Korparika
Author:Laxman Burdak, IFS (R) |
Korparika (कोर्पारिक) was an ancient village donated to Brahmanas and mentioned in Khoh Copper-plate Inscription of the Maharaja Hastin (482-483 CE).
Variants
- Korparika (कोर्पारिक) दे. Khoh Satna, M.P. (AS, p.237)
- Kôrparika (कोर्पारिक)
Origin
History
कोर्पारिक
विजयेन्द्र कुमार माथुर[1] ने लेख किया है ...कोर्पारिक (AS, p.237) प्राचीन भारत में गुप्त कालीन एक ग्राम था। 163 गुप्त संवत (482 ई.) के गुप्त कालीन दानपट्ट-लेख में, जो 'खोह' नामक स्थान, नागदा (मध्य प्रदेश) से प्राप्त हुआ था, उसमें कोर्पारिक नामक ग्राम का कुछ ब्राह्मणों को दान में दिए जाने का उल्लेख है। यह ग्राम खोह के निकट ही रहा होगा।
खोह
विजयेन्द्र कुमार माथुर[2] ने लेख किया है ....खोह (AS, p.260) मध्य प्रदेश में नागोद के निकट स्थित एक ऐतिहासिक स्थान है। इस स्थान से गुप्त कालीन ताम्रपत्रों और दानपत्रों पर लिखे अभिलेख प्राप्त हुए हैं। इन दानपत्र अभिलेखों में ब्राह्मणों एवं मन्दिरों के नाम दान आदि दिये जाने का उल्लेख है। इन अभिलेखों में महाराज हस्तिन द्वारा वसुंतरशांडिक नामक ग्राम का गोपस्वामिन व अन्य ब्राह्मणों को ग्राम दान का उल्लेख है। इसकी तिथि 475 ई. है।
एक दूसरे दानपत्र में महाराज हस्तिन द्वारा कोर्पारिक ग्राम के दान में दिए जाने का उल्लेख है, यह दानपत्र 482 ई.का है।
तीसरे दानपत्र में 528 ई. में संक्षोभ द्वारा ओपानी ग्राम के पिष्ठपुरी देवी (लक्ष्मी) के मन्दिर को दान का उल्लेख है। इसी लेख में महाराज हस्तिन को डाभाल प्रदेश का शासक बताया गया है। जे.एफ.फ्लीट के मत में यह प्रदेश बुन्देलखण्ड का इलाक़ा है जिसे डाहल भी कहते हैं.
खोह से ही महाराज जयनाथ तथा उनके पुत्र महाराज सर्वनाथ के भी कई दानपत्र प्राप्त हुए हैं। प्रथम पट्ट 496 ई. उच्छकल्प से प्रचलित किया गया था. इसमें धवशांडिक ग्राम का भागवत (विष्णु) के मंदिर के लिए दान में दिए जाने का उल्लेख है. मंदिर की स्थापना ब्राह्मणों ने इस ग्राम में की थी. दूसरा दानपट्ट 512 ई. में लिखा गया था. इसमें महाराज सर्वनाथ द्वारा तमसा तटवर्ती आश्रमक नामक गांव का विष्णु तथा सूर्य के मंदिरों के लिए दान में दिए जाने का उल्लेख है. तमसा नदी मैहर की पहाड़ियों से निकलती है. तीसरा दानपट्ट (तिथि रहित) भी उच्छकल्प से प्रचलित किया गया था. इसमें महाराज सर्वनाथ द्वारा धवशांडिक ग्राम के अर्ध भाग को पिष्ठपुरिका देवी के मंदिर के लिए दान में दिए जाने का उल्लेख है. चौथा और पांचवां दानपट्ट भी महाराज सर्वनाथ
[p.261]: से ही संबंधित है. चौथे का विवरण नष्ट हो गया है. पांचवें में सर्वनाथ द्वारा मांगिक पेठ में स्थित व्याघ्रपल्लिक तथा काचरपल्लिक नामक ग्रामों का पिष्ठपुरिका देवी के मंदिर के लिए दान में दिए जाने का उल्लेख है. इसकी तिथि 533 ई. है इसमें जिस मानपुर का उल्लेख है वह स्थान फ्लीट के मत में सोन नदी के पास स्थित ग्राम मानपुर है. खोह के दानपट्ट से गुप्त कालीन शासन-व्यवस्था के अतिरिक्त उस समय की धार्मिक पद्धतियों एवं तत्कालीन सामाजिक स्थिति एवं धार्मिक विश्वास पर प्रकाश पड़ता है।