिकल रिटायर्ड अफसर था, राव राजा ने सीकर का सीनियर ऑफिसर बनाना स्वीकार कर लिया। (एसोसिएटेड प्रेस 15 मई 1934)
अपनी मांगों का मेमोरियल
22 मई 1934 को मि. वेब ने सीकर आकर सीनियर ऑफिसर का चार्ज ले लिया। इससे एक दिन पहले अर्थात 21 मई को जाट लोग
[पृ.251]: अपनी मांगों का मेमोरियल फिर एक बार जयपुर दरबार की सेवा में प्रेषित कर चुके थे। इस मेमोरियल में अपनी उनकी मांगों को दुहराया था जो पहले पेश की जा चुकी थी, वह मांग इस प्रकार थी:
To,
The Honorable Vice President.
Council Of State, JAIPUR,
Respected Sir,
Most humbly We, the Jats of Sikarvati (in Sikar thikana) bring to your honour's kind notice the following few lines for favourable consideration. We sent applications after applications and petitions, after petitions but no notice has still been taken. Again we have come to make the following requests with the hope of never returning thirsty from the fountain of our generosity.
(1) Be kind to abolish all the other taxes except land revenue.
(2) All shorts of forced labour taken should be abolished such as taking away persons and cars without our consent.
(3) The Land Revenue must be charged according to the facility of the soil and so every
[p.252]: proper arrangements should be made to that effect.
(4) We must be empowered to get chance for the remission from the fixed Land Revenue on the occasions cf the failure of the crop or decrease of the price from the crop.
(5) The State must provide facilities for our children's education and for supplying medicines to the patients.
(6) Persons of capability and ability from our Jat community, Sikarvati, must be provided with suitable job in the police and in other Departments.
In the end we humbly request your good self to consider the case of Master Chandra Bhan Secretary, Jat Panchayat, Sikarvati, who has been sent to jail by the Sikar Estate, we want to know on what grounds he was accused and what charge was laid down upon him.
We have come nearly 200 representatives from Sikarvati to request Your Honour. We are undergoing heavy expenses and so your kind look is urgently required. We will not go to Sikarvati until our case will not be considered, because we are very much annoyed by the Sikar state.
[p.253]: We all hope that Your honour will be enough to consider our request soon and reply soon so that we may return our native village comfortably.
For this act of kindness we all will be highly obliged and will pray for your Honour's long-life and prosperity.
I have the honour to be, Sir,
Your most obedient servant,
sd Davasi, Secretary,
21 May, 1934.
Note - We will submit afterwards to your Good-self the list of other taxes which We have to make beside Land Revenue.
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Jat Jan Sewak,p.251
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Jat Jan Sewak,p.252
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Jat Jan Sewak,p.253
सीकर के जाटों की सफलता
जयपुर 29 मई 1934 : जाट पंचायत सीकर वाटी के महामंत्री देवा सिंह बोचल्या की प्रमुखता में लगभग 200 जाटों का एक डेपुटेशन सीकर के नए सीनियर अफसर एडबल्यू वेब से मिला और अपनी शिकायतें सुनाई। मिस्टर वेब ने उनकी बातों को सहानुभूति पूर्वक सुनकर बतलाया कि राव राजा सीकर ने आप लोगों की शिकायतों की जांच करने के लिए 8 व्यक्तियों का एक मिशन नियत करने की इजाजत दे दी है। उसका प्रधान मैं स्वयं और मेंबर मेजर मलिक मुहम्मद सेन खां पुलिस तथा
[पृ.254]: जेलों के अफसर-इंचार्ज कैप्टन लाल सिंह, मिलिट्री मेंबर ठाकुर शिवबक्स सिंह, होम मेंबर और चार जाट प्रतिनिधि होंगे। चार जाटों में से दो नामजद किए जाएंगे और दो चुने जाएंगे।
आप ने यह भी कहा कि मुझे जाटों की शिकायतें कुछ अत्युक्तिपूर्ण मालूम पड़ती हैं तथापि यदि जांच के समय आंदोलन बंद रहा और शांति रही तो मैं जांच जल्दी समाप्त कर दूंगा और जाटों को कोई शिकायत नहीं रहेगी।
जाट जांच कमीशन की रचना से संतुष्ट नहीं हैं। न वे चारों जाट मेंबरों को चुनना ही चाहते हैं। वे झुंझुनू में एक सभा बुलाने वाले हैं। बोसना में भी एक पंचायत होगी इन दोनों सभाओं में मिस्टर वेब के ऐलान पर विचार होगा। (यूनाइटेड प्रेस)
इसके बाद राव राजा साहब और सीनियर साहब दोनों ही क्रमश: 2 जून और 6 जून सन 1934 को आबू चले गए।
आबू जाने से 1 दिन पहले सीनियर ऑफिसर साहब मिस्टर वेब ने सीकर वाटी जाट पंचायत को एक पत्र दिया जो पुलिस की मारफ़त उसे मिला। उसमें लिखा था, “हम चाहते हैं कि कार्यवाही कमीशन मुतल्लिका तहकीकात जाटान सीकर फौरन शुरू कर दी जावे। हम 15 जून को आबू से वापस आएंगे और नुमायदगान से जरूर सोमवार 18 जून सन 1934 को मिलेंगे। लिहाजा मुक्तिला हो कि जाट लीडरान जगह मुकर्रर पर हमसे जरूर मिलें।
सीनियर ऑफिसर के आबू जाने के बाद सीकर के जाट हाथ पर हाथ रखकर नहीं बैठे। बराबर गांवों में मीटिंगें करते रहे। उन्होंने इन मीटिंगों में इस बात के प्रस्ताव पास किया, “जयपुर दरबार के सामने पेश की हुई हमारी मांगे
[पृ.255]: सर्वसम्मत हैं और हमारे ऐसी कोई भी पार्टी नहीं जो इन मांगों के विरुद्ध हो, सीकर के कर्मचारियों ने मिस्टर वेब को यह समझाया कि यहां के जाटों में दो पार्टियां हैं कतई झूट है” (नवयुग 12 जून 1934)
मि. वेब आबू से एक दो दिन की देर से वापस हुए। इसके बाद में शायद किसी जरूरी काम से जयपुर गए। इसलिए जाट पंचायत के प्रतिनिधियों से बजाय 18 जून 1934 के 22 जून 1934 को मुलाकात हुई। उन्होने पहली जुलाई तक कमीशन के लिए जाटों के नाम की लिस्ट देने को जाट पंचान से कहा और यह भी बताया कि राव राजा साहब ने ठिकाने में से सभी बेगार को उठा दिया है।
29 जून 1934 को राव राजा साहब भी आबू से वापस आ गए। कुछ किसानों ने रींगस स्टेशन पर उनसे मुलाकात करनी चाहिए किंतु नौकरों ने उन्हें धक्के देकर हटा दिया।
इससे पहले ही तारीख 24 जून 1934 को कूदन में सीकर वाटी के प्रमुख जाटों की एक मीटिंग कमीशन के लिए मेंबर चुनने के लिए हो चुकी थी। भरतपुर से ठाकुर देशराज और कुंवर रतन सिंह जी भी इस मीटिंग में शामिल हुए थे। तारीख 25 जून 1934 को एक खुली मीटिंग गोठड़ा में हुई जिसमें रायबहादुर चौधरी छोटूराम और कुंवर रतन सिंह बाहर से तथा कुंवर पृथ्वी सिंह और चौधरी ईश्वर सिंह सीकर से जांच कमीशन के लिए चुने गए।
आरंभ में मि. वेब ने तत्परता और बुद्धिमानी से काम लिया। उन्होंने सरकारी कर्मचारियों के रुख में परिवर्तन करने के लिए 30 जून को एक मीटिंग की और उसमें तमाम कर्मचारियों से कहा कि हम सब “प्रजा के नौकर हैं”, उन्होंने खर्चे में भी घटोतरी की। पहले तमाम कर्मचारी सरकारी सवारी बरतते
[पृ.256]: थे, उन्होंने इस प्रथा को मिटा दिया। बेगार के खिलाफ भी कदम उठाया। मालिक मोहम्मद जैसे षड्यंत्र लोगों के जाल में वे भी फंस गए। जाट लोग मलिक मोहम्मद को कभी पसंद नहीं करते थे क्योंकि जाटों पर दमन करने में वह अगवा था।
तारीख 23 जुलाई 1934 से कमीशन कार्य शुरु कर देगा। ऐसा निश्चय सुनकर जाट प्रतिनिधि वेब से बहुत खुश हुए और उन्होंने उस दिन 10 जुलाई की मुलाकात में उनसे उन्हें बधाई देते हुए यह भी कह डाला कि अब हमारे आधे दुख दूर हो गए हैं। इस दिन मिस्टर वेब ने खुले दिल से 2 घंटे तक जाट प्रतिनिधियों से बातें की थी और सारी तकलीफें अपने समय में दूर कर देने का विश्वास दिलाया।
तारीख 23 जुलाई 1934 की प्रतीक्षा जाट किसान बड़ी उत्सुकता से कर रहे थे कि उस दिन उनके कष्ट की जांच का कार्य आरंभ हो जाएगा किंतु ‘साईं के मन कछु और है मेरे मन कछु और’ वाली कहावत के अनुसार मिस्टर वेब की ओर से मिलने वाली विज्ञप्ति तारीख 15 जुलाई 1934 को ही मिल गई।
ऐलान अज इजलास ए.डबल्यू. वेब
ऐलान अज इजलास ए.डबल्यू. वेब एस्क्वायर सीनियर ऑफिसर साहब सीकर मुजरिया 15 जुलाई सन 1934
सीकर में एक अरसे से जाटों में असंतोष फैल रहा है और वह अपनी तकलीफ का इजहार करते थे। हमने सीनियर ऑफिसरी का चार्ज लेते ही जाटों की शिकायत की पूरी तौर पर जांच की और अपनी तजबीज इजलास श्रीमान राव राजा
साहब बहादुर में पेश की जिसको रावराजा साहब बहादुर ने निहायत रहमदिली वह मुंसिफ मिजाजी से अपनी रिआया की बहबूदी को मध्य नजर रखते हुए मंजूर फरमाया जो मुराआत राव राजा साहब बहादुर ने अपनी रिआया की बहबूदी व खुशहाली के लिए फरमाई है उनका ऐलान हस्ब जैल किया जाता है।
(1) संवत 1990 के हासिल में फसल के लिहाज से देरीना अमल के मुआफिक बाज देहात में चार आना फी रुपये बाज देहात में 2 आना फी रुपए मुकर्रिरा लगान से जायद लेना तजबीज किया गया था मगर अब अरजानी निरख की वजह से मुकर्रिरा लगान में जो इजाफा किया था उसको माफ किया जाता है। साबिक तजबीज के मुआफिक जिन से हासिल वसूल हो चुका है उनको मुकर्रिरा लगान से जायद वसूल शुदा रकम तजाबीज हाजा के माफिक आइंदा साल मुजरा दे दी जाएगी। जिन्होंने अभी हासिल नहीं दिया है उनसे तजबीज हाजा के माफिक हासिल वसूल किया जावे।
(2) अगले साल यानी संवत 1991 में फसल की हालत देखकर पहले के अमल के माफ़ीक हासिल मुकर्रर किया जाएगा।
(3) संवत 1992 से बंदोबस्त की तकमील हो जाने पर दस साल के लिए हासिल मुकर्रर कर दिया जाएगा। मगर उस वक्त तक बंदोबस्त की तकमील नहीं हो सकेगी तो मौजूदा अमल के मुताबिक फसल की हालत के लिहाज से हासिल वसूल किया जाएगा।
(4) जो लगान बंदोबस्त से मुकर्रिर कर दिया जाएगा वह 10 साल तक बराबर कायम रहेगा और अरसे मजकूर में मुकर्रिरा हासिल से जादे वसूल नहीं किया जावेगा।
(5) जुमले मुलाजिमान जेर हवालात व कैदियान से मिलने के लिए दरख्वास्त सादा कागज पर ली जावेगी।
(6) कस्बात में जो आशखास किराए की सवारियां या जानवर चलालेंगे उनको कवायद जो मूरतिव किए जाएंगे। उनके माफिक लाइसेंस लेना लाजमी होगा और किराए की शहर की मुकर्रर कर दी जावेगी देहात में भी गाड़ियों और जानवरों के लिए किराए की शरह भी मुकर्रिर की जाएगी। सरकारी जरूरतों के लिए तहसीलदारों और थानेदार के जरिए से गांव में हस्ब जरूरत सवारियां और बारबरदारियां मुकर्रिरा किराए पर ली जावेगी। सरकारी जरूरतों पर बगैर माकूल वजह के सवारिया बारबरदारी देने से कोई शख्स इंकार करेगा तो वह शख्स मस्तूजिब जुर्माना होगा जिसकी तादाद ₹10 तक होगी। यह सजा चालान होने पर अदालत से तजबीज हुआ करेगी।
(7) अदालतों की तरमीम की जदीद स्कीम मंजूर की जा चुकी है जिस पर जल्दी ही अमल शुरू किया जाएगा। इस अमर का लिहाज करके कि काश्तकारी का पेशा करने वालों को फसल के बोने काटने या इकट्ठा करने में कोई दिक्कत न हो। दीवानी मुकदमा जिनमें काश्तकारी पेशा वाले फरीक हों उनमें जहां तक मुमकिन होगा जुलाई, अगस्त, सितंबर और अक्टूबर के महीनों में तारीख पड़ेगी। फौजदारी मुकदमात में काश्तकारी पेशा वाला कोई फरीक होगा उन मुकदमात में जहां तक मुमकिन होगा माह मजकूरु में कार्रवाई मुल्तवी रखी जावेगी और जिन मुकदमात में जमानत हो सकती है और जमानत लेने में कोई हर्ज नहीं हो तो अदालतें जमानत ले लिया करेंगी।
(8) इंतजाम की असलूबी के लिए महसूल जकात सबसे यकसां और बराबर तरीके पर वसूल होना जरूरी है। इसलिए जकात की तमाम माफियां जो इस वक्त हैं मंसूख की जाती हैं और आइंदा हर एक शख्स से जकात बमूजिब कवायद मुरव्विजा ली जाया करेगी।
(9) इलाके के हाजा में तालीमी तरक्की की स्कीम जेर गौर है और इस साल चंद जदीद स्कूलों के जारी करने का इरादा है। तालीमी सहूलियतें रिआया के लिए यकसां होंगी और जो स्कॉलरशिप कायम की जाएगी वह सालाना इम्तिहान के नतायज के लिहाज से या खास सूरत में तालिबे इल्म की माली हालत देखकर बिला किसी कौमी तफरीक के दी जावेगी।
(10) सरकारी मुलाजमतें काबिलियत के लिहाज से बिला कौमी तफ़रीक के रिआया सीकर को दी जावेंगी
(11) बंदोबस्त की जरीब जो रायज है दुरुस्त है। इसमें कोई तरमीम नहीं की जाएगी।
(12) काठों के इस्तेमाल की पहले से मुमानियत है जो कभी इस्तेमाल नहीं होंगे।
(13) पंचायतों की तस्वीर जेर गौर है, पंचायतें वक्त तक मुफीद साबित नहीं हो सकती जब तक रिआया की तालीमी तरक्की ना हो। मगर ताहम कवायद मुरतिव हो जाने पर इमतहानन सिर्फ 2-3 देहाती पंचायतें कायम करने विचार है।
(14) चाकराने तबेला उन खेतों में से जिन से लगान लिया जाता है घास नहीं काटेंगे।
(15) रिआया को तिब्बी इमदाद पहुंचाने की गर्ज
से जहीद डिस्पेंसरियों के कायम करने की स्कीम जेर गौर है।
(16) इलाके हाजा के ठिकानेजात माफ़ीयात या जागीरों की निस्बत जियादनी लगान या कसरत लाग के बाबत जो शिकायतें हैं उनके मुतालिक बाद तहकीकात तजबीज पेश होने पर मुनासिब हुक्म दिया जाएगा।
लाग का सवाल अभी जेर गौर है और तहकीकात है अकब सै इसके मुतालिक भी अहकाम जारी किए जाएंगे।
बतामील ऐलान मज्कूरा सदर जुमले का कश्तकारान को लाजिम है के वह अपना जिमगी बकाया लगान फोरन अदा करें और इलाके में हर तरह से अमन अमान रखें।
दौरान तहकीकात हमने इस बात को महसूस किया है कि मौजूदा जाट लीडरान आम कौम जाट के हुक़ूक़ को पेश नहीं करते बल्कि अपने अपने जाति तकलीफों का जिक्र करते हैं। ऐसे खुदगर्ज लीडरान से आम कौम जाट को फायदा पहुंचाने की उम्मीद नहीं की जा सकती। इसलिए जुमले देहात सीकर के जाटों को चाहिए कि वह अपने ऐसे लीडर मुंतखिब करें कि जो इलाका सीकर के आम कॉम जाट से बाजबी मुतालाबात को नेक नियति के साथ हुकाम के पेश कर सकें। क्योंकि इलाके सीकर में इम्तिहानन दो तीन देहाती पंचायतें कायम करना तय हो चुका है। इसलिए जुमले जाटान इलाका सीकर को चाहिए कि वह अपने इलाके के चीदा-चीदा बेलौस और कौम के सच्चे खैरख्वाह पंचों के नाम हमारे पास पेश करें। ....ए. डबल्यू. टी. वेब सीनियर अफसर, सीकर
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सीकर के जाट किसानों को यह ऐलान तनन भी संतुष्ट न कर सका और उनकी पंचायत ने इसके जवाब में निम्न पत्रक प्रकाशित किया।
इस एलान से सीकर के किसानों के दुख दूर नहीं हो सकते। 15 जुलाई 1934 को मिस्टर ए.डबल्यू.टी. वेब साहब सीनियर ऑफिसर सीकर ने राव राजा साहब सीकर की मंजूरी से ऐलान अपने इजलास से निकाला है, वह निराशाजनक है। ऐसा निर्णय सीकरवाटी जाट पंचायत अपने विशेष मीटिंग द्वारा 16000 की उपस्थिति में 29 जुलाई 1934 को कर चुकी है। सीकर के समस्त किसान जिन कारणों और कमियों से एलान को अपूर्ण और निराशाजनक समझते हैं, वह इस एलान में जोकि पंचायत द्वारा प्रकाशित कराया जाता है, नीचे दिए गए हैं:
1. पंचायत का यह दृढ़ विश्वास है यदि सीनियर ऑफिसर साहब अपने वादे के अनुसार कमीशन द्वारा किसानों की तकलीफ और शिकायतों की जांच करा कर निर्णय देते तो वह निर्णय अवश्य ही इस एलान से अच्छा और आशाप्रद होता क्योंकि जांच के समय उन्हें किसानों की वास्तविक आर्थिक हीन अवस्था और राज के अधिकारियों का उनके प्रति अब तक रहे कडवे रुख का अध्यन हो जाता है।
2. यह ऐलान इसलिए भी संतोषदायक और परिपूर्ण नहीं बन सका है कि यह केवल सरकारी कर्मचारियों से पूछताछ कर के निकाले हुए नतीजे पर निकाला गया है।
3. इसे प्रकाशित करने से पूर्व किसानों के प्रतिनिधियों की इस पर कोई राय नहीं ली गई है। संभव था कि राय लेने के बाद के सीनियर साहब अवश्य ही इसकी कमियों को महसूस कर लेते।
पंचायत अथवा किसानों की दृढ़ सम्मत्ति है कि ऐलान को पूर्ण और संतोषप्रद बनाने के लिए सीनियर साहब नीचे लिखी बातों का समावेश और हेर फेर बिना किसी संकोच के करने की कृपा करें जिसके बगैर किसानों के कष्ट दूर होना मुश्किल है।
1. जायद लगान की छूट के साथ ही बकाया लगान वाले किसानों के साथ यह भी रियायत की जावे कि संवत 1990 में जिसके यहां कुछ भी पैदा नहीं हुआ है अथवा बहुत थोड़ा पैदा हुआ है और इसी कारण से लगान अदा करने में असमर्थ रहे हैं उनको असली लगान में से भी छूट और माफी दी जाए।
2. अगले साल यानी संवत 1991 में पहले के अमल के अनुसार लगान मुकर्रर न किया जा कर असली लगान में से बंदोबस्त के होने के समय तक ₹30 प्रति सैकड़ा छूट दी जाए क्योंकि संवत 1880 के बाद हासिल की शरह काफी बढ़ा ली गई है साथ ही उस समय से इस समय नाज का दाम भी बहुत गिर गया है।
3. बंदोबस्त के पूरा होने के समय तक दफा दोयम में लिखी बात अवश्य ही बरती जानी चाहिए। साथ ही जिन किसानों के कुछ भी पैदावार न हो अथवा बहुत कम हो उन
पर हासिल पैदावार को देखकर माफ भी होना चाहिए।
4. बंदोबस्त द्वारा लगान मुकर्रर हो जाने के बाद भी फसल की खराबी की हालत में असली लगान में से छूट और माफी देने का कायदा अवश्य रखा जाए।
5. कैदी और हवालाती मुल्जिमान के साथ उतना ही अच्छा व्यवहार किया जाए जितना किसी भी भारतीय सभ्य रजवाड़े और गवर्नमेंट में होता हो। पॉलिटिकल मुल्जिमान और कैदियों के साथ स्पेशल व्यवहार हो। महकमा जेलखाना वह हवालात महकमा जुडिशल के मातहत हो न कि पुलिस से संबंधित जैसा कि इस समय है कि जेल का इंस्पेक्टर जनरल भी वही है जो कि पुलिस का है।
6. बेगार को बुरी समझते हुए भी सीनियर साहब ने उसे कानूनी रूप देने की चेष्टा की है। किसानों को एकदम बेगार से मुक्त कर दिया जाए। सीनियर साहब अपने इस ऐलान को उन्ही लोगों पर लागू करें जो किराए पर अपनी सवारियां व गाड़ियां चलाते हों। किराए की शरह भी उन्हीं लोगों के लिए मुकर्रर की जाए। सरकारी काम में किराए की शरह लौटने समेत दी जाने का नियम भी शामिल हो।
7. अदालतों में पेशी के लिए जो किसानों की सहूलियतों के समय का ध्यान रखा गया है वह प्रशंसनीय हैं किंतु अदालतों का सारा कार्य हिंदी में होने का भी ऐलान होना चाहिए क्योंकि सीकर की 97 प्रतिशत प्रजा हिंदी भाषा भाषी है।
8. इस ऐलान में जकात संबंधी जो बात कही है वह हमारी मांग से बिल्कुल भिन्न है। हमारी तो यह मांग है कि सीकर राज्य में ही पैदा होने वाली तथा सीकर इलाके में ही
एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने वाली वस्तुओं पर कोई जकात नहीं ली जावे और न उन चीजों पर लीजावे जिनकी जकात बाहर से आने के कारण जयपुर ले लेता है।
9. तालीम के लिए हमने जो मांग वाइस प्रेसिडेंट साहब कौंसिल जयपुर के सामने पेश की थी वह इस प्रकार है- “ठिकाने की आमदनी का आठवां हिस्सा किसानों की शिक्षा के लिए पंचायतों की मार्फत खर्च होना चाहिए” सीनियर साहब के ऐलान में यद्यपि यह बात अभी जोर गौर है किंतु फिर भी हम बता देना चाहते हैं शिक्षा के लिए इससे कम रकम से काम चलाने में सुविधा नहीं हो सकेगी।
10. किसान पेशा लोगों के साथ में काबिलियत (योग्यता) का नियम कम से कम अगले 10 साल तक लागू नहीं होना चाहिए। उन्हें तो जनसंख्या अथवा टैक्स की अदायगी के औसत से सरकारी मुलाजिमतें दी जानी चाहिए। उन शर्तों की पूर्ति के लिए उन्हें अधिकार दिया जाए कि वह बाहर से भी अपने सजातीय बुलाकर भर्ती करा सकेंगे। (भरतपुर, अलवर और कश्मीर के बहुसंख्यक किसानों के साथ भी यही रियायत हुई है)
11. बंदोबस्त सही जरीब से नहीं हो रहा है। पंचायत तथा किसान इस बात को दृढ़ता के साथ दोहराते हैं। कम से कम जयपुर की प्रचलित जरीब से बंदोबस्त कराए बिना किसानों का हित नहीं हो सकता और न इस जरीब को किसान रायज मानने को तैयार हैं जिससे कि बंदोबस्त हो रहा है, इस निर्णय पर सीनियर साहब फिर गौर करें।
12. काठ के उठाने के साथ ही यह ऐलान होना आवश्यक है कि कोई भी ऐसी सजा लगान उगाई के समय
न दी जावेगी जो गैर कानूनी है जैसे - खाट के नीचे हाथ रखकर दबाना, स्त्रियों की चोटी पकड़कर खींचना, सिर पर पत्थर रखकर मारना, कोठरियों में बंद करके भूखा प्यासा रखना आदि आदि।
13. पंचायतों की बात पर अभी सीनियर साहब गौर कर रहे हैं किंतु इस बात का ध्यान अवश्य रखें कि पंचायतें जनता द्वारा चुने मेंबरों से बनाई जाया करें और उनका चुनाव प्रतिवर्ष या तीसरे वर्ष हुआ करे। यह जनता की मर्जी पर छोड़ा जावे कि वह सभी कौम की सम्मिलित पंचायत बनाएं अथवा अपनी कौम के अलग-अलग।
14. गांव में पशुओं के चरने के लिए जो गोचर भूमि होती है ‘चाकराने तबेला’ उसमें से घास न काटा करें। सरकारी घोड़े और बैलों के लिए राजा अपना अलग जंगल रखें जैसाकि रजवाड़ों में महकमा जंगलात अलग होते हैं।
15. डिस्पेंसरियां अधिकतर देहात में खोली जावें और पंचायतों की देखभाल में हों।
16. इलाका सीकर के अंदर जो माफीदार, ठिकानेदार और जागीरदार हैं उनकी सख्तियों को रोकने के लिए यही आवश्यक है की लगान उगाई के अधिकार उनसे ले लिए जाएं। उनका लगन उन तहसीलों द्वारा, जिनमें कि वे स्थित हैं, वसूल कराकर दिला दिया जाया करे। उनके किसानों के लिए सारी रियायतें दी दी जावें जो इलाका सीकर में दी जा रही है अथवा दी जाएंगी। शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए भी उनके ठिकानेदारों, तथा जागीदारदार माफीदारों से लगान में से वाजिब कर ली जया करे। इलाका सीकर के इन ठिकानेदार
जागीरदार और माफीदारों में से अधिकांश कीकर और रोहिड़ा नाम के पेड़ों पर पिछले दो-तीन साल से अधिकार बताने लगे हैं। ऐलान में यह बात भी स्पष्ट कर देनी चाहिए कि सभी प्रकार के वृक्षों पर उन्ही किसानों का अधिकार होगा जिनके कि वह खेतों में होंगे, ताकि किसान और ऐसे लोगों के बीच कोई झगड़े की बात शेष न रह जाए।
सारी लागें गैर कानूनी और असभ्यता पूर्ण हैं। यह सदैव किसानों से ठिकानेदारों अथवा अधिकारियों ने बलप्रयोग से वसूल की हैं। इसलिए सीनियर साहब इनको उठा देने के सिवा इनमें दूसरी किस्म का कोई गौर करने का कष्ट ना करें।
सीनियर साहब ने अपने ऐलान में एक बात बिल्कुल बेमौके और बेबुनियाद कह डाली है वह यह है कि सीकर के जाट किसानों के लीडर हैं खुदगर्ज होने का सबूत आप यह पेश करते हैं कि वह लोग आम लोगों की शिकायतें पेश करने के बजाय अपनी अपनी निजी तकलीफों का जिक्र करते हैं। हम कहेंगे सीनियर साहब जैसे जिम्मेदार अफसर की कलम से ऐसी बात का लिखा जाना हरगिज़ उचित नहीं। खुदगर्ज लोगों के बीच में घिरे रहने के कारण ही उन्होंने किसी के कहने से ऐसी बात लिखी जान पड़ती है। यह सही हो सकता है कि किसी-किसी हमारे कार्यकर्ता ने कोई निजी तकलीफ भी सीनियर साहब के सामने बयान कर दी हो किंतु यह कब, जब सीनियर साहब हर वक्त कहते रहे हैं कि अपनी छोटी से छोटी तकलीफ का हाल मुझसे कहो। यदि जाट किसानों के अंदर फूट डालने के इरादे से किसी ने सीनियर साहब से यह बात लिखाई हो तो उसका इरादा और भी घृणित है। यह इल्जाम ऐसा है जो शांति के स्थान पर अशांति पैदा करता
है। चाहिए तो यही था की सीनियर साहब ऐलान में ऐसे शब्दों को कतई न रखते।
अंत में सीकर के समस्त जाटों के प्रतिनिधि की हैसियत और अपने 29 जुलाई 1934 के निश्चय के अनुसार हम इतना दोहरा कर अपनी विज्ञप्ति को समाप्त करते हैं कि सीनियर साहब का ऐलान हमारे मेमोरियल की मनसा को पूरा नहीं करता। इसलिए वह तब तक स्वीकार होना कठिन है जब तक ऊपर लिखित बातों का उसमें समावेश और संशोधन न हो जाए।
- देवासिंह बोचल्या,
- मंत्री सीकर वाटी जाट क्षत्रिय पंचायत
इस बीच पंचायत के सेक्रेटरी देवा सिंह बोचल्या को गिरफ्तार कर लिया गया। किन्तु स्थिति इस से भी वेब साहब के काबू में नहीं आई। जाट बराबर अपना काम प्रचार और संगठन संबंधी करते रहे, तब विवश होकर तारीख 23 अगस्त 1934 को वेब साहब ने जाटों के लीडरों को बुलाकर समझोता किया।
तसफिया नामा
यह तसफिया नामा आज 23 अगस्त 1934 को मुकाम सीकर इस गर्ज से तहरीर हुआ कि सीकर और जाटान सीकर के देरीना झगड़े का खात्मा किया जाए।
सीकर की जानिब से ए. डब्ल्यू. टी. वेब ऐस्क्वायर सीनियर ऑफिसर सीकर, दीवान बालाबक्स, रेवेन्यू अफसर और मेजर मलिक मोहम्मद हुसैन खान अफसर इंचार्ज पुलिस, किशोर सिंह, मंगलचंद मेहता और विश्वंभर प्रसाद सुपी: कस्टम।
जाटान की तरफ से –
- हरू पलथाना का प्रेसिडेंट सीकर जाट पंचायत,
- गौरू कटराथल का सेक्रेटरी,
- पिथा गोठड़ा का,
- ईसरा भैरूपूरा का,
- पन्ना नाऊ का।
मंदरजे जेर बातें दोनों फरीको ने मंजूर की और जाट पंचायत ने यह समझ लिया है कि यह फैसला जब जरिए रोबकारे जारी किया जाएगा तमाम जाटान सीकर इसकी पूरी पाबंदी करेंगे। अलावा इसके उन्होंने उस अमल का इकरार किया है कि उस फैसले के बाद जो जरिए हाजा किया जाता है आइंदा कोई एजीटेशन नहीं होगा और वह एजीटेशन को बंद करते हैं।
(ए) संवत 1990 का बकाया लगान 30 दिन के अंदर अदा किया जाएगा अगर कोई काश्तकार अपना कुछ भी बकाया लगान फौरन अदा करने में वाकई नाकाबिल है तो वह एक दरख्वास्त इस अमल की पेश करेगा कि इसके मुझे इस कदर मुतालबा दे और इसकी वसूली मुनासिब सरायल पर एक या ज्यादा साल में फरमापी जावे। राज ऐसी दरख्वास्तों को, जो वाकई सच्ची होंगी, वह उस पर गौर करेगा और उनसे बकाया रकम पर सूद नहीं लेगा अगर बकाया 20 दिन के अंदर तारीख इजराय नोटिस जेर फिकरा हजा से जमा करा दी जावेगी तो सूद माफ किया जाएगा।
(बी) बकाया लगान संवत 1990 का हिसाब लगाते वक्त जो कभी जेरे ऐलान मुवरखा 15 जुलाई 1934 को दी जानी मंजूर की गई है यह मुजरा दी जावेगी। जिन काश्तकारान ने जेर ऐलान जायद अदा कर दिया है जावेद
अदा सुदा रकम उनको उसी सूद के साथ वापस की जाएगी कि जिस शरह से कि उनसे सूद लिया जाता है।
(सी) आइंदा के लिए यह हरएक काश्तकार की मर्जी पर होगी कि वह बटाई देवे या लगान मौजूदा शरह से। बटाई का हिसाब हस्ब जेल होगा।
- (i) हर साल कम अज कम 75 फ़ीसदी जमीन का रकबा कास्त हरएक काश्तकार को करना होगा।
- (ii) रकबा काश्त की पैदावार में से आधा हिस्सा अनाज और तिहाई हिस्सा तरीका बतौर बटाई लेवेगा। रब्बा जो कास्ट नहीं किया जाएगा उस पर हर साल दो ने फी बीघा हिसाब से नकद लिया जाएगा।
जेल सीकर की तरतीब की जाकर बाकायदा बनाई जाएगी और आइंदा मेडिकल अफसर या जुडिशल अफसर के चार्ज में रहेगी। जेल पुलिस अफसर के चार्ज में नहीं रहेगी
जैसा की ऐलान किया गया है तमाम बेगार बंद की जाती हैं। कसबात में किराए पर बैलगाड़ी और ऊंट चलाने के लिए लाइसेंस असली कीमत पर दिया जाएगा। देहात में अगर राज के मुलाजिम को वार वरदारी की जरूरत होगी वह इंडेंट मेहता को दे देगा जो वारवारदारी का इंतजाम करेगा और काश्तकार को एक याददाश्त पर्छ दिया जाएगा जिसमें दर्ज किया जावेगा कि काश्तकार इस कदर फासले पर ले जाना है। बारबरदारी को शरह किराया वही होगी जो अब
राज्य में है मगर खाली वापसी सफर की सूरत में किराएदार को निशंक किराया दिया जावेगा।
आइंदा से दफ्तर सीकर की जबान हिंदी मुकर्रर की जाती है।
जो अस आय इलाके सीकर के अंदर एक देहात से दूसरे देहात में ले जाई जावे उन पर आइंदा से जकात नहीं ली जाएगी। घी और तंबाकू पर जकात आइंदा से खुर्दा फ़रोसों से ली जावेगी जिनको लाइसेंस हासिल करने होंगे। जिनके कवायद मुर्त्तिव किए जाएंगे।
मुंदरजा वाला से मौजूदा आइंदा कायम होने वाली म्युनिसिपल कमेटियों के हदूद दरबारे लगान चुंगी उन चीजों पर कि जो उनके म्युनिसिपल हदूद के अंदर आवे कोई असर नहीं होगा।
सब लालबाग जो जमीन के कर की परिभाषा में नहीं आती है हटा दी जाएंगी।
बंदोबस्त के समय जयपुर के टेनेंसी एक्ट के अनुसार जमीन पर किसानों के मौरूसी हक़ होंगे।
लगान तय करते समय बंदोबस्त में जाट पंचायत से सलाह ली जाएगी।
[पृ.271]
9. मंत्री रिहा
पंचायत के मंत्री ठाकुर देवी सिंह जी बोचल्या को बिना शर्त छोड़ दिया जाएगा।
इस फैसले का प्रभाव: जाटों और ठिकाने के बीच यह जो फैसला हुआ समाचार पत्रों ने प्रसन्नता प्रकट की और दोनों पक्षों को इसे निभाने की सलाह दी। यहां तक हिंदी के कुछ समाचार पत्रों के अग्रलेख और टिप्पणियां देते हैं।
सीकर आंदोलन की पूर्णाहुति
अन्यत्र प्रकाशित जयपुर के एक संवाद से पता चलता है कि सीकर के जाट आंदोलन को वहां के सीनियर ऑफिसर मिस्टर वेब ने जाटों की सब मांगे मान कर समाप्त कर दिया। यदि यह संवाद सत्य है तो हम मिस्टर वेब और जाटों दोनों को भी बधाई देते हैं। मिस्टर वेब को इसलिए कि वह दुरंगी भेद-नीति के कुमार्ग पर जाते-जाते रुक गए और जाटों को इसलिए कि उनका यज्ञ सफल हो गया। कुछ ही दिन पूर्व समाचार आया था कि मिस्टर वेब लाग लगाम बेगार आदि की जाटों की शिकायतों पर ध्यान नहीं दे रहे हैं और कुछ-एक स्कूल खुलवाकर ही प्रोपेगंडा द्वारा तथा आंदोलनकारियों के दमन द्वारा जाटों का मुंह बंद कर देना चाहते हैं। तब हमने लिखा था कि स्कूल अस्पताल आदित्य पीछे की बातें हैं पहले लाग लगान बेगार आदि का मूल अन्याय दूर होना चाहिए। मिस्टर वेब उसी मार्ग पर आ गए यह प्रसन्नता की बात है अब
[पृ.272]: जाट नेताओं को ध्यान इस तरह देना चाहिए की समझौता कोरा कागजी या जवानी ना रह जाए उस पर अमल भी ठीक प्रकार किया जाए। (टिप्पणी: अर्जुन 5 दिसंबर 1934)
सीकर के किसानों की विजय किस प्रकार हुई
ठिकाने से समझौता हो गया
जनता को यह जानकर प्रसन्नता होगी कि सीकर के जाटों का आंदोलन अंत में प्रशंसनीय सफलता के साथ समाप्त हुआ है। किसानों की मांगों में से अधिकांश पूरी कर दी गई हैं। निशंदेह जमीन का लगान जो रखा गया है वह बहुत अधिक है और अनुचित अवश्य है तो भी सीनियर अफसर की सब इच्छाओं पर विश्वास करते हुए किसान आंदोलन समाप्त करने के लिए सहमत हो गए हैं। सब संबंधितों के साथ न्याय करने के लिए यह अवश्य ही कहना पड़ेगा कि किसानों की ओर से कुँवर रतन सिंह सभापति राजपूताना जाट महासभा भरतपुर, ठाकुर झम्मन सिंह एडवोकेट मंत्री अखिल भारतीय जाट महासभा, अजमेर के वी.एस. पथिक आदि और ठिकाने की ओर से कैप्टन वेब सीनियर ऑफिसर सीकर के सुप्रयास और बुद्धिमानी पूर्ण सुकृत्यों तथा निर्देश के बिना आंदोलन का, बिना एक भी दुर्घटना के, अंत और अनूठा समझोता होना असंभव था। मि. जोन्स वाइस प्रेसिडेंट स्टेट कौंसिल और मि. यंग आई जी पुलिस जयपुर तथा ब्रिटिश भारत प्रेस भी अपनी उस सहानुभूति के लिए जो कि उन्होंने पीड़ित किसानों के प्रति प्रगट की तथा
[पृ.273]: उपरोक्त सफलता में जिसका कुछ कम भाग नहीं है यह सभी बधाई के पात्र हैं।
किसानों और सीकर ठिकाने के बीच हुए समझौते की मुख्य मुख्य शर्तें नीचे लिखित हैं:
- 1. सब लागें और अतिरिक्त कर हटा दिए जाएंगे।
- 2. बढ़ाया हुआ जमीन कर छोड़ दिया जाएगा और जो वसूल किया जा चुका है वह लौटा दिया जाएगा।
- 3. नौकरियां और शिक्षा के संबंध में विशेष सुविधाएं।
- 4. अदालत भाषा हिंदी होगी।
- 5. जाट पंचायत स्वीकृत संस्था होगी।
- 6. रेवेन्यू सेटलमेंट की अवधि समाप्त होने पर नया जमीन कर तय करते समय पंचायत की भी संमत्ति जानी जाएगी।
- 7. जयपुर के टेनेंसी एक्ट के अनुसार किसानों को जमीन पर मौरूसी अधिकार रहेंगे।
- 8. बेगार और बर्बर दंड सर्वथा ही हटा दिए जाएंगे।
- 9. ठाकुर देवी सिंह मंत्री जाट पंचायत बिना शर्त के छोड़ दिए जाएंगे
....नवयुग 11 सितंबर 1934
यह समझौता मानने लायक था, हालांकि इससे किसानों की मांगे पूर्णतया प्राप्त नहीं होती तो भी समझोतों में दोनों पार्टियों को झुकना ही पड़ता है। किंतु कुछ “उग्रवादी” किसानों को यह कहकर बहका रहे थे कि समझौते द्वारा मिला ही क्या है। उधर राजपूत जागीरदार सीकर ठिकाने के कर्मचारी समझौते को खत्म कराणे के षड्यंत्र रच रहे थे। ठाकुर देशराज ने सीकर के जाटों के नाम एक छोटा सा वक्तव्य दे
[पृ.274]: कर यह अपील की कि इस समझौते के मानने में ही अधिक भलाई है। (अर्जुन 15 सितंबर 1934)
उधर मातहत अधिकारियों के कहने से मिस्टर वेब ने समझौते को अमल में आने से पूर्व बकाया लगान वसूल करा देने के लिए पंचायत पर जोर डाला। पंचों ने भरसक कोशिशें लगान वसूल करा देने की की। किंतु लगान उगाई में सरकारी अधिकारियों ने अधिक सख्ती और बेईमानी करना शुरू किया। चैनपुरा1 के चौधरी जवाहर सिंह जी के पास लगान चुका देने की रसीद थी फिर भी उनसे लगान मांगा गया। जिन खेतों को कहीं कहीं किसानों ने जोता भी नहीं था, ठिकाने ने ही उनमें घास पैदा कराई थी, उनका भी उन किसानों से लगान मांगा जाने लगा। इसका नतीजा यह हुआ कि जो आग 6-7 महीने धधकने के बाद अगस्त में शांत हुई थी वही नवंबर-दिसंबर से फिर भभकने लगी।
समझौता टूटने के आसार किस प्रकार पैदा हुए यह 19 नवंबर 1934 के लोकमान्य में प्रकाशित इस समाचार से भली-भांति समझ में आ जाती है। अधिक जानकारी हासिल करने के लिए दिल्ली के तेजस्वी दैनिक अर्जुन की टिप्पणी भी पढ़ने की चीज है जो उसने समझौता करने से पहले दिए गए मि. वेब के वक्तव्य पर लिखी थी उसे भी हम यहां दे रहे हैं।
1. इस गाँव का सही नाम चँदपुरा है। Laxman Burdak (talk)
सीकर का समझौता भंग हुआ
सीकर के समझौते की अभी स्याही भी नहीं सूखने पाई थी कि सीकर के अधिकारियों ने समझौते के विरुद्ध
[पृ.275]: कार्रवाई करना आरंभ कर दिया है। वैसे तो समझौते के समय ही अधिकारियों ने समझौते में उर्दू-फारसी के शब्दों को मनमाने रूप में लिखकर अशिक्षित जाट किसानों को डरा दबाकर दस्तखत करा लिए थे। जिन्हें पीछे से कुँवर रतन सिंह (प्रधान राजस्थान जाट सभा) ने कुछ संभाला था। परंतु उसके बाद भी अधिकारियों ने कभी गोचर भूमि पर लगान लगाने की बात कहना आरंभ किया, तो कभी घी तंबाकू पर जो कस्टम माफ कर दिया था उसे फिर लगाने की बात कहने लगे। नौकरियों में भी जाट किसानों के 1-2 प्रतिनिधि लेकर बहाने बनाने लगे। इन छोटी-छोटी बातों को किसान सहन करते रहे। अब सीनियर अफसर ने स्वयं फसल की खराब हालत देखते हुए भी समझौते के खिलाफ पंचायत से राय न लेकर शरह पैदावार से भी कहीं अधिक कर दी है। किसान अपनी पैदावार का समस्त अनाज देकर भी उस भारी लगान से पीछा नहीं छुड़ा सकता। साल भर की मेहनत और आगे के लिए बच्चों के खिलाने की तो बात ही क्या है।
लगान की इतनी शरह राज्य द्वारा लगने की बात सुनकर निर्दई व स्वार्थी मेहता अथवा चौधरी को भी दया आ गई और उन्होंने उस तरह लगान पर दस्तकत करने से साफ इनकार कर दिया।
राज्य वालों ने 700 महताओं में से जबरदस्ती बंद करके 100 के दस्तखत करा लिए। कैप्टन साहब ने जब इस तरह की जबरदस्ती का हाल सुना तो उन्होंने ऐसा न करने की हिदायत की परंतु नीचे के अधिकारियों ने फिर भी दो चौधरियों को रात भर बंद रखा। टोल के टोल सीकर
[पृ.276]: चले आ रहे हैं अब तक 2000 किसान सीकर में इकट्ठे हो चुके हैं और उन्होंने कैप्टन वेब साहब के पास न्याय की प्रार्थना की है। इस दरख्वास्त में यह मेहताब चौधरी भी शामिल है जिनसे राज्य अधिकारियों ने जबरदस्ती लगान की शरह पर दस्तकत करा लिए हैं। यदि न्याय न हुआ तो सीकर वाले भी शेखावाटी वालों की भांति जयपुर दरबार में अपील करेंगे।.... लोकमान्य 10 नवंबर 1934
ठिकाना सीकर के सीनियर ऑफिसर मि. वेब ने एक बयान प्रकाशित कराया है कि मैं जाट आंदोलन के विषय में रियासत जयपुर के प्रधानमंत्री से सलाह मशवरा कर चुका हूं और शीघ्र ही सीकर में ऐसे अनेक सुधार किए जाएंगे, जिनसे जाटों की मांग पूरी हो जाएगी। परंतु यदि इन सुधारों के बाद भी जाट आंदोलन बंद न हुआ तो आंदोलनकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने को विवश होना पड़ेगा। हमें मिस्टर वेब के इस वक्तव्य की तह में ब्रिटिश सरकार की दुरंगी नीति छुपी दिखाई हुई पड़ रही है। इसमें संदेह नहीं कि जाट किसानों के लिए नए स्कूल हॉस्पिटल आदि का खोला जाना आवश्यक सुधार है और इनके लिए जाटों को मिस्टर वेब का कृतज्ञ भी होना चाहिए, परंतु इनकी अपेक्षा भी अधिक आवश्यक तथा महत्वपूर्ण बात है उसको मि. वेब ने नजर अंदाज ही कर दिया प्रतीत होता है, वह है जाट किसानों की अनुचित भारी जमीन लगान तथा अनेक अन्याय पूर्ण लागों से रक्षा करना। किसानों के आंदोलन का मुख्य कारण ही उनका आर्थिक कष्ट है। यदि मि. वेब की चाल यह हो कि नए स्कूलों तथा
[पृ.277]: हॉस्पिटल के बल पर ठिकाने की तरफ से यह प्रत्यान्दोलन किया जाए कि ठिकाने ऐसी-ऐसी नई-नई सहूलियतें प्रजा को पहुंचाई और इस प्रकार वे जाटों को अपनी तरफ फोड़कर जाट आंदोलनकारियों को दमन द्वारा कुचल दिया जाए तो यह अत्यंत निंदनीय है और जाट किसान जनता को अभी से सावधान हो जाना चाहिए। इस चाल में आने से बचे रहना चाहिए। हां, यदि हमारा संदेह ठीक ना हो और मि. वेब ईमानदारी के साथ स्कूलों आदि के आरंभ करके धीरे धीरे आर्थिक सुधारों पर भी पहुंचना चाहते हैं तो हम जाट जनता को सलाह देंगे मि. वेब की सहायता करें। ....अर्जुन 23 अगस्त 1934
सीकर ठिकाने ने इस बीच आंदोलन को ठंडा करने के लिए एक और चाल चली। राव बहादुर चौधरी लालचंद जी की सिफारिश किए हुए किसी चौधरी राजसिंह को सीकर में फौजदार (मुंशिफ) और ठाकुर झम्मन सिंह जी मंत्री जाट महासभा के एक स्वजन ठाकुर साहब सिंह जी को तहसीलदार के ओहदे पर लेकर बाहरी जाटों की जबान बंद करनी चाही किंतु इससे उसे फायदा कुछ भी नहीं हुआ। यूं तो उसने कुदन के चौधरी सुखदेव जी को जाट आंदोलन के खिलाफ इस्तेमाल किया किंतु जब दावानल लगती है तो उसे ओस के कण नहीं बुझा सकते।
असली उपचार जो ईमानदारी का था वह ठिकाने ने नहीं किया। एलान किया छूट देने का और वसूल होने लगी डबल। कहा यह गया कि जो दे नहीं सकता है उसकी किस्त हो जाएगी। किन्तु होने लगी कुर्किया और दाढ़ी मूछों की मरम्मतें।
[पृ.278]: 15 मार्च 1935 को चौधरी सर छोटूराम जी के प्रयत्न से एक समझौता और हुआ उसके अनुसार पिछली सहूलियतों के अलावा निम्नलिखित सहूलियतें और देना स्वीकार किया गया:
- 1 किसानों के लगान में साढ़े 4 आना और 5 आना छूट दी जाएगी
- 2 जाट हाथी पर बेरोकटोक चढ़ सकेंगे
- 3 जमीन के बंदोबस्त के लिए ब्रिटिश इलाके से एक अनुभवी अफसर बुलाया जाएगा
संभावना यह थी की यह दोनों समझौते अवश्य ही अमल में आ जाएंगे किंतु इस समझौते के ठीक पांचवें दिन एक ऐसी दुर्घटना हुई जिसने सारा खेल बिगाड़ दिया।
खुड़ी के जाटों की एक बारात गई हुई थी। वहां के भौमिए राजपूतों ने घोड़ी पर चढ़ कर तोरण मारने से जाट वर को रोक दिया। जाटों ने सीकर के अधिकारियों से भौमियों के इस अनुचित हस्तक्षेप के खिलाफ कार्यवाही करने की प्रार्थना की। सीकर के अधिकारियों ने भौमियों को नेक सलाह देने के बजाय दूल्हे के एक संबंधी को गिरफ्तार कर लिया। इसका नतीजा यह हुआ कि भोमियों का दिमाग और शह पर चढ़ गया और उन्होंने दूसरे दिन रतना चौधरी का, जब कि वे जा रहे थे, सिर काट लिया। जाट इस पर भी शांत रहे। इन्होंने तोरण मरने के लेए धरणा दे दिया, बारात वापस नहीं की। तारीख 27 मार्च 1934 को वेब घटनास्थल पर पहुंचे और उन्होंने लाठीचार्ज का हुक्म दे दिया। यह लाठीचार्ज क्या था जान देने वाला कांड था। इसमें 4 आदमी जान से मर गए। और 100 के लगभग घायल हुये। ....कर्मवीर खंडवा 25 मई 1936
[पृ.279] इससे आगे का विवरण कर्मवीर के इसी अंक में इस प्रकार प्रकाशित हुआ अस्पृश्यता की ही परिणाम है।
सीकर की भयंकर घटना पर टिप्पणी करते हुए महात्मा जी ‘हरिजन’ में लिखते हैं... जयपुर राज्य के अंतर्गत सीकर के ठिकाने में खुड़ी नाम का एक छोटा सा गांव है। मेरे पास जो पत्र आए हैं उनसे इस बात की पुष्टि होती है कि गत 28 मार्च 1934 को राजपूतों की एक टोली ने जाटों की एक बारात को घेर लिया। बेचारे निहत्थे जाटों पर उसने बुरी तरह लाठियां बरसाई-- गुस्ताखी बारातियों की यह थी कि उनका दूल्हा घोड़े पर सवार था। [कहीं-कहीं तो राजपूतों के सामने गरीब जाट न तो खटिया पर बैठ सकते हैं न हुक्का ही नली लगाकर पी सकते हैं] इधर दुनिया के इस हिस्से में रवाज मालूम देता है कि शादी-ब्याह के अवसर पर जाटों को हाथी या घोड़े की सवारी के लोग में नहीं आना चाहिए। यह विश्वास किया जाता था कि दोनों पार्टियों में समझौता हो गया है और किसी भी अवसर पर जाट लोग हाथी या घोड़े को सवारी के काम में ला सकते हैं। इन घटनाओं से तो यह जाहिर होता है कि जिसने यह करार कराया था वह उसका पालन कराने में राजपूतों पर जो जोर नहीं डाल सका। कहा जाता है कि राजपूतों ने इस लाठीचार्ज के पहले ही एक जाट को कत्ल कर दिया। 40 आदमी से ऊपर ही लाठियों से सख्त घायल हुये और एक आहात तो बेचारा मर ही गया।
[पृ.280]: हमें आशा करनी चाहिए कि राज्य के अधिकारी इस मामले की पूरी पूरी तहकीकात करेंगे और गरीब जाटों को उचित संरक्षण देंगे कि जिससे वे उन सभी अधिकारों को अमल में ला सकें जो मनुष्य मात्र को प्राप्त है।
पाशविकता की पराकाष्ठा
खुड़ी काण्ड के पश्चात राज्य अधिकारियों ने जाटों पर होने वाले अन्याय की ओर से बिल्कुल आंखें मीच ली। सीकर में जो भी जाट आया पुलिस वालों ने उसे पकड़ा और पीटा। कई स्थानों पर जाटों को गांव में भी पीटा गया। कस्बों में भी पुलिस के इशारे पर जाटों के साथ दुर्व्यवहार होने लगे। जो आदमी माल बेचने गया उसे पीटा, माल छीन लिया गया। जाट भयभीत हो गए और कस्बों में जाना बंद कर दिया। जाट जयपुर पुकारने गए। जयपुर के अधिकारियों ने डेपुटेशन से मिलकर उनकी बातें सुनने के लिए एक तारीख निश्चित की और रिप्रजेंटेशन मांगा। परंतु इसी बीच कैप्टेन वेब साहब जयपुर आए और जयपुर अधिकारियों का रुख बदल गया। जाटों ने विनय की कि समझौते के अनुसार 3 माह में सब लगान अदा करने को तैयार हैं। हमारी जान माल की रक्षा का प्रबंध कर दिया जावे और खुड़ी कांड की जांच कर दोषी अधिकारियों को दंड दिया जाए। परंतु उल्टा जयपुर राज्य ने जाटों के नेताओं को निर्वासित कर वेब साहब को विशेष अधिकार ऑर्डिनेंस बनाने के दे दिये। सीकर अधिकारियों ने समझौते की परवाह नहीं की। गांवों में जबरदस्ती जाकर लगान उगाहना शुरू कर दिया। घरों से अनाज, कपड़े, जेवर वगैरह जबरदस्ती चीन लिए और मारपीट की। नौबत यहां तक पहुंची की कुदन में एक ही दिन में सुबह शाम दो
[पृ.281]: समय अधिकारियों ने गोली चलाई और घरों को लूटा। अभी तक कूदन में कितने मरे कितने घायल हुए इसका पता ठीक से नहीं लगा क्योंकि वहां पर किसी बाहर के आदमी को नहीं जाने दिया जाता। तमाम गांव का लगान एक जाट से वसूल किया और ₹600 जुर्माना लिया गया। सामान घरों से निकाला गया, बर्तन भांडे तोड़े एवं लुटेर गए। किवाड़ तोड़कर घरों में से सैंकड़ों मन घी दूध फैला दिया गया, जिससे गांव में सड़ांध फैल गई। जो मिला उसी को मारा और गिरफ्तार कर लिया गया। एक प्रकार से पूर्ण मार्शल-लॉं की सी दशा कर दी। यह सब कुछ वेब साहब के पहुंचने पर हुआ। उसके बाद जो पुलिस वाले गांव में रही हुई अकेली स्त्रियों को काफी तंग किया।
कुदन के पश्चात गोठड़ा में: पुलिस और कप्तान वेब गोठड़ा गांव में भी पहुंचे। वहां पर गांव के प्रमुख चौधरी राम बक्स से मनचाहा लगान वसूल करना चाहा। वेब साहब पुलिस को लेकर मकान में घुस गए और उसके घर का समान अनाज कपड़े रुपया पैसा निकाल लिया। खेती करने के औजार, रोटी बनाने के बर्तन तक नहीं छोड़े। घर को नष्ट भृष्ट कर गाव के दूसरे चौधरी हरदेव सिंह से ₹600 उनके सब पड़ोसी किसानों के लगान भी वसूल किए। चौधरी राम बक्स और कुछ स्त्रियों को धूप में बिठाकर तंग किया।
जाट मास्टर की दुर्दशा: इस गांव से चलकर पलथाना गांव में दो जाटों से तमाम गांव का रुपया वसूल किया और जुर्माना लिया। गांव
[पृ.282]: के जाट मास्टर को गिरफ्तार कर लिया। पीछे इस मास्टर को फतेहपुर और लक्ष्मणगढ़ के कस्बों में घुमा कर जूते लगाए गए। इसके साथ एक मोटाराम जाट का भी यही हाल किया गया।
गांवों में तबाही के दृश्य
इस प्रकार के अन्यायों का तांता बन गया और गांवों में जाटों को पीटा जाने लगा। भैरूपुरा गांव में औरतों के बदन से उनका जेवर लगान में उतारा। चौधरी ईश्वर सिंह जिस पर केवल ₹ 53 लगान के थे 145 रुपए उनकी गैरहाजिरी में उनकी स्त्री से वसूल किए।
कनलाऊ गांव में तमाम गांव से पिछला माफ हुआ ₹750 भी वसूल किया गया। कई जाटों की मूछ काटी गई।
इसी प्रकार जेठवाँ के बास में रामू चौधरी को पीटा गया और फिर उससे तमाम गांव का ₹1700 लगान वसूल किया।
नाऊ नामक गांव में जाट पहले लगान दे चुके थे मगर फिर भी उनके यहां पुलिस ले जाकर खींमा नाम के जाट को बेइज्जत किया और पन्ने सिंह जाट का भी उससे वसूल कर ₹200 जुर्माना लिया गया। उसके भाई की दाढ़ी काटकर बेइज्जती की। यहाँ का स्कूल भी बंद करवा दिया।
राजास गांव में चार जाटों की दाढ़ी मूछें काटकर बेइज्जत किया गया।
भूमा गांव से औरतों का जेवर तक उतरवालिया और गांव से लगान के अलावा भारी जुर्माना वसूल किया गया।
रोरू गांव से ₹200 जुर्माना वसूल किया और मास्टर को पकड़ लिया।
कटराथल गांव में भी 1-2 जाटों का लगान बनिए व ब्राह्मणों से लिया गया।
[पृ.283] एक गांव में एक राजपूत से भी 2 घंटे में तमाम लगान देने को मेजर ने कहा और गालियां तक दी। उसे तंग कर तमाम लगान 2 घंटे में वसूल किया। इसी भांति एक गाँव में 6 ब्राह्मणों को बांधकर तमाम लगान वसूल करने के समाचार मिले है।
लादूराम और बिरम सिंह दो जाट किसी कारणवश सीकर आए थे उन्हें गिरफ्तार करके बुरी तरह पीटा गया। बीरमसिंह की हालत नाजुक कही जाती है। खुड़ी के राजपूतों के घस्सू गांव के 4 जाटों को पकड़कर मनमाना पीटा और पुलिस ने गिरफ्तार करा दिया।
सीकर अस्पताल में एक वृद्ध जाट जिस की अवस्था 60 साल की थी मर गया। उसकी लाश लेने 100 जाट आए थे। मृत जाट की लाश अग्नि संस्कार करने के लिए जाटों तथा उनके संबंधियों के मांगने पर भी अधिकारियों ने नहीं दी। बल्कि चमारों द्वारा लाश को फिंकवाकर जलवा दिया। इसके कारण जाटों में बड़ी सनसनी फैल गई।
सरदार पन्ने सिंह जी जाखड़ ग्राम कोलीड़ा को बहुत पीटा जा रहा है। पुलिस इंचार्ज के नाम पूछने पर उसने अपना नाम पन्नेसिंह बतलाया था। उसको अपना नाम थाने पर लिखाने को कहा जाता है, परंतु वह नहीं लिखाता।
[पृ.284]: कई घायल अस्पताल में भर्ती नहीं किए जाने के कारण ग्रामों की ओर जा रहे हैं। खुड़ी में आए हुए जाटों से बीबीपुर ग्राम का एक और घस्सु ग्राम के 2 जाट का पता नहीं है। जाट जनता में विश्वास है कि वे दोनों खुड़ी में लाठीचार्ज के समय मर गए। उनके घरवाले उन्हें ढूंढ रहे हैं। अभी तक उनका या उनकी लाश का पता नहीं चला है।
सीकर 9 अप्रैल 1934: लगान के लिए रुपए इकट्ठे करने अथवा बच्चों का पेट पालने को जो जाट किसान शहरों में बाजरा, चारा, पाला, लकड़ी और घृत आदि लाते हैं उसे अधिकारियों के इशारे के कारण शहरों में छीन लिया जाता है। अभी लक्ष्मणगढ़ में 2 जाटों के साथ यह घटना घट चुकी है। उनका बाजरा और घी छीन लिया गया। लक्ष्मणगढ़ में एक जाट की दुकान पर धूल फिकवाई गई और उस जाट को पकड़ लिया गया। सीकर में एक दुकान पर एक जाट बैठा हुआ था, पुलिस को सूचना दी गई और तीन पुलिस के आदमी उसे गिरफ्तार कर ले गए। लोगों में आम चर्चा है कि जो एक जाट को गिरफ्तार करा देगा उसे ₹2 दिए जाएंगे। उस जाट को कोतवाली ले जा कर जूते लगाए जाने की खबर है। पहले तो जाटों द्वारा गंदे गीत गाने का आरोप लगाकर बनिए ब्राह्मणों को भड़काया। जब उसमें भी पूर्ण सफलता नहीं मिली तो अब जाटों को इस प्रकार भयभीत कर शहर में आने से रोका जा रहा है। शहर के लोगों को यह कहकर भी भड़काया गया कि जाटों ने शहरों में सामान लाने का बहिष्कार कर दिया है और लकड़ी-चारा मिलना कठिन हो गया है। इस
[पृ.285]: कारण तुम भी जाटों का बहिष्कार कर दो। परंतु कुछ समझदार व्यक्तियों ने लोगों को यह चाल समझा दी और लोगों ने निर्दोष जाटों का बहिष्कार करने से इंकार कर दिया। वर्तमान शासन के इस प्रकार के नित्य नए अड़ंगे देख शहरी जनता में संगठन की भावना उत्पन्न हुई है और कुछ लोगों ने हिंदू सभा की स्थापना का यत्न आरंभ किया है।
मि. वेब इस तरह का दमन कर रहे थे तो बाहरी जाट नेताओं को धोखे में रखने की चाल से भी बाज नहीं आ रहे थे। उन्होंने रायबहादुर चौधरी लाल चंद जी रोहतक को अपने कृत्यों पर पर्दा डालने वाला तार भेजा। उसके उत्तर में चौधरी लाल सिंह जी ने जो कुछ कहा वह 3 मई 1935 के लोकमान्य में इस प्रकार प्रकाशित हुआ था।
सीकर का गोलीकांड
कैप्टन वेब का ताररोहतक 30 अप्रैल 1934: सीकर के सीनियर अफसर वेब ने निम्नलिखित आशय का तार दिया है - 25 अप्रैल 1934 को कूदन के जाटों ने दो लगान वसूल करने वालों को बुरी तरह पीटा और गांव के बाहर के पुलिस के कैंप पर धावा किया। उनके पास 12 फायर की केवल दो-दो बंदुकें थी। उन्होंने आत्मरक्षार्थ चार गोली के 5 फायर किए। 2 मरे और 8 घायल हुए और बाकी सब भाग गए। ठिकाना में 11 घायल हुए। कैप्टन वेब सशस्त्र पुलिस के साथ कूदन गए। वहां 6 जाट घायल हुए 104 गिरफ्तार हुए। 27 अप्रैल 1934 को उदनसरी गांव में 2 हजार जाट एकत्र हुये। परंतु पुलिस के पहुंचने के पहले हट गए। 29 अप्रैल 1934 को पलथाना में पांच प्रमुख विद्रोही
[पृ.286] गिरफ्तार किए गए। गिरफ्तार किए गए लोगों में एक चंद्रभान भी है जिन्होंने अवज्ञा करके स्कूल खोला था। लगान वसूल हो रहा है। आशा की जाती है कि अब विद्रोह खत्म' हो गया है। कैप्टन लालचंद्र MLA ने इस समाचार को पाकर कहा निसंदेह कैप्टन वे जाटों के साथ सहानुभूति रखते हैं परंतु गोलीकांड की जांच होना आवश्यक है। सीकर के जाटों के हितैषियों को चाहिए कि उनसे लगान जल्दी चुकवा दें। यद्यपि सीकर में टेक्स बहुत अधिक है परंतु न देने से तो वह कम नहीं हो सकते। राजपूत बाबरों को चाहिए कि वे अच्छा संबंध स्थापित करें।
कुदन (सीकर) कांड ऐसी चीज़ नहीं रह गया था जिस पर सिर्फ जाटों के आंसू गिरे। मानव समाज से जिन्हें प्रेम है ऐसे सभी लोग और संस्थाएं इस नरमेघ से विचलित हुए और उन्होंने अपने अपने यहां मीटिंग करके शोक और रोष प्रकट किया अथवा जयपुर और भारत सरकार से हस्तक्षेप की प्रार्थनाएं की। हम यहां ऐसी ही सार्वजनिक संस्था और पत्रों के कुछ हवाले पेश करते हैं।
सीकर गोलीकांड पर विचार
रानीगंज 30 अप्रैल 1934: आज राजस्थानी मारवाड़ी संघ की एक बैठक हुई जिसमें सीकर की भयानक स्थिति पर विचार किया गया। मीटिंग में निम्न आशय के प्रस्ताव पास किए गए - “मारवाड़ी संप्रदाय को सीकर से भयानक समाचार मिल रहे हैं। जहां पुलिस के जाट किसानों से मुठभेड़ के कारण पुलिस की गोली से 37 जाट मारे गए हैं। बाद में गांव लूट
[पृ.287]: लिए गए हैं और औरतों पर भी जुल्म भी जुल्म ढाये गए हैं। अतएव मारवाड़ी एसोसिएशन कांग्रेस असेंबली के सदस्यों और जनता की दूसरी संस्थाओं से अपील करता है कि वह घटना स्थल पर अपने प्रतिनिधि भेजकर घटना की शीघ्र जांच कराएं। जिससे आतंकग्रस्त जनता को शांति मिले। सीकर जिले के भैरूपुरा तथा कुदन में जो लूट खसोट हुई है तथा वहां के ग्रामीणों के साथ साथ औरतों का जिस तरह से अपमान किया गया है उसकी ओर एसोसिएशन सरकार का भी ध्यान आकर्षित करती है और इस पर जोर देती है कि उनकी विपत्तियों को को दूर करने के लिए वह शीघ्र अति शीघ्र कार्यवाही करें।" (लोकमान्य 3 मई 1935)
सीकर के किसान
जुल्म दूर करने के लिए वायसराय से अपील
मुंबई 4 मई 1934: राजपूताना सेंट्रल इंडिया पीपुल्स के मंत्रियों ने वायसराय और पॉलिटिकल सेक्रेटरी के पास निम्न आशय का तार भेजा है- “हम लोग बड़ी नम्रतापूर्वक सीकर के 37 जाट किसानों की मृत्यु की ओर तथा सीकर स्टेट के अधिकारियों के कृषकों पर गोली चला देने से 200 व्यक्तियों के सख्त घायल हो जाने की ओर आपका ध्यान आकृष्ट करते हैं। किसानों के कष्टों की ओर कुछ भी ध्यान नहीं दिया जाता और उनके नेतागण बिना किसी प्रमाण के राज्य के बाहर निकाले जा रहे हैं। इस प्रकार जाट जिन्होने सन् 1914 के महासमर में अङ्ग्रेज़ी साम्राज्य की मदद इमानदारी के साथ की थी, बुरी तरह उत्पीड़ित किए जा रहे हैं। हम लोग आपसे अपील करते हैं कि इस और आप शीघ्र ही ध्यान देकर किसानों के
[पृ.288]: ऊपर किए जाने वाले जुल्मों के अंत के लिए तथा न्याय की भी दृष्टि से हस्तक्षेप की नीति का प्रयोग करें। (लोकमान्य 6 मई 1935)
जयपुर के सीकर ठिकाने के ग्रामों से फिर सनसनीखेज खबरें आ रही है। कहते हैं कि पुलिस और पलटन जाटों के ग्रामों को घेरे हुए पड़ी है। बाहरी आदमी ग्रामों में नहीं जाने पाते और न ग्रामों से जाटों को बाहर निकलने की इजाजत दी जाती है। जाटों में भय और आतंक छाया हुआ है। सैनिक और सिपाही ग्रामों में जाकर मनमानी कर रहे हैं। उन्हें कोई रोकने वाला नहीं। जाटों की तकलीफों का हाल भी कोई सहानुभूति के साथ सुनने वाला नहीं। बहुत से जाट किसान तो डर के मारे अपने बाल बच्चों सहित जंगलों और खोहों में जाकर छुप गए हैं।
यह हाल सुनकर हमें इतिहास में पढी हुई पिंडारियों के आक्रमण की बातों की बातों की याद आ जाती है। पिंडारी आक्रमणकारियों के डर के मारे ग्रामवासी जंगलों में पेड़ों पर मचान बांधकर या खेतों में मचान बनाकर रहते और अपनी जान की रक्षा करते थे। जेवर वे जमीन में गाड़ दिया करते थे। फिर भी पिंडारी लूट ही लेते थे। पिंडारियों के आक्रमण से ग्रामों में भगदड़ मच जाती थी और लोगों को अपनी रक्षा के लिए सतर्क करने की गरज से ग्रामवासी मचानों पर से घंटे बजाते थे, जिनका शब्द सुनकर बड़ी दूर दूर तक के लोग होशियार हो जाते थे। सीकर के जाटों को भी अपनी रक्षा के लिए कुछ ऐसा ही करना पड़ रहा है। जहां तक आतंक
[पृ.289]: जमाने, पीड़ा पहुंचाने और रुपया पैसा तथा माल छिन लेने की बात है वहां तक पिंडारियों की हरकतों से सीकर के आक्रमणकारियों की हरकतें मिलती-जुलती हैं। ये हरकतें निंदनीय हैं। इसमें किसी को आपत्ति हो सकती है कि इस तरह की हरकतें भारत भर में की जा रही हैं। फिर भी सीकर के अधिकारियों की आंख खुलती नहीं दिखाई देती। दिन पर दिन परिस्थिति भयानक होती जाती है। जाट लड़ाकू होने पर भी शांत हैं। इसी से परिस्थिति संभली हुई है। पर न जाने क्रोध में किस वक्त क्या हो बैठे। अतः बुद्धिमानी इसी में है कि अब ज्यादा तनाव न हो और जैसे बने सीकर के अधिकारी दमन की आग को बुझाने की चेष्टा करें, उसमें आहुति न डालें।
लेकिन अधिकारीगण कान में उंगली डाले बैठे हैं, सुनते ही नहीं। यहां तक कि जयपुर दरबार के अधिकारी भी सुनवाई नहीं करते। जयपुर काउंसिल के वाइस प्रेसिडेंट से जाटों की ओर से एक डेपुटेशन मिला था। जिसके अध्यक्ष चौधरी छोटूराम थे। पर सुनने में आया है कि उनकी शांति की चेष्ठा बेकार कर दी गई। वाइस प्रेसिडेंट साहब जाटों को दबाने और उनसे माफी मंगवाने के पक्ष में हैं। इस दशा में भला शांति कैसे हो सकती है। वाइस प्रेसीडेंट को चाहिए था कि न्याय करते और जाटों को संतुष्ट कर देने का आश्वासन देते, लेकिन उन्होंने कुछ और ही किया, फैसला उल्टा ही दिया। अतः अब आशा नहीं रही कि जाटों का आंदोलन शीघ्र शांत हो जाएगा। भय तो यह है कि वह कहीं ज़ोर न पकड़ जाए। वह ज़ोर न पकड़े सो ही अच्छा है। जाटों को इस पर विचार करना चाहिए और एक बार सीकर तथा जयपुर के अधिकारी भी विचार कर मामले को शांत करने की चेष्टा करें। राजा
[पृ.290]: प्रजा का इसी में कल्याण है। (लोकमान्य वैशाख शुक्ला 14, शुक्रवार संवत 1992)
जयपुर के ठिकानों में प्रजा पीड़न
‘राजपूताना मेल’ के संपादक का आंखों देखा वर्णन‘राजपूताना मेल’ अखबार के संपादक श्री दिनकर राव ने फॉरवर्ड में एक पत्र प्रकाशित करवाया है जो इस प्रकार है-
समाचार पत्रों में सीकर के जाट किसान आंदोलन के संबंध में बहुत से समाचार प्रकाशित हुए हैं। उन्हीं की सत्यता की जांच करने के लिए मैंने सीकर के सीनियर अफसर कैप्टेन एडबल्यूटी वेब से तार द्वारा आज्ञा प्राप्त कर सीकर गया था। मैं वहाँ 2 दिन रहा और कई आदमियों से मिला। जो कुछ मैंने वहां देखा बड़ा ही हृदय विदारक था। बेचारे जाट लोगों को भोमिया लोग एक न एक अपराध लगाकर खुल्लम-खुल्ला सताते हैं। मैं कैप्टन एडबल्यूटी वेब से मिला था और उनसे बातचीत की थी। बातचीत करने पर वह मुझे सच्चे और स्पष्ट वक्ता मालूम हुये। जाट आंदोलन से वह बहुत ही विचलित दिखाई देते थे। परंतु खुड़ी दुर्घटना के संबंध में उनका विचार है कि जाट भी अस्त्र शस्त्र से सुसज्जित थे। उन्होंने तलवार लाठियां तथा अन्य हथियार दिखाए जो उनके कथन अनुसार जाटों के पास से खुड़ी ग्राम में बरामद हुए थे। यह हो सकता है परंतु इसमें कोई बुरी बात नहीं है। हर किसान लाठी रखता है और राजस्थान के गांव में तो कोई भी किसान ऐसा नहीं मिलेगा जिसके पास लाठी ना हो। रही कुछ तलवारों और दो-तीन स्वदेशी बंदूकों की बात जो भागे हुये जाटों के पास से बरामद हुई थी सो वे भी साधारण हैं।
[पृ.291]: भीषण दमन तथा लाठीचार्ज को सहकर जाट अपने अहिंसात्मक आंदोलन पर दृढ़ रहे यह अत्यंत सराहनीय बात है। भोमियों के प्रति जो यह कहा जाता है कि वे अहिंसा पर दृढ़ रहे इसमें तो कोई खास बात नहीं है। परंतु जाट जैसी लड़ाकू कौम उत्तेजना दिलाने जाने पर भी चुप रही, वह बड़े आदर्श की बात थी। इस स्थिति से मैं निराश नहीं हुआ हूं। यदि जिम्मेदार नेता हस्तक्षेप करें तो मुझे विश्वास है कि शांतिपूर्ण समझौता हो जाएगा। (लोकमान्य 5 अप्रैल 1935)
जाट क्या चाहते हैं
सीकर के जाटों के संबंध में मुंबई के मजदूर नेता श्री जमुनादास मेहता ने कहा था कि “जाट अफसरों के हटाने की मांग पेश नहीं करते थे, उनकी मुख्य मांग थी और है कि उन्हें व्यवस्था संबंधी जो असुविधाएं हैं और जिनके कारण वे तंग अवस्था में पड़े हुए हैं, उसकी जांच हो और उनकी असुविधा और शिकायतें दूर की जाए। वे कानूनी राज्य चाहते हैं।“ नेता जी का कहना ठीक था। देशी राज्यों में, खासकर राजपूताने के राज्यों में, कानूनी राज्य नहीं बल्कि मनमानी राज्य है। जयपुर के जाट कानूनी राज्य चाहते हैं। यही उनकी मांग का तत्व है। ...(लोकमान्य 8 जून 1935)
द्रोपदी का चीर खींचते हुए जिस प्रकार दु:शासन के हाथ थक गए थे उसी प्रकार जाटों पर भरपूर दमन का जोर चला लेने पर मि. वेब के हाथ पांव भी फूल गए और उन्होंने मुंबई के उन मारवाड़ियों को आश्वासन दिलाया जोकि
[पृ.292]: सीकर की घटनाओं से क्षुब्ध थे। वेब ने तार भेज कर कहा कि हम शीघ्र ही सुधार का कदम उठाने वाले हैं।
इसमें संदेह नहीं सीकर की घटनाओं से सारा देश प्रभावित हुआ है। मुंबई के बड़े बड़े नेता जिनमें नरीमान, जमुनादास और मूलराज करणदास के नाम उल्लेखनीय है, भी पूरा दबाव सीकर पर डाले थे। श्री अमृतलाल सेठ ने भरपूर प्रचार अपने पत्र ‘जन्म भूमि’ द्वारा सीकर के किसानों के पक्ष में जारी किया हुआ था।
26 मई 1935 को अखिल भारतीय जाट महासभा के आदेशों से भारत भर में जाटों ने सीकर दिवस मनाया। जगह-जगह सभाएं की गई, जुलूस निकाले गए। महासभा के तत्कालीन मंत्री झम्मन सिंह जी एडवोकेट ने एक प्रेस वक्तव्य द्वारा सीकर के दमन की निंदा की।
11 मई 1935 को जाट महासभा का अधिवेशन रायबहादुर चौधरी सर छोटूराम जी की अध्यक्षता में जयपुर काउंसिल के वाइस प्रेसिडेंट सर बीचम साहब से मिला और उसने सीकर कांड की निष्पक्ष जांच कराने की मांग की।
सर जौंस बीचम एक गर्वीले अंग्रेज थे उन्होंने यह तो माना की सीकर की घटनाएं खेद जनक है और उन्हें सुधारा जाएगा किंतु जांच कराने से साफ इंकार कर दिया और जाट डेपुटेशन को भी सीकर जाकर जांच करने की इजाजत नहीं दी।
जाट डेपुटेशन जयपुर से लौट गया और दमन में कोई कमी नहीं हुई। सीकर में त्राहि-त्राहि मच गई। कुँवर पृथ्वी सिंह गोठड़ा और गणेशराम कूदन, गोरु राम कटराथल बाहर के जाटों के पास दौड़-दौड़ कर जा रहे थे। इन लोगों के सीकर में
[पृ.293]: वारंट थे और पुलिस चाहती थी कि यह हाथ लग जाए तो इन्हें पीस दिया जाए।
अंत में दमन का मुकाबला करने के लिए यह सोचा गया कि जयपुर राजधानी में सत्याग्रह किया जाए। पहले तो एक डेपुटेशन मिले, जो यह कह दे या तो जयपुर हमारे जान माल की गारंटी दे वरना हम मरेंगे तो गांवों में क्यों मरे जयपुर आकर यहां गोलियां खाएंगे। सत्याग्रह के लिए कुछ जत्थे बाहर से भी तैयार किए गए।
इधर जून के प्रथम सप्ताह कुंवर रतन सिंह, पृथ्वी सिंह, ईश्वर सिंह, धन्नाराम ढाका, गणेश राम, ठाकुर देशराज जी आदि मुंबई गए। वहां मुंबई में श्री निरंजन शर्मा अजीत और देशी राज्यों के आदी अधिदेवता अमृत लाल जी सेठ के प्रयतन से मुंबई के तमाम पत्रों में सीकर के लिए ज़ोरों का आंदोलन आरंभ हो गया और कई मीटिंग में भी हुई, जिनमें सीकर की स्थिति पर प्रकाश डाला गया। मुंबई के बड़े से बड़े लीडर श्री नरीमान, जमुनादास महता आदि ने सीकर के संबंध में अपनी शक्ति लगाने का विश्वास दिलाया।
आखिरकार जयपुर को हार झक मारकर झुकना पड़ा और उसने सीकर के मामले में हस्तक्षेप किया। अनिश्चित समय के लिए राव राजा साहब सीकर को ठिकाने से अलग रहने की सलाह दी गई। गिरफ्तार हुए लोगों को छोड़ा गया। जिनके वांट थे रद्द किए गए। किंतु जाटों की नष्ट की हुई संपत्ति का कोई मुआवजा नहीं मिला और न उन लोगों के परिवारों को कोई सहायता दी गई जिनके आदमी मारे गए थे। इस प्रकार इस नाटक का अंत सीकर के राव राजा और दोनों को सुख के रूप में नहीं हुआ। किंतु यह अवश्य है कि
[पृ.294] इस संघर्ष ने सीकर के जाट को नवजीवन दे दिया। जाट नेताओं और दूसरे सहायकों को मई 1935 के आरंभ में ही जयपुर से निकाला जा चुका था, किंतु नरसिंह दास बाबाजी जलते-बलते दिनों में प्रतिबंध की परवाह न कर के भी जयपुर पहुंचे और वे सीकर जाना चाहते थे कि किशनलाल जी जोशी के साथ पकड़ लिए गए और एक लंबे अरसे के लिए जेल में ठूस दिया गया।
यह प्रतिबंध भी जयपुर ने अपनी गर्ज पूरी करने के लिए दो-डेढ़ वर्ष बाद ही उठा लिया। जयपुर और राव राजा का झगड़ा खड़ा हो गया जिसमें सीकर के तमाम राजपूतों ने सीकर के राव राजा का साथ दिया। जाट तटस्थ रहे इस गर्ज से जयपुर को यह करना पड़ा।
सन 1939 में जयपुर में प्रजामंडल द्वारा सत्याग्रह हुआ, उसमें भी सीकर के जाटों का मान सीकर के हिस्से में प्रमुख रहा।
शांति के समय में जाटों ने अपना एक सुरम्य और विशाल जाट बोर्डिंग हाउस खड़ा किया है। उनका अब तक का इतिहास निर्मल है। सीकर के इस महत्वपूर्ण आंदोलन में वहां के हजारों ने भाग लिया और उसे मजबूत बनाया था उनमें से कुछ सज्जनों के जीवन परिचय इस भांति हैं-
सीकरवाटी के जाट जन सेवकों की सूची
सीकरवाटी में जाट कौम की अपने-अपने तरीकों से जिन महानुभावों ने सेवा की और कौम को आगे बढ़ाया उनकी सूची सुलभ संदर्भ हेतु विकि एडिटर द्वारा इस सेक्शन में संकलित की गई है जो मूल पुस्तक का हिस्सा नहीं है। इन महानुभावों का मूल पुस्तक से पृष्ठवार विस्तृत विवरण अगले सेक्शन में दिया गया है। Laxman Burdak (talk)
- चौधरी कालूराम कूदन (सुंडा), कूदन ....p.294-295
- चौधरी ईश्वरसिंह जी (भामू), भैरूपुरा....p.295-297
- चौधरी सेवाराम (बिजारणिया), पनलावा ....p.297-298
- चौधरी हरूसिंह जी (बुरड़क), पलथाना....p.298-300
- जमादार गोपाल रामजी (फाण्डण), रसीदपूरा....p.300-301
- चौधरी लादू रामजी (चबरवाल), फ़तेहपुर....p.301
- चौधरी तेजसिंह जी पलथाना (बुरड़क), पलथाना....p.301-303
- कुँवर पृथ्वीसिंह जी (भूकर), गोठड़ा....p.303-305
- चौधरी गणेशराम मेहरिया कूदन (मेहरिया ), कूदन....p.305-306
- चौधरी पन्नेसिंह कोलीड़ा (जाखड़ ), कोलीड़ा....p.306-307
- चौधरी लेखराम जी (डोटासरा), कसवाली....p.307-308
- बक्शा राम कूदन (महरिया), कूदन....p.308-309
- चौधरी गौरूसिंह जी कटराथल (गढ़वाल), कटराथल....p.309
- चौधरी बिरधूराम जी (बुरड़क), पलथाना....p.309-310
- चौधरी हरीसिंह जी (बुरड़क), पलथाना....p.310
- चंद्रभान जी सीकर (सलकलायन), बामनोली, मेरठ....p.310-311
- चौधरी जवाहर सिंह जी चंद्रपुरा (मावलिया), चँदपुरा....p.311-312
- चौधरी गणेशराम जी सीकर (सेवदा), सीकर....p.312-313
- चौधरी गणपतिराम जी (बुरड़क), पलथाना....p.313
- चौधरी ज्ञानूसिंह (बेरवाल), परडोली छोटी....p.313
- चौधरी चंद्रा रामजी (बुरड़क),पलथाना....p.313-314
- चौधरी कन्हैयालाल जी (महला), स्वरूपसर....p.314-315
- चौधरी त्रिलोकसिंह जी (महला), अलफसर....p.315-316
- शहीद रतन सिंह (बाजिया), फकीरपुरा....p.316
- शहीद चौधरी शंभूसिंह जी (भूकर), गोठड़ा....p.317
- .शहीद चौधरी चेताराम जी (भूकर), गोठड़ा....p.317
- शहीद चौधरी टीकूराम (भूकर), गोठड़ा....p.317-318
- शहीद चौधरी तुलछाराम (भूकर), गोठड़ा....p.317-318
- शहीद चौधरी आसाराम जी (पिलानिया), अजीतपुरा....p.318
- शहीद चौधरी रूड़ाराम जी (ढाका), बठोठ....p.318-319
- शहीद चौधरी हीराराम जी (ढाका), बठोठ....p.318-319
- चौधरी भगवानसिंह जी (खीचड़), खीचड़ का बास....p.319
- चौधरी किशनसिंह जी (बाटड़), बाटड़ा नाउ....p.319-320
- चौधरी मनसाराम जी (थालोड़), नारसरा....p.320
- चौधरी चंद्रसिंह जी (बिजारणिया), बीबीपुर....p.320
- चौधरी कुंवरनारायणसिंह (महला), स्वरूपसर....p.319a-320a
- चौधरी खड़गसिंह जी (महला), दिसनाऊ....p.321
- चौधरी हरदेवराम जी (काजला), जेरठी....p.321
- चौधरी रिडमलसिंह जी (डोरवाल), कटराथल....p.321a
- चौधरी लालसिंह (कुल्हरी), माधोपुरा....p.321a
- चौधरी हरदेवसिंह (भूकर), गोठड़ा भूकरान....p.321a-322a
- चौधरी डालूराम (भूकर), गोठड़ा भूकरान....p.321a-322a
- चौधरी बोहितराम जी (जाखड़), सांखू....p.322a-323
- पंडित जगदेव जी शास्त्री (अहलावत), बरहाणा, झज्जर, हरयाणा ....p.322a-323
सीकरवाटी के जाट जन सेवकों की विस्तृत जानकारी
सीकरवाटी के जाट जन सेवकों की विस्तृत जानकारी आगे दी गई है।
1. चौधरी कलूराम कूदन (सीकर राज्य) - [पृ.294]:आप की उम्र करीब 70 साल की है। आपका जन्म स्थान कुदन है। आप का गोत्र सुंडा है। आपकी जम्मीदारी है और गांव
[पृ.295] के पटेल हैं। आप संवत 1990 (1933 ई.) के पहले सीकर राज्य के सच्चे सेवक रहे हैं। उस समय तक आपकी भावना यही बनी रही कि राज्य का किसी तरह फायदा होना चाहिए और राज्य वालों ने भी जहां कहीं जाट किसानों ने चीख-पुकार करी वही चौधरी कालूराम को भेज दिया और यह जाकर राज्य का हित हो उसी ढंग से मामला समटा करके आ जाते। पर संवत 1990 में जाट महान यज्ञ के ऊपर और आपने सच्ची स्थिति को अपनी आंखों से देखा उसी दिन से जबसे चौधरी गणेशराम मेहरिया ने सच्ची स्थिति आप को समझाई और आपने इतने ढाणी बधालों की में प्रण किया, अगर जाती सेवा के लिए शीश भी कटाना पड़ेगा तो पहला सिर चौधरी कालूराम का होगा।
आप दो भाई थे। बड़े भाई का नाम गिदाराम था और आपने जाती सेवा के लिए अपने को निछावर कर दिया है।
आप एक दर्शनीय मूर्ति हैं और बुढ़ापे में भी सुंदर लगते हैं। दिल से आप साफ हैं। छल कपट के पास नहीं फटकते। ऋषि स्वभाव के आदमी हैं। लोगों में आपकी कद्र है।
2. चौधरी ईश्वरसिंहजी - [पृ.295]: पहाड़ की चट्टान की तरह अडिग और मजबूत इरादों के चौधरी ईश्वर सिंह जी से सीकर वाटी का बच्चा-बच्चा परिचित है। संवत 1942 (1885 ई.) की कार्तिक सुदी 2 को उनका जन्म हुआ था। उनके पिता चौधरी मोटाराम जी भांबू गोत्र के जाट सरदार थे। आपका गांव सीकर ठिकाने में भैरूपुरा है।
सीकर के जाट महायज्ञ से आपका सार्वजनिक क्षेत्र में आगमन हुआ और तभी से बराबर अपने इलाके के जाट
[पृ.296] किसानों की हालत सुधारने के प्रयत्न में लगे हुए हैं। सन् 1935 में आपके गांव पर भी सीकर ठिकाने की फ़ौज पुलिस ने धावा किया और आपके मकान को लूट लिया। उस समय आप की धर्मपत्नी ने बड़ी वीरता के साथ आक्रमणकारी गुंडों का सामना किया। बदमाशों ने आप को पीटा भी किंतु आप दोनों स्त्री पुरुष क्षत्रियों की भांति दुश्मन से कभी नहीं झुके।
खुड़ी कांड में चौधरी ईश्वर सिंह के ऊपर बदमाशों ने इतनी लाठियां बरसाई कि महीनों तक उनकी हड्डी हड्डी दुखती रही।
सीकर वाटी में जाटों पर सबसे अधिक किसी एक आदमी का असर है तो वह चौधरी ईश्वर सिंह जी हैं। इसका कारण यह है कि वह हमेशा क्षेत्र में रहे हैं, कभी भी हटे नहीं और एक ही रास्ते पर रहे हैं। कोई लोभ लालच उन्हें दूसरे रास्ते पर नहीं ले जा सका। आप जेल भी गए तो अपने प्लेटफार्म से और अपने ही उद्देश्य की पूर्ति के लिए।
प्रजामंडल और सेठ जमनालाल ने जब सन् 1940 में जयपुर के विरुद्ध सीकर ठिकाने का साथ दिया तब आप बराबर सीकर ठिकाने के विरुद्ध उसी प्रकार रहे जैसे कि सन् 1933 से चले आ रहे थे। इसके बाद हीरालाल और हरलाल के प्रवाह ने सैंकड़ों जाट सेवकों को उनके मार्ग से भ्रष्ट करके अपने साथ मिला लिया किंतु चौधरी ईश्वर सिंह प्रोढ़ शेर की भांति निश्चिंतता से अपने ही मार्ग पर रहे। यही नहीं कि वह उस समय अकेले पड़ गए हों नहीं उनका भी एक दल रहा जिसमें चौधरी हरि सिंह और हरदेव सिंह वगैरह उस दल के नेता रहे।
प्रजामंडलियों ने झुंझुनू जाट बोर्डिंग की भांति ही सीकर जाट बोर्डिंग को भी मिटाने की कोशिश की किंतु यह
[पृ.297] चौधरी ईश्वर सिंह और उनकी पार्टी का ही काम था कि उन्होंने अपने बोर्डिंग के नाम के साथ से जाट शब्द को नहीं मिटने दिया। अंशिगर और पर अंशी की बहाव में वह इस प्रकार पूरी तरह पास हुये।
चौधरी ईश्वर सिंह की इस दृढ़ता से उनके साख बढी और एक टाइम यह आया कि सन् 1945-46 में नए सिरे जयपुर राज्य के लिए जो किसान संगठन कायम हुआ उसके प्रमुख नेताओं में आपको स्थान मिला।
सन् 1946 में ठाकुर भैरो सिंह जनरल के प्रयत्न से जयपुर राज्य के जाट किसान और राजपूत ठिकानेदारों के बीच मौलिक समझोता होने के लिए जो कमेटी बनी उसमें भी आप मेंबर नियुक्त हुए और आपने बड़ी बुद्धिमानी के साथ अपने केस को रखा और उस प्रकार का समझौता हो जाता तो वह राजपूत और जाट दोनों के लिए ही अत्यंत हितकर होता किंतु ठिकानेदारों के प्रतिनिधियों के दिमाग उस समय तक सातवें आसमान पर थे।
चौधरी ईश्वर सिंह जी ने जहां अपना तन कौमी सेवा के लिए दे रखा है वहां धन देने में भी कभी नहीं हिचकते। आपने सीकर बोर्डिंग हाउस में अपने नाम पर ₹1000 की लागत से एक कमरा भी बनवाया है।
आप की अवस्था इस समय 60 साल से ऊपर है किंतु स्वास्थ्य और बल उनका 30 साल के नौजवान से बराबरी करता है।
3. चौधरी सेवाराम - [पृ.297]: जो ठिकाने के साथ मिलकर और लड़कर दोनों ही तरह अपने इलाके में मशहूर हुआ वह चौधरी सेवाराम जी थे। आपका
[पृ.298]: गोत्र बिजारणिया और गांव पन्दलावा (तहसील शरागढ़ ?) था। आपके पिताजी का नाम चौधरी नंदराम जी था। आपका जन्म संवत 1927 विक्रमी के भादो महीने में हुआ था। आप की तालीम साधारण थी।
सीकर ठिकाने में 550 गांव हैं और गांव में कर वाहन के रूप में पचोतरा पाने वाले चौधरी होते हैं। आप भी ऐसे ही एक चौधरी थे। किंतु सीकर जाट महायज्ञ के बाद से आपने ठिकाने के संबंधों को लात मार दी और बराबर कोमी काम में चिपटे रहे।
70 वर्ष से ऊपर की अवस्था में आप का देहांत हुआ। आप के एक पुत्र है। सीकर वाटी के किसान आंदोलन में आपने वृद्ध होते हुए भी बराबर काम किया और उन तकलीफ को भी बर्दाश्त किया जो सब को उठानी पड़ी थी।
आपके लिए यह कहा जा सकता है कि सीकर वाटी के समझदार जाटों में आपका एक ऊंचा स्थान था आप की सलाह की कद्र की जाती थी।
4. चौधरी हरीसिंहजी (बुरड़क), पलथाना
4. चौधरी हरूसिंहजी - [पृ.298]: कोई दिन सीकर वाटी में स्त्रियां एक गीत गाती थी, “चलिये सखी यज्ञ देखन कूं सीकर के अस्थाना में। तोहि सरपंच दिखाऊ पलथाना में॥" सन् 1933 ई. के बसंत के दिनों सीकर में जो चहल-पहल यज्ञ के दिनों में करीब 15 दिन रही वह जाट इतिहास की एक अपूर्व घटना है। इतना बड़ा यज्ञ 2-4 शताब्दियों में ही जाटों ने किया था। इस यज्ञ के लिए और पीछे से तमाम सीकर आंदोलन के लिए जो जाट किसान
[पृ.299]: पंचायत बनी थी उसी के सरपंच बनने का सौभाग्य पलथाना के बुरड़क वंशी जाट सरदार चौधरी श्योबक्स राम के पुत्र चौधरी हरू सिंह जी को प्राप्त हुआ।
चौधरी हरूसिंह जी का जन्म संवत 1942 में हुआ। आप पलथाना के प्रतिष्ठित जाटों में से हैं। सीकर वाटी की जागृति में गोठड़ा-पलथाना ये मुख्य हाथ हैं। यही पलथाना है जहां लगभग 5000 जाटों ने इकट्ठे होकर सन् 1933 के आसोज महीने में तय किया था कि वे सीकर में एक महायज्ञ करेंगे। इसी पलथाना में ऊंट पर लादकर हथकड़ियां सभा के लोगों को गिरफ्तार करने आई थी। यहीं सर्वप्रथम ठाकुर देशराज ने सीकर के अधिपति के कार्यों को यह कहकर डाट बताई थी कि मुझे बुलाने वाला तुम्हारा राव राजा कौन है?
यहीं सर्वप्रथम सीकर ठिकाने के आतंक को भंग किया गया था और यहीं पर अत्याचार की शुरुआत ठिकाने की फ़ौज ने पाठशाला के मकान को ध्वस्त कर के और यहां के मास्टर श्री चंद्रभान जी को मारपीट करके की थी।
चौधरी हरि सिंह जी भाषण नहीं देते किंतु बिना ही भाषणों के जनता को वह अपनी तरफ आकर्षित रखते हैं। यही उनका विशेष गुण है।
संतान और भाई बंधुओं से वह भरे-पूरे हैं और उनके भाइयों ने भी दमे-दम उन्हें सहयोग दिया है। आप चौधरी ईश्वर सिंह जी के पक्के दोस्तों में से हैं। सीकरवाटी की यह जोड़ी मशहूर है।
चौधरी हरूसिंह जी ने सीकर की जेल को भी अपनी जाति के हित के लिए देखा है। आंदोलन में मार भी खाई है।
सीकर में जो जाट बोर्डिंग हाउस है उसका आपने एक
[पृ.300]: कमरा (हाॅल) अपने पैसे (₹10,000) से बनवाया है। उसकी कमेटी के आप प्रधान रहे हैं।
एक शब्द में यह कहा जा सकता है कि सीकर जागृति के आप प्रमुख प्रकाशपुंजों में से एक हैं।
आप की मजबूती और जाति भक्ति पर सीकरवाटी के हर एक जाट को विश्वास है और वह आपके व्यक्तित्व का आदर करते हैं।
5. जमादार गोपाल रामजी -[पृ.300] गोरे बदन शांत चेहरे और सरदारी ढंग के एक आदमी को मैं सीकर महायज्ञ के अवसर से जानता हूं। वे रसीदपूरा के जमादार चौधरी गोपालराम जी है। आपका जन्म आज से लगभग 55-56 वर्ष पहले फाण्डण गोत्र के जाट सरदार चौधरी पोथीराम जी के घर हुआ था। आप जवानी के आरंभिक दिनों में फ़ौज में भर्ती हो गए और वहां से जमादार के औहदे से पेंशन लेकर लौटे। आपके दो संतान और एक भाई है।
आप पेंशन होने के कारण सरकार विरोधी काम में तो बहुत कम फंसे किंतु कौम के लिए ठोस काम किए जाते हैं उनमें आप अगवा रहते हैं। आपको सबसे ज्यादा जाट बोर्डिंग हाऊस से प्रेम है। आपने उस में ₹1000 तो कमरे के लिए दिए हैं और ₹400 कुए के लिए वायदा किया है। इस प्रकार वे शिक्षा कार्य के लिए दान में सबसे आगे रहे हैं।
आपकी इमानदारी पर सीकरवाटी के लोगों को भारी विश्वास है। इसलिए आप ही जाट बोर्डिंग हाऊस के खजांची हैं। इसके अलावा पहले आपने सीकर महायज्ञ को सफल बनाने में भी बड़ा कार्य किया था और आड़े समय में आप हमेशा अपनी
[पृ.301] कौम के काम आते रहते हैं।
आप खुश मिजाज तथा हंसते स्वभाव के आदमी हैं। पार्टी बंदी के कामों से सदा दूर रहते हैं। समाज सुधार के कामों में सबसे आगे रहते हैं और खुद भी कुरीतियों को छोड़कर सूरीतियों का पालन करते हैं। यही उनकी विशेषता है।
6. चौधरी लादूरामजी - [पृ.301]: मनुष्य चाहे तो हर प्रकार से अपनी कौम की सेवा कर सकता है। फतेहपुर के चौधरी लादूराम जी ऐसे ही सज्जन पुरुषों में से हैं जिन्होंने अपनी कौम की सेवा शांतिप्रिय तरीकों से हमेशा की है। सीकर महायज्ञ के समय से उनका झुकाव कौमी काम की और हुआ और तभी से जो कुछ बन पड़ता है कौम का काम करते हैं। सीकर वाटी में फतेहपुर मारवाड़ी सेठों का मशहूर कस्बा है। उनके बीच रहकर एक जाट की रुचि व्यापार की ओर स्वाभाविक थी। आपने अपनी दुकानदारी से काफी धन कमाया है। सीकर जाट आंदोलन के समय आपको भी ठिकाना शाही जुल्मों का शिकार होना पड़ा है।
आपका जन्म संवत 1949 में कार्तिक सुदी 4 को चौधरी मालू राम जी भूठिया गोत्र1 के जाट सरदार के यहां हुआ था। आपने वहीं के सेठों द्वारा संचालित पाठशाला में शिक्षा पाई। आप दो भाई हैं। संतान आपके सात हैं जिनमें 4 लड़के और 3 लड़कियां हैं। आप सरल पाठ के कौमी सेवक हैं। झंझटों को पसंद नहीं करते हैं।
1. भूठिया गोत्र राजस्थान में नहीं पाया जाता है। शिशुपाल सिंह नारसरा द्वारा पुष्टि की गई कि उनका गोत्र चबरवाल था। Laxman Burdak (talk)
7. चौधरी तेजसिंहजी पलथाना - [पृ.301]: पलथाना में जीवित शहीदों का एक घर है। उसमें
[पृ.302]: जितने भी आदमी हैं कौमी सेवा के रंग में रंगे हुए हैं। लड़कियों के दिल में भी जाति अभिमान की लहरें उठती है। उस घर के ग्रहपति हैं चौधरी तेजसिंह जी बुरड़क।
आप चौधरी उदय सिंह जी के सुपुत्र हैं। आपका जन्म संवत 1940 (1884 ई.) विक्रमी के माघ महीने में कृष्ण पक्ष की रात्रि को हुआ था।
आप के पुत्रों में नारायण सिंह और हरदेव सिंह जी से सीकर वाटी ही नहीं उसे बाहर के सभी पढ़े-लिखे जाट परिचित हैं।
हरदेव सिंह एक खिलौना आदमी है। उन्होंने कई वर्ष तक जूते नहीं पहने कि जब तक ठिकानेदार इसी प्रकार निरंकुश रहेंगे हम चैन से बैठना नहीं चाहते। उनकी नाक में नकेल डाल कर ही हम आराम की जिंदगी बिताएंगे। हुआ भी यही। हरदेव सिंह 5 वर्ष तक सीकर वाटी के जाट आंदोलन को अपने दौड़ धूप से पानी देते रहें और ठिकानेदारों के कान ढीले हो गए तब उन्होंने अपनी माली हालत सुधारने की ओर ध्यान दिया।
अपनी जिंदगी में ही और अपने ही हिम्मत से कोई आदमी कितना कमा सकता है इसका सबसे ऊंचा नमूना हरदेव सिंह जी ने रखा है। उन्होंने पहले तो लक्ष्मणगढ़ आदि में दुकानें की। इसके बाद मारवाड़ी सेठों के सट्टे के व्यापार में पैर रखा। दो-ढाई साल में ही इतना पैसा कमाया जिससे एक कोठी उन्होंने अपने गांव में खड़ी कर दी।
आपके छोटे भाई ने कुंवर हरि सिंह जी गोठड़ा के साथ जेरठी-दादिया स्टेशन पर एक दुकान आरंभ की।
[पृ.303]: इस प्रकार तीनों भाइयों ने व्यापार में बसने वाली लक्ष्मी को ढूंढ निकाला।
चौधरी तेज सिंह सीधे सच्चे और इमानदार आदमी है। वे एक रास्ते चलने वाले हैं। जाट वैदिक हाउस सीकर के लिए उन्होंने 1100 रुपये देकर एक कमरा बनवाया है।
आप आर्य रहन सहन के आदमी हैं और आपके बच्चे बच्चियाँ सभी कुरीतियों से ऊंचे उठ कर अपना जीवन बिताते हैं। यह आप की विशेषता है।
हरदेव सिंह जी और नारायण सिंह जी के अलावा आपके जो दो छोटे पुत्र हैं उनके नाम नोप सिंह और भूरा सिंह हैं। लड़की का नाम रामकुंवारी है।
चौधरी तेज सिंह जी आंदोलन के सिलसिले में इंचार्ज सरपंच की हैसियत से जब गिरफ्तार हुए तो आपको देवगढ़ के किले में बंद रखा गया था।
8. कुँवर पृथ्वीसिंह जी (भूकर), गोठड़ा
8. कुंवर पृथ्वीसिंहजी - [पृ.303]: सीकर के जिस आदमी ने सबसे पहले कौमी सेवा का व्रत लिया और जो कठिन परिस्थितियों में भी शेर के समान आगे बढ़ा, खेद है वह कुमार पृथ्वी सिंह हमारे बीच में नहीं है। ठीक जवानी के दिनों में उनका देहांत हो गया।
आपका जन्म संवत 1959 की भादो सुदी 6 को हुआ था। आपके पिताजी का नाम चौधरी रामबक्स और गोत्र भूकर था। नाग जाटों का एक समुदाय सांभर के निकट से उठकर सीकर से 6-7 मील की दूरी पर जा बसा था। उन्होंने जो गांव आवाज किया वह भूखरों का गोठड़ा के नाम से प्रसिद्ध हुआ। भूमि के कर वाहक होने के कारण ये लोग भूकर कहलाए।
[पृ.304]: चौधरी राम बाक्स जी के दूसरे पुत्र चौधरी गंगा सिंह है। पृथ्वी सिंह और गंगासिंह की नल नील की जोड़ी थी।
जब तक सीकर वाटी के लोग गहरी नींद में सो रहे थे ठाकुर भोला सिंह महोपदेशक जाट सभा ने गोठड़ा में जाकर चौधरी राम बाक्स जी को अपने मिशन की ओर आकर्षित किया और तभी से यह घर का जाट सभाई बन गया।
मैंने सबसे पहले कुंवर पृथ्वी सिंह जी को जाट महोत्सव झुंझुनू के अवसर पर देखा जब उन्होंने मुझसे कहा ऐसा चमत्कारपूर्ण समारोह सीकर में करके दिखाएं तो हम आपके बहुत कृतज्ञ होंगे।
इसके बाद जाट महासभा का डेपुटेशन शेखावाटी में घूमा तो हम लोगों ने ठाकुर झम्मन सिंह जी तत्कालीन मंत्री जाट महासभा के साथ गोठड़ा की यात्रा की और चौधरी राम बाक्स जी के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त किया।
सीकर का महायज्ञ हुआ और हजारों जाटों के ह्रदय में उसने उत्साह की लहर पैदा करदी। उस समय कुंवर पृथ्वी सिंह के अंदर एक अपूर्व जीवन रेखा चमकी। एक परवाने की भांति और उतावली के साथ मैदान में आ गए। थोड़े ही दिनों में सीकर में जागृति दमन और पुनरुत्थान का दौर-दौरा आरंभ हो गया। जगह-जगह मीटिंग होने लगी, पुलिस फौज गांव में गश्त करने लगी। लगान बंदी आरंभ हुई और बदले में गोलियों की बौछार और गांव को लूटना ठिकाने की ओर से आरंभ हुआ। कुंवर पृथ्वी सिंह जेल में बार-बार गए। उनका घर लूटा गया गांव जलाया गया, किंतु वह शेर कभी घबराया नहीं।
सीकर वाटी कुंवर पृथ्वीसिंह पर अभिमान करती थी।
[पृ.305]: उनकी इज्जत हर दिल में थी कि काल बली उन्हें इस दुनिया से उठा ले गया। उनके पीछे उनके एकमात्र पुत्र कुंवर हरिराम सिंह जी हैं जिनका जन्म संवत 1980 में हुआ। कुंवर हरी राम सिंह जी ने अपने पूज्य पिताजी की यादगार में जाट बोर्डिंग हाउस सीकर में ₹1000 की लागत से एक कमरा बनवाया है। वे एक होनहार और समझदार नौजवान हैं और योग्य पिता के योग्य पुत्र हैं।
9. चौधरी गणेशराम मेहरिया कुदन - [पृ.306]:आपका जन्म संवत 1954 माघ सुदी 14 को सीकर राज्य के कस्बे कूदन का है, जिसका फासला जेरठी-दादिया स्टेशन से 3 मील है। आपके पिताजी का नाम रामनारायण जी था, जिनका देहांत संवत 1984 में हो चुका है। आप चार भाई थे। आपके बड़े भाई का नाम जीवनरामजी था जिनका देहांत संवत 2002 में हो गया है। आप से दो भाई छोटे श्रीयुत तनसुख राय व तिलोकचंद हैं।
आप की जमीदारी पेसे के अलावा लेनदेन का काम, कपड़े व किराने की सबसे बड़ी दुकान है। सीकर में जो महान जाट यज्ञ हुआ था यह इसी खानदान के आदमियों की जी तोड़ कोशिश का फल था। उसके बाद सीकर राज्य में महान जाट आंदोलन शुरू हुआ, जिसमें कुदन और खुड़ी में गोलियां बरसाई गई। जिसमें राज्य ने आपको डेढ माह के लिए जेल में बंद कर दिया, जिसके फलस्वरूप सीकर राज्य में खालसाशाही जमीन का बंदोबस्त हुआ और जो-जो जाटों की खून चूसने के लिए राज्य ने व जागीरदारों ने लाल बाग लगा रखी थी वह बंद होगई। आपके ही उत्साह दिलाने से सीकर स्टेशन पर जाट बोर्डिंग सीकर बन रहा है।
[पृ.306]: आप के 5 पुत्र रामरख पाल, मुरलीधर, रामलाल, हरलाल और तेजपाल हैं।
इनमें से मुरलीधर को इनके छोटे भाई तनसुख राम ने गोद ले लिया है। इनके बड़े भाई जीवनराम जी के दो लड़के दलेलसिंह व तारा सिंह और 4 कन्याएं हैं। सब भाई वह लड़के जाति सेवा भाव में ओत-प्रोत हैं।
सीकर के जाटों में आपके लिए कहा जा सकता है आप मननशीलता, सहनशक्ति और सोच विचार कर काम करने वालों में प्रथम श्रेणी के व्यक्ति हैं। बुद्धिमानी के साथ बातचीत करने की कला में निपुण हैं। सीकर राज्य में जितने बड़े धनी आदमी हैं उनमें आपका स्थान है। समझदारी में आपकी सराहना दूसरी जातियों के लोग भी करते हैं।
आप डींग नहीं मारते, काम करते हैं। वह भी समझदारी के साथ। खतरों से घबराते नहीं किंतु जानबूझकर खतरों में पड़ना भी पसंद नहीं करते।
यह आप की खूबी है कि आप अपने ही क्षेत्र और प्लेटफार्म पर काम करते हैं। किसी बहाव से प्रभावित होकर आप बहे नहीं। आपकी उपमा एक शांत सरोवर से दी जा सकती है जिसमें क्रोधरूपी लहरें पत्थर मारने पर ही पैदा होती हैं।
10. चौधरी पन्नेसिंह कोलीड़ा - [पृ.306]:सीकरवाटी में कई पन्ने सिंह है। हम जिन का जीवन परिचय लिख रहे हैं वह पन्ने सिंह जी कोलीड़ा के नाम से जाट जगत में मशहूर हैं।
जिसने जागीरदार न होते हुए जागीरदारों जैसा आनंद
[पृ.307]: का जीवन बिताया हो और छोटे-मोटे जागीदार भी जिसकी खुशामद में खड़े रहे हो वैसा दबंग और समृद्धि जाट सरदार कोलीड़ा के पन्नेसिंह जी हैं।
उन्हें सन 1933 ई. में जबकि जाट महायज्ञ की तैयारी हो रही थी, जनरल देवा सिंह जी ने जगाया और यह कोशिश की की देवरोड के पन्ने सिंह जी के स्थान की पूर्ति कर दें। किंतु होता वही है जिसे परमेश्वर करना चाहता है। कोलीड़ा के पन्ने सिंह जी चमके और जेल भी गए, आंदोलन में फिर भी और लुटे भी। किंतु जब मनोवांछित सफलता प्राप्त न हुई तो फिर पहले की भांति सो गए। किंतु उन्होंने जितने दिन भी काम किया बड़ी दिलेरी और हौसला मंदी के साथ किया।
उन्होंने सीकर महायज्ञ के लिए बड़ी रकम दी। आपने कान्फ्रेंस कराई और उन पर काफी खर्च किया। देने में कभी भी कंजूस नहीं रहे।
आपका जन्म संवत 1952 (1895 ई.) विक्रम में चौधरी जीवनराम जी जाखड़ के घर हुआ था। आप घर पहले से ही संपन्न है घर है। तमाम सीकर वाटी में अच्छे से अच्छे घरों में आपका प्रमुख स्थान है रहता है।
11. चौधरी लेखरामजी - [पृ.307]: सीकर ठिकाने की लक्ष्मणगढ़ तहसील में कसवाली जाटों का एक अच्छा गांव है। उसी में डोटासरा गोत्र के जाट सरदार चौधरी बीजाराम के घर संवत 1960 विक्रम में जिस लड़के का जन्म हुआ वही आगे चलकर चौधरी लेखराम जी के नाम से जाहिर हुआ। आप चार भाई हैं। आरंभ में आप जाट पंचायतों के अधीन ही काम करते थे किंतु जब सेठ जमनालाल के एजेंटों ने
[पृ.308]: प्रजामंडल को जन्म दिया तो आप उसमें शामिल हो गए और तभी से उसमें काम करते हैं। जाट बोर्डिंग हाउस में भी आपने काम किया है। जवान आदमी हैं।
अभी 2 साल पहले ठिकाने के मौल्यसी गोलीकांड में अपने भाइयों की जान माल की हिफाजत करते हुए आपकी एक टांग टूट गई थी और उस के सिलसिले में 6 महीने तक अस्पताल में भी रहे थे। आप घूम फिर कर बराबर लोगों में बेचैनी पैदा करने का प्रयत्न करते रहे हैं और मेहनती आदमी है।
12. चौधरी बक्साराम कुदन - [पृ.308]: सीकर के जाटों का कूदन पेरिस है। उसी में चौधरी नाथाराम सबसे बड़े चौधरी थे। सीकर के राव राजाओं के साथ अच्छे तालुक कायम करके उन्होंने और उनके पूर्वजों अच्छी माया पैदा की थी। उन्होंने अपने समय में अच्छे चमकदार मकान बनवाए और पैसे के लिहाज से अपने को खूब ऊंचा बना लिया। वे कौमी सेवा के टंटों से दूर रहना पसंद करते थे। बिरादरी का जीवन उन्हें पसंद नहीं था। उनके बड़े लड़के बक्षा राम जी ने सीकर के यज्ञ में काफी सहयोग दिया।
मि. वेब जिस समय कुदन पर चढ़ कर गए थे उस समय भी बक्शा राम जी ने कहा था कि यदि बकाया लगान ही लेने आए हो तो जितने भी बाकी हो मुझसे ले जाओ। यह फौज फर्रा किस लिए लाए। किंतु मि. वेब तो जाटों को सबक सिखाने पर तुले हुए थे।
[पृ.309]: गांव की लूट हुई और उसमें बक्सा राम जी भी अछूता नहीं रहे।
13. चौधरी गौरूसिंह जी कटराथल - [पृ.309]: सीकर की ठिकाना शाही सत्ता जब जाटों के आंदोलन से घबरा उठी तो उसने सभाओं पर दफा-144 लगा दी। उस समय कानून भंग करने का जाट नेताओं ने एक उपाय सोचा और वह यह है कि पुरुषों की सभाएं न करके स्त्रियों की की जाय। लगभग 10000 स्त्रियों ने उस कांफ्रेंस में भाग लिया जिसकी सभापति श्रीमती उत्तमा देवी (स्वर्गीय पत्नी ठाकुर देशराज) और स्वागताध्यक्ष श्रीमती किशोरी देवी जी (धर्मपत्नी सरदार हरलाल) थी।
जहां के लोगों ने हिम्मत करके और पुलिस की मार खाकर भी इस कांफ्रेंस को सफल बनाया वह गांव कटराथल के नाम से मशहूर है। यही के चौधरी खुमानाराम के पुत्र चौधरी गोरु राम जी हैं। आप सीकर महायज्ञ के समय यज्ञ-रक्षकगण बनाए गए थे। यज्ञ के समाप्त ही आपको गिरफ्तार कर लिया गया। आप गिरफ्तारी से डरने वाले आदमी नहीं है। आप सीकर वाटी जाट पंचायत के मंत्री रहे हैं। आप के तीन लड़के हैं: 1. ओमप्रकाश, 2. रामचंद्र और 3. ब्रहभान जी ।
आपका जन्म संवत 1952 में श्रावण बदी 2 को हुआ था। आप मिजाज के गर्म और मजबूत आदमी हैं।
14. चौधरी बिरधूराम जी - [पृ.309]: पलथाना ऐसा गांव है जहां जागृति का बिगुल बजा
[पृ.310]: तब वहां ज्यादा से ज्यादा कार्यकर्ता और लीडर हो तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है। चौधरी जोधाराम जी के पुत्र चौधरी बिरधूराम जी पलथाना के धनी आदमियों में से हैं। उन्होंने जाट महायज्ञ से ही काम आरंभ किया था और जाट आंदोलन में गिरफ्तार भी हुए थे। आपने जाट बोर्डिंग हाउस सीकर को 1100 रुपए दान देकर एक कमरा बनवाया हुआ है। आपके पुत्र श्री चंद्रसिंह जी हैं। भाई आप के आठ हैं। आपका जन्म संवत 1948 विक्रम में हुआ था।
15. चौधरी हरीसिंहजी - [पृ 310]: पलथाना में ही एक चौधरी हरि सिंह जी हैं जो चौधरी तुलाराम जी के लड़के हैं। आपने सीकर महायज्ञ में काम किया है और फिर पीछे जाट आंदोलन के सिलसिले में 3 महीने जेल में रहे। जाट बोर्डिंग हाउस सीकर को आपने ₹151 का दान दिया था। आप के पुत्र का नाम नाथूराम है।
इन के सिवा पलथाना में जाट कौम के सेवक और जाट आंदोलन में जेल जाने वालों में चौधरी पन्नेसिंह, चौधरी जगन सिंह, चौधरी पेमा सिंह और चौधरी धनाराम तथा चौधरी रामू जी के नाम मुख्य हैं।
16. चंद्रभान जी सीकर (सलकलायन), बामनोली, मेरठ
16. चंद्रभानजी सीकर - [पृ.310]: जन्म मंगसिर सुदी 7 संवत 1965 विक्रमी पिता चौधरी भोलू सिंह जी गोत्र सलकलायन, गांव बामनोली जिला मेरठ। इस गोत के जिला मेरठ के 84 गांव है। आप तीन भाई हैं। दो छोटे भरत सिंह और चरण सिंह। भरत सिंह
[पृ.311]: खेती करते हैं। चरणसिंह जी नागौर में महेश्वरी स्कूल के हेडमास्टर हैं। आप सन् 1925 के दिसंबर में सरदार हरचरण सिंह के घर गांव हनुमानपुरा शेखावाटी में आए। हरलाल सिंह जी को लिखना पढ़ना सिखाया। सन् 1929 से 1938 तक सीकर के कूदन, पलथाना में कासली मितड़बास, पिपराली में अध्यापक का काम किया। जाट महायज्ञ के स्वागत मंत्री रहे। सन् 1934 में यज्ञ के बाद दो दफा गिरफ्तार हुए। 3-3 माह जेल में रहे।
सन 1938 से सीकर में दुकान करते हैं। इस समय जाट बोर्डिंग सीकर के खजांची हैं। आपके 3 पुत्र और दो पुत्रियां हैं। हरि सिंह, शेर सिंह, किशोर सिंह लड़कों के नाम हैं। हरि सिंह, शेर सिंह पढ़ते हैं। आपकी धर्मपत्नी पढ़ी लिखी है। उनका बुद्धिमती देवी नाम है। लड़की रामदुलारी देवी और शांति देवी है। वह भी पढ़ती हैं।
आप सेवा संघ सीकर के मंत्री हैं। और हिंदू सभा सीकर राज के उप मंत्री हैं। स्वभाव से बहुत मीठे और मिलनसार हैं। सीकर के लोगों को आप की ईमानदारी पर विश्वास है। इसमें संदेह नहीं सीकर में जो जागृति है उसमें मास्टर चंद्रभान का हाथ अवश्य रहता है।
आप करते ज्यादा और कहते कम प्रकृति के मनुष्य में से हैं। इसलिए हर दिल अजीज हैं।
17. चौधरी जवाहरसिंहजी चंद्रपुरा - [पृ.311]: सीकर से 3-4 मील के फासले पर एक चंद्रपुरा गांव है। यह गांव भी सीकर की सन् 1933-34 और 35 की हलचल
[पृ.312]: के लिए केंद्र जैसा रहा था। पहले संघर्ष की विजय के समाचार यहीं पर जाट नेताओं को मिले थे।
यहां पर मावलिया गोत के चौधरी चिमनाराम जी एक प्रतिष्ठित जाट सरदार थे। चौधरी जवाहर सिंह जी उनके पुत्र हैं। आप का जन्म संवत 1957 विक्रम (1900 ई.) के वैशाख सुदी 8 को हुआ था।
आपको भी दो बार सीकर संघर्ष में जेल जाना पड़ा है और आपने अपनी जाति प्रेम का परिचय हर समय दिया है। आप के दूसरे भाई का नाम गोवर्धन सिंह जी है । आपके लड़के का नाम हरिसिंह जी और भतीजे का नाम भगवान सिंह जी है। सीकर जाट बोर्डिंग में आपने सचाई से काम किया है।
18. चौधरी गणेशरामजी सीकर - [पृ.312]: सेवा के अनेक प्रकार हैं। सीकर के चौधरी गणेश राम जी ने भी कौम की काफी सेवा की है। वह दुकानदार है। उससे जो आमदनी होती है उसी में से उन्होंने जितना बन पड़ा है जातीय कामों के लिए दान दिया है। सीकर के जाट महायज्ञ के बाद से वे जाट सभा और किसान सभा के मार्ग में आए तभी से वे जाट सभा में हैं।
आपका जन्म संवत 1962 विक्रम असौज महीने की शुक्ल दशमी को सेवदा गोत्र के जाट चौधरी ज्ञानाराम जी के यहां हुआ। आपके दो भाई चौधरी पूराराम और जोधा राम जी हैं।
आप स्वागत सत्कार कार्य में कभी पीछे नहीं हटते। आर्थिक सहायता देते ही हैं। इसके अलावा कौमी सेवा
[पृ.313]: के सिलसिले में जेल हो आए हैं। पहली बार लगान-बंदी में और दूसरी बार खुड़ी काण्ड के सिलसिले में।
19. चौधरी गणपतिरामजी - [पृ.313]: पलसाना के एक प्रेमी नौजवान चौधरी गणपति रामजी बुरड़क हैं। आपके पिताजी का नाम चौधरी हरिराम जी था। आपका जन्म संवत 1970 में हुआ। आपके दो छोटे भाई भगत सिंह और हनुमान सिंह जी हैं। आप महायज्ञ के समय से ही कौमी क्षेत्र में हैं। आप को जयपुर में गिरफ्तार भी किया गया और कोतवाली में कुछ दिन तंग करके छोड़ दिया। प्रेम के साथ शक्तिभर कौमी सेवक हैं।
20. चौधरी ज्ञानूसिंह - [पृ.313]: सीकर वाटी में परडोली छोटी जाना माना गांव है। यही के चौधरी लछमण राम जी के आप सुपुत्र हैं। आप का जन्म संवत 1975 विक्रमी में में हुआ था। गोत्र आपका बेरवाल है।
इस समय आप लगन के साथ किसान सभा में काम करते हैं। पिछले तमाम हलचलों में आपने दिलचस्पी ली है।
21. चौधरी चंद्रारामजी - पृ.313]: जिसने अपने बाहुबल और सैनिक चातुर्य से और
[पृ.314]: मुल्क दोनों में ही नाम पैदा किया वे पलथाना के सूबेदार चौधरी चंद्रा रामजी हैं। आपका जन्म संवत 1932 (=1875 ई.) में पल थाना के चौधरी विरधाराम जी के घर हुआ था। आप बुरडक गोत्र के जाट सरदार हैं।
आप सन 1902 में फौज में सिपाही के दर्जे से भर्ती हुए और सन 1903 में ईरान और अरबी स्थान में आप मोर्चे पर भेजे गए। सन 1910 से 12 तक ईरान में रहे और बराबर ओहदों की तरक्की पाते रहे। और सन 1915 में सूबेदार हो गए। जर्मन महायुद्ध के खत्म होने पर सन 1920 में आपने पेंशन ले ली। आप के पुत्र फतेह सिंह गुजर चुके हैं। 3 पौत्र हैं- 1. देव सिंह, 2. प्रेमसुख और 3. चेतराम उनके नाम नाम हैं।
आप सीकर महायज्ञ के समय यज्ञ कमेटी के कोषाध्यक्ष थे।
सन् 1938 में दशहरा दरबार पर सीकर ठिकाने की ओर से आपको सिरोपाव मिला है जिसमें दो दुशाले, एक अचगन, एक दुपट्टा, एक पगड़ी और जवाहरात की कंठी है। इस प्रकार आप और सरकार दोनों में इज्जत प्राप्त हैं।
22. चौधरी कन्हैयालालजी - [पृ.314]: सीकर वाटी के पढ़े-लिखे नौजवानों में से जिसने सबसे पहले कौमी सेवा के मार्ग में पैर रखा है वह चौधरी कन्हैयालाल जी हैं।
वीर यौध्यो की एक शाखा महलावत जाटों के नाम से प्रसिद्ध है। सीकर वाटी में महलावातो की तादाद काफी है। आप इसी गोत्र के चौधरी जायूराम के सुपुत्र हैं और गांव आपका सरूपसर है।
[पृ.315]: आपका जन्म संवत 1968 में हुआ था। मैट्रिक पास करके आप कोमी सेवा के कामों में जुट गए। गौरू सिंह जी के बाद आप सीकर वाटी जाट पंचायत के मंत्री नियुक्त हुए और बहुत दिनों तक सीकर जाट बोर्डिंग हाउस के सुपरिंटेंडेंट और मंत्री रहे हैं। आप तीन भाई और चार आपके संतान हैं।
जाट बोर्डिंग हाउस सीकर का काम करते हुए आप प्रजामंडल के घर में भी शामिल हो गए और उसके प्रचार कार्य को बराबर सहायता देते रहे हैं।
आप मनोवृति से समझौता पसंद आदमी हैं। सीकर के जाटों में जाट सभाई और प्रजा मंडली दो पार्टी हैं। प्रजा मंडलियो की संख्या न के बराबर है किंतु फिर भी आप दोनों ही पार्टी के साथ मिलकर कार्य करना अधिक अच्छा समझते हैं। आप में महसूस करने का माद्दा है इसलिए शहरी जमात की मनोवृत्ति को पहचानते हैं जो जाटों के लिए कभी चित कर नहीं रही।
23. चौधरी त्रिलोकसिंहजी - [पृ.315]: सीकर के नौजवानों में एक तेजस्वी नौजवान हैं चौधरी त्रिलोक सिंह। आपको फॉरवर्ड मेन कहना अत्युक्ति नहीं होगी। डर आप को छू नहीं गया है। जिस समय समय आप बोलते हैं मुर्दा नसों में खून का संचार होने लगता है। यह है आप की विशेषताएं।
आप अल्पसर गांव के रहने वाले चौधरी बलदेवसिंह जी के सुपुत्र हैं। आप का गोत्र महलावत है और आप को इस बात का अभिमान है कि हम वीर यौद्धेयों के संतान हैं। आपने मिडिल पास करके पढ़ना लिखना छोड़ दिया
[पृ.316]: और कोमी सेवा के काम से जुट गए। आप जितने पढे हैं गुणे उससे कहीं बहुत ज्यादा है। व्यवहारिक ज्ञान में आप ऊंची डिग्री वालों के कान काटते हैं।
प्रजामंडल में आप हमेशा वाम पक्ष के रहे हैं। पुराने महाढीस मनोवृत्ति के लीडर आप से घबराते हैं।
सन 1946 में जयपुर राज्य में जो नया किसान संगठन आरंभ हुआ उसके आप एक रथी बने और बराबर उसके काम को आगे बढ़ाते रहे और अब भी उन्हीं कदमों पर किसानों के संगठन का प्रचार करते हैं। वह इस नारे के समर्थक हैं की “स्वतंत्र भारत में किसान राज्य हो” और रियासत में शासन सत्ता किसानों के हाथों में आनी चाहिए क्योंकि एक बुजुर्वा लोगों से किसान हित की कतई उम्मीद नहीं रखते। आप पांच भाई हैं जो सभी निडर प्रकृति के हैं। आपका गांव तेजस्विता के लिए मशहूर है
24. शहीद रतनसिंह - [पृ.316]: जिसने सीकर जाट आंदोलन को अपनी बलि देखकर जीवित बनाया। उस मरदाने वीर का नाम चौधरी रतन जी अथवा रतनसिंह जी था। फकीरपुरा के बाजिया गोत्र में संवत 1952 विक्रमी में उनका जन्म हुआ था। सीकर महायज्ञ के समय से ही वे कौम का काम करने लगे थे और आंदोलन में भी पूरा भाग ले रहे थे। खुड़ी में जबकि वे वहां के एक राजपूत जमीदार के मकान के सामने होकर निकल रहे थे राजपूत ने उनका सिर काट लिया। उन्होंने अपने पीछे तीन भाई और एक पुत्र छोड़ा है। वे मर गए हैं किन्तु उनका नाम अमर है। नौजवानों को प्रतिक्षण स्फूर्ति देता है।
25. शहीद चौधरी शंभूसिंहजी- [पृ.317]: खुड़ी कांड में जिन दूसरे जाट सरदार ने वीरगति प्राप्त की वे चौधरी शंभूसिंह जी हैं। आपका जन्म संवत 1940 (1883 ई.) में चौधरी फल्लू रामजी गोठड़ा भूखरान निवासी के घर हुआ था। आप कुँवर पृथ्वीसिंह जी के सत्संग से कोमी सेवा के मार्ग पर उतरे थे। जिस समय आपने सुना की खुड़ी में जाट बरात रोक ली है, दूल्हा को घोड़े पर चढ़कर तोरण मारने से अक्ल के अंधे ठिकानेदार के आदमी रोकते हैं तो खुड़ी पहुंचे और मोर्चे पर वीरगति को प्राप्त हुए आप के पुत्र केसाराम जी हैं।
26. शहीद चौधरी चेताराम जी - [पृ.317]: चौधरी चेताराम जी का जन्म संवत 1950 विक्रमी (1893 ई.) में गोठड़ा में हुआ था। आप भूकर गोत्र के चौधरी सामूराम जी के पुत्र थे। आपने अपने पीछे दो संताने छोडी हैं। एक दिन प्रातः आपने सुना कि सीकर ने कूदन पर सैकड़ों हथियारबंदों के साथ चढ़ाई कर दी है तो आप दौड़ कर कूदन पहुंचे। एक टीले के पास आपने अपने साथियों को मोर्चे पर जमाया। यही आप गोली का निशाना हुये। और सदा के लिए अपना नाम अमर कर के इस संसार से चल बसे।
27. शहीद चौधरी टीकूराम और 28. शहीद चौधरी तुलछाराम - [पृ.317]: भूकरों के गोठड़ा ने कुदन गोलीकांड में अपना हिस्सा सभी गांव से बढ़कर अदा किया। शंभू सिंह और चेताराम की तरह उसने अपने दो लालों को कूदन कांड में और बलि दी
[पृ.318]: उनके नामीनाम चौधरी टीकूराम और तुलछाराम है। टीकुराम जी चौधरी हुकमाराम जी भूकर के पुत्र थे और संवत 1954 (1897 ई.) में उनका जन्म हुआ था। उन्होंने अपने पीछे दो लड़का हनुमान सिंह और नारायण सिंह छोड़े हैं।
चौधरी तुलछाराम जी चौधरी दौलाराम जी के पुत्र थे और आपका जन्म संवत 1940 (1883 ई.) में हुआ था। आपने अपनी पीछे चार सन्तानें पिथा, गोरू, गोभा और भाना छोड़ी हैं। यह दोनों ही वीर सीकर महायज्ञ के समय से ही कौम का काम करने लगे थे और बड़े उत्साह पुरुष थे।
29. शहीद चौधरी आसारामजी - [पृ.318]: सीकर में अजीतपुरा पिलानिया जाटों का एक अच्छा गांव है। उस गांव के लोग भी बड़े प्रेम से कौमी सेवा के कार्यों में भाग लेते हैं। कुदन कांड में इस गांव में भी एक बलि देकर अपने नाम को महता दी है।
चौधरी डूंगाराम जी पिलानिया के बेटे चौधरी आसाराम जी को चाहे पहले कोई नहीं जानता हो किंतु अब उनका नाम श्रद्धा के साथ याद किया जाता है क्योंकि कुदन कांड में उन्होंने वीरों की भांति जूझ कर अपने को अमर बनाया है।
30. शहीद चौधरी रूड़ाराम और 31. शहीद चौधरी हीरारामजी - [पृ.318]:जहां ठिकानेदारों ने शनै: शनै: वहां के भोमिए जाटों को जमीन की मालिकों से वंचित किया वहां जमीन में पैदा होने वाले पेड़ों के स्वामित्व से भी खारिज करने की चालें चलना शुरु कर दिया। सीकर में बठोठ एक छोटी सी जागीर है। वहां के किसान एक पेड़ को काटना चाहते थे। ठिकानेदार उस पेड़
[पृ.319]: को अपना धन मानता था। इसी पर झगड़ा हो गया और मदांध ठाकुर ने दो बहादुर किसानों को गोली का निशाना बना दिया। उन्हीं अमर शहीदों को सीकर के लोग चौधरी रूड़ाराम और चौधरी हीराराम जी के नाम से याद करते हैं। आप दोनों ही ढाका गोत्र के जाट सरदार थे और बठोठ आप की जन्मभूमि थी।
32. चौधरी भगवानसिंहजी - [पृ.319]: सीकर के पास ही देवीपुरा एक गांव है। सीकर के राजा साहब के तफरीह के भवन भी देवीपुरा में ही हैं। यहीं के खीचड़ गोत्र के जाट सरदार चौधरी डूंगाराम जी के सुपुत्र चौधरी भगवानसिंह जी हैं। आप सीकर महायज्ञ के समय से जाट कौम का काम कर रहे हैं।
कुछ लोग ऐसे होते हैं जो नाम के लिए काम करते हैं और कुछ लोग ऐसे होते हैं जो परोपकार के कामों को अपना कर्तव्य समझते हैं। चौधरी भगवान सिंह जी अपना कर्तव्य समझकर ही कौम का काम करने वाले आदमियों में से हैं। आप पांच भाई हैं और चार आपकी संतान हैं। दिलीपसिंह, मूलचन्द्र पढ़ते हैं, बलबीर, भारतवीर छोटे हैं। लड़की शांति देवी है।
33. चौधरी किशनसिंहजी - [पृ.319]: बाटड़ा नाउ गांव के दूसरे प्रसिद्ध जाट सरदार चौधरी मुकुंदा राम बाटड़ के पुत्र चौधरी किशन सिंह जी से सीकर वाटी के सभी लोग परिचित हैं। पहले तो वे जाट सभा के काम में शामिल हुये किंतु अब वह कई वर्ष से प्रजामंडल में काम करते हैं। थेला लेटर गांव-गांव में घूमने का काम उनसे ज्यादा शायद ही कोई प्रजामंडली सीकर में करता हो। कोसों पैदल चलकर
[पृ.320]: काम करना हो और श्रेय का भागी खुद न बनना उनके हिस्से में आया। वह एक नौजवान आदमी हैं और परिश्रम का जीवन बिताते हैं। आप के चार भाई हैं और 6 संतान हैं।
34. चौधरी मनसारामजी - [पृ.320]: प्रौढ़ उम्र के एक आदमी जो पूरे कद और खादी के वस्त्रों से पहचाने जा सकते हैं। वह चौधरी मनसाराम जी हैं। पहले आपने जाट आंदोलन में कार्य किया अब आप प्रजामंडल में काम करते हैं। आपके 5 संताने हैं। आप थालोड गोत्र के जाट सरदार हैं और नारसरा आपका गांव है।
35. चौधरी चंद्रसिंहजी - [पृ.320]: बीबीपुर के चौधरी किसनाराम जी बिजारणिया के पुत्र चौधरी चंद्रसिंह जी को काफी लोग जानते हैं। पहले वे जाट आंदोलन में बराबर भाग लेते रहे पीछे प्रजामंडल की प्रगतियों को आगे बढ़ाने में लग गये। तभी से प्रजामंडल में काम करते हैं आप तीन भाई हैं और पांच आप की संताने हैं।
36. चौधरी कुंवरनारायणसिंह - [पृ.319a]: सरूपसर और अलफसर सीकर ठिकाने में 2 पास-पास गांव हैं। जहां महलावत गोत्र के जाट हैं। महलावत यौद्धेय सरदारों की एक शाखा है। इन गांवों के महलावत हमेशा ही सीकर ठिकाने के निरंकुश शासन के खिलाफ लड़ते रहे हैं। वैसे यहां के जाटों में अगुआ हैं। इसी कारण इनको सरदारी का किताब है। आप बराबर कोशिश करते रहे लेकिन सामूहिक लगाना बंद नहीं करा सके इस कारण कामयाब नहीं हो सके।
[पृ.320a]: उन्होंने तय किया बिना विद्या हम कामयाब नहीं होंगे। आपके 3 लड़कों में से बड़े नानूराम घर के काम के लिए और कन्हैया लाल व कुमार नारायण को स्कूल में पढ़ने भेजा। जब समय 1990 में सीकर में जाटों पर दमन हो रहा था, मैट्रिक तक ही पढ़ाई करके कन्हैयालाल ने पढ़ाई छोड़ दी और जाति सेवा में ही अपना समय लगाना शुरु कर दिया। बिना कानून की जानकारी के हम ज्यादा अच्छी तरह जाति की सेवा नहीं कर सकेंगे। इसलिए इन्होंने कुमार नारायण को बीए-एलएलबी करवाया जो सीकर में सबसे पहला जाट वकील है।
इन सालो में टोल टैक्स, जागीरी पैमाइश व इस साल का छूट का आंदोलन इन सब में अगुआ होकर व संचालन कार्य कन्हैयालाल जी ने किया।
कुमार नारायण यहां के जाटों की ओर से जयपुर असेंबली और डिस्ट्रिक बोर्ड शेखावाटी के चुने हुए मेंबर हैं, जो यहां के कहां पर पेश करते हैं। इनसे यहां के जाटों को कानूनी सहायता मिलती है।
यहां के जाटों में सबसे पहले सामाजिक कुरीतियों को हटाने में सक्रिय कदम इन्होंने ही उठाया है। दोनों भाइयों की शादी में जेवर व दहेज का दर्शन तक नहीं हुआ। कुमार नारायण की शादी तो बिल्कुल ही नए ढंग से हुई। किसी तरह का पर्दा भी नहीं हुआ। लड़की 16 और लड़का 25 साल की उम्र में दोनों ही पूरी पढ़ाई करने के बाद शादी की गई। इनके घर में नुक्ता व किसी किस्म की कुरीति आज दिखाई नहीं देती है। विशेषता यह है कि घर में बच्ची और बच्चे सब पढ़ते हैं। सारा घर ही पढ रहा है। कन्हैयालाल के ब्रिज कुमार और कुंवर नारायण के विनोद नाम के लड़के हैं।
37. चौधरी खड़गसिंहजी [पृ.321]: अभी-अभी जिनका नाम एक उदीयमान तारे की भांति जाट जगत के सामने आया है उनका नाम चौधरी खड़गसिंह है। आप दिसनाउ गांव के चौधरी हुकम सिंह जी के पुत्र हैं। गोत्र आपका भी महला है। आपने वकालत पास की है और इस समय आप प्रैक्टिस कर रहे हैं। आपके छोटे भाई दूलसिंह जी पिलानी कॉलेज में प्रोफेसर हैं।
चौधरी खड़ग सिंह जी को इसी वर्ष के आरंभिक महीने जनवरी सन 1949 में सीकर ठिकाने के अधिकारियों ने एक झूठे इल्जाम में गिरफ्तार कराया था। आपके साथ ही चौधरी ईश्वर सिंह जी और त्रिलोक सिंह जी भी गिरफ्तार कराए गए थे।
आप एक होनहार और योग्य नौजवान हैं। कौम के लोग आप से काफी उम्मीदें रखते हैं।
38. चौधरी हरदेवरामजी : [पृ.321]: आप जेरठी के काजला घराने के चौधरी किसना रामजी के सुपुत्र हैं। जन्म आपका विक्रम संवत 1962 में हुआ है। आपके दो पुत्र हैं जो दोनों ही पढ़ते हैं। बड़े तनेसिंह जी मैट्रिक तक पढ़ चुके हैं और आगे पढ़ेंगे। छोटे लड़के का नाम फूलसिंह है वह भी पढता है।
चौधरी हरदेवराम जी सीकर के जाट महायज्ञ के समय से कौमी सेवा की ओर खींचे हैं और दिल से कौम की तरक्की के कामों से प्रेम रखते हैं। जेरठी गांव के सभी लोग अपनी कौमी सेवा को ठंडे ढंग से स्वीकार करते हैं और जिस से जितना बनता है काम करते हैं।
39. चौधरी रिडमलसिंह जी (डोरवाल)
39. चौधरी रिडमलसिंहजी - [पृ.321a]: अभी 2 वर्ष पूर्व सीकर जाट बोर्डिंग हाउस ने अपना वार्षिक उत्सव मनाया था। उसने मुझे प्रेसिडेंट की हैसियत से शामिल होना पड़ा था। वहाँ एक नए जवान से मेरा परिचय हुआ। राजपूती ढंग की वेशभूषा में नारंगी रंग का साफा बांधे हुए एक नौजवान बोर्डिंग के एक पदाधिकारी के रूप में अपना पार्ट अदा कर रहा था। पूछने पर पता चला कि इनका नाम रिडमल सिंह है और पिछले वर्ष से इनहोने बोर्डिंग की अच्छी सेवा की है। मैंने उनके लेक्चर भी सुने। अच्छा बोलते हैं और संयम के साथ बोलते हैं। बोलने से ज्यादा सोचते हैं। यह रिडमल सिंह जी की विशेषता है। आप पांच भाई हैं डहरवाल गोत्र के चौधरी गणपत सिंह जी के आप पुत्र हैं। मिडिल तक आपने शिक्षा पाई है। प्रजामंडल में आप काम करते हैं।
40. चौधरी लालसिंह - [पृ.321a]: माधोपुरा के चौधरी कन्हैयालाल जी कुल्हरी के पुत्र चौधरी लालसिंह जी एक अच्छे कार्यकर्ता हैं। आप तीन भाई हैं। पहले आप जाट आंदोलन में काम करते थे। पीछे से आप प्रजामंडल की हलचलों में भाग लेने लगे। आप लग्न के साथ अपने काम में चिपटे रहना और किसी विवाद में न पढ़ना अधिक पसंद करते हैं। अनुशासन पसंद आदमी होने से आप सर्व प्रिय है।
41. चौधरी हरदेवसिंह - [पृ.321a]: भूकर का गोठड़ा में चौधरी रामबक्स जी के बाद एक दूसरा संपन्न घराना भी है उसके मुखिया चौधरी हरदेव सिंह जी हैं।
[p.322a]: आपके पिता का नाम चौधरी भैरोंसिंह जी भूकर था। आपका जन्म संवत 1942 में हुआ है। आप की भाईचारे में चौधरी रामबक्स जी से प्रतिस्पर्धा रहती थी किंतु कौम के काम में आप पृथ्वी सिंह, गंगा सिंह के बराबर मददगार रहे। आप सीकर वाटी जाट पंचायत के कई वर्ष तक खजांची रहे हैं। सीकर के जाट आंदोलन में आप फरार हो गए और गंगा सिंह जी के साथ बाहर रहे। आपको 101/- रुपये जुर्माने के अदा करने पड़े। आपके मकान को भी सीकर के उन्मत अधिकारियों ने घेरा दिलवाया था और लूट भी कराई। आप के पुत्र का नाम सूरत सिंह जी है।
42. चौधरी डालूराम - [पृ.322a]: प्रत्येक लीडर का कोई नहीं कोई लेफ्टिनेंट होता है। कुंवर पृथ्वी सिंह जी के लेफ्टिनेंट चौधरी डालू रामजी भूकर से सभी कार्यकर्ता परिचित हैं। आपके पिताजी का नाम चौधरी जीवनराम जी था। आपका जन्म संवत 1944 में हुआ था। आपने सीकर महायज्ञ के समय ठाकुर हुकुम सिंह जी परिहार के साथ घूम-घूम कर यज्ञ के लिए धन संग्रह कराया। फिर आंदोलन के छिड़ने पर आप गिरफ्तार हो गए और 6 महीने तक जेल में रहे। आप अत्यंत उत्साही पुरुष हैं। आपके छोटे भाई का नाम बिरधू है. पुत्रों के नाम लोना और सुखराम हैं। आप अभी यथासाध्य काम करते हैं।
43. चौधरी बोहितरामजी - [पृ.322a]: सांखू में जाखड़ वंशी चौधरी जेसराज जी के पुत्र चौधरी बोहितराम जी से सीकर का प्रत्येक जाट कार्यकर्ता परिचित है।
[पृ.323]: उन्होंने पलथाना की आरंभिक मीटिंग को, जो सीकर राज्य की पहली मीटिंग कही जा सकती है, सफल बनाने में बड़ा प्रयत्न किया था। उसके बाद यज्ञ के काम को सफल बनाने में रात दिन घूम-फिर कर चंदा कराया। आप के तीन भाइयों के नाम हरदेव, अर्जुन और मंसाराम हैं। पुत्र सुखदेव, देबू और टीकूराम हैं। पौतों में गणपत सिंह सांखू में अध्यापक हैं और पृथ्वी सिंह और ईश्वर सिंह पढ़ते हैं।
44. पंडित जगदेवजी शास्त्री- [पृ.323]: जाट जगत का परिचय आप से सीकर महायज्ञ के समय से आरंभ हुआ। सीकर का जाट महायज्ञ आपके किरठल महाविद्यालय के ब्रह्मचारियों द्वारा संपन्न हुआ था। आप उनके आचार्य और यज्ञ के ब्रह्मा थे। पंडित रघुवीर सिंह जी शास्त्री उस समय ब्रह्मचारियों के अगवा मात्र थे।
पंडित जगदेव जी का जन्म संवत 1957 विजयदशमी के दिन रोहतक जिले के बदहाणा गांव में चौधरी प्रीतराम जी अहलावत जाट सरदार के यहां हुआ था। आपने आरंभ में उर्दू की शिक्षा पाई। उसके बाद सन 1914 ई. में फौज में चले गये।
फौज से लौटने के बाद गुरुकुल मटिंडू से आपने शास्त्री और सिद्धांति की परीक्षाएं दी। उनमें पास होने के बाद आर्य पाठशाला किरठल के अध्यापक बने। और उसे अपने परिश्रम से महाविद्यालय के उच्च पद पर पहुंचाया। आज वहां ब्रहमचारी शास्त्री और आचार्य तक की परीक्षाएं देते हैं।
जाट जाति के आर्यसमाजी विद्वानों में जगदेव जी का स्थान काफी ऊंचा है। वह परिश्रमी और सत्यनिष्ठ आदमी हैं।
[पृ.324]: उन्होंने अनेकों जाट बालकों को ऊंचा उठाया है। इस समय आप सम्राट द्वारा आर्य जगत की भारी सेवा कर रहे हैं।
सीकर के शेष परिचय
सीकर के शेष परिचय यहाँ देखें - सीकर के शेष परिचय (p.490-497)